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नियामक परिसंपत्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

Lokesh Pal September 04, 2025 03:45 134 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने डिस्कॉम (DISCOMs) एवं राज्य विद्युत नियामक आयोगों (State Electricity Regulatory Commissions- SERCs) के नियामकों को निश्चित समय-सीमा के भीतर विनियामक परिसंपत्तियों को मंजूरी देने का आदेश दिया है तथा विद्युत क्षेत्र में वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए उनके सृजन पर सीमा लगा दी है।

डिस्कॉम (DISCOMs), या वितरण कंपनियाँ, विद्युत उपयोगिताएँ हैं, जो विद्युत उत्पादकों (जैसे- कोयला, जलविद्युत या सौर ऊर्जा संयंत्र) से विद्युत खरीदने एवं उसे घरों, उद्योगों तथा व्यवसायों जैसे अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए जिम्मेदार हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्देश

  • परिसंपत्ति निपटान: सभी संचित नियामक परिसंपत्तियों का निपटान चार वर्षों के भीतर किया जाना चाहिए।
  • सीमा: किसी भी नई निर्मित नियामक परिसंपत्तियों का निपटान तीन वर्षों के भीतर किया जाना चाहिए।
  • वित्तीय अनुशासन: पारदर्शिता और राजकोषीय उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के लिए नियामक परिसंपत्तियों पर अधिकतम सीमा डिस्कॉम (DISCOMs) की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (Annual Revenue Requirement- ARR) के 3% पर रखने की सलाह दी गई है। 
  • महत्त्व: सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय अप्राप्य लागतों के प्रणालीगत मुद्दे के समाधान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसने लंबे समय से भारत के विद्युत क्षेत्र को प्रभावित किया है।

नियामक परिसंपत्तियाँ

  • परिभाषा: नियामक परिसंपत्तियाँ आपूर्ति की औसत लागत (Average Cost of Supply- ACS) और डिस्कॉम की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) के बीच अप्राप्य अंतर का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • आपूर्ति की औसत लागत (ACS): किसी डिस्कॉम द्वारा एक यूनिट विद्युत की आपूर्ति पर वहन की जाने वाली वास्तविक लागत को आपूर्ति की औसत लागत (ACS) कहते हैं।
  • वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR): उपभोक्ता शुल्कों एवं राज्य सरकार की सब्सिडी से एकत्रित कुल राजस्व वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) कहलाता है।
    • तंत्र: जब ACS, ARR से अधिक हो जाता है, तो डिस्कॉम को बेची गई प्रत्येक इकाई पर घाटा होता है। उपभोक्ताओं के लिए अचानक और भारी टैरिफ वृद्धि को रोकने के लिए, नियामक अक्सर इस राजस्व कमी को एक आस्थगित लागत (Deferred Cost) के रूप में दर्ज करने की अनुमति देते हैं, जिसे ‘नियामक परिसंपत्ति’ कहा जाता है। इस परिसंपत्ति की वसूली भविष्य में, आमतौर पर अतिरिक्त ब्याज के साथ, की जानी होती है।
  • उदाहरण के लिए: यदि ACS 7.20 रुपये प्रति यूनिट है एवं ARR 7.00 रुपये है, तो कमी 0.20 रुपये प्रति यूनिट है।
    • यदि 10 अरब यूनिट की आपूर्ति की जाती है, तो कुल राजस्व अंतर 2,000 करोड़ रुपये होगा। इस अंतर को तत्काल टैरिफ वृद्धि के माध्यम से वसूलने के बजाय एक नियामक परिसंपत्ति के रूप में दर्ज किया जाता है।

ACS-ARR  अंतर के कारण

  • गैर-लागत शुल्क: राजनीतिक दबाव के कारण शुल्क प्रायः कृत्रिम रूप से कम रखे जाते हैं, जिससे आपूर्ति की वास्तविक लागत प्रतिबिंबित नहीं होती है।
  • भुगतान में देरी: राज्य सरकारें प्रायः डिस्कॉम को सब्सिडी भुगतान में देरी करती हैं या समय पर भुगतान करने में विफल रहती हैं, जिसका उद्देश्य कृषि एवं कम आय वाले उपभोक्ताओं को विद्युत उपलब्ध कराने की लागत को पूरा करना है।
  • मूल्य अस्थिरता: कोयला या गैस जैसे ईंधनों की कीमतों में अचानक वृद्धि से विद्युत खरीद लागत सीधे बढ़ जाती है, जिससे ACS एवं ARR के बीच का अंतर बढ़ जाता है।
  • परिचालन अक्षमताएँ: उच्च पारेषण एवं वितरण घाटा डिस्कॉम (DISCOMs) पर वित्तीय तनाव को और बढ़ा देता है।

नियामक परिसंपत्तियों का प्रभाव

  • उपभोक्ता: हालाँकि नियामक परिसंपत्तियाँ शुरू में उपभोक्ताओं को टैरिफ झटकों से बचाती हैं, लेकिन वसूली में देरी अंततः ब्याज शुल्क सहित भारी बढोतरी की ओर ले जाती है।
    • उदाहरण के लिए, दिल्ली डिस्कॉम को चार वर्षों में सालाना 16,580 करोड़ रुपये वसूलने होंगे, जिससे विद्युत की लागत में लगभग 5.5 रुपये प्रति यूनिट की वृद्धि होगी।
  • डिस्कॉम (DISCOMs): नियामक परिसंपत्तियों पर लंबे समय तक निर्भरता नकदी प्रवाह संकट का कारण बनती है, जिससे विद्युत उत्पादकों को भुगतान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है एवं डिस्कॉम को उधार लेना पड़ता है, जिससे उनका ऋण भार बढ़ जाता है।
    • यह वित्तीय दबाव ग्रिड आधुनिकीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण एवं उपभोक्ता सेवाओं में निवेश को बाधित करता है, जिससे अकुशलता बनी रहती है।

इस अंतर को पाटने के उपाय

  • लागत-प्रतिबिंबित शुल्क: शुल्क वास्तविक आपूर्ति लागत के अनुरूप होने चाहिए। हालाँकि, कमजोर उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए इसे लक्षित सब्सिडी के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
  • समय पर सब्सिडी जारी करना: राज्य सरकारों को डिस्कॉम को सब्सिडी भुगतान का समय पर वितरण सुनिश्चित करना चाहिए।
  • स्वचालित ईंधन समायोजन: ईंधन एवं विद्युत खरीद लागत समायोजन (Fuel and Power Purchase Cost Adjustment- FPPCA) जैसे तंत्रों को लागू करने से टैरिफ को ईंधन की कीमतों में बाजार परिवर्तनों के अनुसार शीघ्रता से अनुकूलित किया जा सकता है।
  • एनुअल ट्रू-अप एक्सरसाइज: अनुमानित एवं वास्तविक लागतों का नियमित मिलान बड़े बैकलॉग के संचय को रोक सकता है।
  • नियामक अनुशासन: राज्य विद्युत विनियामक आयोगों को पारदर्शी लेखांकन प्रथाओं को लागू करना होगा, नियामक परिसंपत्तियों की सीमा तय करनी होगी तथा उनकी वसूली के लिए सख्त समय-सीमा निर्धारित करनी होगी।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • विनियमित परिसंपत्ति आधार (Regulated Asset Base- RAB) मॉडल (यू. के.): यह मॉडल उपयोगिताओं को सुनिश्चित रिटर्न वाले टैरिफ के माध्यम से अपने निवेश की वसूली करने की अनुमति देता है, जिससे दीर्घकालिक राजस्व निश्चितता मिलती है।
  • RIIO फ्रेमवर्क (Revenue = Incentives + Innovation + Outputs) (राजस्व = प्रोत्साहन + नवाचार + आउटपुट) (यू. के.): यह फ्रेमवर्क किसी उपयोगिता के राजस्व को उसके प्रदर्शन लक्ष्यों, जैसे- विश्वसनीयता, सेवा गुणवत्ता एवं कार्बन उत्सर्जन में कमी, से जोड़ता है, जिससे दक्षता को प्रोत्साहन मिलता है।
  • डिजिटल अवसंरचना: स्मार्ट ग्रिड एवं इंडिया एनर्जी स्टैक जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग परिसंपत्ति प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ा सकता है तथा दक्षता-आधारित रिकवरी मॉडल का समर्थन कर सकता है।