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सर्वोच्च न्यायालय ने रेत खनन के लिए पुनःपूर्ति अध्ययन अनिवार्य किया

Lokesh Pal August 26, 2025 03:51 11 0

संदर्भ

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर बनाम राजा मुजफ्फर भट्ट (Union Territory of Jammu & Kashmir vs. Raja Muzaffar Bhat) में एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि वैज्ञानिक पुनः/पूर्ति अध्ययन के बिना नदी तल रेत खनन के लिए कोई पर्यावरणीय मंजूरी नहीं दी जा सकती है।

रेत खनन पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बारे में (जम्मू और कश्मीर मामला)

  • मामले की पृष्ठभूमि: यह मामला जम्मू और कश्मीर के शालिगंगा नाले में रेत निष्कर्षण से संबंधित था, जो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की एक राजमार्ग परियोजना से जुड़ा था।
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण ( NGT) ने पर्यावरणीय मंजूरी रद्द कर दी क्योंकि जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (District Survey Report- DSR) में पुनःपूर्ति अध्ययन के आँकड़े उपलब्ध नहीं थे।
  • पुनःपूर्ति अध्ययनों का महत्त्व: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि सतत् निष्कर्षण सीमाएँ निर्धारित करने के लिए पुनःपूर्ति अध्ययन आवश्यक हैं।
    • ये अध्ययन पारिस्थितिकी क्षति को रोकने, भूजल पुनर्भरण को बनाए रखने और नदी पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में मदद करते हैं।
  • वन संरक्षण के सादृश्य: न्यायालय ने रेत खनन की तुलना वन प्रबंधन से की।
    • जिस प्रकार लकड़ी निष्कर्षण के लिए प्राकृतिक पुनर्जनन के आकलन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार रेत खनन को भी अनुमोदन से पूर्व वैज्ञानिक पुनःपूर्ति आकलन पर निर्भर रहना चाहिए।
  • अंतिम निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू और कश्मीर के अधिकारियों और NHAI द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया।
    • इसने खनन मंजूरी देने से पहले DSR में पुनःपूर्ति अध्ययन अनिवार्य कर दिया, जिससे सतत् और वैज्ञानिक खनन प्रथाओं के सिद्धांत को बल मिला।
  • निर्णय का प्रभाव: यह निर्णय एक राष्ट्रीय उदाहरण प्रस्तुत करता है: संसाधन पुनःपूर्ति के वैज्ञानिक सत्यापन के बिना कोई भी खनन परियोजना आगे नहीं बढ़ सकती है।
    • यह पर्यावरणीय शासन को सुदृढ़ करता है, जल्दबाजी में दी जाने वाली मंजूरियों पर अंकुश लगाता है और भारत की नीति को सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के अनुरूप बनाता है।

नदी तल रेत खनन के लिए वैज्ञानिक पुनःपूर्ति अध्ययन का महत्त्व और आवश्यकता

  • “पुनःपूर्ति अध्ययन” (Replenishment Study) एक वैज्ञानिक आकलन है, जो नदी पारिस्थितिकी तंत्र में रेत और अन्य नदी तल सामग्री के प्राकृतिक पुनर्जनन की दर को मापता है।
  • रेत पुनःपूर्ति अध्ययन का उद्देश्य और प्रक्रिया: इसमें रेत के वार्षिक निक्षेप की निगरानी शामिल है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि निष्कर्षण के बाद इसकी पुनःपूर्ति कितनी जल्दी होती है। यह अध्ययन सतत् निष्कर्षण सीमाएँ स्थापित करने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि खनन की दर नदी की रेत भंडार की पुनःपूर्ति करने की क्षमता से अधिक न हो।
  • सतत् संसाधन प्रबंधन: पुनःपूर्ति अध्ययन यह सुनिश्चित करते हैं कि रेत निष्कर्षण प्राकृतिक पुनःपूर्ति दर से अधिक न हो, जिससे नदी पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होता है और संसाधनों का ह्रास रुकता है।
  • पारिस्थितिकी संतुलन: ये अध्ययन नदी तल की स्थिरता, जलीय आवासों और जैव विविधता पर खनन के प्रभाव का आकलन करने में मदद करते हैं, जिससे कटाव, बाढ़ और आवास क्षति जैसे पर्यावरणीय क्षरण को कम किया जा सकता है।
  • सूचित निर्णय: ये अधिकारियों को स्थायी निष्कर्षण सीमाएँ निर्धारित करने, पर्यावरणीय मंज़ूरी का मार्गदर्शन करने और नदी तल के अतिदोहन से बचने के लिए वैज्ञानिक आँकड़े प्रदान करते हैं।
  • दीर्घकालिक व्यवहार्यता: पुनःपूर्ति अध्ययन के बिना, खनन से अपरिवर्तनीय पारिस्थितिकीय क्षति हो सकती है, जिससे पर्यावरण और नदी संसाधनों पर निर्भर समुदायों की आजीविका दोनों प्रभावित हो सकती है।
  • कानूनी अनुपालन: पुनःपूर्ति अध्ययन सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश और पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (2016) जैसे नियमों के अनुरूप होते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि खनन गतिविधियाँ पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप हों।

रेत एवं रेत खनन के बारे में

  • रेत (Sand): रेत निर्माण, बुनियादी ढाँचे और विनिर्माण के लिए एक आवश्यक संसाधन है। इसका उपयोग कंक्रीट, ईंटों, काँच और अन्य उत्पादों में किया जाता है।
  • रेत खनन (Sand Mining): रेत खनन में नदी तल, तटरेखाओं और झीलों से रेत का निष्कर्षण शामिल है। विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद, अत्यधिक रेत खनन के गंभीर पर्यावरणीय परिणाम होते हैं।
  • नीतियाँ और नियम
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986): पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यापक सुरक्षा उपाय प्रदान करता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA) अधिसूचना (2016): स्थायी रेत खनन के लिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (District Survey Reports- DSRs) और पुनःपूर्ति अध्ययन अनिवार्य करता है।
    • स्थायी रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश (2016): रेत खनन प्रथाओं के वैज्ञानिक प्रबंधन और निगरानी पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (Mines And Minerals (Development And Regulation) Act, 1957) (MMDR अधिनियम): संघ के नियंत्रण में खानों और खनिजों के विकास और विनियमन का प्रावधान करता है।
    • रेत की परिभाषा: MMDR अधिनियम की धारा 3(e) के तहत एक लघु खनिज और अवैध खनन पर नियंत्रण राज्य सरकारों के विधायी तथा प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में आता है।
    • MMDR अधिनियम की धारा 15: यह राज्य सरकारों को लघु खनिजों के संबंध में खदान पट्टों, खनन पट्टों या अन्य खनिज रियायतों के अनुदान को विनियमित करने और उनसे संबंधित उद्देश्यों के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है।
    • MMDR अधिनियम की धारा 23C: यह राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने तथा उनसे संबंधित उद्देश्यों के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है।
  • अप्रतिबंधित रेत खनन के पर्यावरणीय प्रभाव: दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य (2012) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अनियंत्रित रेत खनन पारिस्थितिकी रूप से अस्थिर है, जिसके परिणामस्वरूप:
    • नदी तट का कटाव और आवास विनाश: नदी तटों का अस्थिर होना, तटवर्ती वनस्पतियों का विनाश, और घोंसले/प्रजनन स्थलों का विनाश।
    • भूजल स्तर का ह्रास: अत्यधिक दोहन से नदी तल गहरा होता है, भूजल पुनर्भरण कम होता है और जलभृतों को नुकसान पहुँचता है।
    • जैव विविधता का ह्रास: मत्स्य प्रजनन स्थल और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो जाते हैं, जिससे आश्रित समुदायों की आजीविका सुरक्षा को खतरा होता है।
    • बाढ़ का बढ़ता जोखिम: अस्थिर नदी तल नदी की प्राकृतिक बाढ़ अवरोधक क्षमता को कमजोर करते हैं।
    • जल गुणवत्ता में गिरावट: निक्षेप संतुलन में विकृति के कारण अधिक गंदगी, गाद जमाव और प्रदूषण।
    • दीर्घकालिक पारिस्थितिक असंतुलन: नदी की आकृति विज्ञान में परिवर्तन के कारण आस-पास के क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण का खतरा बढ़ रहा है।

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अवैध रेत खनन (Illegal Sand Mining) के बारे में

  • परिभाषा: अवैध रेत खनन से तात्पर्य उचित लाइसेंस के बिना या पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करते हुए रेत के अनधिकृत निष्कर्षण से है।
    • अवैध खनन की सर्वोच्च न्यायालय की परिभाषा (कॉमन कॉज बनाम भारत संघ): सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अवैध खनन में शामिल हैं:-
      • वैध खनन पट्टे के बिना किए गए खनन कार्य।
      • खनन योजना या खनन पट्टे की शर्तों का उल्लंघन करके किया गया खनन।
      • पर्यावरण और वन कानूनों के उल्लंघन में किए गए कार्य, जिनमें शामिल हैं:-
        • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
        • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 
        • जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974
        • वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981]
        • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972। 
  • अवैध खनन के प्रभाव: अवैध खनन से जैव विविधता का ह्रास, नदियों का क्षरण और खनन संसाधनों पर नियंत्रण को लेकर सामाजिक संघर्ष होता है।

रेत के अवैध खनन के कारण

  • उच्च माँग और सीमित वैध आपूर्ति: तेजी से बढ़ते शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे के विकास ने रेत की माँग में तेज़ी से वृद्धि की है। हालाँकि, वैध आपूर्ति अपर्याप्त है, जिससे बिल्डर और ठेकेदार अवैध मार्ग अपनाते हैं।
  • भ्रष्टाचार और साँठगाँठ: अवैध खननकर्ताओं, नियामक प्राधिकरणों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच एक अवैध गठजोड़ उल्लंघनों को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, बॉम्बे उच्च न्यायालय की गोवा पीठ ने कहा कि न तो पुलिस महानिदेशक (DGP) और न ही मुख्य सचिव ने अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने में गंभीरता दिखाई।
  • गरीबी और बेरोज़गारी: आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्रों में, रेत खनन, अवैध होने के बावजूद, गरीबों के लिए आजीविका का एक स्रोत बन जाता है। उदाहरण के लिए, बिहार में, मजदूर सोन नदी के किनारों से तथाकथित ” यलो गोल्ड” निकालते हैं, जिससे वे अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए प्रतिदिन लगभग ₹400 कमाते हैं।

अनियंत्रित रेत खनन के परिणाम

  • पारिस्थितिकी चुनौतियाँ
    • नदी तट कटाव और आवास क्षति: अत्यधिक निकासी से नदी तट अस्थिर हो जाते हैं, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र क्षतिग्रस्त हो जाता है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
    • जैव विविधता को हानि: चंबल, नर्मदा और बेतवा जैसी नदियाँ, विशेषतः चंबल अभयारण्य में घड़ियाल जैसी प्रजातियाँ, खतरे का सामना कर रही हैं।
    • धीमी प्राकृतिक पुनःपूर्ति: प्रतिवर्ष लाखों टन रेत निष्कर्षित हो जाती है, जबकि प्राकृतिक पुनःपूर्ति धीमी है।
    • जल गुणवत्ता में गिरावट: अवसाद निक्षेप से गंदगी बढ़ती है, जलीय जीवन को नुकसान पहुँचता है और जल गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • आर्थिक चुनौतियाँ
    • राजस्व हानि: बिना निगरानी के खनन के कारण राज्यों को भारी राजस्व का नुकसान हुआ; तेलंगाना ने ₹172 करोड़ के संभावित नुकसान की सूचना दी।
    • बुनियादी ढाँचे को नुकसान: संरचनात्मक नींव के पास खनन से वे कमजोर हो जाती हैं, उदाहरण के लिए, कर्नाटक में मुलारापटना पुल का गिरना

  • सामाजिक एवं सुरक्षा चुनौतियाँ
    • संघर्ष और सुरक्षा जोखिम: निगरानी और खनन से टकराव और दुर्घटनाएँ हो सकती हैं; अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 के बीच 124 मौतें दर्ज की गईं।
    • प्रवर्तन के लिए खतरा: रेत खनन कार्यों की निगरानी करने वाले अधिकारियों पर हमले हुए, जिससे प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ प्रदर्शित हुईं।
    • तस्करी का बुनियादी ढाँचा: नागपुर में गोपनीय खनन मार्गों की खोज से अनियमित गतिविधियों का स्तर पता चलता है।
  • शासन और निरीक्षण विफलताएँ:
    • अपर्याप्त जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (District Survey Reports- DSRs): मध्य प्रदेश में, लगभग आधे जिलों में वैध या सुलभ DSR का अभाव है, जिसके कारण अनियंत्रित खनन हो रहा है और सामुदायिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो रहा है (उदाहरण के लिए, एक अचिह्नित खनन गड्ढे के कारण 13 वर्षीय बच्चे की दुखद मृत्यु)।
    • लेखा परीक्षा चेतावनियाँ: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने ओडिशा की ब्राह्मणी और रुशिकुल्या नदियों में अनियंत्रित खनन को चिह्नित किया है और अनुमान लगाया गया है कि ₹51.69 करोड़ वसूली योग्य है और प्रवर्तन में राज्य की लापरवाही की ओर संकेत किया गया है।
    • उच्च-स्तरीय भ्रष्टाचार: तमिलनाडु में, मद्रास उच्च न्यायालय ने ₹5,832 करोड़ के अनियंत्रित समुद्र तट रेत खनन घोटाले की सीबीआई जाँच का आदेश दिया है, जो अधिकारियों और राजनीतिक हस्तियों के बीच प्रणालीगत गठजोड़ को रेखांकित करता है।

सतत रेत खनन के लिए सरकारी पहल

  • तकनीकी और निगरानी उपाय
    • बिहार में स्थायी जाँच चौकियाँ: रेत परिवहन की निगरानी और नियामक अनुपालन सुनिश्चित करता है।
    • ओडिशा की एकीकृत खनन प्रबंधन प्रणाली (i3MS): वास्तविक समय की निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी, GPS ट्रैकिंग और ड्रोन का उपयोग करता है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ड्रोन निगरानी (उत्तर प्रदेश और तेलंगाना, 2024): संवेदनशील नदी क्षेत्रों में खनन पर नजर रखता है।

  • नीति एवं नियामक ढाँचा
    • सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश (Sustainable Sand Mining Management Guidelines- SSMMG), 2016: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी ये दिशा-निर्देश निम्नलिखित पर केंद्रित हैं:
      • खनन स्रोतों की पहचान।
      • नदी तल सामग्री (रेत, बजरी, शिलाखंड) के लिए पुनःपूर्ति अध्ययन।
      • नियोजित निष्कर्षण हेतु जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट।
      • खनन परियोजनाओं के लिए मानक पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय।
    • रेत खनन के लिए प्रवर्तन एवं निगरानी दिशा-निर्देश, 2020 [Enforcement and Monitoring Guidelines for Sand Mining, 2020]: SSMMG 2016 के पूरक, ये दिशा-निर्देश निम्नलिखित के माध्यम से विनियमन को सुदृढ़ करते हैं:
      • संसाधनों की पहचान और परिमाणीकरण।
      • स्रोत से अंतिम उपभोक्ता तक रेत और बजरी खनन का संपूर्ण विनियमन।
      • प्रत्येक चरण पर निगरानी के लिए IT-सक्षम सेवाओं, ड्रोन और रिमोट सेंसिंग का उपयोग।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) अधिसूचना, 2006: पारिस्थितिकी सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, लघु रेत खनन परियोजनाओं के लिए भी पर्यावरणीय मंज़ूरी अनिवार्य बनाता है।
    • रेत खनन ढाँचा (2018): खान मंत्रालय द्वारा तैयार, यह रेत खनन में स्थिरता, उपलब्धता, सामर्थ्य और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए राज्यों की सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल करता है।
  • विकल्प और प्रतिस्थापन
    • मैन्युफैक्चर्ड सैंड (Manufactured Sand- M-Sand): राजस्थान, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसे बढ़ावा दिया जा रहा है; वर्ष 2024 में दिए गए प्रोत्साहन नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव कम करेंगे।
    • अन्य विकल्प: फ्लाई ऐश, खंडित चट्टानें, कृत्रिम रेत, ताम्र धातुमल प्राकृतिक रेत पर निर्भरता कम करते हैं।
    • वैश्विक प्रथाएँ: चीन और अमेरिका खंडित चट्टान का उत्पादन करते हैं, जिसे वैकल्पिक निर्माण सामग्री के रूप में प्रयोग किया जाता है।

रेत खनन से संबंधित वैश्विक एवं अंतरराष्ट्रीय रूपरेखा

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme- UNEP): UNEP सतत् खनन प्रथाओं का समर्थन करता है और रेत खनन विनियमन के लिए वैश्विक ढाँचा प्रदान करता है।
  • जैविक विविधता पर अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD): अनुच्छेद-7 देशों से रेत खनन के पर्यावरणीय प्रभावों की निगरानी करने और निवारक उपाय करने का आग्रह करता है।
  • समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on the Law of the Sea- UNCLOS): अनुच्छेद-208 और 214 के अनुसार, देशों को रेत खनन से होने वाले प्रदूषण, विशेष रूप से समुद्री वातावरण में, को नियंत्रित करने वाले कानून बनाने होंगे।

आगे की राह

  • सतत् विकल्पों को बढ़ावा देना: निर्माण में कृत्रिम रेत, फ्लाई ऐश और खंडित पत्थरों के उपयोग को प्रोत्साहित करके प्राकृतिक रेत पर निर्भरता कम करना।
    • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की अनुशंसा के अनुसार, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में प्राकृतिक रेत के अनावश्यक उपयोग से बचना।
    • अंतरराष्ट्रीय उदाहरण
      • सिंगापुर: कंक्रीट में रेत के विकल्प के रूप में तांबे के स्लैग का उपयोग
      • चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका: वैकल्पिक सामग्री के रूप में ‘खंडित पत्थर’ का उत्पादन।
    • उद्योगों को पर्यावरण-अनुकूल सामग्री अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना, जिससे नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर पर्यावरणीय दबाव कम हो।
  • नियामक ढाँचे को मजबूत करना: रेत को गौण खनिज से प्रमुख खनिज के रूप में पुनर्वर्गीकृत करना, तथा राज्यों में एकरूपता के लिए इसे केंद्रीय विनियमन के अंतर्गत लाना।
    • रेत खनन के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश तैयार करना ताकि सतत खनन सुनिश्चित हो और अवैध गतिविधियों में कमी आए।
    • पर्यावरण और खनन कानूनों में सामंजस्य स्थापित करना, पुनःपूर्ति अध्ययनों, पर्यावरणीय मंज़ूरियों और जिला सर्वेक्षण रिपोर्टों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को एकीकृत करना।
  • तकनीकी हस्तक्षेप: खनन गतिविधियों की वास्तविक समय निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी, ड्रोन, जीपीएस ट्रैकिंग, बार कोडिंग और रिमोट सेंसिंग का उपयोग करना।
    • ओडिशा प्रणाली की तरह एकीकृत खनन प्रबंधन पोर्टल विकसित करना, जिससे अधिकारी खनन को इलेक्ट्रॉनिक रूप से नियंत्रित कर सकें।
    • पारदर्शिता और पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए रेत निष्कर्षण, परिवहन और उपयोग की निगरानी करना।
  • प्रवर्तन और दंड में वृद्धि: मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू करना, दंड को कठोर और निवारक-उन्मुख बनाना।
    • उल्लंघन को रोकने के लिए उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों में नियमित निरीक्षण, ऑडिट और औचक निरीक्षण करना।
  • बुनियादी उद्योग मानक स्थापित करना: अनियंत्रित/अवैध कार्यों को कम करने के लिए रेत खनन के लिए मानकीकृत प्रथाएँ विकसित करना।
    • वैज्ञानिक एक वैश्विक निगरानी कार्यक्रम का समर्थन करते हैं, जो सतत् खनन के लिए मानक स्थापित करे, पारिस्थितिकी क्षति को कम करे और कार्यों को वैध बनाए।
  • जन जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना: रेत खनन के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के बारे में नागरिकों और हितधारकों को शिक्षित करने के लिए अभियान शुरू करना।
    • समुदाय आधारित निगरानी को प्रोत्साहित करना, जिससे स्थानीय आबादी उल्लंघनों की रिपोर्ट करने में सक्षम हो सके और नदी पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा हो सके।

PWOnlyIAS विशेष

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के बारे में

  • स्थापना: पर्यावरण संरक्षण और संरक्षण मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान हेतु वर्ष 2010 में स्थापित किया गया था।
  • मुख्यालय: मुख्यालय दिल्ली में है और भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई में क्षेत्रीय पीठें हैं।

संरचना

  • इसमें एक अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं।
  • अध्यक्ष: सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
    • पाँच वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक सेवारत।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त।
    • सदस्यों की नियुक्ति 5 वर्ष के कार्यकाल के लिए की जाती है, पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं।
    • न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति द्वारा की जाती है।
    • सदस्य संख्या – न्यूनतम 10 और अधिकतम 20 सदस्य।

शक्तियाँ और कार्य

  • पर्यावरण संबंधी मामलों के शीघ्र निपटान हेतु स्थापित
  • न्यायालय की तरह अपीलीय क्षेत्राधिकार रखता है।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता से बाध्य नहीं, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है।
  • दायर होने के 6 महीने के भीतर मामलों का निपटारा करना अनिवार्य।

निष्कर्ष

नदी तल रेत खनन पुनःपूर्ति अध्ययन को बरकरार रखने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सतत् विकास, पर्यावरणीय न्याय तथा अनुच्छेद-21 के तहत स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार के संवैधानिक मूल्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो भावी पीढ़ियों के लिए न्यायसंगत और जिम्मेदार संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करता है।

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