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सरदार वल्लभभाई पटेल

Lokesh Pal November 01, 2025 02:43 64 0

संदर्भ 

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

महत्त्वपूर्ण तथ्य  

  • सरदार वल्लभभाई पटेल के अखंड भारत के दृष्टिकोण और “विविधता में एकता” के आदर्श को सम्मान देने के लिए 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है।

  • हरित गतिशीलता: ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ क्षेत्र में पर्यावरण अनुकूल परिवहन को बढ़ावा देने हेतु इलेक्ट्रिक बसों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया।
  • स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (182 मीटर): विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा, जो पटेल के दृढ़ नेतृत्व और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।
  • आधारभूत संरचना सुदृढ़ीकरण (₹280 करोड़): एकता नगर में पर्यटन और नागरिक सुविधाओं को सुदृढ़ करने के लिए नए परियोजनाओं की शुरुआत की गई है।

सरदार वल्लभभाई पटेल के बारे में

  • प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा:  31 अक्टूबर, 1875 को नाडियाड (वर्तमान गुजरात राज्य) में जन्मे पटेल ने इंग्लैंड में विधि विज्ञान की पढ़ाई की और अहमदाबाद में एक सफल बैरिस्टर बने।
    • अपनी निष्पक्षता, साहस और संगठन क्षमता के कारण वे शीघ्र ही जनप्रिय नेता बन गए।

  • राजनीतिक यात्रा: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के रूप में, पटेल ने स्वतंत्रता-पूर्व एवं स्वतंत्रता-उपरांत भारत की राजनीति के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • उनकी प्रशासनिक दृढ़ता गांधी के आदर्शवाद और नेहरू के दूरदर्शी दृष्टिकोण के बीच संतुलन स्थापित कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को स्थिरता और यथार्थवाद प्रदान करती थी।

उनका प्रमुख योगदान 

  • स्वतंत्रता-पूर्व योगदान
    • प्रारंभिक राजनीतिक सहभागिता: पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह (वर्ष 1917) के दौरान ख्याति प्राप्त की, जब उन्होंने अकाल के समय अन्यायपूर्ण कराधान के विरुद्ध किसानों का नेतृत्व किया। उन्होंने दृढ़ता और निष्पक्षता के साथ जनता का विश्वास अर्जित किया और एक न्यायप्रिय नेता के रूप में पहचान बनाई।
    • असहयोग आंदोलन (वर्ष 1920–22): उन्होंने हजारों लोगों को ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार करने और खादी के प्रचार हेतु प्रेरित किया, जिससे आर्थिक आत्मनिर्भरता को राष्ट्रीय गौरव से जोड़ा गया।
    • बारदोली सत्याग्रह (वर्ष 1928): पटेल ने भूमिकर में अत्यधिक वृद्धि के विरुद्ध शांतिपूर्ण आंदोलन का नेतृत्व किया। इसकी सफलता के उपरांत जनता ने उन्हें स्नेहपूर्वक “सरदार” (नेता) की उपाधि दी।
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन और नमक सत्याग्रह (वर्ष 1930): उन्होंने नमक सत्याग्रह का सक्रिय समर्थन किया और कुछ समय कारावास में भी व्यतीत करना पड़ा यह उनके अहिंसात्मक संघर्ष के अटल संकल्प का प्रतीक था।
    • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नेतृत्व:  सरदार पटेल ने कराची अधिवेशन (वर्ष 1931) में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में गांधी–इरविन समझौते को अनुमोदित किया और मौलिक अधिकारों एवं आर्थिक नीति पर प्रस्ताव पारित किए, जिन्होंने आगे चलकर भारतीय संविधान की नींव रखी।
    • भारत छोड़ो आंदोलन (वर्ष 1942): उन्होंने कारावास का सामना करते हुए भी अपने संगठनात्मक कौशल और दृढ़ता से जन-भागीदारी को सशक्त बनाया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण में राष्ट्रीय एकता को बल मिला।
  • स्वतंत्रता-उपरांत योगदान 
    • रियासतों का एकीकरण (वर्ष 1947–50): भारत के प्रथम गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप में पटेल ने 560 से अधिक रियासतों को अनुनय, आश्वासन और निर्णायक कार्रवाई के संयोजन से भारत में विलय किया।
      • जूनागढ़ (वर्ष 1948): जनमत-संग्रह के पश्चात् भारत में सम्मिलित हुआ।
      • हैदराबाद (वर्ष 1948): निजाम के अस्वीकार के बाद ऑपरेशन पोलो के माध्यम से एकीकृत किया गया।
        • उनकी शीघ्र एवं दृढ़ कार्यवाही ने भारत के विखंडीकरण को रोका और भौगोलिक अखंडता सुनिश्चित की।
    • भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की स्थापना:  उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) के स्थान पर IAS और IPS की स्थापना की और इन्हें “भारत की स्टील फ्रेम” कहा अर्थात् निष्पक्ष, नैतिक और कुशल प्रशासनिक ढाँचा, जो राष्ट्र-निर्माण का आधार है।
    • शरणार्थियों का पुनर्वास: विभाजन के बाद उन्होंने व्यापक राहत एवं पुनर्वास अभियानों का संचालन किया, जिससे अराजकता के समय स्थिरता और सार्वजनिक विश्वास पुनः स्थापित हुआ।
    • पुलिस एवं न्यायिक सुधार: पटेल ने आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ किया और कानून प्रवर्तन संस्थानों का आधुनिकीकरण किया, जिससे गृह प्रशासन प्रणाली की मजबूत नींव पड़ी।
    • एकीकृत शासन ढाँचे की स्थापना: उन्होंने केवल भौगोलिक एकीकरण ही नहीं किया, बल्कि केंद्र और राज्यों को संबंधित वाली सामान्य प्रशासनिक संरचना का भी निर्माण किया, जो वर्तमान में भी भारत की संघीय व्यवस्था का आधार है।

भारत के एकीकरण में पटेल की भूमिका 

  • कूटनीतिक वार्ता: अधिकांश रियासतों ने पटेल की शांत और व्यावहारिक कूटनीति के माध्यम से भारत में विलय स्वीकार किया। उन्होंने शासकों को प्रिवी पर्स और संवैधानिक सुरक्षा का आश्वासन देकर सहयोग के लिए प्रेरित किया।
  • आवश्यकता अनुसार दृढ़ कार्रवाई: जब कूटनीति असफल रही, तब उन्होंने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए दृढ़ सैन्य कार्रवाई का सहारा लिया, जैसे- जूनागढ़ और हैदराबाद के मामलों में।
  • कश्मीर के लिए उदाहरण: यद्यपि कश्मीर प्रश्न का प्रतिपादन नेहरू के नेतृत्व में हुआ, तथापि जटिल रियासतों के प्रबंधन हेतु पटेल का एकीकरण मॉडल एक नीतिगत दृष्टांत के रूप में स्थापित हुआ।
  • परिणाम: पटेल ने भारत के विखंडन को रोका और एक मजबूत, केंद्रीकृत संघीय ढाँचे की स्थापना की, जिसने भारत के भौगोलिक मानचित्र को वर्तमान में भी परिभाषित किया हुआ है।

सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा प्रबंधित किए गए प्रमुख पद 

वर्ष पद / कार्यालय  प्रमुख योगदान / प्रभाव 
वर्ष 1931 कांग्रेस अध्यक्ष, कराची अधिवेशन गांधी–इरविन समझौते को अनुमोदित किया; मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक नीति पर प्रस्ताव पारित किए, जो आगे चलकर संवैधानिक मूल्यों की नींव बने।
वर्ष 1946–1950 भारत के उप-प्रधानमंत्री नेहरू के बाद दूसरे प्रमुख नेता; रियासतों के एकीकरण में निर्णायक भूमिका निभाई और स्वतंत्रता उपरांत शासन स्थिरता सुनिश्चित की।
वर्ष 1947–1950 केंद्रीय गृह मंत्री 560 से अधिक रियासतों का विलय कराया; विभाजन के बाद आंतरिक सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था को सुदृढ़ किया; गृह मंत्रालय की संरचना स्थापित की।
वर्ष 1947–1950 केंद्रीय राज्य एवं सूचना मंत्री वी.पी. मेनन के साथ राज्य विभाग का नेतृत्व किया; जूनागढ़, हैदराबाद आदि रियासतों को कूटनीति और दृढ़ता से भारत में सम्मिलित किया।
वर्ष 1947–1949 मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक एवं जनजातीय क्षेत्रों पर सलाहकार समिति के अध्यक्ष (संविधान सभा) संवैधानिक सुरक्षा उपायों का प्रारूप तैयार किया; एकता और विविधता में संतुलन स्थापित किया; अल्पसंख्यकों व जनजातियों के अधिकारों की रक्षा की।
वर्ष 1948–1950 भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) एव भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के संस्थापक “भारत की स्टील फ्रेम” के रूप में स्थापना की, एक पेशेवर, निष्पक्ष, नैतिक और सक्षम सिविल सेवा, जो राष्ट्रीय एकता तथा प्रशासनिक स्थिरता सुनिश्चित करती है।
वर्ष 1950 कार्यवाहक प्रधानमंत्री (संक्षिप्त अवधि) नेहरू की अस्वस्थता के दौरान सरकार का नेतृत्व किया; शासन में निरंतरता, अनुशासन और स्थिरता बनाए रखी।

आर्थिक एवं सामाजिक सुधार 

  • किसान सशक्तीकरण: पटेल ने खेड़ा (वर्ष 1918) और बारडोली (वर्ष 1928) सत्याग्रहों का नेतृत्व किया, जहाँ उन्होंने अकाल के दौरान अन्यायपूर्ण कराधान के विरुद्ध किसानों की रक्षा की। उनके नेतृत्व ने किसानों को राजनीतिक अभिव्यक्ति और नैतिक आत्मविश्वास प्रदान किया गया, जिससे भारत का कृषि आधार सशक्त हुआ
  • सहकारी आंदोलन के प्रणेता: उन्होंने सामूहिक आत्मनिर्भरता की अवधारणा को प्रोत्साहित किया, जिसका उत्कृष्ट उदाहरण कैरा जिले की ‘अमूल’ सहकारी संस्था है। यह मॉडल आगे चलकर ग्रामीण विकास एवं श्वेत क्रांति का आधार बना, जिसने उत्पादकों के सशक्तीकरण तथा उनके शोषण में कमी सुनिश्चित की।।
  • विकेंद्रीकृत आर्थिक दृष्टि: पटेल की आर्थिक सोच ग्राम स्वावलंबन, लघु उद्योगों और नैतिक संपत्ति वितरण पर आधारित थी। उनका विश्वास था कि प्रगति का आधार कड़ी मेहनत, ईमानदारी और सामुदायिक कल्याण होना चाहिए।
  • औद्योगिक और श्रमिक सौहार्द: उन्होंने श्रमिक और प्रबंधन के बीच सहयोग का आह्वान किया, संघर्ष के स्थान पर वार्ता और सामंजस्य को प्राथमिकता दी।  इस संतुलित दृष्टिकोण ने भारत में औद्योगिक शांति और अनुशासित श्रम संस्कृति की नींव रखी।
  • सामाजिक एकीकरण और समानता: पटेल के अनुसार, राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द सामाजिक प्रगति की शर्त हैं। विभाजन के बाद शरणार्थियों के पुनर्वास में उनकी मानवीय और संवेदनशील भूमिका ने स्थिरता, गरिमा तथा समावेशिता को पुनर्स्थापित किया।
  • प्रशासनिक और राजकोषीय अनुशासन: वे वित्तीय संयम तथा स्वच्छ शासन के प्रबल पक्षधर थे। उनके विचार में दक्ष प्रशासन, ईमानदारी और जवाबदेही भारत के आर्थिक पुनर्निर्माण के अनिवार्य स्तंभ थे।

विरासत और मार्गदर्शक सिद्धांत

सिद्धांत  आधुनिक प्रासंगिकता 
व्यावहारिकता और यथार्थवाद  राष्ट्रीय हित पर आधारित परिणामोन्मुख शासन को प्रोत्साहित करता है।
विविधता में एकता बहुल समाज में समावेशिता और सौहार्द को बढ़ावा देता है।
नैतिकता और ईमानदारी प्रशासन में विश्वास और उत्तरदायित्व को सुदृढ़ करता है।
दृढ़ नेतृत्व  राष्ट्रीय स्थिरता हेतु नीतिगत दृढ़ता सुनिश्चित करता है।
प्रशासनिक निष्पक्षता  लोक सेवा में दक्षता और नीतिगत निरंतरता को बनाए रखती है।

आधुनिक विश्व में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रासंगिकता 

  • राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता: सरदार पटेल का दृष्टिकोण “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” वर्तमान की विभाजित और ध्रुवीकृत विश्व में अत्यंत प्रासंगिक है।
    • उन्होंने “विविधता में एकता” पर जो बल दिया, वह आज भी क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता तथा पहचान आधारित राजनीति जैसी चुनौतियों के बीच राष्ट्रीय एकीकरण को सुदृढ़ करने में मार्गदर्शक है।
  • नैतिक और उत्तरदायी शासन: पटेल की ईमानदारी, अनुशासन और सार्वजनिक जवाबदेही पर आधारित प्रशासनिक सोच आज भी भारतीय शासन प्रणाली का नैतिक आधार पर है।
    • उनके द्वारा निर्मित अखिल भारतीय सेवा को उन्होंने “शासन का स्टील फ्रेम” कहा जो निष्पक्षता, दक्षता और पारदर्शिता का प्रतीक है। ये सिद्धांत वर्तमान डिजिटल युग में विश्वसनीय, उत्तरदायी और नागरिक-केंद्रित शासन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
  • व्यावहारिक और निर्णायक नेतृत्व: पटेल का मनाने और दृढ़ता का संतुलित प्रयोग वर्तमान नीति निर्माताओं के लिए एक प्रेरक सीख है, चाहे वह संकट प्रबंधन, कूटनीति या लोक नीति का क्षेत्र हो।
    • उनका व्यावहारिक यथार्थवाद आज के साक्ष्य-आधारित निर्णय-निर्माण के लिए आदर्श मॉडल प्रस्तुत करता है।
  • सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद: पटेल का विश्वास था कि मजबूत लेकिन सहयोगी केंद्र ही भारत की स्थिरता और विकास का आधार हो सकता है। यह दृष्टिकोण वर्तमान सहकारी संघवाद की भावना में परिलक्षित होता है, जहाँ केंद्र और राज्य मिलकर स्वास्थ्य, शिक्षा, हरित ऊर्जा और डिजिटल परिवर्तन जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं।
  • समावेशी आर्थिक दृष्टिकोण: पटेल की आत्मनिर्भरता, वित्तीय अनुशासन और सहकारी विकास में आस्था वर्तमान आत्मनिर्भर भारत के सिद्धांत से सामंजस्य स्थापित करती है। उनका दृष्टिकोण स्थानीय उद्यमिता, समान विकास और डिजिटल समावेशन के माध्यम से समान अवसर प्रदान करने की दिशा में मार्गदर्शन देता है।
  • डिजिटल और कृत्रिम बुद्धिमत्ता युग के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत: पटेल का अनुशासित प्रशासन और नैतिक नेतृत्व पर बल वर्तमान कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित शासन में अत्यंत प्रासंगिक है।
    • उन्होंने मानवीय निर्णय, जवाबदेही और नैतिक जिम्मेदारी के महत्त्व को रेखांकित किया ताकि एल्गोरिद्म और डेटा पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके।
    • वर्तमान डेटा, ऑटोमेशन और भ्रामक सूचना के युग में उनके सिद्धांत यह संदेश देते हैं कि प्रौद्योगिकी का उपयोग नागरिकों को सशक्त करने के लिए हो, नियंत्रित करने के लिए नहीं।
    • उनका यह दृष्टिकोण आज के डिजिटल इंडिया अभियान में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है, जहाँ शासन को नवाचार और नैतिकता, दक्षता और समानता के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।
  • वैश्विक शासन के लिए पाठ:  पटेल का “शक्ति के माध्यम से एकता और समावेशन” का मॉडल आज की वैश्विक राजनीति के लिए भी प्रासंगिक है।  यह एक ऐसा मानक प्रस्तुत करता है, जहाँ नैतिक नेतृत्व, संस्थागत अनुशासन और व्यावहारिक सहयोग के माध्यम से लोकलुभावनवाद, अस्थिरता और डिजिटल असमानताओं का मुकाबला किया जा सकता है।

सरदार वल्लभभाई पटेल के पुरस्कार एवं सम्मान 

  • भारत रत्न (वर्ष 1991): भारत के एकीकरण और एक सक्षम प्रशासनिक ढाँचे की स्थापना में उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
  • सरदार पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (हैदराबाद): भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की स्थापना में उनकी निर्णायक भूमिका के सम्मान में इस प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थान का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
    • यह संस्था अनुशासन, सत्यनिष्ठा और राष्ट्रसेवा के उन आदर्शों को जीवंत रखती है, जिन्हें सरदार पटेल ने प्रतिपादित किया था।
  • अंतरराष्ट्रीय और विरासतपूर्ण सम्मान: उनकी विरासत को ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा (182 मीटर, गुजरात) के माध्यम से अमर कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, उनके नाम पर अनेक संस्थान, विश्वविद्यालय और विश्वभर (यू.के., यू.एस.ए., कनाडा) में स्थापित मूर्तियाँ उनके वैश्विक प्रभाव को दर्शाती हैं। वे वर्तमान में भारत की एकता के शिल्पकार (Architect of India’s Unity) के रूप में जाने जाते हैं।
  • सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता पुरस्कार: भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 में स्थापित, यह भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है, जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता में असाधारण योगदान के लिए प्रदान किया जाता है।

राष्ट्रीय एकता दिवस- एकता का प्रतीक

  • आयोजन: प्रतिवर्ष 31 अक्टूबर को, सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के अवसर पर।
  • प्रारंभ: वर्ष 2014 से, जब यह दिवस 560 से अधिक रियासतों के एकीकरण और “विविधता में एकता” की भावना को सम्मान देने हेतु आरंभ किया गया।
    थीम (वर्ष 2025): सरदार@150 – एक भारत, श्रेष्ठ भारत।
  • महत्त्व
    • यह दिवस राष्ट्रीय एकता, समावेशिता और देशभक्ति के उन मूल्यों को पुनः पुष्ट करता है, जिन्हें सरदार पटेल ने अपनाया।
    • यह डिजिटल पहुँच और नागरिक सहभागिता के माध्यम से इतिहास की स्मृति को समकालीन नागरिक भागीदारी से जोड़ता है।
    • यह पटेल के संदेश को स्मरण से कर्म तक ले जाता है, जिससे राष्ट्रीय एकीकरण केवल उत्सव नहीं, बल्कि जीवंत जनांदोलन बन सके।

एक भारत श्रेष्ठ भारत — पटेल के दृष्टिकोण की निरंतरता

  • आरंभ: 31 अक्टूबर, 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ (EBSB) पहल पटेल की स्थायी विरासत को दर्शाती है।
  • उद्देश्य: भारत के विविध राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच संस्कृतिक, भाषायी और भावनात्मक एकता को प्रोत्साहित करना।
  • मुख्य उद्देश्य
    • नागरिकों के बीच भावनात्मक संबंधों को सुदृढ़ करना।
    • भारत की सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान और समझ बढ़ाना।
    • राज्य-स्तरीय संवाद और श्रेष्ठ प्रथाओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
    • भाषायी सद्भावना और अंतर-सांस्कृतिक सीखने को प्रोत्साहित करना।

प्रमुख पहलें 

  • भाषा संगम ऐप: 22 भारतीय भाषाओं में 100 से अधिक वाक्य सिखाने वाला ऐप, जो भाषायी समावेशन को बढ़ावा देता है।
  • युवा संगम और EBSB क्लब्स: राज्यों के जोड़ों के बीच छात्रों और युवाओं के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करते हैं।
  • काशी तमिल संगमम्: उत्तर और दक्षिण भारत के बीच गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों का उत्सव।
  • डिजिटल एकीकरण: ‘माई भारत’ और EBSB पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्म राज्यों के बीच सांस्कृतिक कार्यक्रमों, युवा सहभागिता और एकता संबंधी गतिविधियों का डिजिटल रूप से दस्तावेजीकरण तथा प्रचारित करते हैं।

AI युग में एकता- डिजिटल युग की दिशा 

  • राष्ट्रीय एकता दिवस अब EBSB पोर्टल और माय भारत प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक डिजिटल आंदोलन का रूप ले चुका है, जो देशभर के नागरिकों को जोड़ता है।
  • AI और डिजिटल शासन के युग में, पटेल के नैतिक नेतृत्व, प्रशासनिक एकता और राष्ट्रीय अखंडता के सिद्धांत मार्गदर्शक बने हुए हैं।
  • ‘प्रौद्योगिकी का उद्देश्य जोड़ना है, बाँटना नहीं’ यह दृष्टिकोण पटेल के अनुशासित शासन और राष्ट्रीय सेवा पर जोर देने को प्रतिध्वनित करता है।
  • उनके सुशासन और जनसहभागिता पर आधारित दृष्टिकोण को वर्तमान में डिजिटल प्लेटफॉर्म आधुनिक रूप में मूर्त रूप दे रहे हैं, जहाँ वर्चुअल सहयोग, नागरिक सहभागिता और डिजिटल समावेशन शासन को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बना रहे हैं।

निष्कर्ष 

सरदार वल्लभभाई पटेल केवल राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक दक्षता और नैतिक शासन के प्रतीक थे। उनका जीवन कर्तव्य, दृढ़ता और व्यावहारिक आदर्शवाद का उदाहरण है, जो वर्तमान भी भारत के लोकतंत्र और विकास की दिशा निर्धारित करता है। उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि “राष्ट्रीय एकता केवल सीमाओं से नहीं, बल्कि नागरिकों के मन और निष्ठा से निर्मित होती है।”

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