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पवित्र उपवन संरक्षण

Lokesh Pal February 10, 2024 03:36 169 0

संदर्भ

पवित्र उपवनों (Sacred Groves) जो सामुदायिक रिजर्व (Community Reserve) का एक हिस्सा है, उनकी सुरक्षा/संरक्षण राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।

सामुदायिक रिजर्व (Community Reserve) क्या है?

  • वर्ष 2003 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act) में संशोधन के बाद किसी भी सरकारी या निजी भूमि को राज्य सरकार द्वारा ‘सामुदायिक रिजर्व’ के रूप में नामित किया जा सकता है।
  • इन्हें स्थानीय आबादी की मदद से जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए तैयार किया गया है।
  • भारत में, लगभग 220 सक्रिय सामुदायिक रिजर्व हैं। एक सामुदायिक रिजर्व प्रबंधन समिति, इनका प्रबंधन करती है।

संबंधित तथ्य

  • केरल सरकार ने पिछले तीन वर्षों के दौरान ‘वन्यजीव आवास के विकास’ (Development of Wildlife Habitat) की केंद्र प्रायोजित योजना के तहत अपने कडालुंडी-वल्लिकुन्नु समुदाय रिजर्व की रक्षा के लिए फंड की माँग की है।

कदलुंडी-वल्लिक्कुन्नु सामुदायिक रिजर्व (Kadalundi-Vallikkunnu Community Reserve)

  • यह भारत का पहला रिवर-फ्रंट सामुदायिक रिजर्व है।
  • यह सामुदायिक रिजर्व उत्तरी केरल के पश्चिमी किनारे पर कोझिकोड एवं मलप्पुरम जिलों में अवस्थित है।
  • यह कदलुंडी नदी (Kadalundi River) के मुहाने पर अवस्थित है।
  • सामुदायिक रिजर्व हरे मैंग्रोव पैच एवं आर्द्रभूमि में बसा हुआ है।

पवित्र उपवन (Sacred Groves) क्या हैं?

  • पवित्र उपवन धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के लिए पारंपरिक रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा संरक्षित पेड़ों के छोटे-छोटे पैच हैं।
  • वे स्थानीय जैव विविधता की रक्षा के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं। वे प्रकृति एवं आध्यात्मिकता दोनों के लिए रिजर्व के रूप में भी काम करते हैं।

भारत में पवित्र उपवन (Sacred Groves) 

  • पवित्र उपवन पूरे भारत में फैले हुए हैं। वे मुख्य रूप से पश्चिमी घाट, हिमालय एवं उत्तर-पूर्वी एवं मध्य पहाड़ी इलाकों जैसे जंगली इलाकों में पाए जाते हैं।

  • आश्रय: ये रिफ्यूजिया (Refugia) वृक्षों, बेलों, औषधीय पौधों, जानवरों, पक्षियों, छिपकलियों, साँपों, मेंढकों एवं अन्य प्राणियों की असंख्य प्रजातियों को आश्रय देते हैं, जो प्राकृतिक परिदृश्य में अन्यत्र दुर्लभ हो गए हैं।

पवित्र उपवनों का महत्त्व

  • प्रकृति का संरक्षण: यह मृदा संरक्षण एवं मृदा क्षरण को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है।

पवित्र उपवनों के लिए भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम हैं:-

  • बिहार में सरना (Sarna)
  • हिमाचल प्रदेश में देव वन (Dev Van)
  • कर्नाटक में देवराकाडु (Devarakadu)
  • केरल में कावु (Kavu)
  • मध्य प्रदेश में देव (Dev)
  • महाराष्ट्र में देवरहाटी या देवराय (Devarahati or Devarai)
  • मणिपुर में लाई उमंग (Lai Umang)
  • मेघालय में लॉकिनटांग या असोंग खोसी (LawKyntang or Asong Khosi)
  • राजस्थान में ओरण (Oran)
  • तमिलनाडु में कोविल कडु या सर्पा कावु (Kovil Kadu or Sarpa Kavu)
  • प्राकृतिक आपदाओं को कम करना: पवित्र उपवन प्राकृतिक वायु अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं जिसकी वजह से आस-पास की बस्तियाँ एवं कृषि भूमि तेज हवाओं से बच जाती हैं। जिससे क्षति की संभावना कम हो जाती है। 
  • जैव विविधता संरक्षण: इनमें उच्च स्तर की जैव विविधता होती है क्योंकि वे मानवीय हस्तक्षेप से सुरक्षित होते हैं। यह उन्हें आवास की तलाश करने वाली दुर्लभ एवं लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण बनाता है।
  • धार्मिक महत्त्व: वे एक समुदायों के अपने आराध्य को समर्पित होते  हैं। इन्हें ऐसे प्राणियों के निवास स्थान के रूप में देखा जाता है और एक ऐसे स्थान के रूप में भी देखा जाता है जहाँ मनुष्य ध्यान, योग के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ ले सकते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय परंपराओं एवं मान्यताओं का अभिन्न अंग, पवित्र उपवन अनुष्ठानों, कहानियों एवं पैतृक ज्ञान के जुड़ाव के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करते हैं, सामुदायिक पहचान एवं गौरव को बढ़ावा देते हैं।

निष्कर्ष

लगातार बढ़ती मानव आबादी, प्रदूषण एवं बायोमास को हटाने के कारण भारत के पवित्र उपवनों में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है तथा उनके कार्यात्मक मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रभावी संरक्षण समय की माँग है।

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