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समाज और राष्ट्र के विकास में सामाजिक संगठनों की भूमिका

Lokesh Pal July 21, 2025 02:40 34 0

संदर्भ

‘जीतो युवा सम्मेलन 2025’ को संबोधित करते हुए, लोकसभा अध्यक्ष ने समाज और राष्ट्र के समग्र विकास में सामाजिक संगठनों की भूमिका को अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताया।

  • इस सम्मेलन का आयोजन जैन अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन (Jain International Trade Organisation- JITO) द्वारा किया गया था।

सामाजिक संगठनों के बारे में

  • सामाजिक संगठन गैर-राज्य, गैर-लाभकारी संस्थाएँ हैं, जैसे- NGO, नागरिक समाज संगठन (Civil Society Organisations- CSO), समुदाय आधारित संगठन (Community-Based Organisations- CBO), धार्मिक संस्थान, परोपकारी निकाय, ट्रेड यूनियन और सामाजिक कल्याण के लिए कार्य करने वाले अनौपचारिक स्थानीय समूह।
    • राज्य से स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं, लेकिन प्रायः सरकारी प्रयासों के पूरक होते हैं।

सामाजिक संगठनों की प्रमुख भूमिकाएँ

  • नीतिगत समर्थन और प्रभाव: हाशिए पर स्थित समूहों का समर्थन करना, नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करना और जमीनी स्तर के मुद्दों को सामने लाना।
    • सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम, 2005: मजदूर किसान शक्ति संगठन (Mazdoor Kisan Shakti Sangathan- MKSS) ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया।
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: राष्ट्रीय दिव्यांगजन रोजगार संवर्द्धन केंद्र (National Centre for Promotion of Employment for Disabled People- NCPEDP) द्वारा किए गए समर्थन ने इसके कार्यान्वयन को गति दी।

  • सामाजिक सेवा वितरण: स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, स्वच्छता और आपदा राहत प्रदान करके, विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में, सार्वजनिक सेवाओं की कमियों को पूरा करना।
    • गूँज (NGO): कोविड-19 महामारी के दौरान राहत प्रदान की, कमजोर समुदायों की कपड़े और भोजन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया।
  • शासन और जवाबदेही: निगरानीकर्ता के रूप में कार्य करना, सरकारी कार्यक्रमों की निगरानी करना, सामाजिक लेखा-परीक्षण करना और भ्रष्टाचार को उजागर करना।
    • ADR: चुनावी प्रक्रियाओं की निगरानी करना, राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता को बढ़ावा देना।
    • MKSS: राजस्थान में सहभागी सामाजिक लेखा-परीक्षण में अग्रणी, कल्याणकारी योजनाओं में जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • सामुदायिक लामबंदी और सशक्तीकरण: समुदायों को लामबंद करना, अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और स्थानीय नेतृत्व प्रदान करना।
    • स्व-नियोजित महिला संघ (सेवा): 18 राज्यों में 2.9 मिलियन अनौपचारिक क्षेत्र की महिला श्रमिकों को संगठित करता है और उनके अधिकारों और आर्थिक सशक्तीकरण का समर्थन करता है।
    • विजया फाउंडेशन: समुदाय संचालित पहलों के माध्यम से बच्चों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • नवाचार और सामाजिक उद्यमिता: सामाजिक समस्याओं के लिए नवोन्मेषी समाधान विकसित करना, मापनीय मॉडलों का परीक्षण करना और सतत् विकास को बढ़ावा देना।
    • अक्षय पात्र: केंद्रीकृत रसोई के माध्यम से मध्याह्न भोजन कार्यक्रमों में क्रांतिकारी बदलाव लाना।
  • पर्यावरण संरक्षण और जलवायु कार्रवाई: पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करना, सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना और जलवायु नीतियों को प्रभावित करना।
    • विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE): अनुसंधान के माध्यम से भारत की जलवायु नीति को आकार देना, वाहन उत्सर्जन मानदंडों को सख्त बनाने और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने में योगदान देना।
  • डिजिटल अधिकार और साइबर सुरक्षा: डिजिटल अधिकारों की रक्षा, साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देना और प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच सुनिश्चित करना।
    • इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (Internet Freedom Foundation- IFF): आधार आधारित निगरानी प्रक्रिया का विरोध करता है, डेटा गोपनीयता और नेट न्यूट्रैलिटी को बढ़ावा देता है।
  • नागरिक सहभागिता और सहभागी लोकतंत्र: सक्रिय नागरिकता को बढ़ावा देना, शासन में भागीदारी को प्रोत्साहित करना और लोकतंत्र को मजबूत बनाना।
    • PRS विधायी अनुसंधान: विधायी प्रक्रियाओं के बारे में जनता की समझ को बढ़ाता है।
    • MKSS: सामाजिक लेखा परीक्षा के माध्यम से सहभागी शासन को प्रोत्साहित करता है।

सामाजिक संगठनों का महत्त्व

  • राज्य क्षमता अंतराल को भरना: सामाजिक संगठन उन स्थलों पर कार्य करते हैं, जहाँ राज्य की उपस्थिति कमजोर है, विशेषतः स्वास्थ्य, शिक्षा, आपदा राहत और जनजातीय पहुँच के क्षेत्रों में।
  • हाशिये पर स्थित लोगों को सशक्त बनाना: सामाजिक संगठन महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, शहरी गरीबों, बुजुर्गों और दिव्यांग व्यक्तियों को अभिव्यक्ति और प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं।
    • केरल में कुदुंबश्री ने स्वयं सहायता समूहों और सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से 45 लाख से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया, जिससे केरल का मानव विकास सूचकांक सशक्त हुआ।
  • सहभागी विकास को सुगम बनाना: गैर-सरकारी संगठन राज्य और समाज के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं, विचार-विमर्श, संवाद और सहमति-आधारित विकास को सुगम बनाते हैं।
  • नवाचार और ज्ञान प्रसार: सामाजिक संगठन सामाजिक मुद्दों के समाधान के लिए नवीन, मापनीय मॉडलों का प्रयोग करते हैं, जो प्रायः सरकारी नीतियों के लिए परीक्षण स्थल के रूप में कार्य करते हैं।
    • संगठन प्रायः स्वास्थ्य (जैसे- समुदाय-आधारित देखभाल), शिक्षा (जैसे- ASER सर्वेक्षण), या जलवायु (जैसे- जल संचयन) के क्षेत्र में नए मॉडल प्रस्तुत करते हैं।
    • राजस्थान के बेयरफुट कॉलेज ने अफ्रीका की निरक्षर वृद्ध महिलाओं सहित ग्रामीण महिलाओं को सौर इंजीनियर बनने के लिए प्रशिक्षित किया।
  • लोकतांत्रिक शासन को सुदृढ़ बनाना: गैर-सरकारी संगठन, सामुदायिक संगठन और अधिकार आधारित संगठन पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता सुनिश्चित करते हुए प्रहरी के रूप में कार्य करते हैं।
    • वे भारत में अधिकार आधारित कानूनों (RTI अधिनियम, वन अधिकार अधिनियम) और जनहित याचिका सक्रियता के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।

सामाजिक संगठनों की नैतिक प्रासंगिकता

  • धर्म और सामाजिक कर्तव्य की अभिव्यक्ति: समाज सेवा को सर्वोच्च धर्म माना गया है, जाति, धर्म या मान्यता से परे, जरूरतमंदों की सेवा करना हर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है।
    • उदाहरण: गांधीजी के ‘अंत्योदय के माध्यम से सर्वोदय’ के विचार में सबसे कमजोर लोगों की सेवा को एक नैतिक अनिवार्यता के रूप में महत्त्व दिया गया था, न कि केवल एक राजनीतिक लक्ष्य के रूप में।
  • गांधीवादी नैतिकता और ट्रस्टीशिप
    • ट्रस्टीशिप मॉडल: धनी व्यक्तियों और संगठनों को ट्रस्टी के रूप में कार्य करना चाहिए और संसाधनों का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के बजाय सार्वजनिक हित के लिए करना चाहिए।
    • नैतिक संयम, सरलता और विकेंद्रीकृत कल्याण इसके मूल सिद्धांत हैं।
    • उदाहरण: JITO की धर्मार्थ गतिविधियाँ, जिनमें छात्रवृत्तियाँ, स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाएँ और सामुदायिक रसोई शामिल हैं, जैन और गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित नैतिक ट्रस्टीशिप को दर्शाती हैं।
  • नैतिक मूल्यों का प्रचार: अहिंसा, करुणा, त्याग
    • कई सामाजिक संगठन धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं पर आधारित हैं, जो अहिंसा, निस्वार्थ सेवा और त्याग को महत्त्व देते हैं।
    • उदाहरण: रामकृष्ण मिशन एकता और करुणा के वेदांतिक आचार-विचार पर आधारित समग्र शिक्षा और राहत कार्य को बढ़ावा देता है।
  • सामूहिक नैतिकता और सामाजिक विवेक: गैर-राज्य अभिकर्ता अपने निर्णयों में समुदायों को शामिल करके सामूहिक नैतिक उत्तरदायित्व को सुदृढ़ करते हैं।
    • समुदाय-आधारित जन सुनवाइयों या सामाजिक लेखा-परीक्षणों में उभरने वाले साझा नैतिक तर्क-वितर्क के विकास में सहायता करना।
  • समावेशन और समता की नैतिकता: समता, न्याय और आवाज पर आधारित नैतिक विकास को बढ़ावा देना।
  • स्वैच्छिकता और निःस्वार्थ कर्म (निष्काम कर्म): स्वयंसेवक बिना किसी प्रतिफल की आशा के कार्य करते हैं (भगवद्गीता के निष्काम कर्म के समान)।
    • प्रेरणा आंतरिक नैतिक कर्तव्य है, न कि बाह्य पुरस्कार

भारत में सामाजिक संगठनों के सामने चुनौतियाँ

  • नियामक और कानूनी बाधाएँ: सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, FCRA या ट्रस्ट अधिनियम के तहत जटिल पंजीकरण प्रक्रियाएँ।
    • FCRA संशोधन अधिनियम, 2020 के तहत कड़े प्रतिबंध—NGO को विदेशी धन प्राप्त करने और उप-अनुदान देने पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
    • एमनेस्टी इंटरनेशनल ने FCRA लाइसेंस निलंबन का हवाला देते हुए वर्ष 2020 में भारत में अपना परिचालन बंद कर दिया। वर्ष 2023 तक, 6,600 से अधिक NGO का FCRA पंजीकरण समाप्त हो गया।
  • संसाधनों की कमी और वित्तपोषण पर निर्भरता: विदेशी सहायता, दानदाता निधि या कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पर निर्भरता दीर्घकालिक योजना बनाना मुश्किल बना देती है।
    • मुख्य लागतें (कर्मचारियों का वेतन, प्रशिक्षण) प्रायः वित्तपोषित नहीं हो पातीं।
    • भारत में कई जमीनी स्तर के NGO ₹10 लाख/वर्ष से कम के बजट के साथ कार्य करते हैं और कुशल कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं।
  • संस्थागत क्षमता का अभाव: खराब दस्तावेजीकरण, कम तकनीकीकरण और कमजोर निगरानी मापनीयता और विश्वसनीयता को सीमित करती है।
    • खंडित नेतृत्व और दूसरे दर्जे के नेतृत्व का अभाव स्थिरता को कम करता है।
    • आदिवासी और ग्रामीण भारत में, कई गैर-सरकारी संगठनों के पास डिजिटल रिकॉर्ड, ई-गवर्नेंस उपकरण या प्रभाव मूल्यांकन के प्रबंधन के लिए कुशल कर्मियों का अभाव है।
  • विखंडन और दोहराव: हजारों छोटे संगठन बिना समन्वय के काम करते हैं, जिससे सेवाओं में अतिव्यापन होता है और प्रयास की बर्बादी होती है।
    • सामूहिक मंचों का अभाव अभिव्यक्ति और मापदंड को सीमित करता है।
  • जवाबदेही और विश्वास की कमी: भ्रष्टाचार, धन के कुप्रबंधन या विदेशी प्रभाव के आरोप जनता के विश्वास को कम करते हैं।
    • अनिवार्य सामाजिक ऑडिट, प्रदर्शन मानकों या नैतिक दिशा-निर्देशों का अभाव।
    • अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान हाई-प्रोफाइल NGO में धन के दुरुपयोग के आरोपों ने नियामक जाँच की माँग को जन्म दिया।
  • शहरी पूर्वाग्रह और बहिष्कार: NGO अधिकतर शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं और अभिजात वर्ग द्वारा संचालित हैं, जिससे ग्रामीण/आदिवासी वास्तविकताओं से उनका अलगाव पैदा होता है।
    • इस क्षेत्र में नेतृत्व की भूमिकाओं से हाशिए पर स्थित लोगों के प्रतिनिधित्व का बहिष्कार।
    • दलितों या आदिवासियों के नेतृत्व वाले गैर-सरकारी संगठनों को, कमजोर समुदायों का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद, कम वित्तीय सहायता प्राप्त होती है।
  • डिजिटल और तकनीकी पिछड़ापन: कई संगठनों के पास पहुँच, वित्त प्राप्त करने या डेटा रिपोर्टिंग के लिए डिजिटल उपकरणों का अभाव है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, तकनीक आधारित गैर-सरकारी संगठनों (जैसे- गिवइंडिया, केट्टो) ने तेजी से राहत सामग्री जुटाई, जबकि पारंपरिक समूहों को ऑनलाइन प्रणालियों के अनुकूल होने में कठिनाई हुई।

सामाजिक संगठनों के सफल उदाहरण

  • माइक्रोफाइनेंस के माध्यम से महिलाओं का सशक्तीकरण: ग्रामीण बैंक (बांग्लादेश)
    • डॉ. मुहम्मद यूनुस द्वारा स्थापित, ग्रामीण बैंक ने ग्रामीण बांग्लादेश में गरीबों, विशेषकर महिलाओं को छोटे ऋण प्रदान करके सूक्ष्म ऋण देने के क्षेत्र में क्रांति ला दी है।
    • 1 करोड़ से अधिक लोगों, जिनमें मुख्यतः महिलाएँ शामिल हैं, को सेवा प्रदान की गई है, जिससे उन्हें छोटे व्यवसाय शुरू करने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली है।
  • आपदा राहत और आपातकालीन प्रतिक्रिया: मेडेसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स (Médecins Sans Frontières- MSF)
    • मेडिसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स (डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स) संघर्षों, महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अपनी आपातकालीन चिकित्सा सेवा के लिए प्रसिद्ध है।
    • वे सीरिया, दक्षिण सूडान और इबोला प्रभावित क्षेत्रों जैसे देशों में जीवन रक्षक चिकित्सा उपचार प्रदान करने के लिए कार्य करते हैं, जिसमें शल्य चिकित्सा देखभाल और महामारी नियंत्रण शामिल है।
  • सतत् विकास और स्वच्छ ऊर्जा: बेयरफुट कॉलेज (भारत)
    • राजस्थान के बेयरफुट कॉलेज ने अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका की महिलाओं को अपने समुदायों में सौर इंजीनियर बनने के लिए प्रशिक्षित किया है।
    • यह नवोन्मेषी मॉडल स्थायी ऊर्जा को बढ़ावा देता है और ग्रामीण समुदायों में महिलाओं को सशक्त बनाता है।
  • पर्यावरण समर्थन और जलवायु नीति: विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE) (भारत)
    • CSE ने भारत की जलवायु नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और वाहन उत्सर्जन मानकों तथा नवीकरणीय ऊर्जा पहलों के कार्यान्वयन में योगदान दिया है।
    • अनुसंधान, डेटा-आधारित समर्थन और जन अभियानों के माध्यम से, CSE ने उद्योगों, कृषि और ऊर्जा में पर्यावरणीय सुधारों को आगे बढ़ाया है।
  • अधिकारों का समर्थन और विधायी परिवर्तन: ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch – HRW)
    • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (HRW) वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों की निगरानी और उनके लिए अभियान संचालित करता है, अत्याचारों, नागरिक अधिकारों के उल्लंघन और भेदभावपूर्ण नीतियों की जाँच करता है।
    • उनकी रिपोर्टें अंतरराष्ट्रीय नीति और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को प्रभावित करती हैं, और प्रायः मानवाधिकारों के हनन के लिए सरकारों को जवाबदेह ठहराती हैं।
  • डिजिटल अधिकार और साइबर सुरक्षा: इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (Internet Freedom Foundation – IFF) (भारत)
    • IFF गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और नेट न्यूट्रैलिटी पर ध्यान केंद्रित करते हुए डिजिटल अधिकारों की रक्षा के लिए काम करता है।
    • वे आधार-आधारित निगरानी के विरुद्ध कार्य करते हैं, डेटा सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं और सभी नागरिकों के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म तक समान पहुँच सुनिश्चित करते हैं।
  • युवा सशक्तीकरण और शिक्षा: अशोका
    • अशोका उन सामाजिक उद्यमियों की पहचान करता है और उन्हें समर्थन देता है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और गरीबी जैसे वैश्विक मुद्दों के लिए अभिनव समाधान विकसित कर रहे हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुँच: अक्षय पात्र (भारत)
    • अक्षय पात्र भारत के 15 राज्यों में 20 लाख से अधिक बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराते हुए केंद्रीकृत रसोई का संचालन करता है, जिससे स्कूल में उपस्थिति और पोषण में सुधार होता है।
    • विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme- WFP) समग्र बाल विकास के लिए, विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में, पोषण को शिक्षा के साथ एकीकृत करने में अक्षय पात्र की सफलता से प्रेरणा लेता है।
  • लोकतंत्र और शासन को बढ़ावा देना: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association for Democratic Reforms- ADR) (भारत)
    • ADR ने राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता का समर्थन किया है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में चुनावी बॉण्ड योजना पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले आए और भारत में चुनावी सुधारों पर जोर दिया गया।

सामाजिक संगठनों के लिए आगे की राह

  • अधिक लचीलेपन के लिए नियामक ढाँचों में सुधार: FCRA, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम और अन्य विनियमों के अंतर्गत प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना ताकि वास्तविक सामाजिक संगठनों के लिए कार्य करना आसान हो सके।
    • राज्यों में एक समान अनुपालन मानदंड लागू करना, जिससे गैर-सरकारी संगठन अत्यधिक नौकरशाही बाधाओं के बिना काम कर सकें।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करना: टकराव के बजाय सहयोग को बढ़ावा देना, संसाधन जुटाने और मापनीय समाधानों के लिए राज्य और सामाजिक संगठनों के बीच साझेदारी करना।
    • ऐसे वित्तपोषण तंत्र बनाना, जो CSR, परोपकार और सरकार से संसाधनों को एकत्रित करके गैर-सरकारी संगठनों की परिचालन क्षमता बढ़ाएँ।
  • क्षमता निर्माण और डिजिटल परिवर्तन: नेतृत्व प्रशिक्षण, डिजिटल उपकरणों और प्रभाव मापन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जमीनी स्तर पर क्षमता निर्माण में निवेश करना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में भी डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करते हुए, गैर-सरकारी संगठनों को आउटरीच, निगरानी और डेटा रिपोर्टिंग के लिए तकनीक अपनाने में सक्षम बनाना।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना: गैर-सरकारी संगठनों को सामाजिक ऑडिट करने के लिए प्रोत्साहित करना, जिससे वित्तीय रिपोर्टिंग और परियोजना परिणामों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो।
    • गैर-सरकारी संगठनों के लिए मानकीकृत प्रणालियाँ विकसित करना ताकि वे अपने प्रभाव पर नजर रख सकें और हितधारकों को परिणामों के बारे में प्रभावी ढंग से बता सकें।
  • गैर-सरकारी संगठनों के बीच सहयोग और नेटवर्किंग को प्रोत्साहित करना: ज्ञान, संसाधनों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए विविध सामाजिक संगठनों के बीच सहयोग हेतु मंचों की सुविधा प्रदान करना।
    • ऐसे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेटवर्क बनाना, जो छोटे संगठनों की आवाज को बुलंद करें और अतिरेक को कम करने के प्रयासों का समन्वय करना।
  • हाशिए पर पड़े समूहों की समावेशिता और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना: सुनिश्चित करना कि दलित, आदिवासी, महिलाएँ और अन्य हाशिए पर स्थित समूह सामाजिक संगठनों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का नेतृत्व करना।
    • सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक संगठनों के भीतर नेतृत्व विविधता को प्रोत्साहित करना।
  • टिकाऊ और दीर्घकालिक मॉडल का निर्माण: दानदाताओं पर निर्भरता से ऐसे सतत् मॉडल की ओर बदलाव करना, जिनमें स्थानीय वित्त, सामाजिक उद्यम और समुदाय-आधारित संसाधन शामिल हों।
    • गैर-सरकारी संगठनों को राजस्व स्रोतों में विविधता लाने और बाहरी वित्तपोषण पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिए उपकरण प्रदान करना।

निष्कर्ष

सामाजिक संगठन सेवा संबंधी कमियों को दूर करके, हाशिए पर स्थित समूहों को सशक्त बनाकर और नैतिक शासन को बढ़ावा देकर समग्र विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। नियामक सुधारों, डिजिटल परिवर्तन और सहयोग के माध्यम से चुनौतियों का सामना करके, वे  लक्ष्य को प्राप्त करने में अपने योगदान को और बढ़ा सकते हैं।

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