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विदेशियों के लिए निवास का अधिकार (Right of residence for foreigners)

Samsul Ansari January 18, 2024 06:13 181 0

संदर्भ

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल के एक फैसले में निर्दिष्ट किया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-19(1)(e) के तहत भारत में रहने के अधिकार का दावा विदेशियों द्वारा नहीं किया जा सकता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

यह फैसला एक संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिक द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट याचिका पर आया, जिसमें दावा किया गया था कि उसकी हिरासत अवैध और बिना अधिकार के है।

न्यायालय द्वारा टिप्पणी

  • हंस मुलर ऑफ नूरेनबर्ग बनाम सुप्रीटेंडेंट, प्रेसीडेंसी जेल, कलकत्ता, 1955: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विदेशियों को निष्कासित करने की भारत सरकार की शक्ति पूर्ण और असीमित है तथा संविधान में इस तरह के विवेक को बाधित करने वाला कोई प्रावधान नहीं है।
  • अनुच्छेद 21: विदेशियों के अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत घोषित यानी जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तक सीमित हैं।

भारतीय संविधान में विदेशियों को मौलिक अधिकार

अनुच्छेद-14 विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण
अनुच्छेद-20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
अनुच्छेद -21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
अनुच्छेद-21(A)  प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार
अनुच्छेद-22 कुछ मामलों में हिरासत एवं नजरबंदी से संरक्षण
अनुच्छेद-23 बलात् श्रम एवं अवैध मानव व्यापार के विरुद्ध प्रतिषेध
अनुच्छेद-24 कारखानों आदि में बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध
अनुच्छेद-25 अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म का स्वतंत्र व्यवसाय, अभ्यास और प्रचार
अनुच्छेद-26 धार्मिक सम्मलेन एवं अनुष्ठानों को आयोजित करने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद-27 किसी भी धर्म को बढ़ावा देने के लिए करों के भुगतान से छूट
अनुच्छेद-28 कुछ शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता

विदेशियों के कानूनी अधिकार

  • वर्ष 1939 का विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम और वर्ष 1946 का विदेशी अधिनियम (फॉरेनर्स एक्ट) विदेशियों के भारत में प्रवेश, निवास और निष्कासन को नियंत्रित करता है। ये कानून केंद्र सरकार को विदेशियों के मौलिक अधिकारों को बनाए रखने की शक्तियाँ प्रदान करते हैं।
  • वर्ष 1946 के विदेशी अधिनियम की धारा 3: इसमें आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने से लेकर एक निर्धारित या विशिष्ट दर्जे के व्यक्तियों से मिलने पर रोक लगाने से लेकर विदेशियों को एक विशिष्ट स्थान पर निवास की आवश्यकता तक के सरकारी नियम शामिल हैं।
    • इसमें घर में गिरफ्तारी, कारावास, एकांत कारावास और भारत से निष्कासन के प्रावधान भी शामिल हैं।
  • वर्ष 1920 का पासपोर्ट अधिनियम और 1946 का विदेशी अधिनियम: यह भारत से किसी व्यक्ति के निष्कासन या निर्वासन की अनुमति देता है।

रिट याचिकाएँ

  • परिभाषा: यह न्यायालय के नाम पर लिखित रूप में एक आदेश है। यह न्यायालय द्वारा जारी किया गया एक कानूनी दस्तावेज है जो किसी व्यक्ति या इकाई को एक विशिष्ट कार्य करने या कार्य को करने से रोकने का आदेश देता है।
  • जारीकर्ता: ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए जाते हैं।
  • प्रकार: रिट 5 प्रकार की होती हैं-
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण: इस रिट के आधार पर, न्यायालय हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उसकी हिरासत की वैधता की जाँच करने के लिए उसके सामने लाने का निर्देश देता है। इसे सार्वजनिक प्राधिकारियों और व्यक्तियों दोनों के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।
    • परमादेश: इसका अर्थ है ‘हम आदेश देते हैं’ और न्यायालय द्वारा एक सार्वजनिक प्राधिकरण को उन कानूनी कर्तव्यों को पूरा करने का निर्देश देने के लिए जारी किया जाता है जिन्हें उसने नहीं किया है या करने से इनकार कर दिया है। इसे किसी सार्वजनिक अधिकारी, सार्वजनिक निगम, न्यायाधिकरण, अवर न्यायालय या सरकार के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।
    • उत्प्रेषण: यह एक उपचारात्मक रिट है यानी इसे निचली अदालत या न्यायाधिकरण के उन आदेशों को सुधारने के लिए पारित किया जाता है, जो उसकी शक्तियों से परे हैं या कानून में कोई त्रुटि हुई है।
    • अधिकार-पृच्छा: इसका अर्थ है ‘किस अधिकार से’ और इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को उस पद को धारण करने से रोकना है, जिसका वह हकदार नहीं है, इसलिए किसी भी सार्वजनिक कार्यालय को हड़पने से रोकना है।
    • निषेध: यह निचली अदालतों, न्यायाधिकरणों और अन्य अर्द्ध-न्यायिक अधिकारियों को उनके अधिकार से परे कुछ करने से रोकने के लिए एक न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।

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