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सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को वन भूमि की पहचान करने का निर्देश दिया

Lokesh Pal March 06, 2025 03:22 12 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वनों की पहचान में देरी के लिए मुख्य सचिवों और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासकों को कड़ी चेतावनी जारी की।

  • यह चेतावनी सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1996 के टी. एन. गोदावर्मन निर्णय और उसके बाद के आदेशों का बार-बार पालन न करने के कारण जारी की गई।

वनों की पहचान पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

  • विशेषज्ञ समितियों के लिए अधिदेश: राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को छह महीने के भीतर अवक्रमित और अवर्गीकृत वनों सहित वनों की पहचान करने के लिए विशेषज्ञ समितियों का गठन करना होगा।
  • वैज्ञानिक सीमांकन एवं दस्तावेजीकरण: वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम नियम, 2023 के नियम 16(1) के तहत समेकित रिकॉर्ड तैयार किए जाने चाहिए।
  • व्यक्तिगत जवाबदेही: मुख्य सचिवों/प्रशासकों को गैर-अनुपालन के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
  • प्रतिपूरक वनीकरण आवश्यकता: रैखिक परियोजनाओं के लिए वन भूमि को तब तक कम नहीं किया जा सकता, जब तक कि प्रतिपूरक भूमि प्रदान नहीं की जाती।

सर्वोच्च न्यायालय का वर्ष 1996 का टी. एन. गोदावर्मन निर्णय

निर्णय के अनुसार वन का नामकरण एवं पहचान

  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत ‘वन’ शब्द में सभी वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वन (आरक्षित, संरक्षित या अन्य) और सरकारी अभिलेखों में वन के रूप में दर्ज कोई भी क्षेत्र शामिल है।
  • वनों की पहचान उनके शब्दकोश अर्थ के आधार पर की जानी चाहिए, चाहे उनका स्वामित्व या वर्गीकरण कुछ भी हो।

गतिविधियों के लिए अनिवार्य अनुमोदन

  • वन क्षेत्रों में आरा मिलों, वेनियर मिलों, प्लाईवुड मिलों और खनन कार्यों सहित किसी भी प्रकारकी  गैर-वन गतिविधियों के लिए केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
  • अरुणाचल प्रदेश, असम और पूर्वोत्तर राज्यों सहित कई राज्यों में लकड़ी की कटाई और आवाजाही प्रतिबंधित है।

निर्णय के अनुसार राज्य की जिम्मेदारियाँ

  • प्रत्येक राज्य सरकार को एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए ताकि:-
    • अवक्रमित या अनाच्छादित वनों सहित सभी वन क्षेत्रों की पहचान की जा सके।
    • सतत् वानिकी प्रथाओं और आरा मशीन क्षमताओं का निर्धारण करना।
  • आरा मिलों, लकड़ी के स्रोतों और उद्योग स्थिरता पर रिपोर्ट निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर प्रस्तुत की जानी चाहिए।

वन की वर्तमान परिभाषा और संबंधित चिंताएँ

  • वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार व्यापक परिभाषा: इसमें सभी वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वन शामिल हैं, जिनमें अधिसूचित, दर्ज और वन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  • वर्ष 2023  के वन अधिनियम में संशोधन: यह अधिनियम परिभाषा को सीमित करता है:
    • कानूनी रूप से घोषित वन भूमि।
    • 25 अक्टूबर, 1980 को या उसके बाद वन के रूप में दर्ज किए गए क्षेत्र।
  • चिंताएँ: इसमें लगभग 1.97 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वन क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
    • इससे वनों की कटाई और पारिस्थितिकी असंतुलन हो सकता है।

संरक्षण स्थिति के आधार पर भारत में वनों का वर्गीकरण

वर्ग

विवरण

स्वामित्व एवं नियंत्रण

प्रतिबंध

आरक्षित वन भारत में सर्वाधिक कठोरता से संरक्षित वन। सरकार के पूर्ण नियंत्रण में।

सार्वजनिक प्रवेश वर्जित है; शिकार, चराई और लकड़ी संग्रह जैसी गतिविधियाँ प्रतिबंधित हैं, जब तक कि प्राधिकारियों द्वारा अनुमति न दी जाए।

संरक्षित वन

आरक्षित वनों की तुलना में कम प्रतिबंधित लेकिन फिर भी सरकारी संरक्षण में।

स्थानीय समुदायों को कुछ अधिकार प्रदान करके सरकार द्वारा प्रबंधित किया जाता है।

चराई, ईंधन की लकड़ी संग्रहण और लघु वन उपज निष्कर्षण के लिए सीमित अधिकार।
असुरक्षित (ग्रामीण या निजी) वन

न्यूनतम संरक्षित वन; इसमें सामुदायिक स्वामित्व वाले या निजी तौर पर प्रबंधित वन शामिल हो सकते हैं।

व्यक्तियों, समुदायों या स्थानीय शासी निकायों के स्वामित्व में।

कानूनी प्रतिबंध कम होते हैं; दोहन स्थानीय नियमों या समझौतों पर निर्भर करता है।

भारत में वन के लिए संवैधानिक ढाँचा

  • समवर्ती सूची में शामिल करना: वनों को भारत के संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। 
  • अधिकार क्षेत्र का हस्तांतरण: वर्ष 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा वनों तथा वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं के संरक्षण पर अधिकारिता को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • मौलिक कर्तव्य एवं राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
    • अनुच्छेद-51A (G) वनों से मिलकर बने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए नागरिकों के आवश्यक दायित्व पर जोर देता है।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद-48A में पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिए सरकार के प्रयासों को अनिवार्य बनाया गया है, जिसमें वनों और प्राकृतिक क्षेत्र की सुरक्षा शामिल है।

वन की पहचान संबंधी चुनौतियाँ

  • आंशिक अनुपालन: केवल सिक्किम, ओडिशा और गुजरात ने नियम 16(1) का पूर्ण अनुपालन किया है।
  • देरी एवं संदेह: अधिकांश राज्य रसद संबंधी कठिनाइयों का हवाला देते हैं, लेकिन याचिकाकर्ताओं को वन संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता की कमी का संदेह है।
  • GIS-आधारित डेटाबेस की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2011 के लाफार्ज निर्णय (Lafarge Judgment) के अनुसार, एक GIS डेटाबेस को वन सीमाओं का मानचित्रण एवं नियमित रूप से अद्यतन करना चाहिए।

वन आवरण और क्षति

  • भारत का वन एवं वृक्ष आवरण (वर्ष 2023 की ISFR रिपोर्ट): 8.27 लाख वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 25%)।
  • हाल ही में वनों की हानि: वर्ष 2021-2023 के बीच 1,488 वर्ग किमी. अवर्गीकृत वन नष्ट हो गए।
  • पर्यावरणीय जोखिम: वनों की पहचान में लगातार देरी से वनों की कटाई और बढ़ सकती है तथा जैव विविधता को खतरा उत्पन्न हो सकता है।

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