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‘राइट टू डिसकनेक्ट’

Lokesh Pal December 12, 2024 02:15 27 0

संदर्भ

अर्न्स्ट एंड यंग (Ernst & Young- EY) के एक कर्मचारी की कथित तौर पर कार्य के अत्यधिक दबाव के कारण हुई दुखद मौत ने ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को एक महत्त्वपूर्ण श्रम एवं मानवाधिकार मुद्दे के रूप में उजागर कर दिया है। 

पृष्ठभूमि

  • पेशेवर नौकरियों में भारतीय महिलाओं के लिए लंबे समय तक कार्य करना: द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑडिटिंग, सूचना प्रौद्योगिकी एवं मीडिया जैसे क्षेत्रों में भारतीय महिलाएँ सप्ताह में 55 घंटे से अधिक कार्य करती हैं।
  • हाशिये पर पड़े वर्गों के लिए कार्य के घंटे: हाशिये पर पड़े समुदायों की महिलाओं, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के लिए कार्य के घंटे अधिक विविध और अक्सर लंबे होते हैं।
  • कार्यस्थल पर तनाव का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: एडीपी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि 49% भारतीय कर्मचारी रिपोर्ट करते हैं कि कार्यस्थल पर तनाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

‘राइट टू डिसकनेक्ट’ के बारे में

  • ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ कर्मचारियों को गैर-कार्य समय के दौरान कार्य से संबंधित कॉल, ईमेल या संदेशों का जवाब देने से बचने का अधिकार देता है।
    • यह मानता है कि लगातार संपर्क में रहने से थकान, तनाव और उत्पादकता में कमी आ सकती है, क्योंकि कर्मचारी निजी समय के दौरान भी कार्य के कार्यों की आशा करते हैं।
    • इस अधिकार को सुनिश्चित करके, कर्मचारियों को मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करते हुए व्यक्तिगत समय को पुनः प्राप्त करने की स्वतंत्रता मिलती है।
  • ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ की उत्पत्ति: कार्य से डिस्कनेक्ट होने की अवधारणा की शुरुआत मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 24 में पाई जाती है।
    • अनुच्छेद 24 में कहा गया है कि ‘प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है, जिसमें कार्य घंटों की उचित सीमा एवं वेतन सहित आवधिक छुट्टियाँ शामिल हैं।’

‘राइट टू डिसकनेक्ट’ के लाभ

  • बेहतर मानसिक स्वास्थ्य: तनाव, नौकरी से असंतुष्टि को कम करता है और बर्नआउट को रोकता है।
  • बेहतर कार्य-जीवन संतुलन: व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बीच स्पष्ट सीमाएँ बनाता है।
  • उत्पादकता में वृद्धि: पुनः ऊर्जा से परिपूर्ण कर्मचारी अधिक केंद्रित एवं कुशल होते हैं।
  • शारीरिक स्वास्थ्य: आरामदेह नींद को बढ़ावा देता है और स्वास्थ्य जोखिम को कम करता है।
  • बढ़ी हुई रचनात्मकता: कार्य से दूर होने का समय नवीन सोच को बढ़ावा देता है।

कार्य से अलग न होने के परिणाम

  • तनाव और चिंता में वृद्धि: लगातार कार्य से जुड़े रहने से चिंता का स्तर बढ़ता है क्योंकि कर्मचारी हमेशा अगले कार्य, ईमेल या कॉल का इंतजार करते रहते हैं।
    • तत्परता की यह लगातार स्थिति पूर्ण विश्राम को रोकती है, जिससे भावनात्मक और मानसिक थकावट होती है।
  • बर्नआउट का जोखिम: कार्य और निजी समय के बीच स्पष्ट सीमा न होने से बर्नआउट का जोखिम बढ़ जाता है।
    • ‘जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल हेल्थ साइकोलॉजी’ (Journal of Occupational Health Psychology) में प्रकाशित अध्ययनों से पता चलता है कि जब कर्मचारियों को कार्य से डिस्कनेक्ट और पुनः ऊर्जावान होने का समय नहीं मिलता है, तो बर्नआउट का जोखिम काफी बढ़ जाता है। 
  • नींद के पैटर्न में व्यवधान, खराब संज्ञानात्मक कार्य: लगातार कार्य में लगे रहना, जैसे ईमेल चेक करना या शाम को देर तक संदेशों का जवाब देना, नींद में खलल डालता है।
    • खराब नींद से याददाश्त, ध्यान और निर्णय लेने जैसे संज्ञानात्मक कार्य प्रभावित होते हैं, जो बदले में उत्पादकता एवं रचनात्मकता में बाधा डालते हैं।
  • नौकरी से संतुष्टि में कमी: जब कार्य लगातार व्यक्तिगत समय में दखल देता है, तो कर्मचारियों को लगता है कि उनकी स्वायत्तता से समझौता किया जा रहा है। इससे उनकी नौकरी के प्रति निराशा एवं नाराजगी होती है, जिससे समग्र नौकरी की संतुष्टि कम हो जाती है।
  • अधिक कार्य का विरोधाभास: हालाँकि अधिक कार्य करना, उत्पादकता बढ़ाने का एक तरीका लग सकता है, यह अक्सर गलतियों एवं अक्षमताओं की ओर ले जाता है, जिससे एक चक्र निर्मित हो जाता है जहाँ कर्मचारियों को थकावट के कारण की गई गलतियों की भरपाई के लिए और भी अधिक समय तक कार्य करने की आवश्यकता महसूस होती है।
  • रचनात्मकता पर नकारात्मक प्रभाव: कार्य से पूरी तरह से अलग न हो पाने की अक्षमता रचनात्मकता को दबा देती है, क्योंकि कर्मचारियों के पास नवाचार के लिए आवश्यक मानसिक स्थान की कमी होती है।
  • स्क्रीन टाइम: कार्यस्थल पर प्रौद्योगिकी के प्रचलन के कारण स्क्रीन टाइम बढ़ गया है, जो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
    • ‘वर्कप्लेस इंटेलिजेंस’ द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध से पता चलता है कि कर्मचारी प्रति सप्ताह औसतन 96.1 घंटे स्क्रीन के सामने बिताते हैं, जो लगभग पूरे चार दिन के बराबर है।

‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कानून

  • फ्रांस: फ्रांस वर्ष 2017 में अपने एल खोमरी कानून के माध्यम से इस अधिकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने वाला पहला देश बन गया।
    • कर्मचारियों को घंटों के बाहर कार्य पर प्रतिक्रिया न देने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।
  • पुर्तगाल: पुर्तगाल में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ कानून है, जिसके तहत नियोक्ताओं के लिए आपातकालीन स्थितियों को छोड़कर, कार्य के घंटों के बाहर कर्मचारियों से संपर्क करना अवैध माना जाता है।
  • स्पेन: स्पेन में व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा एवं डिजिटल अधिकारों की गारंटी पर ऑर्गेनिक कानून 3/2018 के अनुच्छेद 88 में कहा गया है कि डिजिटल अधिकार कानून व्यक्तिगत समय और पारिवारिक गोपनीयता की रक्षा करते हैं।
  • आयरलैंड: कर्मचारियों के लिए ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ को मान्यता दी गई।
  • यूरोपीय संसद: जनवरी 2021 में, यूरोपीय संसद ने सदस्य देशों में ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ की वकालत करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
  • ऑस्ट्रेलिया: वर्ष 2024 में, ऑस्ट्रेलियाई संसद ने निष्पक्ष कार्य विधान संशोधन पारित किया, जिसने कर्मचारियों को कार्य के घंटों के बाहर कार्य से डिस्कनेक्ट करने का अधिकार दिया।

भारत में ‘राइट टू डिसकनेक्ट’

  • भारत में ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ को मान्यता देने वाले विशिष्ट कानूनों का अभाव है।
  • हालाँकि, संविधान, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों और विभिन्न न्यायिक घोषणाओं में अनुकूल और स्वस्थ वातावरण में कार्य करने के अधिकार की बात कही गई है।
  • प्रावधान
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21: प्रत्येक नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत ‘जीवन’ शब्द में आजीविका का अधिकार, बेहतर जीवन स्तर और अवकाश का अधिकार शामिल है।
    • संविधान के अनुच्छेद 38 में कहा गया है कि ‘राज्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा’।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 39 (e) में राज्य को निर्देश दिया गया है कि वह अपने कर्मचारियों की क्षमता और स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने की दिशा में अपनी नीति बनाए।
  • भारत में न्यायिक उदाहरण
    • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997): उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, कार्यस्थल पर गरिमा के अधिकार को मान्यता दी और महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए।
    • रवींद्र कुमार धारीवाल बनाम भारत संघ (2021): न्यायालय ने दिव्यांग व्यक्तियों को उचित रूप से समायोजित करने के लिए समावेशी समानता के विचारों को शामिल करने के लिए अनुच्छेद 14 का उल्लेख किया।
      • न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि नियोक्ता को कर्मचारी के व्यक्तिगत अंतर और क्षमताओं पर विचार करना चाहिए।
    • प्रवीण प्रधान बनाम उत्तरांचल राज्य (2012): उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रशासनिक नियंत्रण और अनुशासन के बहाने कार्यस्थल पर अपमान करने पर रोक लगा दी।
  • भारत में विधायी प्रयास
    • वर्ष 2018 में, लोकसभा में एक निजी सदस्य विधेयक प्रस्तुत किया गया था, जिसमें कार्य के घंटों के बाद कार्य से अलग होने के अधिकार को रेखांकित किया गया था।
    • इस विधेयक में सभी कर्मचारियों के कुल पारिश्रमिक का 1% जुर्माना लगाने का प्रावधान शामिल था, जिसे कंपनियों द्वारा इसके प्रावधानों का पालन न करने पर भुगतान किया जाना था।
    • इसमें कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है।
  • भारतीय कार्यस्थल में गरिमा का उल्लंघन: कार्यस्थल की गरिमा की स्पष्ट मान्यता और नियोक्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के प्रति सचेत रहने के निर्देश, साथ ही कार्य के घंटों का उल्लंघन करने के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराने वाले कानूनों के बावजूद, भारतीय कार्यस्थलों में गरिमा का उल्लंघन प्रचलित है।

भारत द्वारा ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ को न अपनाने के पक्ष में तर्क

  • आर्थिक संदर्भ: भारत की बढ़ती युवा आबादी और निजी क्षेत्र उच्च प्रदर्शन पर आर्थिक वृद्धि करते हैं।
    • भारत जैसी प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ संभव नहीं है, जहाँ तीव्र प्रगति एवं नवाचार महत्त्वपूर्ण हैं।
    • कार्य के घंटे कम करने से आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है और बाजार की माँगों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता कम हो सकती है, जिससे लंबे समय में भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँच सकता है।
  • पहचान के रूप में कार्य का महत्त्व: भारत में, कार्य सिर्फ एक साधन मात्र नहीं है, यह पहचान, गौरव और उद्देश्य का स्रोत है।
    • कार्य से विमुख होने से उपलब्धि एवं सफलता की चाहत कम हो सकती है।
  • वैश्विक नवाचार और कार्य नीति: कई महत्त्वपूर्ण प्रगति ऐसी संस्कृतियों से हुई है जो लंबे समय तक कार्य करने और गहन ध्यान केंद्रित करने को प्राथमिकता देती हैं।
  • सांस्कृतिक और संवैधानिक विचार: भारतीय संविधान पेशे के अधिकार की गारंटी देता है, जो कड़ी मेहनत और महत्वाकांक्षा पर दिए गए सामाजिक महत्त्व को दर्शाता है।
    • ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ की अवधारणा इन मूल्यों से टकरा सकती है।
  • उत्पादकता में कमी का जोखिम: अवकाश पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने से मध्यम प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों की गति धीमी हो जाती है, जबकि उच्च प्रदर्शन करने वाले पेशेवर लगभग हमेशा सीढ़ी के शीर्ष पर रहेंगे।
  • कार्य संस्कृति में अंतर: उदाहरण के रूप में- 
    • भारत बनाम आइसलैंड: आइसलैंड में सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों का संकेंद्रण अधिक है, जो भारत के निजी क्षेत्र के उद्योगों के विपरीत कठोर उत्पादकता मीट्रिक द्वारा कम संचालित होती हैं, जो वृद्धि एवं स्थिरता के लिए उच्च प्रदर्शन पर निर्भर करती हैं।
    • भारत के विपरीत, कई विकसित देशों में कठोर श्रम नियम हैं और कार्य की अवधि प्रत्येक सप्ताह 35 घंटे तक सीमित है।

‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • मानक परिभाषा का अभाव: ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को लागू करने में एक बड़ी चुनौती उचित कार्य घंटों को परिभाषित करने के लिए एक स्पष्ट मानक की कमी है, जो व्यक्तियों एवं व्यवसायों के बीच व्यापक रूप से भिन्न हो सकती है।
    • उदाहरण: IT पेशेवर आम तौर पर सप्ताह में 45 से 50 घंटे कार्य करते हैं, जबकि इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति जैसे कुछ उद्योग जगत के अग्रणी सप्ताह में 70 घंटे कार्य करने की वकालत करते हैं।
  • अलग-अलग पेशों की अलग-अलग जरूरतें होती हैं: सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आपातकालीन सेवाओं जैसे पेशों में 24 घंटे उपलब्धता की जरूरत होती है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य के घंटों का एक समान माप अव्यावहारिक हो जाता है।
  • प्रवर्तन कठिनाइयाँ: ‘राइट-टू-डिस्कनेक्ट’ कानूनों को लागू करना छोटी कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जो अक्सर सीमित संसाधनों एवं लचीलेपन के कारण कठोर नियमों का पालन करने के लिए संघर्ष करते हैं।
  • पदोन्नति और प्रोत्साहन पर प्रभाव: कर्मचारियों को डर हो सकता है कि ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ का प्रयोग करने से उनके करियर की प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • चूँकि डिस्कनेक्ट करने का अनुरोध करना प्रतिबद्धता की कमी के रूप में माना जा सकता है।
  • तर्कसंगतता निर्धारित करने में व्यक्तिपरकता: यह तय करना कि कार्य के घंटों के बाहर संचार उचित है या नहीं, व्यक्तिपरक हो सकता है।
    • उदाहरण: आपात स्थिति, अत्यावश्यक कार्य आदि जैसे शब्दों की अलग-अलग व्याख्याएँ होंगी, जो कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं के बीच संभावित विवाद का कारण बन सकती हैं।
  • समय क्षेत्र की चुनौतियाँ: वैश्विक परिचालन वाली कंपनियों के लिए, अलग-अलग समय क्षेत्रों के कारण ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ का प्रबंधन अधिक जटिल हो जाता है।
  • विवाद समाधान: ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ के कार्यान्वयन के संबंध में विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
    • उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया में, अनसुलझे विवादों को शुरू में आंतरिक रूप से निपटाया जाता है और निष्पक्ष व्यवहार और श्रम कानूनों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें फेयर वर्क आम्बुड्समैन (Fair Work Ombudsman) जैसे शासी निकाय के समक्ष उठाया जा सकता है।
  • तकनीकी निर्भरता: एक तेजी से डिजिटल होती दुनिया में, जहाँ तकनीक निर्बाध संचार और सहयोग की अनुमति देती है, डिस्कनेक्ट होने से परिचालन अक्षमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, विशेष रूप से उन उद्योगों में जो त्वरित प्रतिक्रियाओं एवं गतिशील कार्य स्थितियों पर निर्भर हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण, 2024 की सिफारिशें

  • ओवरटाइम कार्य घंटों का विस्तार: कारखाना अधिनियम के तहत मौजूदा सीमा से परे कार्य घंटों को बढ़ाने का प्रस्ताव, जो ओवरटाइम को प्रति तिमाही 75 घंटे तक सीमित करता है।
  • ओवरटाइम वेतन में कमी: नियोक्ताओं के लिए अतिरिक्त कार्य घंटों को अधिक आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए ओवरटाइम वेतन को कम करने का सुझाव देता है।
  • श्रमिकों के मौद्रिक समय में वृद्धि: समग्र आय को बढ़ावा देने के लिए भारतीय श्रमिकों के उत्पादक और मौद्रिक समय को अधिकतम करने वाली नीतियों की वकालत करता है।
  • कार्य घंटे प्रतिबंधों में छूट: कार्य घंटों को विनियमित करने वाले कानूनों में लचीलेपन की सिफारिश करता है, जिसमें प्रति सप्ताह 48 घंटे की मौजूदा सीमा और प्रतिदिन अधिकतम 10.5 घंटे (विश्राम अवधि सहित) शामिल हैं।

आगे की राह

  • कार्य और निजी समय के बीच स्पष्ट सीमाएँ स्थापित करना: नियोक्ता को ऐसी नीतियाँ लागू करनी चाहिए जो कार्य-जीवन संतुलन का सम्मान करें, जैसे कि कार्य के घंटों के बाद संचार को सीमित करना।
  • छुट्टी और नियमित अवकाश को प्रोत्साहित करना: कार्यदिवस के दौरान छुट्टी के दिनों, व्यक्तिगत समय और नियमित अवकाश के उपयोग को बढ़ावा देना कर्मचारी के कल्याण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • शोध से पता चलता है कि जो कर्मचारी नियमित रूप से छुट्टी लेते हैं, उनके वापस कार्य पर लौटने पर नौकरी को लेकर संतुष्टि तथा उनकी उत्पादकता में वृद्धि देखी गई है।
  • लचीले कार्य शेड्यूल प्रदान करना: कर्मचारियों को लचीले कार्य घंटे प्रदान करने से उन्हें अपनी व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने की अनुमति मिलती है, जो एक स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन में योगदान देता है।
  • कार्य के बाद डिस्कनेक्ट करने की संस्कृति को बढ़ावा देना: कंपनियों को ऐसी संस्कृति बनानी चाहिए जहाँ कार्य के घंटों के बाद डिस्कनेक्ट करना प्रोत्साहित किया जाए, न कि केवल स्वीकार किया जाए।
    • प्रबंधक, घंटों के बाद ईमेल या संदेश भेजने से परहेज करके और व्यक्तिगत समय को प्राथमिकता देकर एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण कर सकते हैं।
  • पायलट कार्यक्रम: राइट टू डिस्कनेक्ट के राष्ट्रव्यापी रोलआउट से पहले विशिष्ट उद्योगों में नीतियों का परीक्षण करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण का समर्थन करना: नियोक्ता को परामर्श सेवाओं, कल्याण कार्यक्रमों और मानसिक स्वास्थ्य दिवसों तक पहुँच प्रदान करनी चाहिए।
    • ये संसाधन कर्मचारियों को तनाव का प्रबंधन करने, मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने और बर्नआउट को रोकने में मदद करते हैं, जिससे एक स्वस्थ, अधिक उत्पादक कार्यबल सुनिश्चित होता है।

निष्कर्ष

विभिन्न क्षेत्रों में कार्य की विविधतापूर्ण प्रकृति को पहचानने तथा एक लचीला ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है जो विशिष्ट चुनौतियों को समायोजित करते हुए कर्मचारियों के ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ की रक्षा कर सके।

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