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जानने का अधिकार

Lokesh Pal May 13, 2025 02:54 5 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें विकिमीडिया फाउंडेशन को एक विकिपीडिया पृष्ठ हटाने का निर्देश दिया गया था।

मामले के मुख्य निष्कर्ष

  • न्यायिक अतिक्रमण: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपयोगकर्ता द्वारा निर्मित विकिपीडिया सामग्री और टिप्पणियों को न्यायालय की अवमानना ​​मानकर यह प्रतिक्रिया की है।
  • जानने का अधिकार: न्यायालय ने पुष्टि की कि जानने का अधिकार लोकतंत्र का अभिन्न अंग है और संविधान के अनुच्छेद-19(1)(A) और 21 के तहत संरक्षित है।

न्यायालय की अवमानना

न्यायालय की अवमानना ​​से तात्पर्य किसी भी ऐसे कृत्य से है, जो न्यायालय का अनादर करता है, उसके कामकाज में हस्तक्षेप करता है या न्यायालय की गरिमा को कम करता है। इसका उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करना और कानून के शासन को बनाए रखना है।

प्रकार (न्यायालय अवमानना ​​अधिनियम, 1971 के अनुसार)

  • सिविल अवमानना: न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या निर्देश की जानबूझकर अवज्ञा करना।
  • आपराधिक अवमानना: कोई भी प्रकाशन या कार्य जो किसी की निंदा करता है अथवा निंदा करने की प्रवृत्ति रखता है, न्यायिक कार्यवाही को प्रभावित करता है या न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न करता है।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-129: सर्वोच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा तथा उसे अपनी अवमानना ​​के लिए दंड देने की सभी शक्तियाँ होंगी।
  • अनुच्छेद-215: प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा तथा उसे अपनी अवमानना ​​के लिए दंड देने की शक्ति होगी।

ये शक्तियाँ न्यायालयों की गरिमा को बनाए रखने तथा निर्बाध न्याय प्रदान करने के लिए निहित हैं।

  • मध्यस्थों की भूमिका स्पष्ट की गई: न्यायालय ने स्वीकार किया कि विकिमीडिया, एक डिजिटल मध्यस्थ (जैसे- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या इंटरनेट सेवा प्रदाता) के रूप में, बुनियादी ढाँचा प्रदान करता है, लेकिन कंटेंट का लेखक नहीं है, इस प्रकार इसका दायित्व सीमित हो जाता है।

सूचना के अधिकार (RTI) का संवैधानिक आधार

  • अनुच्छेद-19(1)(A) में निहित: सूचना का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो नागरिकों को लोकतंत्र में सार्थक भागीदारी के लिए आवश्यक जानकारी तक पहुँच प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद-21 का विस्तार: सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जानने का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को भी मजबूत करता है, जिससे सूचित निर्णय और न्याय तक पहुँच संभव होती है।
  • लोकतांत्रिक कामकाज के लिए आवश्यक: सूचित नागरिकों के बिना, संस्थानों की जवाबदेही और शासन में सार्वजनिक भागीदारी से समझौता होता है, जिससे जानने का अधिकार सुशासन का आधार बन जाता है।

RTI को अनुच्छेद-19(1)(A) से जोड़ने वाले सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय 

  • एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (वर्ष 1981): सहभागी लोकतंत्र में जनता केजानने के अधिकार को आवश्यक माना गया, विशेष रूप से सरकार और न्यायपालिका के कामकाज के संबंध में।
  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण (वर्ष 1975): इस बात पर जोर दिया गया कि नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों के सार्वजनिक कार्यों के बारे में जानने का अधिकार है।
  • सचिव, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय बनाम क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (वर्ष 1995): इस बात पर निर्णय दिया गया कि सूचना का अधिकार अनुच्छेद-19(1)(A) में निहित है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना प्राप्त करने के जनता के अधिकार को मजबूत करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अंतर्गत सेफ हार्बर सिद्धांत 

  • IT अधिनियम की धारा 79 के तहत, सेफ हार्बर सिद्धांत मध्यस्थों को तृतीय पक्ष के कंटेंट के लिए उत्तरदायित्व से बचाता है, बशर्ते कि वे:
    • कंटेंट का निर्माण न करें, रिसीवर का चयन न करें, या उसमें परिवर्तन न करें, और
    • अधिसूचित होने पर शिकायतों पर कार्रवाई करके गैर-कानूनी कंटेंट को तुरंत हटा दें।
  • यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि मध्यस्थों को उपयोगकर्ता-जनित कंटेंट के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता है, यदि वे IT (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत निर्धारित उचित परिश्रम मानदंडों का अनुपालन करते हैं।

पारदर्शिता की चुनौतियाँ और दुरुपयोग का जोखिम

  • न्यायिक संवेदनशीलता बनाम सार्वजनिक जाँच: न्यायालयों को अपनी गरिमा बनाए रखने और सार्वजनिक चर्चा की अनुमति देने के बीच संतुलन बनाना चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में देखा गया है कि यह अतिक्रमण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा सकता है।
  • अवमानना ​​शक्तियों का दुरुपयोग: आलोचनात्मक टिप्पणी को दंडित करने के लिए अवमानना ​​प्रावधानों का उपयोग करने से मुक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ठेस पहुँच सकती है और नागरिक जुड़ाव को दबाया जा सकता है, खासकर विकिपीडिया जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में।
  • मानहानि और मध्यस्थ दायित्व: प्लेटफॉर्म के खिलाफ मानहानि के मुकदमों की बढ़ती संख्या IT अधिनियम के तहत सेफ हार्बर सिद्धांत के बारे में सवाल उठाती है, खासकर जब प्लेटफॉर्म केवल उपयोगकर्ता द्वारा तैयार की गई सामग्री को होस्ट करते हैं।
  • उच्च न्यायालयों की विवेकशीलता की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी उच्च न्यायालयों को यह संकेत देती है कि वे हटाने के आदेश जारी करने से पहले ‘सूचना के अधिकार’ और मध्यस्थों की भूमिका पर विचार अवश्य करें।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जानने के अधिकार की पुनः पुष्टि भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को मजबूत करती है। न्यायालयों को अपने अधिकार को बनाए रखते हुए, जाँच के लिए यह सुनिश्चित करते हुए स्वतंत्र रहना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा पारदर्शिता संस्थागत संवेदनशीलता पर प्रभावी हो।

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