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भारत में पवित्र उपवन

Lokesh Pal December 21, 2024 02:13 7 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार को पूरे भारत में पवित्र उपवनों की पहचान, संरक्षण और प्रबंधन के लिए व्यापक कदम उठाने का निर्देश दिया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री (Piplantri) गाँव की भी सराहना की।

पिपलांत्री मॉडल (Piplantri Model) 

  • उत्पत्ति एवं नेतृत्व: राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गाँव में सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल के नेतृत्व में शुरुआत की गई।
  • वृक्षारोपण पहल
    • गाँव में जन्म लेने वाली प्रत्येक बेटी के लिए 111 पौधे लगाए जाते हैं।
    • अब तक 40 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए, जिससे भूजल स्तर 800-900 फीट बढ़ गया और जलवायु तापमान 3-4 डिग्री सेल्सियस कम हो गया।
  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • जैव विविधता में वृद्धि हुई तथा मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण को रोका गया।
    • आँवला, एलोवेरा और बाँस जैसे देशी वृक्ष पारिस्थितिकी संतुलन में योगदान करते हैं।
  • आर्थिक लाभ
    • एलोवेरा प्रसंस्करण, फर्नीचर निर्माण और अन्य व्यवसायों के माध्यम से स्थायी आजीविका का सृजन किया गया।
    • स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया और स्थानीय आय में वृद्धि की।
  • सामाजिक परिवर्तन
    • कन्या भ्रूण हत्या को समाप्त किया और महिला जनसंख्या अनुपात को 52% तक सुधारा।
    • सभी लड़कियों के लिए शिक्षा सुनिश्चित की और किरण निधि योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान की।
    • एक सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा दिया, जहाँ लड़की के जन्म का जश्न मनाया जाता है।

पवित्र उपवनों के संबंध में

  • यूनेस्को द्वारा परिभाषा: पवित्र उपवन ‘प्राकृतिक’ वनस्पति के क्षेत्र हैं, जिन्हें स्थानीय वर्जनाओं और आध्यात्मिक तथा पारिस्थितिकी मूल्यों के साथ प्रतिबंधों के माध्यम से संरक्षित किया जाता है (यूनेस्को, 1996)। 
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: ये उपवन वन्य जीवन एवं जलधाराओं जैसे परिदृश्यों के साथ पारंपरिक जुड़ाव का समर्थन करते हैं, जो जैव विविधता संरक्षण में योगदान करते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: पवित्र उपवनों को ईश्वर से उनके संबंध के लिए सम्मानित किया जाता है और वे सांस्कृतिक परंपराओं में निहित एक गहरे मानव-प्रकृति संबंध का प्रतीक हैं।
  • सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदाय सख्त निषेधों और प्रथागत कानूनों के माध्यम से पवित्र उपवनों को बनाए रखते हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • प्राकृतिक या निकट-प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करना।
    • वनस्पतियों और जीवों की दुर्लभ, लुप्तप्राय और स्वदेशी प्रजातियों के लिए भंडार के रूप में कार्य करना।

भारत के पवित्र उपवन

राज्य पवित्र उपवन  वनस्पति महत्त्व संबद्ध समुदाय/जनजाति संरक्षण की स्थिति
राजस्थान ओरण, रूंध (Rundh)। शुष्क वनस्पति, खेजड़ी, बेर जैसे देशज वृक्ष। जल संरक्षण एवं स्थानीय देवताओं की पूजा से संबंधित। स्थानीय ग्रामीण एवं बिश्नोई समुदाय। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सामुदायिक रिजर्व के रूप में मान्यता प्राप्त है।
हिमाचल प्रदेश देव-वंस (Dev-vans) देवदार, ओक एवं रोडोडेंड्रोन वन। स्थानीय देवताओं से संबद्ध; जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में कार्य करता है। हिमाचली पहाड़ी समुदाय। कुछ को वन अभयारण्य के रूप में संरक्षित किया गया है।
उत्तराखंड बुग्याल अल्पाइन घास के मैदान, जड़ी-बूटियाँ, एवं औषधीय पौधे। अनुष्ठानों और चरागाहों के लिए पवित्र स्थान के रूप में प्रतिष्ठित। गढ़वाली जैसे स्थानीय पहाड़ी समुदाय राज्य कानूनों के अंतर्गत सामुदायिक वन घोषित।
मेघालय मावफलांग (Mawphlang) सदाबहार उपोष्णकटिबंधीय वन। समृद्ध जैव विविधता, अनुष्ठानों एवं आध्यात्मिक प्रथाओं में उपयोग की जाती है। खासी जनजाति समुदाय आधारित वन प्रबंधन के अंतर्गत संरक्षित।
केरल सरपा कावु (Sarpa Kavu) नारियल, कटहल एवं औषधीय पौधों के बाग। नाग पूजा के लिए पवित्र; पारंपरिक अनुष्ठानों का अभिन्न अंग नायर एवं एझावा समुदाय। परिवारों या मंदिर ट्रस्टों द्वारा प्रबंधित।
तमिलनाडु कोविल कावु (Kovil Kavu) बरगद, नीम और पीपल के वृक्षों से परिपूर्ण मंदिर वन जैव विविधता केंद्र मंदिर अनुष्ठानों से जुड़े स्थानीय तमिल समुदाय। मंदिर प्राधिकारियों के माध्यम से संरक्षित।
कर्नाटक देवाराकाडु (Devarakadu) सदाबहार और अर्द्ध-सदाबहार वन स्थानीय देवताओं को समर्पित; जलग्रहण क्षेत्र और जैव विविधता के लिए महत्त्वपूर्ण कुर्ग क्षेत्र में कोडवा समुदाय वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पवित्र वन घोषित।
मध्य प्रदेश सरनास/देव (Saranas/ Dev) साल, महुआ सहित शुष्क पर्णपाती वन जनजातीय देवताओं और पूर्वजों की पूजा गोंड एवं बैगा जनजाति। अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम के अंतर्गत शामिल।
बिहार सरनास (Sarnas) साल और अन्य दृढ़ काष्ठ प्रजातियाँ जनजातीय देवताओं के लिए पवित्र पूजा स्थल संथाल एवं उराँव जनजातियाँ। जनजातीय प्रथागत प्रथाओं के अंतर्गत संरक्षित।

भारत में पवित्र उपवनों का कानूनी संरक्षण

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: पवित्र वनों को सामुदायिक रिजर्व घोषित करने तथा उन्हें कानूनी रूप से सुरक्षित रखने का अधिकार देता है।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006: वन संसाधनों की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए आदिवासी और पारंपरिक वनवासी समुदायों के अधिकारों को मान्यता देता है।
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1988: वन पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और सतत् प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय: टी. एन. गोदावर्मन मामले और हाल ही में राजस्थान पवित्र वनों के मामले में दिए गए निर्णय जैसे ऐतिहासिक निर्णय कानूनी सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करते हैं।

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