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रुपये का अवमूल्यन

Lokesh Pal December 25, 2024 04:51 22 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकी डॉलर की तुलना भारतीय रुपये की विनिमय दर 85 के आँकड़े को पार कर गई है।

विनिमय दर के बारे में 

  • विनिमय दर एक मुद्रा के दूसरे के सापेक्ष मूल्य का प्रतिनिधित्व करती है। 
    • उदाहरण के लिए, ₹85 प्रति $1 का अर्थ है कि एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 85 भारतीय रुपये की आवश्यकता होगी।
  • विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्राओं की माँग एवं आपूर्ति के आधार पर विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव होता है। 
    • भारतीय रुपये की तुलना में अमेरिकी डॉलर की अधिक माँग के परिणामस्वरूप रुपये का मूल्यह्रास होता है।
  • घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास: विनिमय दर में वृद्धि का तात्पर्य है कि घरेलू मुद्रा (रुपये) के संदर्भ में विदेशी मुद्रा (डॉलर) की कीमत में वृद्धि हुई है।

विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक

  • व्यापार घाटा: लगातार व्यापार घाटा तब होता है, जब आयात, निर्यात से अधिक हो जाता है, जिससे आयात के भुगतान के लिए अमेरिकी डॉलर की माँग बढ़ जाती है। इससे भारतीय रुपये का अवमूल्यन होता है।
    • उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2024 में, भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 27.14 बिलियन डॉलर हो गया, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा।
  • मुद्रास्फीति: उच्च घरेलू मुद्रास्फीति रुपये की क्रय शक्ति को कम कर देती है, जिससे भारतीय वस्तुएँ वैश्विक बाजारों में कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाती हैं एवं मुद्रा कमजोर हो जाती है।
    • अक्टूबर 2024 में, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 6.21% थी, जो भारतीय रिजर्व बैंक की लक्ष्य सीमा 2-6% से अधिक थी।
  • पूँजी बहिर्प्रवाह: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारतीय बाजारों से निवेश वापस लेने से रुपये की माँग में कमी आती है, जिससे इसका मूल्यह्रास होता है।
    • अक्टूबर 2024 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय बाजारों से 94,017 करोड़ रुपये निकाले थे।
  • अमेरिकी डॉलर की मजबूती: अमेरिकी डॉलर सूचकांक, जो मुद्राओं की एक टोकरी की तुलना में डॉलर की शक्ति को मापता है, अक्टूबर 2024 से 7% से अधिक बढ़ गया है। अमेरिकी डॉलर की इस मजबूती ने भारतीय रुपये को और कमजोर कर दिया।
  • वैश्विक कारक: कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भारत के आयात बिल को बढ़ाती हैं, जिससे अधिक अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है एवं रुपया कमजोर होता है।
    • जून 2024 तक, भारत का विदेशी ऋण 682.3 बिलियन डॉलर था, जो रुपये के मूल्य में गिरावट के कारण चुकाना और भी महंगा हो गया।
  • व्यापार प्रतिबंध: अमेरिकी व्यापार नीतियाँ, जैसे भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ लगाना, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय रुपये की माँग को कम कर देती हैं, जिससे मुद्रा कमजोर हो जाती है।

रुपये के मूल्य में गिरावट का प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव

  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा: कमजोर रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय वस्तुओं एवं सेवाओं को सस्ता बनाता है, जिससे उनकी माँग बढ़ती है।
    • IT, कपड़ा एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे निर्यात-उन्मुख उद्योगों को काफी लाभ होता है।
  • प्रेषण को प्रोत्साहित करता है: रुपये का मूल्यह्रास विदेशों में काम करने वाले भारतीयों द्वारा भेजे गए प्रेषण को रुपये के संदर्भ में अधिक मूल्यवान बनाता है, जिससे उनके परिवारों को लाभ होता है एवं अर्थव्यवस्था में योगदान मिलता है।
  • प्रतिस्थापन के लिए घरेलू उत्पादन में सुधार: आयातित वस्तुएँ अधिक महंगी हो जाती हैं, जिससे संभावित रूप से आयात के स्थान पर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलता है। यह “मेक इन इंडिया” पहल का समर्थन करता है।
  • भारत में पर्यटन को बढ़ावा: कमजोर रुपया भारत को विदेशी पर्यटकों के लिए एक सस्ता गंतव्य बनाता है, जिससे संभावित रूप से पर्यटन से राजस्व में वृद्धि होती है।

नकारात्मक प्रभाव

  • महंगा आयात: आवश्यक आयात, विशेषकर कच्चे तेल की लागत बढ़ जाती है। भारत अपनी कच्चे तेल की आवश्यकताओं का 80% आयात करता है, एवं तेल की ऊँची कीमतों से मुद्रास्फीति एवं घरेलू बजट पर दबाव पड़ता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं मशीनरी जैसे अन्य आयात भी महंगे हो गए हैं, जिसका असर उद्योगों तथा उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है।
  • घाटा बढ़ना: महंगा आयात उच्च व्यापार घाटे एवं चालू खाता घाटे में योगदान देता है, जो रुपये को और कमजोर करता है तथा अर्थव्यवस्था पर दबाव डालता है।
  • बढ़ती मुद्रास्फीति: कमजोर रुपये से आयातित मुद्रास्फीति बढ़ती है, क्योंकि कच्चे तेल एवं मशीनरी जैसी वस्तुओं की ऊँची लागत से अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
  • उच्च ऋण चुकाने की लागत: भारत का विदेशी ऋण, जो कि $620 बिलियन (जून 2024 तक) है, रुपये के मूल्य में गिरावट के कारण चुकाना अधिक महंगा हो गया है।
  • विदेश यात्रा एवं शिक्षा पर प्रभाव: भारतीयों के लिए विदेश यात्रा करना महंगा हो गया है। विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की ट्यूशन फीस और रहने का खर्च भी बढ़ गया है, जिससे उन पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है।
  • निवेश विश्वास को कम करता है: रुपये में गिरावट, विदेशी निवेश को रोक सकती है क्योंकि यह व्यापक आर्थिक अस्थिरता का संकेत देता है। निवेशक फंड निकाल सकते हैं, जिससे मुद्रा और कमजोर हो सकती है।

आगे की राह

  • निर्यात को बढ़ावा देना: सरकार को उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं जैसी पहल के माध्यम से निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना चाहिए।
  • विदेशी निवेश आकर्षित करना: ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में सुधार के प्रयास अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित कर सकते हैं।
  • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति से निपटने के लिए ब्याज दरें बढ़ा दी हैं, हालाँकि कीमतों को स्थिर करने के लिए और उपाय करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • मुद्रा विविधीकरण: भारत को अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए अन्य देशों के साथ रुपया व्यापार के लिए समझौतों पर विचार करना चाहिए।

निष्कर्ष 

भारतीय रुपए के अवमूल्यन से आयात लागत और मुद्रास्फीति जैसी चुनौतियाँ और निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि जैसे अवसर दोनों ही सामने आते हैं। आर्थिक विकास के लिए संभावित लाभों का लाभ उठाते हुए नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए प्रभावी नीतिगत उपाय आवश्यक हैं।

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