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उच्चतम न्यायालय के आदेश से NCRB डेटा संग्रह में बाधा नहीं आएगी

Lokesh Pal November 09, 2024 01:53 29 0

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने का फैसला सुनाया, जिसमें विचाराधीन और दोषी कैदियों के रजिस्टर से जाति संबंधी कॉलम एवं जाति संबंधी सभी संदर्भों को हटाना शामिल है।

विचाराधीन कैदी (Undertrial Prisoners)

  • विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट में परिभाषित विचाराधीन कैदी से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो या तो वर्तमान में मुकदमे का सामना कर रहा हो, मुकदमे की प्रतीक्षा के दौरान रिमांड पर हो अथवा जाँच के दौरान न्यायिक हिरासत में हो।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में 4,34,302 विचाराधीन कैदी थे, जो कुल जेलों की आबादी 5,73,220 का 76% है।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश के मुख्य बिंदु 

  • सुकन्या शांता बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य जेल नियमावली के उन प्रावधानों को निरस्त कर दिया, जो जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते थे।
  • औपनिवेशिक युग की प्रथाएँ: उच्चतम न्यायालय ने जाति-आधारित श्रम विभाजन, बैरकों में अलगाव और विशेष रूप से विमुक्त जनजातियों तथा आदतन अपराधियों के विरुद्ध पूर्वाग्रह जैसी औपनिवेशिक प्रथाओं के जारी रहने पर प्रकाश डाला, जिन्हें कम-से-कम 10 राज्यों की जेल नियमावलियों में बरकरार रखा गया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने संस्थागत जातिगत भेदभाव को संबोधित करने वाले जेल रजिस्टरों में जाति कॉलम और संदर्भों को हटाने तथा कैदियों की गरिमा को बनाए रखने का निर्देश दिया।
  • गरिमा और मौलिक समानता का अधिकार: उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि गरिमा का अधिकार कैदियों पर भी लागू होता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को जेल नियमावली और कानूनों में संशोधन करने का निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी कैदियों की गरिमा बनी रहे।
  • जाति से ऊपर व्यक्तिगत योग्यताएँ: उच्चतम न्यायालय ने जाति के बजाय योग्यताओं के आधार पर भूमिकाएँ सौंपने पर जोर दिया।
  • पुनर्वास और सुधार: कौशल विकास और पुनर्वास के लिए समान अवसर बनाने, जातिगत पूर्वाग्रहों का प्रतिकार करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • तीन महीने की अनुपालन अवधि: निर्णय में केंद्र और राज्यों को तीन महीने के भीतर जेल मैनुअल एवं कानूनों में आवश्यक संशोधन करने की आवश्यकता है, साथ ही अनुपालन रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करनी होगी।
  • डेटा संग्रहण पर स्पष्टीकरण: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपराध संबंधी आँकड़ों पर NCRB डेटा संग्रहण प्रभावित नहीं होगा।
    • NCRB को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि व्यक्तिगत जेल रिकॉर्ड में जाति का उल्लेख किए बिना भी अपराध संबंधी आँकड़े एकत्र किए जा सकें।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) के बारे में

  • स्थापना: अपराध और अपराधियों पर सूचना भंडार के रूप में वर्ष 1986 में गठित, NCRB भारत सरकार के गृह मंत्रालय (भारत सरकार) के अधीन कार्य करता है।
  • उत्पत्ति: NCRB की स्थापना टंडन समिति, राष्ट्रीय पुलिस आयोग (वर्ष 1977-1981) और गृह मंत्रालय के टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
  • भूमिका: यह अपराध डेटा एकत्र करने, उसका विश्लेषण करने और उसे बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है, जो जाँचकर्ताओं को अपराध और अपराधियों का पता लगाने में मदद करने के लिए मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली
  • प्रकाशन: प्रमुख रिपोर्टों में भारत में अपराध (Crime in India), आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएँ (Accidental Deaths & Suicides) और जेल सांख्यिकी (Prison Statistics) शामिल हैं, जो राष्ट्रीय अपराध प्रवृत्तियों और पैटर्न का विवरण देती हैं।

NCRB के कार्य

  • अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (Crime and Criminal Tracking Network and System- CCTNS): वर्ष 2009 से, NCRB अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क तथा सिस्टम (CCTNS) परियोजना की निगरानी, ​​समन्वय एवं कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है, यह एक ऐसा नेटवर्क है, जो देश भर के पुलिस स्टेशनों को अपराध व अपराधी सूचनाओं का एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाने के लिए जोड़ता है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल पुलिस पोर्टल (National Digital Police Portal): इस पोर्टल को वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया, यह पोर्टल पुलिस अधिकारियों को अपराधियों और संदिग्धों को ट्रैक करने में मदद करने के लिए अपराध तथा अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) डेटा तक पहुँच प्रदान करता है। यह नागरिकों को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने जैसी सेवाओं तक पहुँचने की भी अनुमति देता है।
  • यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डेटाबेस (National Database of Sexual Offenders- NDSO): NCRB इस डेटाबेस को बनाए रखता है, अपराधियों की निगरानी में सहायता के लिए इसे नियमित रूप से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा करता है।
  • ऑनलाइन साइबर-क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (Online Cyber-Crime Reporting Portal): NCRB इस पोर्टल के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है, जो नागरिकों को साइबर अपराधों, विशेष रूप से बाल पोर्नोग्राफी और यौन अपराधों से संबंधित मामलों की रिपोर्ट करने और साक्ष्य अपलोड करने में सक्षम बनाता है।
  • केंद्रीय फिंगरप्रिंट ब्यूरो (Central Finger Print Bureau): NCRB इस राष्ट्रीय फिंगरप्रिंट रिपॉजिटरी की देखरेख करता है, जो पूरे भारत में अपराध जाँच और सत्यापन प्रक्रियाओं का समर्थन करने वाले रिकॉर्ड को संगृहीत और बनाए रखता है।

मुल्ला समिति (Mulla Committee)

वर्ष 1980 में भारत सरकार ने न्यायमूर्ति ए. एन. मुल्ला की अध्यक्षता में जेल सुधार पर एक समिति गठित की।

मुल्ला समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं:

  • मानवीय गरिमा: कैदियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए, उन्हें दुर्व्यवहार से मुक्त रखा जाना चाहिए और उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित होने से बचाया जाना चाहिए।
  • बुनियादी जरूरतें: पर्याप्त भोजन, पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना।
  • कानूनी अधिकार: कानूनी सहायता, त्वरित सुनवाई और गैर-कानूनी हिरासत को चुनौती देने का अधिकार।
  • पुनर्वास: समाज में पुनः एकीकरण में सहायता के लिए शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और परामर्श प्रदान करना।
  • संचार और मुलाकात: परिवार और दोस्तों के साथ उचित संचार की अनुमति देना।
  • शिकायत निवारण: कैदियों के लिए शिकायत दर्ज करने और न्याय पाने के लिए तंत्र स्थापित करना।
  • जेल सुधार: बुनियादी ढाँचे में सुधार, भीड़भाड़ को कम करना और मानवीय परिस्थितियों को बढ़ावा देना।

भारत में कैदियों के अधिकार

  • दोहरे खतरे के विरुद्ध अधिकार [अनुच्छेद-20(2)]: किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और उसे दंडित नहीं किया जा सकता।
  • निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार [अनुच्छेद-22(1)]: प्रत्येक व्यक्ति को वकील द्वारा बचाव का अधिकार है, विशेष रूप से गंभीर आपराधिक मामलों में।
  • शीघ्र सुनवाई का अधिकार [अनुच्छेद-22(1)]: किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।
    • मुकदमा उचित समय के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
  • मानवीय व्यवहार का अधिकार (अनुच्छेद-21): कैदियों को मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है।
    • उन्हें यातना या क्रूर, अमानवीय अथवा अपमानजनक व्यवहार का सामना नहीं करना चाहिए।
  • चिकित्सा सहायता का अधिकार: कैदियों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं का अधिकार है।
  • शिक्षा और पुनर्वास का अधिकार: कैदियों को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण का अधिकार है।
    • उन्हें पुनर्वास और समाज में पुनः एकीकरण के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।

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