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वनवासियों के अधिकार

Lokesh Pal February 17, 2024 06:18 105 0

संदर्भ

तमिलनाडु सरकार ने इरोड जिले के बरगुर हिल्स (Bargur Hills) में 80,114.80 हेक्टेयर आरक्षित वनों को थानथाई पेरियार वन्यजीव अभयारण्य (Thanthai Periyar Wildlife Sanctuary) घोषित किया है।

थानथाई पेरियार वन्यजीव अभयारण्य

  • अवस्थिति: तमिलनाडु के सत्यमंगलम टाइगर रिजर्व एवं माले महादेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य और कर्नाटक के कावेरी वन्यजीव अभयारण्य के बीच फैला है।
  • जीव-जंतु: यह क्षेत्र नीलगिरी एलिफेंट रिजर्व का भाग है और बाघों की एक व्यवहार्य आबादी के साथ-साथ हाथियों एवं गौर जैसे शाकाहारी जानवरों का भी आवास है।
  • यह राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा चिह्नित बाघ गलियारों में से एक है।
  • नदियाँ: यह पलार नदी का जलग्रहण क्षेत्र है, जो कावेरी नदी की सहायक नदी है।
  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व: जनजातीय और स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका और पारंपरिक प्रथाओं के लिए इन पारिस्थितिकी तंत्रों पर निर्भर हैं।

संबंधित तथ्य 

  • रणनीतिक पारिस्थितिकी लिंकेज: यह अभयारण्य, नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व को कावेरी दक्षिण वन्यजीव अभयारण्य (Cauvery South Wildlife Sanctuary) से जोड़ता है और इसे राज्य में 18वें वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया है।
    • आरक्षित वनों को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने से संरक्षित क्षेत्रों का एक सन्निहित नेटवर्क तैयार होगा, जिससे प्राकृतिक परिदृश्य की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।
  • संभावित अधिकारों का उल्लंघन: तमिलनाडु सरकार के इस निर्णय ने स्थानीय वनवासी समुदायों के बीच ‘अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ के तहत उल्लिखित उनके अधिकारों के उल्लंघन के बारे में चिंता बढ़ा दी है।
  • पर्यावासों का बहिष्कार: छह आदिवासी बस्तियों और इन बस्तियों को जोड़ने वाली सड़कों को पर्यावास से बाहर कर दिया गया है।
    • हालाँकि, इस क्षेत्र के आदिवासी संघ और निवासी इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इन वनों के आरक्षित अभयारण्य बनने के बाद उनके पारंपरिक अधिकारों में कटौती हो जाएगी।

वन अधिकार अधिनियम (FRA) के बारे में

  • उत्पत्ति: 18 दिसंबर, 2006 को अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 पारित किया गया था। यह अधिनियम 31 दिसंबर, 2007 को लागू हुआ था।
  • परिचय: यह वन में रहने वाले अनुसूचित जनजाति जनजातीय (Forest Dwelling Scheduled Tribes Tribal- FDST) और अन्य पारंपरिक वन निवासियों (Other Traditional Forest Dwellers- OTFD) के अधिकारों को मान्यता देता है ताकि वे पीढ़ियों से कब्जा की गई वन भूमि पर कानूनी अधिकार का दावा कर सकें।

लघु वनोत्पाद (Minor Forest Produce- MFP) 

  • इसमें पौधीय मूल के सभी गैर-काष्ठ उत्पाद जैसे- बाँस, बेंत, चारा, पत्तियाँ, गम, वेक्स, डाई, रेजिन और कई प्रकार के खाद्य जैसे मेवे, जंगली फल, शहद, लाख, रेशम आदि शामिल हैं।

अधिनियम के तहत प्रदत्त अधिकार

  • उपयोग संबंधी अधिकार: यह गौण वन उपज पर स्वामित्व, चरागाह क्षेत्रों, पशुपालक मार्गों आदि पर उपयोग संबंधी अधिकार भी प्रदान करता है।
  • व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights- IFR): यह चार हेक्टेयर तक कृषि के लिए भूमि तक पहुँच प्रदान करता है। व्यक्तिगत रूप से कृषि और अन्य आजीविका उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग करने, अपने भोजन और आजीविका को सुरक्षित करने का अधिकार है।
  • सामुदायिक वन संसाधन (Community Forest Resource- CFR) अधिकार: यह सामुदायिक वन संसाधन की ‘रक्षा, पुनर्जनन या संरक्षण या प्रबंधन’ के अधिकार की मान्यता प्रदान करता है।
  • राहत एवं विकास संबंधी अधिकार: इनमें अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन के मामले में पुनर्वास और वन संरक्षण के लिए प्रतिबंधों के अधीन बुनियादी सुविधाओं का अधिकार शामिल है।
  • वन प्रबंधन अधिकार: ये वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा के लिए दिए जाते हैं।

सामुदायिक वन संसाधन (CFR) का अर्थ है ”गाँव की पारंपरिक या प्रथागत सीमाओं के भीतर प्रथागत सामान्य वन भूमि या ग्रामीण समुदायों के मामले में परिदृश्य का मौसमी उपयोग जिस तक समुदाय की पारंपरिक पहुँच पहले से थी“।

FRA के प्रमुख प्रावधान

  • ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना: यह ग्राम सभाओं या ग्राम परिषदों को यह निर्णय लेने का अधिकार देता है कि उनकी वन भूमि का सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जा सकता है।
    • चराई अधिकार बस्ती स्तर के गाँवों के सामुदायिक अधिकार हैं और उन्हें उनकी ग्राम सभाओं द्वारा विनियमित किया जाता है। गैर-वानिकी उपयोग के लिए वन भूमि के किसी भी हस्तांतरण के लिए उनकी सहमति की आवश्यकता होती है।
  • भूमि पर स्वामित्व का दावा: FRA मानदंड भूमि पर स्वामित्व के दावे को निर्धारित करते हैं जिसके तहत आदिवासी अपनी भूमि पर स्वामित्व का दावा कर सकते हैं।
    • FRA के तहत दिया गया स्वामित्व एक कानूनी शीर्षक है और वन अधिकार की औपचारिक मान्यता है।

पात्रता मापदंड

FDST के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा:-

  • उस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति होना चाहिए, जहाँ अधिकार का दावा किया गया है।
  • 13 दिसंबर, 2005 से पहले मुख्य रूप से जंगल या वन भूमि में निवास करता था।
  • वास्तविक आजीविका आवश्यकताओं के लिए वन या वन भूमि पर निर्भर रहते थे।

OTFD के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए

  • 13 दिसंबर, 2005 से पहले तीन पीढ़ियों (75 वर्ष) तक मुख्य रूप से वन या वन भूमि में निवास करते थे।
  • वास्तविक आजीविका आवश्यकताओं के लिए वन या वन भूमि पर निर्भर रहे थे।

  • CFR को पर्याप्त रूप से मान्यता देने वाले राज्य हैं- महाराष्ट्र, ओडिशा और छत्तीसगढ़।
  • केवल महाराष्ट्र ने कम-से-कम अनुसूचित क्षेत्रों में लघु वनोपज का राष्ट्रीयकरण करके उन्हें सक्षम बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप कम-से-कम एक हजार गाँव अपने स्वयं के जंगलों का प्रबंधन कर रहे हैं।

FRA से जुड़ी चिंताएँ

  • CFR की पहचान न होना: CFR की धीमी और अधूरी पहचान हुई है।
    • वन नौकरशाही, जो अभी भी औपनिवेशिक तर्ज पर बनी हुई है, अपने अधिकार खोने के डर से इन अधिकारों का पुरजोर विरोध करती है।
    • अन्य सरकारी विभाग और राजनीतिक प्रतिनिधि वनवासियों को अपने स्वयं के जंगलों के स्वतंत्र उपयोगकर्ताओं और प्रबंधकों के बजाय केवल राज्य सहायता के लाभार्थियों के रूप में देखते हैं।
  • CFR पात्रता में अनिश्चितता: सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) दावों के लिए योग्य वन भूमि के विशिष्ट स्थानों एवं सीमा के बारे में स्पष्टता की कमी है।
    • इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों का अभाव होता है।
  • FRA का दुरुपयोग: अक्सर दावा प्रस्तुत करने के लिए समय सीमा के विस्तार के प्रावधान का पालन किए बिना जिला स्तरीय समितियाँ इस उद्देश्य के लिए आयोजित ग्राम सभाओं की उपेक्षा करती हैं।
    • परिणामतः व्यावसायिक या कृषि के अधिकार/स्वामित्व (आमतौर पर पट्टे के रूप में जाना जाता है) उन अयोग्य दावेदारों के पक्ष में दिए जा रहे हैं जिन्होंने 13 दिसंबर, 2005 की कट-ऑफ तारीख के बाद भी वन भूमि पर अतिक्रमण किया है।
    • यह FRA के साथ-साथ वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और भारतीय वन अधिनियम, 1927 का उल्लंघन है।
  • वन संसाधनों का अस्थिर उपयोग: अयोग्य समुदायों को सामुदायिक अधिकारों की ‘प्रकृति’ के साथ ‘सीमा’ निर्दिष्ट किए बिना अधिकार प्रदान किए गए हैं।
    • इससे वन संसाधनों का विनियमन ‘अनियंत्रित’ हो गया है जिससे लघु वन उपज सहित वन संसाधनों की स्थिरता के लिए खतरा पैदा हो गया है।
    • उदाहरण के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण की राज्य वन रिपोर्ट 2021 में वर्ष 2019 में रिपोर्ट किए गए क्षेत्र की तुलना में 10,594 वर्ग किमी. बाँस वाले क्षेत्र के अवसान का संकेत मिलता है।

  • सरकारी अधिकारियों द्वारा लापरवाही: कलेक्टर को प्रस्तावित अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान में सभी व्यक्तियों के अधिकारों, उनकी प्रकृति और सीमा की जाँच करनी है।
    • इसके अलावा, कलेक्टर कार्यालय को यह तय करने की आवश्यकता है कि अभयारण्यों के अंतर्गत दावों को स्वीकार किया जाए या नहीं और राष्ट्रीय उद्यानों के अंतर्गत सभी अधिकार प्राप्त किए जाएं या नहीं।
    • हालाँकि, सरकारें इन प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रही हैं।
  • अपर्याप्त डिजिटल प्रक्रियाओं को लागू करना: खराब कनेक्टिविटी और साक्षरता वाले क्षेत्रों में डिजिटल प्रक्रिया कार्यान्वयन ने दावों के प्रभावी प्रसंस्करण में बाधा उत्पन्न की है। उदाहरण: मध्य प्रदेश में वनमित्र सॉफ्टवेयर।
  • राज्यों में FRA का असमान कार्यान्वयन: आंध्र प्रदेश ने अपने न्यूनतम संभावित वन क्षेत्र के 29,64,000 एकड़ में से 23% को मान्यता दी है, जबकि 52,36,400 एकड़ न्यूनतम संभावित वन क्षेत्र वाले झारखंड ने केवल 5% को मान्यता दी है।
    • राज्यों के भीतर, कुछ जिलों ने दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए, ओडिशा के भीतर, नबरंगपुर जिले में 100% IFR मान्यता दर है, लेकिन संबलपुर में, यह 41.34% है।

मवेशी चराई पर न्यायपालिका

  • मार्च 2022 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के सभी जंगलों में मवेशी चराने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया और प्रतिबंध को राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और बाघ अभयारण्यों तक सीमित कर दिया।
  • यह आदेश FRA का उल्लंघन करता है, जो अन्य सामुदायिक अधिकारों से अलग, राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और टाइगर रिजर्व सहित सभी जंगलों में ‘खानाबदोश या पशुपालक समुदायों की चराई और पारंपरिक मौसमी संसाधन पहुँच’ को मान्यता देता है।
  • न्यायालयों ने इन उल्लंघनों को नजरअंदाज कर दिया है, जो औपनिवेशिक युग के बाद से वन विभाग के भीतर गहराई से व्याप्त हो गए हैं और वन नौकरशाही को समान प्रथाएँ विरासत में मिली हैं।

आगे की राह

  • उन्नत दस्तावेजीकरण और साक्ष्य प्रस्तुति: सभी राज्यों को निर्देश दिए जाने चाहिए, जिसमें वन क्षेत्र के अधिकारियों को वन अतिक्रमण की स्थिति को दर्शाने वाले उपग्रह चित्र और अन्य दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाए।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि दावे केवल गाँव के बुजुर्गों द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों के आधार पर स्वीकार नहीं किए जाते बल्कि अन्य साक्ष्यों के साथ भी तुलना   की जाती है।
  • ग्राम सभा की बैठकों को सुव्यवस्थित करना: ऐसी बस्तियों में वन भूमि पर व्यक्तिगत वन अधिकार प्रदान करने के उद्देश्य से बार-बार ग्राम सभा की बैठकें बंद की जानी चाहिए, जहाँ जिला स्तरीय समिति के अंतिम निर्णय के बाद अभ्यास पहले ही पूरा हो चुका है।
  • अधिकारों की सीमा निर्दिष्ट करना: सामुदायिक वन अधिकारों के अनुदान से जुड़े सभी मामलों में अनुमत उपज की ‘संतुलित सीमा’ के विनिर्देश को शामिल करने के निर्देश दिए जाने चाहिए।
  • राज्य सरकार की एजेंसियों को संवेदनशील बनाना: राज्य सरकार की एजेंसियों जैसे वन विभाग, आदिवासी कल्याण विभाग और राजस्व विभागों को स्थायी वन प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए CFRR की मान्यता को सुविधाजनक बनाने के लिए संवेदनशील बनाया जाना चाहिए।

क्षमता निर्माण: वनों की गुणवत्ता में सुधार के लिए वन उपज की टिकाऊ फसलों और वन विकास गतिविधियों के संबंध में फ्रंटलाइन कर्मचारियों तथा स्थानीय समुदाय की क्षमता निर्माण की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।

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