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भारत में रोहिंग्या शरणार्थी

Lokesh Pal May 13, 2025 02:57 43 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि रोहिंग्या शरणार्थी भारतीय कानून के तहत ‘विदेशी’ पाए जाते हैं, तो उनके साथ विदेशी अधिनियम, 1946 के अनुसार व्यवहार किया जाएगा।

रोहिंग्या मुद्दे से संबंधित मुख्य बिंदु 

  • निर्वासन को चुनौती: रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने के भारत सरकार के अधिकार को चुनौती देते हुए याचिकाएँ दायर की गईं, जिनमें से कई के पास UNHCR शरणार्थी कार्ड हैं। 
  • उत्पीड़न के दावे: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि रोहिंग्याओं को म्याँमार निर्वासित करना गैर-वापसी के सिद्धांत का उल्लंघन है, क्योंकि उन्हें यातना, उत्पीड़न और मृत्यु का जोखिम है। 
  • केंद्र का राष्ट्रीय सुरक्षा तर्क: सरकार ने तर्क दिया कि भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को विदेशी अधिनियम की धारा 3 के तहत प्राथमिकता दी जाती है। 
  • बसने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 सभी व्यक्तियों पर लागू होते हैं, परंतु अनुच्छेद-19(1)(e) के तहत निवास या बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए है।

शामिल मानवाधिकार मुद्दे

  • जीवन और सम्मान का अधिकार: निर्वासन, विशेष रूप से उत्पीड़न के जोखिम का आकलन किए बिना, शरणार्थियों के अनुच्छेद-21 के अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।
  • कानून के समक्ष समानता: अनुच्छेद-14 गैर-नागरिकों सहित सभी व्यक्तियों को कानूनों का समान संरक्षण सुनिश्चित करता है, जिसका उपयोग भेदभावपूर्ण निर्वासन का विरोध करने के लिए किया गया था।
  • राज्यविहीनता पर चिंताएँ: म्याँमार ने आधिकारिक तौर पर रोहिंग्याओं को राज्यविहीन घोषित कर दिया है, इसलिए उन्हें निर्वासित करना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के तहत नैतिक और मानवीय चिंताओं को जन्म देता है।
  • बच्चों और कमजोर समूहों की सुरक्षा: महिलाओं और बच्चों से जुड़े निर्वासन की रिपोर्टों ने मानवीय नीति और न्यायिक जाँच की माँग की है।

भारत में शरणार्थियों की कानूनी स्थिति

  • कोई राष्ट्रीय शरणार्थी कानून नहीं: भारत में कोई विशिष्ट शरणार्थी कानून नहीं है, शरणार्थी मामलों को विदेशी अधिनियम, 1946 और कार्यकारी आदेशों के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है।
  • मामला-दर-मामला समाधान: शरणार्थियों को किसी भी औपचारिक कानूनी अंतर के बिना विदेशियों के रूप में माना जाता है, जब तक कि विशिष्ट नीतियों या न्यायिक आदेशों के तहत संरक्षित न हों।
  • UNHCR कार्ड सीमित मूल्य रखते हैं: UNHCR व्यक्तियों को शरणार्थी के रूप में मान्यता दे सकता है, ये पहचान भारतीय घरेलू कानून के तहत स्वचालित रूप से कानूनी अधिकार प्रदान नहीं करती हैं।

विदेशी अधिनियम, 1946 और इसकी प्रयोज्यता

  • व्यापक कार्यकारी शक्तियाँ: अधिनियम की धारा-3 के तहत, केंद्र सरकार के पास विदेशियों के प्रवेश, ठहरने और प्रस्थान को विनियमित या प्रतिबंधित करने का व्यापक अधिकार है।
  • कानूनी मंजूरी के बिना ठहरने का अधिकार नहीं: यदि कोई व्यक्ति विदेशी पाया जाता है, तो सरकार को कानूनी रूप से उसे निर्वासित करने का अधिकार है, जब तक कि उसे विशिष्ट कानूनी प्रावधानों के तहत संरक्षित न किया गया हो।
  • निर्वासन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा:  यह अधिनियम निर्वासन की अनुमति देता है, लेकिन प्रक्रिया को संवैधानिक गारंटी जैसे कि अनुच्छेद-21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत संरेखित किया जाना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत भारत के दायित्व

  • शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर न करने वाला देश: भारत वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन या इसके वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है और इसलिए उनके प्रावधानों से बाध्य नहीं है।
  • जेनोसाइड कन्वेंशन (Genocide Convention) को मान्यता देता है: भारत जेनोसाइड कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाला देश है और याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि रोहिंग्याओं को म्याँमार वापस भेजना अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रतिबद्धता का उल्लंघन हो सकता है।
  • प्रथागत कानून के रूप में गैर-वापसी का सिद्धांत: याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि गैर-वापसी जूस कोजेन्स (Jus Cogens) अर्थात् ‘बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय कानून’ (Compelling International law) के रूप में विकसित हो गई है, जो संधि दायित्वों के बावजूद सभी राज्यों को बाध्य करती है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-51(c): अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करता है, लेकिन सरकार के अनुसार इसकी प्रयोज्यता घरेलू कानूनों के साथ संरेखण पर सशर्त है।

आगे की राह

  • एक व्यापक शरणार्थी कानून लागू करना: भारत को एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून बनाने पर विचार करना चाहिए, जो शरणार्थियों के अधिकारों और दायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता हो, कानूनी स्पष्टता तथा मानवीय सुरक्षा सुनिश्चित करता हो।
  • उचित प्रक्रिया सुरक्षा उपायों को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि सभी निर्वासन निर्णय, विशेष रूप से बच्चों और राज्यविहीन व्यक्तियों जैसे कमजोर समूहों को शामिल करते हुए, अनुच्छेद-14 और 21 के तहत संवैधानिक गारंटी का पालन करें।
  • अंतरराष्ट्रीय मानवीय मानदंडों को बनाए रखना: शरणार्थी अभिसमय पर हस्ताक्षर किए बिना भी, भारत प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून के हिस्से के रूप में वापसी न करने संबंधी सिद्धांत और जेनोसाइड कन्वेंशन (Genocide Convention) के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का पालन कर सकता है।
  • एक संतुलित नीति दृष्टिकोण विकसित करना: भारत के लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों के साथ संरेखित शरणार्थी मुद्दों को संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को दयालु, अधिकार-आधारित तंत्रों के साथ एकीकृत करना।

रोहिंग्या संकट के बारे में

  • रोहिंग्या म्याँमार के ‘रखाइन राज्य’ के मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं।
  • पीढ़ियों से म्याँमार में रहने के बावजूद, उन्हें वर्ष 1982 से नागरिकता से वंचित रखा गया है, जिससे वे राज्यविहीन हो गए हैं।

संकट की उत्पत्ति

  • म्याँमार सरकार द्वारा व्यवस्थित भेदभाव, प्रतिबंधात्मक कानून और सामाजिक बहिष्कार ने रोहिंग्या को लंबे समय से हाशिए पर रखा है। 
  • अगस्त 2017 में स्थिति और खराब हो गई, जब अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी ने सुरक्षा बलों पर हमला किया, जिसके बाद सामूहिक हत्या, दुष्कर्म और गाँवों को जलाने सहित क्रूर सैन्य कार्रवाई की गई। 
  • इस कार्रवाई की व्यापक रूप से निंदा की गई।

वर्तमान स्थिति

  • 9,00,000 से अधिक रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए हैं, जो मुख्य रूप से कॉक्स बाजार में कुटुपलोंग जैसे भीड़भाड़ वाले शिविरों में निवासरत है, जो विश्व का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है।
  • अन्य लोगों ने भारत, मलेशिया और थाईलैंड में शरण माँगी।
  • भारत में लगभग 40,000 रोहिंग्या हैं, सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए उन्हें निर्वासित करने की कोशिश कर रही है।
  • रोहिंग्या शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार तक सीमित पहुँच के साथ राज्यविहीन हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रयास

  • वैश्विक निंदा के कारण म्याँमार की सेना के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) में कानूनी कार्यवाही की गई है।
  • म्याँमार पर कई देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए गए हैं।
  • इसके बावजूद, म्याँमार में लगातार असुरक्षा और नागरिकता अधिकारों की कमी के कारण प्रत्यावर्तन के प्रयास रुके हुए हैं।
  • यह संकट तत्काल, अधिकार-आधारित वैश्विक हस्तक्षेप और स्थायी पुनर्वास समाधान की माँग करता है।

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