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सपिंड विवाह (sapinda marriage)

Samsul Ansari January 27, 2024 05:12 436 0

संदर्भ 

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 5(v) की वैधता को बरकरार रखा, जो हिंदुओं के बीच ऐसे विवाह पर रोक लगाती है यदि वे एक-दूसरे के ‘सपिंड’ (Sapindas) हैं।

विधिक चुनौती का आधार

  • संबंधित मामला
    • वर्ष 2007: महिला के विवाह को तब अमान्य घोषित कर दिया गया जब उसके पति ने सफलतापूर्वक सिद्ध कर दिया कि उन्होंने सपिंड विवाह में प्रवेश किया था।
    • वर्ष 2023: इस निर्णय को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने अक्टूबर 2023 में अपील खारिज कर दी।
      • इसके बाद महिला ने सपिंड विवाह पर प्रतिबंध की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए पुनः उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
  • संवैधानिक वैधता: याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(v) का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत गारंटीकृत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
    • उन्होंने तर्क दिया कि प्रथा का कोई प्रमाण न होने पर भी सपिंड विवाह प्रचलित हैं।

दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह सपिंड विवाह को उचित ठहराने के लिए स्थापित परंपरा के पर्याप्त साक्ष्य देने में विफल रही।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि विवाह में साथी का चुनाव विनियमन के अधीन हो सकता है।
  •  इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई कानूनी आधार नहीं मिला कि सपिंड विवाह पर प्रतिबंध समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

 सपिंड विवाह

  • सपिंड विवाह उन व्यक्तियों के बीच होता है जो एक निश्चित सीमा तक निकटता के भीतर एक-दूसरे से संबंधित होते हैं।
  • HMA के तहत, माता और पिता दोनों पक्षों में कुछ पीढ़ियों के अंतर्गत विवाह निषिद्ध है।
  • मातृ पक्ष: तीन पीढ़ियों के भीतर विवाह वर्जित है।
    • भाई-बहन (पहली पीढ़ी), उनके माता-पिता (दूसरी पीढ़ी), उनके दादा-दादी (तीसरी पीढ़ी)।
  • पितृ पक्ष: इसका विस्तार पाँच पीढ़ियों तक होता है।
    • यह निषेध उनके दादा-दादी, नाना-नानी तक विस्तारित होगा।
  • HMA के प्रयोजनों हेतु सपिंड संबंधों को अधिनियम की धारा-3 में परिभाषित किया गया है।

निषेधात्मक मानदंड

  • विवाह निषेध
    • यदि कोई विवाह किसी स्थापित परंपरा की अनुमति के बिना एक सपिंड विवाह होने के कारण HMA की धारा 5(v) का उल्लंघन करता है, तो इसे शून्य माना जाता है।
    • इसका अर्थ यह है कि विवाह को अमान्य माना जाता है और ऐसा माना जाता है जैसे कि यह कभी हुआ ही नहीं।

निषेध का अपवाद

  • हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) सपिंड विवाह के विरुद्ध निषेध का एक अपवाद प्रदान करता है।
  • यह अपवाद तब लागू होता है, जब इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति के रीति-रिवाज ऐसे विवाहों की अनुमति देते हैं।
  • परंपरा संबंधी मानदंड
    • HMA की धारा 3(a) के अनुसार, वैधता हासिल करने के लिए किसी प्रथा का लंबे समय तक लगातार और समान रूप से पालन किया जाना चाहिए।
    • इसे स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समूह या परिवार में हिंदुओं के बीच विधिक शक्ति प्राप्त होनी चाहिए।
  • वैधता के लिए शर्तें
    • किसी प्रथा के वैध होने के लिए यह निश्चित होनी चाहिए, अनुचित नहीं होनी चाहिए और सार्वजनिक नीति के अनुरूप होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि यह प्रथा केवल किसी विशिष्ट परिवार पर लागू होती है तो उस परिवार द्वारा इसे बंद नहीं किया जाना चाहिए।

अन्य देशों में सपिंड विवाह के समान विवाह

  • यूरोप: कई यूरोपीय देशों में व्यभिचारी ( कौटुंबिक) संबंधों को लेकर कानून भारत की तुलना में कम सख्त हैं।
    • फ्राँस: वर्ष 1810 की दंड संहिता के तहत व्यभिचारी (कौटुंबिक) के अपराध को समाप्त कर दिया गया, जिससे वयस्कों के बीच सहमति से विवाह की अनुमति मिल गई।
    • बेल्जियम: फ्रांसीसी संहिता के प्रभाव में इसी तरह के कानून अपनाए गए।
    • पुर्तगाल: यह व्यभिचारी (कौटुंबिक) को अपराध नहीं मानता।
    • इटली: व्यभिचारी (कौटुंबिक) को केवल तभी अपराध माना जाता है यदि यह “पब्लिक स्कैंडल ” का कारण बनता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: सभी 50 राज्यों में व्यभिचारी (कौटुंबिक) विवाह निषिद्ध है। हालाँकि, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड में सहमति से वयस्कों के बीच संबंधों की अनुमति है।

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