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संथारा: एक नैतिक, कानूनी और सामाजिक परीक्षण

Lokesh Pal May 07, 2025 03:39 10 0

संदर्भ

तीन वर्ष की एक बच्ची, जो कि ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित थी, की मृत्यु, संथारा (मृत्यु तक स्वैच्छिक उपवास की एक धार्मिक जैन प्रथा) में दीक्षित होने के बाद हो गई।

संबंधित तथ्य

  • इस आयोजन का महिमामंडन: ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ द्वारा बच्चे को ‘जैन अनुष्ठान संथारा की शपथ लेने वाला दुनिया का सबसे कम उम्र के व्यक्ति’ के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया, जिससे चिकित्सा पेशेवरों, बाल अधिकार कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की।
    • इस कदम को गैर-जिम्मेदाराना और अनैतिक करार दिया गया, क्योंकि यह एक नाबालिग की गैर-सहमति वाली भागीदारी से जुड़ी प्रथा का समर्थन करता प्रतीत होता है।
  • जाँच: मध्य प्रदेश बाल अधिकार आयोग ने इस मामले का संज्ञान लिया है।
    • अधिकारियों ने पुष्टि की है कि वे इस बात की जाँच कर रहे हैं कि क्या यह कृत्य बाल संरक्षण कानूनों का उल्लंघन है और इसमें शामिल माता-पिता तथा आध्यात्मिक नेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं।

इस मामले से उत्पन्न नैतिक दुविधाएँ

‘माता-पिता की सहमति’ और ‘बच्चे की स्वायत्तता’

  • हालाँकि माता-पिता कानूनी अभिभावक होते हैं, लेकिन जब कार्रवाई से अपरिवर्तनीय नुकसान या मृत्यु होती है, तो उनके निर्णय लेने की नैतिक सीमा पर सवाल उठता है।
  • इस मामले में, एक बच्चा जीवन को समाप्त करने वाले धार्मिक अनुष्ठान को समझ नहीं सकता था या सहमति नहीं दे सकता था।
  • इसलिए, माता-पिता की सहमति, भले ही अच्छे उद्देश्य से हो, नैतिक रूप से बच्चे के स्वायत्त अधिकारों का विकल्प नहीं हो सकती है।

‘धर्म का अधिकार’ बनाम ‘सार्वभौमिक बाल अधिकार’

  • माता-पिता और जैन संतों ने दावा किया कि जैन धार्मिक मान्यताओं के तहत इस कृत्य को मंजूरी दी गई थी।
  • हालाँकि, धार्मिक स्वतंत्रता को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सार्वभौमिक बाल अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
    • किसी भी धार्मिक प्रथा को बच्चे के जीवन, सम्मान और सुरक्षा के अधिकार से ऊपर नहीं होना चाहिए।

  • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCRC), (भारत हस्ताक्षरकर्ता है), इस बात पर जोर देता है कि बच्चे को प्रभावित करने वाले सभी निर्णयों में उसका सर्वोत्तम हित सर्वोपरि होना चाहिए।

चिकित्सा नैतिकता और आध्यात्मिक विश्वास

  • चिकित्सा पेशेवरों का मानना ​​है कि बच्चे को शारीरिक रूप से कष्टदायक आध्यात्मिक अनुष्ठान के अधीन करने के बजाय उसे उपशामक एवं सहायक देखभाल प्रदान की जानी चाहिए थी।
  • नैतिक चिकित्सा पद्धति में विशेषकर टर्मिनल मामलों में पीड़ा को कम करने और गैर-हानिकारकता की माँग की जाती है।
  • वैज्ञानिक उपशामक देखभाल और आस्था-आधारित अनुष्ठानों के बीच संघर्ष बच्चों के जीवन के अंत संबंधी स्पष्ट दिशा-निर्देश और मजबूत समर्थन की माँग करता है।

सांस्कृतिक संवेदनशीलता बनाम संवैधानिकता नैतिकता

  • धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति सम्मान को बच्चों के जीवन और सम्मान की रक्षा करने के संवैधानिक कर्तव्य के साथ संतुलित करना एक जटिल नैतिक संघर्ष उत्पन्न करता है।
  • हालाँकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-25 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है, विशेषकर जब किसी बच्चे का जीवन दाँव पर लगा हो।
  • ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने से सांस्कृतिक रूप से हस्तक्षेप के रूप में माना जाने का जोखिम होता है, फिर भी संवैधानिक नैतिकता के लिए धार्मिक रूढ़िवादिता पर बाल अधिकारों को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

संथारा (Santhara) क्या है?

  • संथारा, जिसे सल्लेखना या समाधि मरण (Samadhi Maran) के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म में किया जाने वाला एक स्वैच्छिक धार्मिक उपवास है।
  • इस अनुष्ठान में भोजन एवं जल का क्रमिक त्याग शामिल है और इसे आत्मा को शुद्ध करने तथा आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने का एक साधन माना जाता है।

अनुष्ठान का पारंपरिक उपयोग

  • समंतभद्र (Samantabhadra) द्वारा चौथी शताब्दी ई. के आसपास रचित एक महत्त्वपूर्ण जैन ग्रंथ रत्नकरंद श्रावकाचार (Ratnakaranda Shravakachara) में संथारा प्रथा और इसका पालन कैसे किया जाना चाहिए, की स्पष्ट व्याख्या की गई है।
  • इस ग्रंथ में उल्लेख किया गया है कि यह व्रत आत्मा को शरीर से मुक्त करने के लिए किया जाना चाहिए, लेकिन केवल प्राकृतिक आपदा, बुढ़ापे या ऐसी बीमारी जैसी चरम स्थितियों के दौरान, जिसका उपचार नहीं किया जा सकता है।
  • ऐतिहासिक रूप से, यह व्रत बुजुर्ग व्यक्तियों या गंभीर रूप से बीमार वयस्कों द्वारा लिया जाता है, जो स्वेच्छा से और पूरी चेतना के साथ व्रत लेने का निर्णय लेते हैं।
  • यह अभ्यास अहिंसा, सांसारिक जीवन से अलगाव और मृत्यु को आध्यात्मिक यात्रा के रूप में स्वीकार करने पर आधारित है।

विधिक स्थिति

  • वर्ष 2015 में, सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें संथारा को कुछ समय के लिए अवैध घोषित किया गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इस अनुष्ठान को जैन धर्म का एक मौलिक पहलू माना, जिसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद-25) के तहत संरक्षित किया गया है।
  • हालाँकि, विशेषकर सूचित सहमति के अभाव में कानूनी सुरक्षा स्पष्ट रूप से नाबालिगों तक नहीं पहुँचती है।

बाल संरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार): यह न केवल अस्तित्व की गारंटी देता है, बल्कि गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी भी देता है और इसमें नाबालिग भी शामिल हैं।
    • किसी बच्चे को आनुष्ठानिक उपवास द्वारा देह त्याग की अनुमति देना संभावित रूप से इस मूलभूत अधिकार का उल्लंघन है।
  • अनुच्छेद-39(e) और 39(f) (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत): भारतीय संविधान के ये अनुच्छेद राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि बच्चों के साथ दुर्व्यवहार न हो और उन्हें स्वस्थ एवं सम्मानजनक तरीके से विकसित होने के अवसर दिए जाएँ।
  • अनुच्छेद-15(3) (बच्चों के लिए विशेष प्रावधान): राज्य को बच्चों की सुरक्षा एवं कल्याण के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार देता है, जिसमें शोषणकारी या हानिकारक प्रथाओं से सुरक्षा भी शामिल है, भले ही वे धार्मिक प्रकृति की हों।

बाल संरक्षण को दिशा देने वाले प्रमुख नैतिक और कानूनी सिद्धांत

  • बच्चे का सर्वोत्तम हित सर्वोपरि है, यहाँ तक कि माता-पिता के धार्मिक या सांस्कृतिक अधिकारों से भी ऊपर है।
  • बच्चे संपत्ति नहीं हैं; उनकी स्वायत्तता एवं सुरक्षा का अधिकार महत्त्वपूर्ण मामलों में माता-पिता के अधिकार पर प्रभावी हो जाता है।
  • पैरेंस पैट्रिया सिद्धांत (Parens Patriae Doctrine): यदि बच्चे का जीवन या कल्याण खतरे में हो तो राज्य माता-पिता के अधिकारों को समाप्त कर सकता है।

बच्चों के अधिकारों के लिए उपलब्ध कानूनी सुरक्षा

  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015: यह अनिवार्य करता है कि प्रत्येक बच्चे को दुर्व्यवहार, उपेक्षा और किसी भी ऐसे कार्य से बचाया जाना चाहिए, जिससे उसे नुकसान या मृत्यु होने की संभावना हो।
    • यदि इससे बच्चे को पीड़ा होती है या उसके जीवन और सम्मान का हनन होता है तो अभिभावकों की सहमति अमान्य है।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम: यह इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि बच्चों को सुरक्षा का अधिकार है, यहाँ तक कि अपने अभिभावकों से भी, ऐसी स्थितियों में जो उनके स्वास्थ्य एवं जीवन को खतरे में डालती हैं।
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR): ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने और कानूनी कार्यवाही तथा सुरक्षा उपायों की सिफारिश करने के लिए सशक्त है, जहाँ बाल अधिकारों से समझौता किया जाता है।

बच्चों की सुरक्षा के लिए वैश्विक रूपरेखा

  • संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय (UNCRC), 1989: यह बाल अधिकारों पर सबसे व्यापक वैश्विक संधि है; लगभग प्रत्येक देश (अमेरिका को छोड़कर) द्वारा इसका अनुसमर्थन किया गया है।
    • अनुच्छेद-3: सभी कार्यों में बच्चे के सर्वोत्तम हितों को प्राथमिकता दी जाएगी।
    • अनुच्छेद-6: प्रत्येक बच्चे के जीवन के अंतर्निहित अधिकार को मान्यता देता है तथा अस्तित्व एवं विकास को सुनिश्चित करता है।
    • अनुच्छेद-19: माता-पिता या अभिभावकों द्वारा की गई सभी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक हिंसा, चोट या दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद-24: स्वास्थ्य के उच्चतम मानक को प्राप्त करने का अधिकार; राज्यों को बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पारंपरिक प्रथाओं को समाप्त करने के लिए सभी प्रभावी उपाय करने चाहिए।
  • नॉर्वे (Norway)
    • बाल कल्याण अधिनियम [बार्नेवर्नलोवेन (Barnevernloven)]: यह कानून प्राधिकारियों को हस्तक्षेप करने और बच्चों को माता-पिता के बंधन से मुक्त होने का अधिकार देता है, यदि उनकी सुरक्षा, विकास या कल्याण को खतरा हो, जिसमें हानिकारक आध्यात्मिक या सांस्कृतिक प्रथाओं से जुड़े मामले भी शामिल हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका
    • बाल दुर्व्यवहार रोकथाम और उपचार अधिनियम (CAPTA): CAPTA के अनुसार, राज्य बाल दुर्व्यवहार और उपेक्षा की जाँच करने एवं उसे रोकने के लिए तंत्र स्थापित करता है, जिसमें दुर्व्यवहार में माता-पिता की उन कार्रवाइयों या चूकों को शामिल करना शामिल है, जो मृत्यु, गंभीर नुकसान अथवा शोषण का कारण बनती हैं।
    • जब माता-पिता व्यक्तिगत या धार्मिक विश्वासों के आधार पर आपत्ति करते हैं, तो नाबालिगों के लिए चिकित्सा उपचार को अनिवार्य बनाने के लिए अमेरिकी न्यायालयों द्वारा पैरेंस पैट्रिया सिद्धांत का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • ‘आस्था चिकित्सा’ (Faith Healing) संबंधी मौतों जैसे मामलों में, न्यायालयों ने माता-पिता के विरुद्ध फैसला सुनाया है और उन्हें हत्या या उपेक्षा के लिए उत्तरदायी ठहराया है।

आगे की राह

  • नीतिगत हस्तक्षेप: विशेष रूप से जीवन को खतरे में डालने वाले संदर्भों में नाबालिगों से संबंधित धार्मिक प्रथाओं की कानूनी और नैतिक सीमाओं को परिभाषित करने वाले स्पष्ट राष्ट्रीय दिशा-निर्देश तैयार करना।
  • जागरूकता पहल: धार्मिक नेताओं, माता-पिता और समुदायों को बाल अधिकारों, कानूनी दायित्वों तथा आस्था-आधारित परंपराओं के संदर्भ में नैतिक पालन-पोषण पर जागरूकता अभियानों के माध्यम से संवेदनशील बनाना।
  • क्षमता निर्माण: NCPCR और राज्य आयोगों जैसे संस्थागत तंत्रों को मजबूत करना ताकि उन मामलों में सक्रिय रूप से निगरानी और हस्तक्षेप किया जा सके,  जहाँ धार्मिक प्रथाएँ बाल कल्याण को खतरे में डाल सकती हैं।
  • चिकित्सा सहायता: बाल संरक्षण कानूनों के साथ चिकित्सा नैतिकता को एकीकृत करना, यह सुनिश्चित करना कि गंभीर रूप से बीमार बच्चों को उपशामक देखभाल मिले और सांस्कृतिक औचित्य की परवाह किए बिना उन्हें हानिकारक अनुष्ठानों से बचाया जाए।

केस स्टडी

आप राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के वरिष्ठ सदस्य हैं और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय से भी हैं। हाल ही में हुई एक घटना ने पूरे देश में आक्रोश उत्पन्न कर दिया है, जिसमें एक 3 वर्षीय असाध्य रूप से बीमार बालिका को एक आध्यात्मिक नेता के मार्गदर्शन में और उसके माता-पिता की पूर्ण सहमति से, जो आपके समुदाय से हैं, स्वैच्छिक मृत्यु तक उपवास की पारंपरिक धार्मिक प्रथा के अधीन किया गया। हालाँकि बाल अधिकार संगठनों, चिकित्सा पेशेवरों और मीडिया ने इस कृत्य की निंदा की है तथा माता-पिता के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई एवं अनुष्ठान पर प्रतिबंध लगाने की माँग कर रहे हैं, आपके समुदाय का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माता-पिता और धार्मिक प्रथा के समर्थन में सामने आया है, तथा वह इसे पवित्र एवं धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संवैधानिक रूप से संरक्षित बता रहा है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए सौंपे गए आयोग के सदस्य के रूप में और समुदाय के साथ अपने व्यक्तिगत जुड़ाव को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित का उत्तर दीजिए:

  1. इस मामले में शामिल नैतिक दुविधाओं की पहचान कीजिए और उन पर चर्चा कीजिए।
  2. हितधारक कौन हैं और उनके हित क्या हैं?
  3. इस स्थिति में आपके लिए कौन-से संभावित उपाय उपलब्ध हैं?
  4. अपने निर्णय को नैतिक सिद्धांतों के साथ पुष्ट करते हुए आप कौन-सा उपाय अपनाएँगे और क्यों?

निष्कर्ष

बालिका की दुखद मौत आस्था, माता-पिता के अधिकार और बाल अधिकारों के बीच गंभीर संघर्ष को प्रदर्शित करती है, जहाँ संवैधानिक रूप से संरक्षित धार्मिक स्वतंत्रता बच्चे के जीवन, सम्मान तथा सुरक्षा के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकती है। भारत जैसे बहुलवादी समाज में नैतिकता मानवीय गरिमा, कमजोर लोगों की सुरक्षा और अनियमित व्यक्तिगत विश्वास प्रणालियों पर संवैधानिक नैतिकता की सर्वोच्चता पर आधारित होनी चाहिए।

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