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भारत में ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार

Lokesh Pal October 17, 2024 02:49 83 0

संदर्भ

तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में सैमसंग इंडिया (Samsung India) के श्रमिक, रोजगार की बेहतर शर्तों के लिए सामूहिक रूप से सौदेबाजी करने हेतु पंजीकृत ट्रेड यूनियन बनाने के अपने मौलिक अधिकार के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। 

संबंधित तथ्य

  • यूनियन बनाने का मौलिक अधिकार (Fundamental Right to Form a Union): सैमसंग इंडिया के श्रीपेरंबदूर संयंत्र में कार्य करने वाले कर्मचारी बेहतर रोजगार शर्तों के लिए सामूहिक सौदेबाजी को सक्षम करने के लिए सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (Samsung India Workers Union- SIWU) के पंजीकरण की माँग कर रहे हैं।
    • यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19(1)(C) द्वारा समर्थित यूनियन बनाने के उनके मौलिक अधिकार में निहित है।

  • सरकार की प्रतिक्रिया: तमिलनाडु सरकार ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक ‘कर्मचारी समिति’ (Workmen Committee) का गठन किया, लेकिन हड़ताल को दबाने के लिए पुलिस कार्रवाई का भी सहारा लिया।
    • श्रम कानून विशेषज्ञों ने इसे समय से पहले उठाया गया कदम बताया, क्योंकि अभी तक श्रमिक संघ पंजीकृत नहीं हुआ था।
  • सैमसंग की आपत्ति: सैमसंग ने सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (Samsung India Workers Union- SIWU) में अपने नाम के इस्तेमाल को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि यह ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 (Trade Marks Act, 1999) का उल्लंघन है।
    • हालाँकि, कर्मचारियों का तर्क है कि ट्रेड यूनियनें व्यावसायिक संस्थाएँ नहीं हैं और उन्हें ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 (Trade Unions Act, 1926) के तहत संरक्षण प्राप्त है।

‘कर्मचारी समिति’ (Workmen Committee) के बारे में

  • कर्मचारी समिति, जिसे कार्य समिति (Works Committee) के रूप में भी जाना जाता है, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के भीतर एक अभिन्न निकाय है, जिसका उद्देश्य नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच बेहतर संबंधों को बढ़ावा देना है। 
  • यह संघर्षों को सुलझाने और औद्योगिक सद्भाव बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining) के बारे में

  • सामूहिक सौदेबाजी एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है, जिसमें श्रमिक और उनके नियोक्ता रोजगार की शर्तों पर बातचीत करते हैं।
  • यह एक मौलिक अधिकार है, जिसे कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों की ILO घोषणा (ILO Declaration of Fundamental Principles and Rights) में मान्यता दी गई है।

सामूहिक सौदेबाजी पर अंतरराष्ट्रीय कानून (International Laws on Collective Bargaining)

  • संगठित होने का अधिकार और सामूहिक सौदेबाजी अभिसमय, 1949 (Right to Organise and Collective Bargaining Convention, 1949)
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का यह मौलिक अभिसमय श्रमिकों को संघ-विरोधी भेदभाव से बचाता है तथा श्रमिक एवं नियोक्ता संगठनों को हस्तक्षेप से बचाता है।
  • कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों की आईएलओ घोषणा, 1998 (ILO Declaration of Fundamental Principles and Rights at Work, 1998)
    • यह घोषणा सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार के महत्त्व की पुष्टि करती है।
    • इसे वर्ष 1998 में अपनाया गया था और वर्ष 2022 में संशोधित किया गया, यह सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों द्वारा बुनियादी मानवीय मूल्यों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति है, ऐसे मूल्य जो हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • यह अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की सदस्यता में निहित दायित्वों और प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करता है, अर्थात्: 
      • संघ बनाने की स्वतंत्रता और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार की प्रभावी मान्यता।
      • सभी प्रकार के जबरन या अनिवार्य श्रम का उन्मूलन।
      • बाल श्रम का प्रभावी उन्मूलन।
      • रोजगार और व्यवसाय के संबंध में भेदभाव का उन्मूलन।
      • सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण।
  • ILO कन्वेंशन संख्या 154 (वर्ष 1981)
    • यह कन्वेंशन सामूहिक सौदेबाजी को कार्य स्थितियों और रोजगार की शर्तों पर वार्ता करने तथा नियोक्ताओं तथा श्रमिकों के बीच संबंधों को विनियमित करने की एक प्रक्रिया के रूप में रेखांकित करता है।

सामूहिक सौदेबाजी के लिए प्रमुख कानूनी सिद्धांत

  • सामूहिक सौदेबाजी के लिए संवैधानिक प्रावधान
    • वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of speech and expression)
      • अनुच्छेद-19(1)(a) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जो सबसे महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है, जो प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने या असहमति व्यक्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
      • इस प्रकार, प्रत्येक नागरिक को वाक् एवं अभिव्यक्ति का अधिकार है, जिसका प्रयोग व्यक्तिगत रूप से या समूहों में किया जा सकता है।
    • संघ या एसोसिएशन बनाने का अधिकार
      • अनुच्छेद-19(1)(c) संघ या एसोसिएशन बनाने का अधिकार प्रदान करता है, जिसे भारत में ट्रेड यूनियनों की नींव कहा जा सकता है।
    • प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी
      • अनुच्छेद-43A राज्य को ऐसे कानून बनाने और लागू करने का अधिकार देता है, जो श्रमिकों को प्रबंधन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  • सामूहिक सौदेबाजी से संबंधित कानूनी प्रावधान
    • औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act, 1947)
      • भारत में सामूहिक सौदेबाजी को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कानून।
      • यह अधिनियम श्रमिकों को ट्रेड यूनियन बनाने और नियोक्ताओं के साथ सौदेबाजी करने का अधिकार देता है।
      • यह समझौता अधिकारी, समझौता बोर्ड या श्रम न्यायालय के माध्यम से रोजगार विवादों के समाधान की भी अनुमति देता है।
    • ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 (Trade Unions Act, 1926)
      • ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 के तहत यूनियन का पंजीकरण सामूहिक सौदेबाजी को सुविधाजनक बनाने के लिए आवश्यक है और यह दीवानी तथा आपराधिक कार्रवाई से प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
      • अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, कम-से-कम सात श्रमिकों को यूनियन पंजीकरण के लिए आवेदन करने की अनुमति है।
    • औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 [Industrial Employment (Standing Orders) Act, 1946]
      • स्थायी आदेशों को परिभाषित करता है, जो श्रमिकों के वर्गीकरण, उपस्थिति और छुट्टियों जैसे मामलों से संबंधित नियम हैं। 

ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकार पर प्रमुख निर्णय

  • अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ बनाम एन.आई. ट्रिब्यूनल (1962): उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद-19(1)(C) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के अनुसार, ट्रेड यूनियनों के सदस्यों के अधिकारों को निर्धारित किया।
  • भारत आयरन वर्क्स बनाम भागुभाई बालुभाई पटेल (1976): उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सामूहिक सौदेबाजी की अवधारणा कल्याणकारी राज्य की आधुनिक अवधारणा का एक हिस्सा है और इस तरह की पद्धति का प्रयोग स्वस्थ तरीके से और ऐसे तरीके से किया जाना चाहिए, जहाँ कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच सहयोग और सम्मान हो।
  • बी.आर. सिंह बनाम भारत संघ (1989): यूनियन बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा।
    • यूनियन गठन पर प्रतिबंध उचित होने चाहिए, जो सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, संप्रभुता या अखंडता पर आधारित हों।
  • रंगास्वामी बनाम ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार (मद्रास उच्च न्यायालय): ट्रेड यूनियन अधिनियम को सामूहिक सौदेबाजी के लिए श्रमिक संगठन को सक्षम बनाने के रूप में परिभाषित किया गया।

सामूहिक सौदेबाजी के लाभ

  • श्रमिकों के मुद्दों को संबोधित करना: सामूहिक सौदेबाजी श्रमिकों को एक साथ मिलकर कार्य करने और पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम प्रदान करने में मदद करने के लिए एक प्रभावी मुद्दा बनाने की अनुमति देती है।
  • बेहतर कार्य परिस्थितियाँ: सामूहिक सौदेबाजी से सुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ और बेहतर कार्य मानक प्राप्त हो सकते हैं।
  • एकल इकाई प्रतिनिधित्व: यह उन्हें प्रत्येक कर्मचारी के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत करने के बजाय सभी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली एकल इकाई के साथ बातचीत करने की अनुमति देता है।
  • बेहतर प्रशिक्षण: शोध से पता चलता है कि जब यूनियनें शामिल होती हैं तो श्रमिकों को अधिक प्रशिक्षण मिलता है, जिससे वेतन में वृद्धि हो सकती है।
  • समानता और सक्रियता (Equality and Activism): सामूहिक सौदेबाजी कामकाजी समाजों में समानता हासिल करने में मदद कर सकती है, जिससे लिंग के आधार पर वेतन अंतर कम हो सकता है।
  • सहयोग को प्रोत्साहित करना: सामूहिक सौदेबाजी सहयोग को प्रोत्साहित करके कार्य संबंधों को बेहतर बना सकती है।
  • नौकरी की सुरक्षा: यूनियन की सदस्यता से टर्नओवर दरें कम हो सकती हैं, जिससे कर्मचारियों को अपने कौशल में दीर्घकालिक निवेश करने का अवसर मिलता है।
  • उच्च वेतन: सामूहिक सौदेबाजी समझौतों से वेतन एवं लाभों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।

सामूहिक सौदेबाजी के नुकसान

  • परिचालन व्यवधान: हड़ताल जैसे कार्य बंद होने से अक्सर व्यावसायिक संचालन रुक जाता है, जिससे उत्पादकता में कमी आती है और नियोक्ताओं को राजस्व का बड़ा नुकसान होता है।
  • गैर-संघीय कर्मचारियों का बहिष्कार: चूँकि सामूहिक सौदेबाजी से आम तौर पर केवल संघ के सदस्यों को ही लाभ होता है, इसलिए जो कर्मचारी संघ का हिस्सा नहीं हैं, वे इस प्रक्रिया के माध्यम से बातचीत करके तय की गई शर्तों से वंचित रह सकते हैं।
  • यूनियन के पास अत्यधिक शक्ति होना: कुछ स्थितियों में, यूनियनों को बहुत अधिक अधिकार मिल सकता है, जिसके परिणामस्वरूप असंतुलन उत्पन्न होता है, जहाँ नियोक्ता नुकसान में रहते हैं।
    • इससे कभी-कभी सत्ता का दुरुपयोग हो सकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा में कमी: सामूहिक सौदेबाजी से श्रम लागत बढ़ सकती है, जिससे वैश्विक बाजार में व्यवसाय कम प्रतिस्पर्द्धी हो सकते हैं।
    • कंपनियाँ नौकरियों में कटौती करके या कम वेतन वाले देशों में काम स्थानांतरित करके प्रतिक्रिया दे सकती हैं।
  • प्रतिकूल गतिशीलता: सामूहिक सौदेबाजी की प्रक्रिया कभी-कभी प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच टकरावपूर्ण संबंध को बढ़ावा दे सकती है, जिससे कार्यस्थल में विश्वास और सहयोग कम हो सकता है।
  • बातचीत में कठोरता: सामूहिक समझौते अक्सर मानक शर्तें निर्धारित करते हैं, जो व्यक्तियों की अपनी व्यक्तिगत शर्तों पर बातचीत करने की क्षमता को सीमित करते हैं, जिससे संभावित रूप से कुछ कर्मचारियों की आवश्यकताओं के लिए प्रक्रिया कम लचीली हो जाती है।

हड़ताल का अधिकार (Right to Strike)

  • हड़ताल का अधिकार कर्मचारियों का वह अधिकार है, जिसके तहत वे सामूहिक रूप से श्रम प्रथाओं या आर्थिक स्थितियों जैसी कुछ स्थितियों के जवाब में कार्य करने से मना कर सकते हैं।
  • इसे कर्मचारियों के लिए एक आवश्यक अधिकार माना जाता है और अक्सर इसे एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी जाती है।

भारत में हड़ताल का अधिकार (Right to Strike in India)

  • भारत में हड़ताल का अधिकार औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 द्वारा सीमित और विनियमित है, जो अब वर्ष 2020 के औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code) का हिस्सा है।
    • यह अधिनियम हड़ताल को किसी उद्योग में कर्मचारियों के समूह द्वारा कार्य बंद करने के रूप में परिभाषित करता है।
  • कोई स्पष्ट संवैधानिक अधिकार नहीं: भारतीय संविधान हड़ताल के अधिकार की स्पष्ट गारंटी नहीं देता है।
    • हालाँकि, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 ( Industrial Disputes Act, 1947) हड़तालों के लिए एक विधायी ढाँचा प्रदान करता है, जो उन्हें कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता देता है, लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में नहीं।
  • अनुच्छेद-19 और हड़तालें: हालाँकि संविधान का अनुच्छेद-19 विरोध करने के अधिकार की रक्षा करता है, हड़ताल करने के अधिकार की सीमाएँ हैं।
    • इसे मौलिक अधिकार नहीं माना जाता है, बल्कि यह संघ या यूनियन बनाने के मौलिक अधिकार से लिया गया है।
  • ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 (Trade Union Act, 1926): इस अधिनियम ने हड़ताल करने का सीमित अधिकार प्रदान किया, जिससे ट्रेड यूनियनों को व्यापार विवाद को आगे बढ़ाने के लिए विशिष्ट गतिविधियों में संलग्न होने की अनुमति मिली।
  • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code, 2020): हड़ताल करने के अधिकार को इस आधुनिक कानून के अंतर्गत शामिल कर दिया गया है तथा कानूनी सीमाओं के भीतर हड़तालों को विनियमित करना जारी रखा गया है।

आगे की राह

  • ट्रेड यूनियन का पंजीकरण करना: तत्काल कदम ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 के तहत सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (SIWU) का औपचारिक पंजीकरण होना चाहिए, जिससे श्रमिक सामूहिक सौदेबाजी के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें।
  • हितधारकों के बीच संवाद: चिंताओं को दूर करने और तनाव को अनावश्यक रूप से बढ़ने से रोकने के लिए कर्मचारी समिति के माध्यम से सैमसंग, सरकार और श्रमिकों के बीच खुले संवाद को प्रोत्साहित करना।
  • ट्रेडमार्क बनाम यूनियन अधिकारों को स्पष्ट करना: व्यावसायिक नामों की सुरक्षा और श्रमिकों के यूनियन बनाने के अधिकारों के बीच स्पष्ट रूप से अंतर करके सैमसंग की ट्रेडमार्क चिंताओं का समाधान करना, ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 और ट्रेड यूनियन अधिनियम दोनों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • श्रमिकों के प्रतिनिधित्व को मजबूत करना: संविधान के अनुच्छेद-43A के अनुरूप प्रबंधन, निर्णयों में श्रमिकों की आवाज को बढ़ाएँ, भविष्य के विवादों से बचने के लिए भागीदारीपूर्ण प्रबंधन को बढ़ावा देना चाहिए।
  • श्रम कानून का अनुपालन सुनिश्चित करना: सुनिश्चित करना कि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 और अन्य प्रासंगिक श्रम कानूनों का पालन किया जाए, ताकि विवादों को बल प्रयोग के बजाय कानूनी तंत्र के माध्यम से हल करने के लिए एक उचित मंच प्रदान किया जा सके।
  • औद्योगिक शांति को बढ़ावा देना: दोनों पक्षों को दीर्घकालिक सहयोग और आपसी विकास और वृद्धि के लिए औद्योगिक सद्भाव बनाए रखने के महत्त्व पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

निष्कर्ष

निष्पक्ष समाधान के लिए यह आवश्यक है कि कर्मचारियों के यूनियन बनाने के मौलिक अधिकारों का सम्मान किया जाए और साथ ही बातचीत के माध्यम से कॉरपोरेट चिंताओं का समाधान किया जाए। संघर्ष के बजाय रचनात्मक बातचीत से सतत् और सहकारी औद्योगिक वातावरण सुनिश्चित होगा।

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