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भारत में हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र के लिए रोडमैप (Roadmap for Green Hydrogen Ecosystem in India)

Samsul Ansari January 15, 2024 05:00 210 0

संदर्भ 

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) द्वारा ‘हरित हाइड्रोजन: भारत में अपनाने के लिए सक्षम उपायों का रोडमैप’ (Green Hydrogen: Enabling Measures Roadmap for Adoption in India) पर रिपोर्ट जारी की गई है।

संबंधित तथ्य

  • यह रिपोर्ट भारत में हरित हाइड्रोजन को अपनाने में तेजी लाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के हस्तक्षेप की सिफारिश करती है।
  • यह रिपोर्ट भारत में हरित हाइड्रोजन को एक व्यवहार्य ऊर्जा स्रोत के रूप में स्थापित करने के लिए मार्ग प्रदान करती है।

भारत में हाइड्रोजन उत्पादन की स्थिति

  • वर्तमान में, भारत लगभग 6.5 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (Million Metric Tonnes Per Annum- MMTPA) हाइड्रोजन का उत्पादन करता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से कच्चे तेल की रिफाइनरियों और उर्वरक उत्पादन में होता है।
  • वर्तमान में देश की उत्पादित अधिकांश हाइड्रोजन ‘ग्रे हाइड्रोजन’ (Grey Hydrogen) की श्रेणी में आता है, जो जीवाश्म ईंधनों का उपयोग करके उत्पादित होती है जिससे CCO2  गैस का उत्सर्जन भी होता  है।

ग्रीन हाइड्रोजन क्या है?

  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy-MNRE) ने हरित हाइड्रोजन को ऐसे हाइड्रोजन के रूप में परिभाषित किया है जिसके प्रति किलोग्राम उत्पादन के लिए 2 किलोग्राम से अधिक CO2  का उत्सर्जन न होता हो।
    • वर्तमान में, 1 किलोग्राम ‘ग्रे हाइड्रोजन’ के उत्पादन से 9 किलोग्राम CO2 उत्सर्जित होती है।
    • जबकि हरित हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके इलेक्ट्रोलाइजर के माध्यम से जल (H2O) के अणुओं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके किया जाता है, जबकि ग्रे हाइड्रोजन के लिए कार्बन दहन की आवश्यकता होती है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन के अनुप्रयोग: यह उर्वरकों और रिफाइनरियों में एक प्रमुख आगत/इनपुट के रूप में प्रयोग होता है तथा रासायनिक उद्योग में अमोनिया उत्पादन, परिवहन, ऊर्जा भंडारण, बिजली उत्पादन आदि जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं में भी यह कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।

हरित हाइड्रोजन की आवश्यकता

  • ऊर्जा की बढ़ती माँग: भारत, वर्तमान में ऊर्जा आवश्यकता के मामले में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और देश की ऊर्जा की माँग में लगातार वृद्धि होने वाली है।
    •  रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक हरित हाइड्रोजन की माँग 35% तक बढ़ने का अनुमान है।
  • ऊर्जा आयात लागत को कम करना: वर्ष 2022 में भारत का ऊर्जा आयात बिल लगभग $185 बिलियन था और अगर देश अपनी बढ़ती ऊर्जा माँग को पारंपरिक तरीकों से पूरा करता रहा, तो यह संभावित रूप से और अधिक बढ़ सकता है।
    • MNRE के अनुसार, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन से भारत वर्ष 2030 तक 1 लाख करोड़ रुपये के जीवाश्म ईंधन आयात को कम कर सकता है।
  • जलवायु लक्ष्य और उत्सर्जन में कमी: भारत ने वर्ष 2021 में ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य (Net Zero) उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई थी।

  • हरित हाइड्रोजन वर्ष 2030 तक कम-से-कम 50 MMTPA ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम कर सकता है।                              
  • ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना: भारत की ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने और शुद्ध शून्य की राह पर उत्सर्जन कम करने में हरित हाइड्रोजन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • भारत में सौर और पवन ऊर्जा से 210 मिलियन टन प्रति वर्ष (598 मिलियन टन तेल समकक्ष) हाइड्रोजन उत्पादन की क्षमता है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र (Asia-Pacific’s-APAC’s) की 32% हाइड्रोजन माँग को पूरा कर सकती है।
    • विदेशी मुद्रा आय: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, वर्ष 2030 तक हाइड्रोजन की वैश्विक माँग लगभग 180 मिलियन टन हो सकती है।
      • भारत इस अवसर का उपयोग खुद को ऊर्जा आयातक से ऊर्जा प्रदाता और निर्यातक में बदलने के लिए कर सकता है।
  • भू-राजनीतिक निहितार्थ
    • बढ़ता वैश्विक महत्त्व: ऊर्जा क्षेत्र में हाइड्रोजन के बढ़ते महत्त्व से दुनिया भर में तकनीकी और भू-राजनीतिक रुझानों पर असर पड़ने की उम्मीद है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा लाभ: प्रचुर मात्रा में कम लागत वाली नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँच वाले देश हरित हाइड्रोजन के उत्पादक/निर्यातक बन सकते हैं।
      • उदाहरण के लिए, जापान ने हरित या ब्लू H2/NH3 के उत्पादन, आपूर्ति और व्यापार के लिए संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • वैश्विक रणनीतियाँ: दुनिया भर के कई देशों/क्षेत्रों जैसे यूरोपीय संघ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और जापान सहित अन्य ने हरित/स्वच्छ हाइड्रोजन और इसके उत्पादों के आयात करने के लिए अपनी नई रणनीतियों की घोषणा की है, जिससे भारतीय उत्पादकों के लिए एक अवसर प्राप्त हुआ है।

हरित हाइड्रोजन उत्पादन के साथ चुनौतियाँ

  • ग्रे हाइड्रोजन का उपयोग: भारत में अधिकांश हाइड्रोजन मुख्य रूप से रिफाइनरियों और उर्वरक उद्योगों के भीतर प्राकृतिक गैस का उपयोग करके उत्पादित की जाती है।
  • भारी उत्पादन लागत: हरित हाइड्रोजन की उत्पादन लागत लगभग $4-$5 प्रति किलोग्राम है, जो ग्रे हाइड्रोजन की कीमत से लगभग दोगुनी है।
    • हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत इस पर निर्भर है:
  • 24 घंटे नवीकरणीय ऊर्जा की उपलब्धता की लागत, गौरतलब है कि नवीकरणीय ऊर्जा हरित हाइड्रोजन लागत का लगभग 50-70% हिस्सा है।
    • इलेक्ट्रोलाइजर की लागत कुल हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत का 30-50% है।
  • इलेक्ट्रोलाइजर की जल गहन प्रकृति: हाइड्रोजन उत्पादन के लिए इलेक्ट्रोलाइजर द्वारा पानी की खपत एक चिंताजनक मुद्दा है। इलेक्ट्रोलाइजर में 1 किलोग्राम हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए लगभग 9 लीटर पानी की खपत होती है।
    • इस चुनौती से निपटने के लिये  भविष्य में समुद्री जल के इलेक्ट्रोलिसिस से हाइड्रोजन उत्पादन का एक संभावित समाधान हो सकता है।
  • सामंजस्यपूर्ण मानकों और संहिताओं का अभाव: चूँकि भारत में हाइड्रोजन उत्पादन उद्योग अभी शुरुआती चरण में है, इसलिए हरित हाइड्रोजन की पूरी शृंखला के निर्माण और सुरक्षा के लिए मानकों एवं संहिताओं को लागू करना आवश्यक है।
    • भारत में लागू मानक हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए बायोमास के उपयोग की अनुमति देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कार्बन उत्सर्जन भी होता है।
    • इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की ओर मोड़ने से उपभोक्ताओं तक पर्याप्त स्वच्छ बिजली पहुँचाने में कमी आ सकती है।
  • अपर्याप्त हाइड्रोजन अवसंरचना: मौजूदा हाइड्रोजन अवसंरचना फ्यूल सेल वाहनों की व्यापक स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए अपर्याप्त है।
    • वर्तमान में, भारत में केवल दो हाइड्रोजन ईंधन रिफ्यूलिंग स्टेशन हैं – इंडियन ऑयल अनुसंधान एवं विकास केंद्र, फरीदाबाद और राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान, गुरुग्राम।

भारत में हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए पहल

  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (जनवरी 2023): यह मिशन उर्वरक उत्पादन, पेट्रोलियम शोधन, स्टील, शिपिंग आदि उद्योगों में ग्रे हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन से बदलने की परिकल्पना करता है।
    • उद्देश्य: वर्ष 2030 तक कम-से-कम 5 MMT प्रति वर्ष हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता और लगभग 125 गीगावाट की अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करना।
  • हरित हाइड्रोजन नीति, फरवरी 2022: इसे नवीनीकरण ऊर्जा की कुल लागत में कमी लाने और जीवाश्म ईंधन से हरित हाइड्रोजन/हरित अमोनिया में संक्रमण को प्रोत्साहित करने में सहायता के लिए तैयार किया गया है।
  • हरित हाइड्रोजन संक्रमण कार्यक्रम के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition-SIGHT) : यह इलेक्ट्रोलाइजर के घरेलू विनिर्माण और हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन शुल्क से छूट: सरकार ने 31 दिसंबर, 2030 से पहले शुरू की गई परियोजनाओं के लिए हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के उत्पादकों को 25 वर्षों के लिए अंतरराज्यीय पारेषण शुल्क से छूट दी है।
  • बिजली (हरित ऊर्जा खुली पहुँच के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना) नियम, 2022: ये हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए खुली पहुँच के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • भारत हाइड्रोजन गठबंधन: इंडिया एच2 एलायंस (India H2 Alliance) वैश्विक और भारतीय कंपनियों का एक उद्योग गठबंधन है, जो हाइड्रोजन मूल्य शृंखला बनाने और नेट जीरो मार्ग की दिशा में काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत में हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए रोडमैप

  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि: भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता उसके हरित हाइड्रोजन विकास के लक्ष्यों को पूरा कर सकती है, लेकिन इसके लिए तेजी से क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • देश की सौर ऊर्जा क्षमता 748 गीगावाट (पूरी क्षमता पर) होने का अनुमान है।
    • हालाँकि, वर्तमान में, नवंबर 2023 तक भारत में कुल स्थापित सौर क्षमता 72.31 गीगावाट है, जो इसकी कुल क्षमता का केवल 9% है।
  • हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत को कम करना: इसमें शामिल है
    • नवीकरणीय ऊर्जा प्रोत्साहन और टैरिफ: उदाहरण के लिए, भारतीय सौर ऊर्जा निगम (Solar Energy Corporation of India-SECI) ने हाल ही में स्टैंडअलोन सौर और पवन निविदा टैरिफ के माध्यम से ₹2.6 प्रति किलोवाट घंटा (kWh) की लागत हासिल की है, जबकि RTC नवीकरणीय ऊर्जा के लिए निविदा ₹4-4.5 प्रति किलोवाट घंटे है।
      • SECI एक ऐसा संगठन है, जो नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकास की सुविधा प्रदान करता है।
    • इलेक्ट्रोलाइजर में नवाचार एवं उत्पादन वृद्धि: इसे लक्ष्य को शुरुआती कंपनियों के लिये प्रत्यक्ष सब्सिडी बढ़ाकर प्राप्त किया जा सकता है।
      • उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम (Inflation Reduction Act-IRA) के तहत हाइड्रोजन पर $3/किग्रा तक कर क्रेडिट की घोषणा की है।
      • दीर्घकालिक पूँजी निवेश चक्रों का समर्थन प्रौद्योगिकियों के लिए दीर्घकालिक नीतिगत स्पष्टता और प्रोत्साहनों के साथ किया जा सकता है।
      • स्वदेशी इलेक्ट्रोलाइजर प्रौद्योगिकी के विकास और परीक्षण को प्रोत्साहित करना।
  • कार्बन-सघन विकल्पों को हतोत्साहित करना: भारत में स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सरकार जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी पर अपने वर्तमान खर्च को हरित हाइड्रोजन उत्पादन तथा बुनियादी ढाँचे के निर्माण का समर्थन करने वाली परियोजनाओं में लगाने पर विचार कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए, यूरोप ने हरित हाइड्रोजन को उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (Emissions Trading System) के अंतर्गत शामिल किया है।
  • हरित हाइड्रोजन रूपांतरण, भंडारण और परिवहन से संबंधित लागत को कम करना या समाप्त करना:
    • ऊर्जा रूपांतरण: अल्प से मध्यम अवधि में, कंपनियों को क्लस्टर बनाने और उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (Production Linked Incentive-PLI)/अन्य प्रोत्साहन योजनाओं के लिए बोली लगाने की अनुमति/प्रोत्साहित करना।
    • परिवहन: पूरे देश में हरित हाइड्रोजन के परिवहन के लिए दीर्घकालिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण में निवेश करना जैसे-पाइपलाइनों का निर्माण।
      • उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ के यूरोपियन हाइड्रोजन बैकबोन प्रोग्राम (European Hydrogen Backbone Program) का लक्ष्य यूरोपीय संघ में एक पाइपलाइन नेटवर्क विकसित करना है।
    • भंडारण: देश भर में अक्षय ऊर्जा लागत का लगभग 30-40% भंडारण लागत के कारण होता है। इस लागत को कम करने के लिए देश भर में ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के क्षेत्र में सुधार किया जा सकता है।
  • सामंजस्यपूर्ण मानक विकसित करना: भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, अन्य देशों और वैश्विक संगठनों के साथ मिलकर समन्वित वैश्विक मानकों को विकसित करना और/या आयातकों के मानदंडों के अनुसार निर्मित हरित हाइड्रोजन को प्रमाणित करने की क्षमता विकसित करना महत्त्वपूर्ण है।

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