हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने UAPA मामले में न्यूजक्लिक के मुख्य संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी एवं रिमांड को रद्द कर दिया।
संबंधित तथ्य
मामले के बारे में: न्यूजक्लिक के मुख्य संपादक की रिमांड एवं गिरफ्तारी को लेकर
न्यूजक्लिक के मुख्य संपादक को दिल्ली पुलिस ने भारत की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर करने के उद्देश्य से अमेरिका के माध्यम से चीन से अवैध धन प्राप्त करने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
उच्चतम न्यायालय का निर्णय: न्यायालय ने कहा कि आवेदन करने के बावजूद पुरकायस्थ को FIR की कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गई।
यह उन्हें गिरफ्तार होने के दो दिन बाद एवं पुलिस हिरासत में भेजे जाने के एक दिन बाद प्रदान किया गया, जो सूचना देने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
अनुच्छेद-20, 21 एवं 22 के तहत सूचना का अधिकार
गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करना ‘हितकर एवं रक्षणीय’ (Salutary & Sacrosanct) है क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद-22(1) के तहत गारंटीकृत एक मौलिक अधिकार है।
इसलिए, यह UAPA के कड़े प्रावधानों के साथ-साथ गिरफ्तारी से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
न्यायालय ने कहा कि ‘गिरफ्तारी का आधार’ निश्चित रूप से आरोपी का व्यक्तिगत होगा एवं इसे ‘गिरफ्तारी के कारण’ के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है, जो सामान्य प्रकृति के होते हैं।
लिखित रूप में दी गई गिरफ्तारी के आधार पर गिरफ्तार आरोपी को वे सभी बुनियादी तथ्य बताए जाने चाहिए, जिनके आधार पर उसे गिरफ्तार किया जा रहा है, ताकि उसे हिरासत में रिमांड के खिलाफ स्वयं का बचाव करने एवं जमानत लेने का अवसर मिल सके।
उच्चतम न्यायालय नेजमानत एवं जमानत बॉण्ड के साथ उनकी रिहाई का आदेश दिया क्योंकि आरोप-पत्र भरा जा चुका है।
गिरफ्तारी के मामले में सूचित किए जाने का अधिकार
CrPc की धारा 50(1) में उल्लेख किया गया है कि जो पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार कर रहा है, उसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह बताना होगा कि उसके अपराध का आधार क्या है जिसके लिए उसे गिरफ्तार किया गया है।
यदि उसने जो अपराध किया है वह जमानती प्रकृति का है तो यह पुलिस अधिकारी का भी कर्तव्य है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को सूचित करे कि वह जमानत पर रिहा होने का हकदार है एवं वह अपनी ओर से जमानतदारों की व्यवस्था कर सकता है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-22
इसमें कहा गया है कि गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी जानी चाहिए।
यह गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी के बारे में अपने परिवार के सदस्यों, किसी रिश्तेदार या अपने दोस्त को सूचित करने का अधिकार भी देता है।
सूचित किए जाने का अधिकार (Right to be informed)
इसका अर्थ है पारदर्शी होना एवं किसी को आवश्यक जानकारी तक पहुँचने की अनुमति देना। सूचना पाने के अधिकार को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है।
उदाहरण के लिए,उपभोक्ताओं को उनके द्वारा खरीदे जा रहे उत्पाद या सेवा के बारे में सूचित होने का अधिकार होना चाहिए।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1986 सूचना के अधिकार को उपभोक्ताओं के कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता देता है।
नागरिकों को यह जानने का भी अधिकार है कि सरकार उनके व्यक्तिगत डेटा का उपयोग कैसे करती है।
एक नागरिक को किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से आवश्यक किसी भी जानकारी तक पहुँचने में सक्षम होना चाहिए।
सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act), 2005
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 में सूचना की कुछ श्रेणियाँ सूचीबद्ध हैं, जिनका खुलासा नहीं किया जा सकता है।
UAPA एक आतंकवाद विरोधी कानून है, जिसे पहली बार वर्ष 1967 में भारत की संप्रभुता एवं अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली गतिविधियों को प्रभावी ढंग से रोकने तथा उनसे निपटने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ लागू किया गया था।
प्रयोज्यता
इस अधिनियम के प्रावधान भारत के बाहर के नागरिकों पर भी लागू होते हैं।
सरकार की सेवा में कार्यरत व्यक्ति, चाहे वे कहीं भी हों।
भारत में पंजीकृत जहाजों एवं विमानों पर सवार व्यक्ति, चाहे वे कहीं भी हों।
गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 43B के तहत गिरफ्तारी, जब्ती आदि की प्रक्रिया
धारा 43A के तहत किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाला कोई भी अधिकारी, जितनी जल्दी हो सके, उसे ऐसी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करेगा।
धारा 43A के तहत गिरफ्तार किए गए प्रत्येक व्यक्ति एवं जब्त किए गए सामान को बिना किसी अनावश्यक देरी के निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को भेजा जाएगा।
वह प्राधिकारी या अधिकारी जिसे उप-धारा (2) के तहत कोई व्यक्ति या वस्तु भेजी जाती है, सभी सुविधाजनक प्रेषण के साथ, संहिता के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक उपाय करेगा।
जाँच करने की शक्तियाँ: मामलों की जाँच राज्य पुलिस एवं राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) दोनों द्वारा की जा सकती है।
UAPA में हालिया संशोधन
वर्ष 2004: आतंकवादी कृत्यों पर मुकदमा चलाने के उद्देश्य से विशिष्ट अध्याय जोड़ा गया।
वर्ष 2008: कोई भी कार्य ‘भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या संप्रभुता को खतरे में डालने की संभावना’ या ‘लोगों में भय/आतंक पैदा करने की संभावना’ भी एक आतंकवादी कार्य है।
वर्ष 2012: देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधों को शामिल करने के लिए ‘आतंकवादी गतिविधियों’ की विस्तारित परिभाषा।
वर्ष 2019: सरकार अब किसी व्यक्ति को ‘आतंकवादी’ घोषित कर सकती है एवं बिना किसी उचित प्रक्रिया के उनका नाम अधिनियम की अनुसूची IV में जोड़ सकती है।
यह राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को संपत्ति की जब्ती या कुर्की की मंजूरी देने का भी अधिकार देता है।
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