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भारत में स्वास्थ्य का अधिकार

Lokesh Pal December 11, 2025 02:41 33 0

संदर्भ

स्वास्थ्य अधिकारों पर राष्ट्रीय सम्मेलन 11-12 दिसंबर, 2025 को नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा, जो मानवाधिकार दिवस (10 दिसंबर) और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज दिवस (12 दिसंबर) के साथ  संरेखित है।

स्वास्थ्य अधिकारों पर राष्ट्रीय सम्मेलन के बारे में

  • यह जन स्वास्थ्य अभियान (JSA) और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा भारत में आयोजित एक बड़ा राष्ट्रीय आंदोलन है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य को एक मौलिक मानवाधिकार के रूप में मान्यता दिलाने के आंदोलन को मजबूत करना और सभी नागरिकों के लिए सार्वभौमिक, समान और सम्मानजनक स्वास्थ्य सेवा की माँग करना है।
  • इस वर्ष भारत भर में जनहितैषी स्वास्थ्य नीतियों को आगे बढ़ाने में JSA के कार्यों की 25वीं वर्षगाँठ है।

मानवाधिकार दिवस (दिसंबर 10) के बारे में

  • मानवाधिकार दिवस वर्ष 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को अपनाने की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • यह गरिमा, समानता और न्याय के सार्वभौमिक मूल्यों पर प्रकाश डालता है और सरकारों को जीवन, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भेदभाव समाप्त करने जैसे मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के उनके कर्तव्य की याद दिलाता है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) दिवस (12 दिसंबर) के बारे में

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज दिवस संयुक्त राष्ट्र के वर्ष 2012 के उस प्रस्ताव की स्मृति में मनाया जाता है जिसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का आह्वान किया गया था, जिसका उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा, वित्तीय सुरक्षा और समानता सुनिश्चित करना है।
  • इसमें रेखांकित किया गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुलभ, समावेशी और अधिकार-आधारित होनी चाहिए, तथा चिकित्सा व्ययों के कारण किसी भी व्यक्ति को निर्धनता के चक्र में फँसने की स्थिति नहीं होनी चाहिए।

स्वास्थ्य के अधिकार के बारे में

  • अंतरराष्ट्रीय मान्यता: स्वास्थ्य का अधिकार अंतरराष्ट्रीय कानून का एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (अनुच्छेद 25) और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय संधि (ICESCR) के अनुच्छेद 12 में मान्यता प्राप्त है।
  • स्वास्थ्य की समग्र परिभाषा: ये अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज स्वास्थ्य को एक समग्र अधिकार के रूप में परिभाषित करते हैं, जो चिकित्सा देखभाल से परे जाकर सुरक्षित भोजन, स्वच्छ जल, स्वच्छता, पर्याप्त आवास और स्वस्थ वातावरण को समग्र कल्याण के लिए आवश्यक मानता है।

स्वास्थ्य के बारे में

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की परिभाषा: WHO का संविधान (1946) स्वास्थ्य की आधुनिक व्याख्या की नींव रखता है।
    • यह स्वास्थ्य को ‘पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति’ के रूप में परिभाषित करता है, न कि केवल रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति के रूप में।
    • यह स्वास्थ्य के अधिकार को स्वास्थ्य के उच्चतम संभव स्तर’ के रूप में स्पष्ट करता है।
    • महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह स्वस्थ होने का अधिकार’ नहीं है, बल्कि उच्चतम संभव स्वास्थ्य के लिए उचित अवसरों का अधिकार है, जिसके लिए राज्य को सुलभ, न्यायसंगत और सहायक स्वास्थ्य प्रणालियों को सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • अच्छे स्वास्थ्य के निर्धारक तत्व
    • सामाजिक-आर्थिक वातावरण
      • आय और सामाजिक स्थिति: उच्च आय और सामाजिक स्थिति का बेहतर स्वास्थ्य से गहरा संबंध है।
      • शिक्षा: कम शिक्षा स्तर खराब स्वास्थ्य, तनाव और कम आत्मविश्वास से जुड़ा है।
      • रोजगार और कार्य परिस्थितियाँ: सुरक्षित रोजगार, विशेषकर ऐसी नौकरी जिसमें कार्य परिस्थितियों पर नियंत्रण हो, बेहतर स्वास्थ्य में योगदान देती है।
      • सामाजिक सहयोग नेटवर्क: परिवार, मित्रों और समुदाय के साथ मजबूत संबंध स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।
    • भौतिक पर्यावरण
      • स्वच्छ जल और स्वच्छता: स्वच्छ जल, पर्याप्त स्वच्छता और साफ-सफाई की सुविधाओं तक पहुँच अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
      • पर्याप्त आवास और भोजन: सुरक्षित आवास, पौष्टिक भोजन और खाद्य सुरक्षा मूलभूत आवश्यकताएँ हैं।
      • स्वच्छ वायु: प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन सहित पर्यावरणीय कारक श्वसन और समग्र स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
    • विशेषताएँ और व्यवहार
      • आनुवंशिकी: वंशानुक्रम स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और कुछ बीमारियों के होने की संभावना को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।।
      • व्यक्तिगत व्यवहार और तनाव से निपटने संबंधी कौशल: आहार, शारीरिक गतिविधि, शराब/तंबाकू का सेवन और तनाव प्रबंधन जैसे कारक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
    • स्वास्थ्य सेवाएँ
      • पहुँच एवं उपयोग: बीमारियों की रोकथाम और उपचार आधारित परिणामों को प्रभावित करती है, हालाँकि यह कई कारकों में से केवल एक है।
  • स्वास्थ्य के अधिकार के मूल घटक
    • उपलब्धता: राज्य को सभी के लिए पर्याप्त मात्रा में कार्यशील सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ, आवश्यक दवाएँ और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मी जैसी वस्तुएँ और सेवाएँ सुनिश्चित करनी चाहिए।
    • पहुँच: स्वास्थ्य सुविधाएँ, वस्तुएँ एवं सेवाएँ बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। इसमें शामिल हैं:-
      • गैर-भेदभाव: सबसे कमजोर या हाशिए पर स्थित समूहों के लिए पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिए।
      • भौतिक पहुँच: सुविधाएँ सुरक्षित पहुँच के भीतर होनी चाहिए (भौगोलिक पहुँच)।
      • आर्थिक पहुँच (वहनीय): सेवाएँ वहनीय होनी चाहिए, जिसका अर्थ है कि वे वित्तीय बोझ न डालें या गरीबी का कारण न बनें (उदाहरण के लिएआउट ऑफ पॉकेट व्यय’ को समाप्त करना)।
      • सूचना पहुँच: स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्राप्त करने, और साझा करने का अधिकार।
    • स्वीकार्यता: स्वास्थ्य सुविधाएँ और सेवाएँ नैतिक रूप से सही, लैंगिक रूप से संवेदनशील और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त होनी चाहिए। उन्हें व्यक्तियों, अल्पसंख्यकों और समुदायों की संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, और रोगी की गोपनीयता और सूचित सहमति का सम्मान करना चाहिए।
    • गुणवत्ता: स्वास्थ्य सुविधाएँ, वस्तुएँ और सेवाएँ वैज्ञानिक और चिकित्सकीय रूप से उपयुक्त और उच्च गुणवत्ता वाली होनी चाहिए। इसके लिए कुशल स्वास्थ्य पेशेवरों, वैज्ञानिक रूप से अनुमोदित उपकरणों, आवश्यक दवाओं और सुविधाओं में सुरक्षित जल/स्वच्छता की आवश्यकता होती है।

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधान

स्वास्थ्य का अधिकार मुख्य रूप से न्यायिक व्याख्या के माध्यम से सुरक्षित किया जाता है और संविधान के गैर-न्यायसंगत भागों में निहित है:-

  • अनुच्छेद 21 (मौलिक अधिकार): सर्वोच्च न्यायालय ने ‘जीवन के अधिकार’ की व्यापक व्याख्या करते हुए इसमें स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल के अधिकार को भी शामिल किया है।
  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP): ये संवैधानिक आदेश राज्य का मार्गदर्शन करते हैं:
    • अनुच्छेद 38 एवं 39(e): श्रमिकों के कल्याण को बढ़ावा देना और उनके स्वास्थ्य एवं शक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • अनुच्छेद 42: मातृत्व अवकाश और न्यायसंगत एवं मानवीय कार्य परिस्थितियों का प्रावधान अनिवार्य करता है।
    • अनुच्छेद 47: सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार और पोषण एवं जीवन स्तर को ऊपर उठाना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य घोषित करता है।
    • अनुच्छेद 48A: राज्य से पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करने का आह्वान करता है, और स्वास्थ्य के लिए प्रदूषण मुक्त पारिस्थितिकी तंत्र को आवश्यक मानता है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत ICESCR का हस्ताक्षरकर्ता है, जो स्वास्थ्य के अधिकार को मान्यता देता है।

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश और ऐतिहासिक निर्णय

न्यायपालिका ने चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के राज्य के दायित्व को बरकरार रखा है:-

  • परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (1989) मामला: इस मामले में निर्णय दिया गया कि कानूनी औपचारिकताओं की परवाह किए बिना तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
  • पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1996) मामला : मान्यता दी गई कि सरकार द्वारा समय पर चिकित्सा उपचार प्रदान करने में विफलता जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है।
  • सुखदेब साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2025): मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार को अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग माना गया।

भारत में प्रमुख स्वास्थ्य आँकड़े

सूचक नवीनतम स्थिति (स्रोत/वर्ष) तुलना/महत्त्व
जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (कुल मिलाकर) लगभग 70.8 वर्ष (2025 का अनुमान/संयुक्त राष्ट्र का 2023 का अनुमान)

पिछले लगभग 69 वर्षों की तुलना में इसमें सुधार दिखता है। हालाँकि, यह अभी भी वैश्विक औसत से लगभग 73 वर्ष पीछे है।

शिशु मृत्यु दर (IMR) प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 26 (SRS 2022)

महत्त्वपूर्ण गिरावट: 32 से कम (NFHS-4/SRS 2018)। भारत ने वर्ष 2019 तक NHP 2017 के 28 के लक्ष्य को पार कर लिया है।

मातृ मृत्यु दर (MMR) प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर 103 (SRS वर्ष 2020-2022)

प्रमुख उपलब्धि: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के 100 से कम के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र-MMEIG 2023 का नवीनतम अनुमान 80 है, जो वर्ष 2030 तक SDG के 70 से कम के लक्ष्य के निकट है।

कुपोषण (बच्चों में बौनापन) 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे (वैश्विक भूख सूचकांक 2024 / NFHS-5 वर्ष 2019- वर्ष 2021)

धीमी गति से सुधार: बौनापन (दीर्घकालिक कुपोषण) 38.4% (GNR 2020) से कम हो गया है, लेकिन यह अभी भी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है।

कुपोषण (बाल दुर्बलता) 5 वर्ष से कम आयु के 18.7% बच्चे (वैश्विक भूख सूचकांक 2024)

चिंताजनक दर: यह विश्व स्तर पर बच्चों में कुपोषण (तीव्र कुपोषण) की सबसे उच्च दरों में से एक है, जो गंभीर खाद्य असुरक्षा और हाल ही में हुई पोषण संबंधी कमियों को इंगित करता है।

गैर-संचारी रोग (NCD) लगभग 63-65% मौतें (GBD 2023/विशेषज्ञ अनुमान)

महामारी विज्ञान संबंधी परिवर्तन: गैर-संक्रामक रोग (हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह आदि) मृत्यु के प्रमुख कारण के रूप में संक्रामक रोगों से आगे निकल गए हैं, जो 61% तक हो गए हैं।

डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:811 (स्वास्थ्य मंत्रालय, दिसंबर 2025)

इस अनुपात में सक्रिय एलोपैथिक (MBBS) डॉक्टर और पंजीकृत आयुष चिकित्सक शामिल हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के 1:1000 के मानक से अधिक है।

  • हालाँकि, यह ग्रामीण-शहरी वितरण में गंभीर असमानताओं को छिपाता है।
स्वास्थ्य बीमा कवरेज सामाजिक सुरक्षा व्यय (SSE) कुल आय का 8.7% है (NHA वर्ष 2021-22)। स्वास्थ्य बीमा कवरेज (PM-JAY जैसी सरकारी योजनाओं सहित) में वृद्धि हुई है, जो OOPE में गिरावट से स्पष्ट है।

  • आयुष्मान भारत PM-JAY के तहत 42 करोड़ से अधिक कार्ड जारी किए जा चुके हैं (अक्टूबर 2025)।

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार का महत्त्व

  • मानव गरिमा और निष्पक्षता सुनिश्चित करना
    • मानव जीवन की रक्षा: सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि जीवन के अधिकार का अर्थ है-मानवीय गरिमा के साथ जीना।
      • स्वस्थ रहना गरिमा के लिए सबसे मूलभूत आवश्यकता है, क्योंकि अस्वस्थ व्यक्ति समाज में पूर्ण रूप से भाग नहीं ले सकता है।
    • निष्पक्षता की गारंटी: यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि स्वास्थ्य सेवाएँ आवश्यकता के आधार पर दी जाएँ, न कि व्यक्ति की आर्थिक स्थिति या सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर।
      • यह सरकार से गरीबों, कमजोर वर्गों, दलितों और आदिवासियों पर सर्वप्रथम ध्यान केंद्रित करने की माँग करता है, जिससे यह सामाजिक न्याय का एक शक्तिशाली साधन बन जाता है।
    • स्वच्छ जीवन अनिवार्य करना: चूँकि स्वास्थ्य’ का अर्थ केवल चिकित्सा देखभाल से कहीं अधिक है, इसलिए यह अधिकार सरकार को स्वच्छ जल, स्वच्छता, अच्छा भोजन और सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए बाध्य करता है, ये वे मूलभूत वस्तुएँ हैं जो किसी व्यक्ति के कल्याण को निर्धारित करती हैं।
  • अत्यधिक वित्तीय संकट को रोकना
    • गरीबी से संघर्ष: भारत में अभी भी आउट ऑफ पॉकेट’ व्यय (OOPE) बहुत अधिक है, जिसका अर्थ है कि परिवार इलाज का खर्च अपने पैसों से चुकाते हैं।
      • इससे प्रायः लाखों परिवार, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, गरीबी या गहरे कर्ज में डूब जाते हैं।
    • निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा: स्वास्थ्य को कानूनी अधिकार के रूप में स्थापित करने से सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह सार्वजनिक अस्पतालों में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं (दवाओं और जाँचों सहित) का एक बुनियादी समूह निःशुल्क प्रदान करे।
    • वहनीयता सुनिश्चित करना: इस अधिकार में आर्थिक सुलभता का विचार शामिल है, जिसका अर्थ है कि स्वास्थ्य देखभाल की लागत से आर्थिक कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
      • इससे महंगे, निजी उपचारों पर निर्भरता को संरचनात्मक रूप से कम करने में मदद मिलती है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत बनाना
    • खर्च बढ़ाना: स्वास्थ्य को एक लागू करने योग्य अधिकार बनाने से सरकार को अपने सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) में उल्लेखनीय वृद्धि करने के लिए बाध्य होना पड़ता है, जिससे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2.5% के लक्ष्य की ओर बढ़ा जा सके।
      • बेहतर बुनियादी ढाँचे, अधिक कर्मचारियों और नई तकनीक के लिए इस अतिरिक्त धन की आवश्यकता है।
    • विश्वास बनाए करना: अधिकार-आधारित प्रणाली विश्वसनीय और उच्च गुणवत्ता वाली होनी चाहिए।
      • इससे जनता का विश्वास बहाल करने में मदद मिलती है, जो महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश संवेदनशील लोग (8 करोड़ से अधिक लोग) पूरी तरह से सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हैं।
    • गुणवत्ता मानक निर्धारित करना: इस अधिकार में उपलब्धता और गुणवत्ता के मूल विचार शामिल हैं।
      • यह पर्याप्त अस्पतालों, आवश्यक दवाओं और कुशल कर्मचारियों की उपलब्धता के लिए कानूनी मानक निर्धारित करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रदान की जाने वाली देखभाल सुरक्षित और प्रभावी है।
  • जवाबदेही की माँग
    • कानूनी गारंटी: यह अधिकार स्वास्थ्य कार्यक्रमों को सरकार के विवेकाधीन वादों से संवैधानिक गारंटी में परिवर्तित कर देता है।
    • मुकदमा करने का अधिकार: यह नागरिकों को आवश्यक चिकित्सा देखभाल प्रदान करने में विफल रहने पर राज्य को चुनौती देने का सीधा कानूनी मार्ग (अदालत में) प्रदान करता है।
      • पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति जैसे प्रमुख अदालती फैसलों में इसकी पुष्टि की गई है।
    • निजी अस्पतालों पर नियंत्रण: यह अधिकार, विशाल निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को सख्ती से नियंत्रित और विनियमित करने के लिए एक मजबूत कानूनी आधार प्रदान करता है, जिससे उन्हें नैतिक नियमों का पालन करने, मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता बरतने और मरीजों के अधिकारों का सम्मान करने के लिए बाध्य किया जाता है।

भारत में प्रमुख स्वास्थ्य पहलें

पहल देखभाल का प्रकार/लक्ष्य मुख्य विशेषताएँ एवं प्रभाव
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP), 2017 नीतिगत रूपरेखा/ सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC)
  • मूलभूत नीति: वर्ष 2025 तक सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2.5% तक बढ़ाने का आदेश देती है।
  • व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (CPHC) पर ध्यान केंद्रित करती है और स्वास्थ्य केंद्रों/आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना को अनिवार्य बनाती है।
आयुष्मान भारत- PM-JAY वित्तीय सुरक्षा/ द्वितीयक एवं तृतीयक देखभाल
  • यह योजना प्रति परिवार प्रति वर्ष ₹5 लाख का स्वास्थ्य बीमा प्रदान करती है, जिसमें बिना नकद भुगतान के अस्पताल में भर्ती (सर्जरी, गहन चिकित्सा) शामिल है।
  • इसका उद्देश्य जनसंख्या के सबसे निचले 40% हिस्से के लिए आउट ऑफ पॉकेट’ (OOPE) को समाप्त करना है।
आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (HWCs) सार्वभौमिक पहुँच/ प्राथमिक देखभाल
  • 1.6 लाख से अधिक स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में परिवर्तित किया गया है।
  • घर के पास ही निःशुल्क और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा (जिसमें गैर-संचारी रोगों की जाँच, मातृ देखभाल और निःशुल्क दवाएँ/जाँच शामिल हैं) प्रदान की जाती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (मातृ/बाल स्वास्थ्य) राष्ट्रीय रोग नियंत्रण कार्यक्रमों (टीबी, मलेरिया) और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं [(टीकाकरण के लिए मिशन इंद्रधनुष, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK)] के लिए प्राथमिक वाहन।
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (PM-ABHIM) बुनियादी ढाँचे को मजबूत बनाना इसका उद्देश्य भविष्य में आने वाली महामारियों को रोकने और उनका प्रबंधन करने के लिए एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं, गहन देखभाल इकाइयों और अनुसंधान अवसंरचना के निर्माण हेतु बड़े पैमाने पर, दीर्घकालिक निवेश करना है।
टेली मानस मानसिक स्वास्थ्य पहुँच भारत भर में 50 से अधिक केंद्रों वाली एक राष्ट्रीय 24/7 टेली-काउंसलिंग हेल्पलाइन, जो मानसिक स्वास्थ्य सहायता को सुलभ और निःशुल्क बनाती है, जो मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार की मान्यता को दर्शाती है।
स्वच्छ भारत अभियान स्वास्थ्य निर्धारकों को संबोधित करना इसका मुख्य उद्देश्य स्वच्छता में सुधार करना और खुले में शौच मुक्त (ODF) स्थिति प्राप्त करना है, जिसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है और संक्रामक रोगों का बोझ कम होता है।

प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य पहलें

पहल/दस्तावेज फोकस क्षेत्र अधिदेश/उद्देश्य
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वाचा (ICESCR) कानूनी दायित्व
  • अनुच्छेद 12 शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम संभव स्तर के स्पष्ट अधिकार को मान्यता देता है।
  • यह हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्रों (भारत सहित) को उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करके इस अधिकार को क्रमिक रूप से साकार करने के लिए बाध्य करता है।
मानव अधिकारों का सार्वजनिक घोषणापत्र (UDHR) तृतीय सिद्धांत अनुच्छेद 25 स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार को मान्यता देता है, जिसमें आवश्यक चिकित्सा देखभाल भी शामिल है।
सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 3 वैश्विक लक्ष्य/ढाँचा इसका मुख्य लक्ष्य सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करना है, जिसमें गुणवत्तापूर्ण आवश्यक सेवाओं तक पहुँचच और वित्तीय जोखिम से सुरक्षा शामिल है।
एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक कोष रोग-विशिष्ट वित्तपोषण एक बहुपक्षीय वित्तीय साझेदारी, जो विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए तीन प्रमुख संक्रामक रोगों से निपटने के लिए धन एकत्रित और निवेश करती है।
GAVI, वैक्सीन अलायंस आवश्यक दवाओं तक पहुँच विश्व के सबसे गरीब देशों में बच्चों के लिए नए और कम उपयोग किए जाने वाले टीकों तक पहुँच में सुधार लाने पर केंद्रित एक वैश्विक सार्वजनिक-निजी साझेदारी, जो स्वास्थ्य के अधिकार के उपलब्धता घटक को पूरा करती है।
अल्मा अता घोषणा (1978) नीति मार्गदर्शक सिद्धांत एक ऐतिहासिक घोषणा है जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को सभी के लिए स्वास्थ्य’ प्राप्त करने की केंद्रीय रणनीति के रूप में पहचाना गया, और निवारक और समुदाय-आधारित देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया गया।

  • OOPE और THE किसी देश की स्वास्थ्य सेवा वित्तपोषण संरचना, समानता और नागरिकों को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सुरक्षा का आकलन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मूलभूत संकेतक हैं।
  • THE किसी देश में स्वास्थ्य पर खर्च की गई कुल राशि (सेवाएँ, वस्तुएँ, पूँजी) है, जबकि OOPE देखभाल के समय व्यक्तियों द्वारा किया गया प्रत्यक्ष भुगतान है।

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार के लिए चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • संघीय बाध्यता (राज्य सूची): ‘स्वास्थ्य’ राज्य सूची के अंतर्गत शामिल विषय है, जिसके लिए केंद्र सरकार को अनुच्छेद 252 (राज्यों की सहमति से) या अनुच्छेद 253 (अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के लिए) का उपयोग करके एक लागू करने योग्य राष्ट्रीय अधिनियम पारित करना आवश्यक है।
  • कम वित्तीय आवंटन: सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) वैश्विक मानकों से नीचे बना हुआ है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA), 2021-22 में GHE को GDP का 1.84% बताया गया है, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनंतिम रुझान वित्त वर्ष 2025 में GDP के 2.0-2.1% की ओर क्रमिक वृद्धि का अनुमान लगाते हैं।
    • यह अभी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के GDP के 2.5% के लक्ष्य से कम है।
  • आउट ऑफ पॉकेट’ व्यय (OOPE): कुल स्वास्थ्य व्यय (THE) के 39.4% तक कम होने के बावजूद (NHA 2021-22), OOPE आर्थिक रूप से हानिकारक बना हुआ है।
    • स्वास्थ्य व्यय के कारण प्रतिवर्ष 5 करोड़ से अधिक भारतीय निर्धनता की स्थिति में पहुँच जाते हैं, जिनमें से अधिकांश व्यय बाह्य रोगी चिकित्सा लागत (OOPE का 70%) में केंद्रित हैं, जो PM-JAY जैसी सार्वजनिक बीमा योजनाओं से अत्यधिक सीमा तक बाहर हैं।
  • निजीकरण और अनियंत्रित निजी क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का विस्तार और अनियंत्रित निजी क्षेत्र एक बड़ी चिंता का विषय बने हुए हैं।
    • क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स एक्ट (2010) का नाममात्र का कार्यान्वयन अधिक शुल्क वसूलने, अपारदर्शी मूल्य निर्धारण और रोगी अधिकारों के उल्लंघन की अनुमति देता है।
  • परिणामों में असमानताएँ (मातृ मृत्यु दर): भारत ने मातृ मृत्यु दर (MMR) को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • वर्ष 2018-20 के लिए मातृ मृत्यु दर का अनुमान 97 प्रति लाख जीवित जन्म है, जबकि संयुक्त राष्ट्र-MMEIG 2023 के अनुमान के अनुसार, यह लगभग 70 है (जो वर्ष 1990 से 86% की गिरावट को दर्शाता है)।
    • हालाँकि लक्ष्य सभी राज्यों में मातृ मृत्यु दर को 70 से नीचे लाकर सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करना है, फिर भी हाशिए पर स्थित समूहों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत मातृ स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में उल्लेखनीय असमानताएँ बनी हुई हैं।
  • किफायती दवाओं तक पहुँच: 80% से अधिक दवाएँ मूल्य नियंत्रण से बाहर हैं, जो कि आउट ऑफ पॉकेट’ व्यय (OOPE) में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
    • संसदीय स्थायी समिति ने कई आमतौर पर प्रयोग होने वाली दवाओं के लिए स्टॉक रखने वाले की कीमत और MRP की भी जाँच की और पाया कि अंतर क्रमशः 600%, 1200% और 1800% तक था।
  • भेदभाव का उन्मूलन: स्थापित सामाजिक पदानुक्रम पहुँच को प्रभावित करते रहते हैं, जिसके लिए दलितों, आदिवासियों, मुसलमानों और LGBTQ+ व्यक्तियों के अनुभवों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जो सम्मेलन के एक सत्र का प्रमुख केंद्र बिंदु है।
  • कार्यान्वयन में विफलता (राजस्थान का अधिनियम): अपनी तरह का पहला राजस्थान स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम (2023) निजी चिकित्सकों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिससे इस अधिकार को सुनिश्चित करने में राज्य और निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के बीच कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों और विवादास्पद संबंधों पर प्रकाश डाला गया।
  • बुनियादी ढाँचेगत चुनौती: कार्यात्मक बुनियादी ढाँचे और मानव संसाधनों की कमी ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है, जिससे विशेषीकृत और आपातकालीन देखभाल से वंचित होना पड़ता है। यह असमान वितरण स्वास्थ्य सेवाओं की भौतिक पहुँच और उपलब्धता के संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन करता है।

आगे की राह

  • विधायी एवं शासन संबंधी अनिवार्यताएँ
    • स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम लागू करना: एक केंद्रीयस्वास्थ्य का अधिकार’ अधिनियम का निर्माण करना, जो न्यायिक प्रतिबद्धता (अनुच्छेद 21 के तहत) को एक लागू करने योग्य वैधानिक अधिकार में परिवर्तित करना और देखभाल प्रदान करने में विफलता के मामले में न्यायिक उपाय सुनिश्चित करना।
    • संघीय संघर्ष का समाधान करना: एक एकीकृत राष्ट्रीय विधायी ढाँचे के लिए स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में रखने के लिए कदम उठाना (संभावित रूप से संवैधानिक संशोधन के माध्यम से)।
    • आवश्यक स्वास्थ्य पैकेज (EHP) अनिवार्य करना: सार्वजनिक सुविधाओं में प्रत्येक नागरिक को उपलब्ध मुफ्त सेवाओं, निदान और आवश्यक दवाओं का न्यूनतम, कानूनी रूप से परिभाषित आवश्यक स्वास्थ्य पैकेज (EHP) बनाना।
    • निजी क्षेत्र को विनियमित करना: वित्तीय शोषण को रोकने के लिए नैदानिक ​​प्रतिष्ठान अधिनियम (2010) का सख्ती से कार्यान्वयन सुनिश्चित करना, जिसमें रोगी अधिकारों का चार्टर, दर मानकीकरण और पारदर्शी मूल्य निर्धारण शामिल हो।
  • वित्तीय और प्रणालीगत सुधार
    • सार्वजनिक व्यय में वृद्धि: NHP, 2017 के GDP के 2.5% संबंधी लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) में धीरे-धीरे वृद्धि करना, बीमा-आधारित मॉडलों की तुलना में प्राथमिक और माध्यमिक देखभाल को प्राथमिकता देना।
    • सार्वजनिक प्रणालियों (UHC) को मजबूत करना: विकेंद्रीकृत योजना और समुदाय-नेतृत्व वाले मॉडलों पर ध्यान केंद्रित करना। सामाजिक सुरक्षा कवरेज (जैसे- PM-JAY) का विस्तार करना ताकि अत्यधिक खर्च के मुख्य कारण को संबोधित किया जा सके।
  • बाह्य रोगी देखभाल
    • किफायती दवाएँ: आवश्यक दवाओं और निदान उपकरणों पर GST हटाने का प्रस्ताव करना, साथ ही पहुँच में सुधार के लिए जेनेरिक दवाओं के सार्वजनिक क्षेत्र के उत्पादन का विस्तार करना।
    • स्वास्थ्य कर्मियों के लिए न्याय: मानव संसाधन आधार को मजबूत करने के लिए सभी अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं (जैसे- आशा कार्यकर्ता, संविदा कर्मचारी) के लिए बेहतर वेतन, सुरक्षित रोजगार और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • प्रौद्योगिकी और समग्र स्वास्थ्य
    • डिजिटल स्वास्थ्य का उपयोग: ग्रामीण-शहरी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं में मौजूद गंभीर अंतराल को पाटने के लिए निदान और स्वास्थ्य सेवा वितरण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल उपकरणों (जैसे- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन) के रणनीतिक उपयोग को बढ़ावा देना।
    • मानसिक स्वास्थ्य को एकीकृत करना: राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (टेली मानस) और सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों के बीच संबंध को मजबूत करना, इसकी व्यापकता (53 सेल, 29.7 लाख कॉल) का लाभ उठाते हुए मानसिक स्वास्थ्य सहायता को सार्वभौमिक रूप से सुलभ बनाना।
    • कारण कारकों का समाधान: प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से होने वाले स्वास्थ्य प्रभावों को प्रबंधित करने के लिए जलवायु-स्वास्थ्य शमन रणनीतियों और अंतर-क्षेत्रीय सहयोग (जैसे- पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा मंत्रालयों के साथ) को एकीकृत करना।

निष्कर्ष

अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निहित स्वास्थ्य का अधिकार एक न्यायिक प्रतिबद्धता है, जिसे मूर्त रूप देने के लिए विधायी कार्रवाई की आवश्यकता है। राष्ट्रीय सम्मेलन इस बात पर जोर देता है कि इस संवैधानिक अधिदेश को सुदृढ़ सार्वजनिक प्रणालियों और आवश्यक स्वास्थ्य पैकेज के वैधानिक प्रवर्तन के माध्यम से साकार किया जाना चाहिए ताकि लोगों को स्वास्थ्य सेवाएँ मिलें, न कि लाभ के लिए।

अभ्यास प्रश्न 

बढ़ते निजीकरण और कम सार्वजनिक व्यय के कारण भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में असमानताएँ बढ़ती जा रही हैं। इस संदर्भ में, भारत में स्वास्थ्य के अधिकार को न्यायसंगत अधिकार के रूप में साकार करने में आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

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