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निःशुल्क भोजन का अधिकार

Lokesh Pal October 15, 2024 03:00 97 0

संदर्भ

विश्व खाद्य दिवस (World Food Day), जो प्रतिवर्ष 16 अक्टूबर को मनाया जाता है, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता की एक महत्त्वपूर्ण याद दिलाता है।

विश्व खाद्य दिवस

  • वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्थापना के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है।
    • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जो भुखमरी से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करती है।
  • सतत् विकास लक्ष्य पर केंद्रित : यह सतत् विकास लक्ष्य 2 (SDG 2) पर जोर देता है, जिसका उद्देश्य ‘जीरो हंगर’ (Zero Hunger) है।
  • वर्ष 2024 के FAO के विश्व खाद्य दिवस का विषय: ‘बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए खाद्य पदार्थों का अधिकार’।

संबंधित तथ्य 

  • खाद्य असुरक्षा: FAO की वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति (SOFI) रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में लगभग 2.33 बिलियन लोग मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का अनुभव करते हैं।

‘भोजन का अधिकार’ के बारे में 

  • परिभाषा: ‘भोजन के अधिकार’ का व्यापक अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन प्राप्त करने का अधिकार है।
  • अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दस्तावेजों में ‘भोजन के अधिकार’ को मान्यता: भोजन के अधिकार को वर्ष 1948 के मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में मान्यता दी गई है तथा इसे वर्ष 1966 के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय नियम में शामिल किया गया है।
  • भोजन के अधिकार के प्रमुख घटक
    • उपलब्धता: उपलब्धता का अर्थ है कि भोजन खेती, पशुपालन, मछली पकड़ने या संग्रहण आदि विधियों के माध्यम से उपलब्ध होना चाहिए और बाजारों एवं दुकानों में बेचने एवं खरीदने के लिए भी उपलब्ध होना चाहिए।
    • अभिगम्यता
      • आर्थिक अभिगम्यता: भोजन सस्ता होना चाहिए, जिससे व्यक्ति अन्य बुनियादी आवश्यकताओं का त्याग किए बिना अपनी आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
      • भौतिक अभिगम्यता: कमजोर समूहों (बच्चों, बुजुर्गों, दिव्यांगों) तथा दूरदराज के क्षेत्रों या संकट की स्थिति में रहने वाले लोगों के लिए भोजन की पहुँच की गारंटी दी जानी चाहिए।
    • पर्याप्तता: भोजन को आयु, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक प्राथमिकताओं जैसे कारकों के आधार पर आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए। यह उपभोग के लिए सुरक्षित होना चाहिए, हानिकारक पदार्थों से मुक्त होना चाहिए और प्राप्तकर्ताओं के लिए सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य होना चाहिए।

भोजन के अधिकार के प्रति भारत का दृष्टिकोण

  • कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं: भारतीय संविधान में भोजन के अधिकार के संबंध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
  • जीवन के अधिकार का विस्तार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में निहित जीवन के मौलिक अधिकार की व्याख्या मानव सम्मान के साथ जीवन के अधिकार को शामिल करने के लिए की जा सकती है, जिसमें भोजन का अधिकार भी शामिल हो सकता है।
  • संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद-39(A): राज्य को सभी नागरिकों के लिए पर्याप्त आजीविका के अधिकार को सुरक्षित करने का निर्देश देता है।
    • अनुच्छेद-47: पोषण तथा जीवन स्तर में सुधार करने को राज्य का प्राथमिक उत्तरदायित्व स्थापित करता है।

भारत में भोजन के अधिकार को लागू करने के उपाय

  • हरित क्रांति: भारत में एम. एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में हरित क्रांति ने 1960 तथा 1970 के दशक में भारतीय कृषि को बदल दिया।
    • इसने उच्च उपज देने वाली किस्म (HYV) के बीज, आधुनिक सिंचाई तकनीक तथा रासायनिक उर्वरकों की शुरुआत की, जिससे खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन गया।
  • बफर स्टॉक: भारतीय खाद्य निगम (FCI) खाद्य सुरक्षा को स्थिर करने के लिए खाद्यान्न का बफर स्टॉक बनाए रखता है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) एक खाद्य सुरक्षा प्रणाली है, जिसे भारत सरकार द्वारा उपभोक्ता मामले, खाद्य तथा सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत भारत के गरीबों को सब्सिडी दरों पर खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुएँ वितरित करने के लिए स्थापित किया गया था।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: FAO के ‘भोजन का अधिकार’ दृष्टिकोण ने तत्कालीन सरकार को वर्ष 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) पारित करने के लिए प्रोत्साहित किया।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) ने खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण को कल्याण से अधिकार आधारित दृष्टिकोण में बदल दिया।
    • कवरेज: NFSA ग्रामीण आबादी के 75% तथा शहरी आबादी के 50% को कवर करता है।
      • अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana): इसमें सबसे गरीब लोगों को शामिल किया गया है, जो प्रति माह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार है।
      • प्राथमिकता प्राप्त परिवार (Priority Households- PHH): PHH  श्रेणी के अंतर्गत आने वाले परिवार प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
      • कुल मिलाकर, NFSA कुल जनसंख्या के 67% लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
    • राशन कार्ड के लिए परिवार की मुखिया: राशन कार्ड जारी करने के लिए परिवार की सबसे बड़ी महिला, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक हो, को परिवार की मुखिया के रूप में नामित किया जाता है।
    • बच्चों के लिए विशेष प्रावधान: यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि 6 महीने से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को एकीकृत बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services- ICDS) केंद्रों, जिन्हें आमतौर पर आंगनवाड़ी केंद्र के रूप में जाना जाता है, के माध्यम से मुफ्त पौष्टिक भोजन मिले।

भारत में ‘निःशुल्क भोजन के अधिकार’ के कार्यान्वयन से जुड़ी चिंताएँ

  • आर्थिक चिंताएँ 
    • आर्थिक तर्कहीनता: 800 मिलियन से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन वितरित करना आर्थिक रूप से तर्कहीन है, खासकर तब जब आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को आदर्श रूप से अपना भोजन कमाने के लिए काम करना चाहिए।
    • बजटीय दबाव: खाद्य सब्सिडी केंद्रीय बजट में सबसे बड़ी है, जो कृषि अनुसंधान एवं विकास, परिशुद्ध कृषि, सूक्ष्म पोषक तत्त्वों, महिला शिक्षा और स्वच्छता में अधिक उत्पादक निवेश से धन हटा देती है।
      • ये निवेश हमारे लोगों की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में मुफ्त भोजन तथा अत्यधिक सब्सिडी वाले उर्वरकों एवं बिजली की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक प्रभावी हैं।
    • भ्रष्टाचार तथा रिसाव: भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) के अनुसार, लगभग 25-30% खाद्य तथा उर्वरक सब्सिडी अक्षमताओं और भ्रष्टाचार के कारण इच्छित लाभार्थियों तक नही पहुँचती है।
      • रिसाव से होने वाली कुल हानि 40-50% तक हो सकती है, जो ‘भोजन के अधिकार’ के उद्देश्य को विफल कर देगी।
  • सामाजिक चिंताएँ
    • सब्सिडी पर निर्भरता: इतने बड़े पैमाने पर ‘मुफ्त भोजन का अधिकार’ जनसंख्या के बीच निर्भरता की संस्कृति पैदा कर सकता है, जहाँ व्यक्ति स्थिर रोजगार और आय-सृजन के अवसरों की तलाश करने के बजाय सरकारी प्रावधानों पर निर्भर रहते हैं।
      • इससे आत्मनिर्भरता की दिशा में किए जा रहे प्रयास कमजोर पड़ते है तथा गरीबी का चक्र जारी रह सकता है।
    • अकुशलताओं को लक्षित करना: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) का प्रारंभ में उद्देश्य दो-तिहाई आबादी को कवर करना था, जिससे समाज के इतने बड़े हिस्से को भारी सब्सिडी वाला भोजन उपलब्ध कराने की उपयुक्तता पर चिंता उत्पन्न होती है।
    • निःशुल्क खाद्यान्न वितरण का संदिग्ध औचित्य: नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक का दावा है कि गरीबी दर वर्ष 2013-14 में 29.13% से घटकर वर्ष 2022-23 में 11.28% हो गई है।
      • यदि गरीबी कम हो रही है, तो ऐसे व्यापक खाद्य वितरण की आवश्यकता कम हो सकती है, जिससे इस बात को बल मिलता है कि व्यक्तियों को अपनी बुनियादी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम करना चाहिए।
  • राजनीतिक कारक: अधिकांश आबादी को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के वास्तविक प्रयास के बजाय वोट बटोरने की रणनीति के रूप में देखा जाता है।

भारत में भोजन के अधिकार की प्रभावशीलता बढ़ाने के समाधान

  • बेहतर लक्ष्य निर्धारण और लाभार्थी पहचान
    • गतिशील पात्रता मानदंड: बदलती सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को दर्शाने के लिए गरीबी के मीट्रिक को नियमित रूप से अपडेट करें और सुनिश्चित करें कि लाभार्थियों की सही पहचान की गई है। उदाहरण: लाभार्थी रिकॉर्ड में सटीकता में सुधार के लिए कुल 2.33 करोड़ राशन कार्ड हटा दिए गए हैं या रद्द कर दिए गए है।
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग: लाभार्थी सूचियों में शामिल करने तथा बाहर करने की त्रुटियों को कम करने के लिए बायोमेट्रिक पहचान तथा डिजिटल रिकॉर्ड लागू करें। 
      • उदाहरण: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) तथा आधार प्रणाली का एकीकरण।
  • भ्रष्टाचार और रिसाव को संबोधित करना: धोखाधड़ी की गतिविधियों को रोकने के लिए PDS के भीतर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के लिए सख्त दंड लागू करें।
  • बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि लाभार्थियों तक पहुँचने तक खाद्यान्न ताजा रहे, बेहतर भंडारण बुनियादी ढाँचे में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में खाद्यान्न की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए रसद और परिवहन प्रणालियों को बढ़ाएँ।
  • कृषि-खाद्य प्रणाली का डिजिटलीकरण
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म: बेहतर डेटा प्रबंधन, खाद्य वितरण की वास्तविक समय ट्रैकिंग तथा आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना।
    • फार्म प्रबंधन उपकरण: किसानों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं, बाजार मूल्यों तथा मौसम के पूर्वानुमानों के बारे में जानकारी प्राप्त करने, उत्पादकता और आय बढ़ाने के लिए डिजिटल उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना: मौजूदा खाद्य एवं उर्वरक सब्सिडी व्यवस्था में सुधार कर इसे अधिक लक्षित एवं कुशल बनाया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सब्सिडी सबसे कमजोर आबादी तक पहुँचे।
  • उत्पादक क्षेत्रों में निवेश: सब्सिडी सुधारों से प्राप्त बचत को कृषि अनुसंधान, बुनियादी ढाँचे और सतत कृषि पद्धतियों में निवेश की ओर पुनर्निर्देशित करना, ताकि दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जा सके।

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