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सर्वोच्च न्यायालय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ पर वर्ष 1967 के निर्णय को खारिज किया

Lokesh Pal November 11, 2024 12:16 23 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4-3 के बहुमत से एक शैक्षणिक संस्थान के ‘अल्पसंख्यक चरित्र’ (Minority Character) को निर्धारित करने के लिए एक ‘समग्र और यथार्थवादी’ (Holistic and Realistic) परीक्षण निर्धारित किया, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत विशेष सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।

  • यह ऐतिहासिक निर्णय AMU की स्थापना, उद्देश्य तथा शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासन में अल्पसंख्यकों के अधिकार के बारे में लंबे समय से चली आ रही बहस को संबोधित करता है।

संबंधित तथ्य 

  • याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई चुनौती: याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 1967 के एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में पाँच न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था और इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1967 के अजीज बाशा फैसले को खारिज कर दिया है तथा कहा है कि कानून द्वारा किसी संस्था की स्थापना उसके अल्पसंख्यक दर्जे को समाप्त नहीं करती है।
  • AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का अंतिम निर्धारण स्थगित: AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का अंतिम निर्धारण एक अलग पीठ के समक्ष स्थगित कर दिया गया है।
    • AMU एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान है या नहीं, इस प्रश्न का निर्णय इस निर्णय में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर किया जाना चाहिए।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) मामले की समयरेखा एवं पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1877: सैयद अहमद खान ने मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (Muhammadan Anglo-Oriental- MAO) कॉलेज की स्थापना की थी।
  • वर्ष 1920: AMU अधिनियम लागू होने के बाद MAO कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के रूप में स्थापित किया गया।
  • वर्ष 1950: संसद ने MAO को ‘राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान’ घोषित किया।
    • भारतीय संविधान संघ सूची की प्रविष्टि 63 के तहत ‘राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान’ (Institution of National Importance- INI) को मान्यता देता है।
    • केंद्र सरकार संसद के एक अधिनियम के माध्यम से भारत में प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों को INI का दर्जा देती है।
  • वर्ष 1967: एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले मे सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, क्योंकि इसकी स्थापना या प्रशासन मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा नहीं किया गया था।
    • यह केंद्रीय विधानमंडल के एक अधिनियम के माध्यम से अस्तित्व में आया तथा इसलिए संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान की श्रेणी में नहीं आता था।
  • वर्ष 1981: सरकार ने AMU अधिनियम, 1920 में संशोधन करते हुए कहा कि यह संस्था मुस्लिम समुदाय द्वारा भारत में मुसलमानों की सांस्कृतिक तथा शैक्षिक उन्नति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित की गई थी।
  • वर्ष 2005: AMU ने स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण लागू किया।
  • वर्ष 2006: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 1981 के संशोधन तथा AMU के मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि AMU अजीज बाशा मामले के तहत अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
    • इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
  • वर्ष 2019: तीन न्यायाधीशों वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों वाली पीठ को भेज दिया।

अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (Minority Educational Institutions- MEI) के बारे में 

  • परिभाषा: ‘अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान’ का तात्पर्य अल्पसंख्यक या अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित तथा प्रशासित कॉलेज या शैक्षणिक संस्थान से है।

  • भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • हालाँकि, संविधान धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।
  • केंद्र सरकार ने छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को अधिसूचित किया है, अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन।


  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-30(1): सभी भाषायी तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने तथा उनका प्रशासन करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  • NCMEI अधिनियम का अधिनियमन: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (National Commission for Minority Educational Institutions- NCMEI) अधिनियम संविधान के अनुच्छेद-30(1) में निहित अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है।
    • आयोग एक अर्द्ध न्यायिक निकाय है, जिसके पास सिविल न्यायालय की शक्तियाँ हैं।
    • इसकी तीन मुख्य भूमिकाएँ हैं, अर्थात् न्यायिक, सलाहकार तथा संस्तुतिकारी
    • इसके पास मूल तथा अपीलीय दोनों तरह के अधिकार क्षेत्र हैं।
    • आयोग के पास अधिनियम में निर्धारित आधारों पर किसी प्राधिकरण या आयोग द्वारा दिया गया शैक्षणिक संस्था के अल्पसंख्यक का दर्जा को रद्द करने की शक्ति है।
  • अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों (MEI) के लिए सुरक्षा
    • अनुच्छेद-15(5) के तहत छूट: अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों (MEIs) को अनुसूचित जाति (SC) तथा अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण प्रदान करने से छूट दी गई है।
    • प्रशासनिक अधिकार: अल्पसंख्यक दर्जा शैक्षणिक संस्थानों को छात्र प्रवेश (वे अल्पसंख्यक छात्रों के लिए 50% तक सीटें आरक्षित कर सकते हैं) से लेकर शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति तक अपने दैनिक प्रशासन पर अधिक नियंत्रण रखने की अनुमति देता है।

अनुच्छेद-30(1) के तहत अल्पसंख्यक चरित्र के मूल तत्त्व

  • सर्वोच्च न्यायालय के बहुमत के निर्णय में अनुच्छेद-30(1) के तहत अल्पसंख्यक चरित्र के ‘मूलभूत अनिवार्य तत्त्वों’ को सूचीबद्ध किया गया।
  • स्थापना का उद्देश्य: किसी अल्पसंख्यक संस्था का प्राथमिक लक्ष्य अल्पसंख्यक समूह की भाषा तथा संस्कृति को संरक्षित करना होना चाहिए।
    • हालाँकि, यह संस्था का एकमात्र उद्देश्य नहीं है।
  • गैर-अल्पसंख्यक छात्रों का प्रवेश: अल्पसंख्यक संस्थान अपना अल्पसंख्यक चरित्र बनाए रखता है, भले ही वह गैर-अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को प्रवेश देता हो।
  • धर्मनिरपेक्ष शिक्षा: अल्पसंख्यक संस्थान में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा उसके अल्पसंख्यक चरित्र को प्रभावित किए बिना दी जा सकती है।
  • सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा: यदि किसी अल्पसंख्यक संस्थान को सरकार से सहायता प्राप्त हुई है, तो किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
    • यदि संस्था का पूर्णतः रखरखाव राज्य निधि से किया जाता है, तो वह धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं कर सकती है।
    • हालाँकि, इन संस्थाओं को अभी भी अल्पसंख्यक संस्थाएँ ही माना जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय महत्त्व बनाम अल्पसंख्यक दर्जा (National Importance vs. Minority Status)
    • निर्णय में स्पष्ट किया गया कि संघ सूची की प्रविष्टि 63 के तहत राष्ट्रीय महत्त्व के रूप में मान्यता प्राप्त संस्थाएँ एक साथ अल्पसंख्यक का दर्जा भी रख सकती हैं।
    • मुख्य न्यायाधीश ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय महत्त्व तथा अल्पसंख्यक अधिकार परस्पर अनन्य नहीं हैं।
  • असहमतिपूर्ण राय
    • असहमति जताने वाले न्यायाधीशों ने तर्क दिया कि AMU को राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान के रूप में मान्यता देने से उसका अल्पसंख्यक चरित्र कमजोर हुआ है।
    • उन्होंने दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा वर्ष 1981 में दिए गए रेफरल की प्रक्रियागत वैधता पर भी सवाल उठाया तथा रेफरल प्रक्रिया में प्रक्रियागत अतिक्रमण के बारे में चिंता व्यक्त की।

किसी संस्था के ‘अल्पसंख्यक चरित्र’ का निर्धारण करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मानदंड

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दो प्राथमिक मानदंडों (स्थापना और प्रशासन) के आधार पर एक ‘समग्र और यथार्थवादी’  परीक्षण स्थापित किया।
  • ‘स्थापना’ (Established) की व्यापक व्याख्या: निर्णय में स्पष्ट किया गया कि ‘स्थापित’ शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए, जिसका अर्थ है कि कोई संस्था अपनी अल्पसंख्यक स्थिति को बरकरार रख सकती है, भले ही वह किसी वैधानिक निकाय द्वारा शासित हो या समय के साथ उसकी कानूनी स्थिति में बदलाव आया हो।
  • स्थापना मानदंड
    • संस्था की उत्पत्ति: न्यायालय को संस्था की स्थापना के विचार की उत्पत्ति, उद्देश्य और कार्यान्वयन की जाँच करनी चाहिए।
    • संस्थापकों की पहचान के लिए मानदंड: यह स्थापित करने के लिए कि किसी संस्था की स्थापना किसने की, न्यायालयों को चाहिए:-
      • संस्था की वैचारिक उत्पत्ति का पता लगाना।
      • पत्रों, संचार और सरकारी पत्राचार के आधार पर इसकी स्थापना के पीछे ‘उद्देश्य’ की पहचान करना है।
      • सुबूत में अल्पसंख्यक व्यक्ति या समूह की भागीदारी का संकेत होना चाहिए।
    • प्रमुख उद्देश्य: संस्था का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय को लाभ पहुँचाना होना चाहिए, भले ही यह एकमात्र उद्देश्य न हो।
      • यह आवश्यक नहीं है कि शिक्षा अल्पसंख्यकों द्वारा बोली जाने वाली भाषा या उनके धर्म में ही प्रदान की जाए।
    • अल्पसंख्यक स्थापना के साक्ष्य: निजी संचार, भाषण और दस्तावेज जो अल्पसंख्यक समुदाय के लिए एक संस्था की आवश्यकता को प्रदर्शित करते हैं और संबंधित समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली ‘शैक्षणिक कठिनाइयों’ की मान्यता देते हैं।
    • कार्यान्वयन विवरण: वित्तपोषण स्रोत, भूमि अधिग्रहण तथा आधारभूत निर्णयों जैसे कारकों में अल्पसंख्यक समुदाय के योगदान को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
  • प्रशासन मानदंड
    • अल्पसंख्यक द्वारा प्रशासन अनिवार्य नहीं: न्यायालय ने माना कि किसी शैक्षणिक संस्थान का प्रशासन अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा प्रबंधित किए जाने की आवश्यकता नहीं है।
      • ऐसी संस्था के लिए यह ‘पसंद’ (Choice) का मामला था तथा इसे दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नियुक्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
      • न्यायालय संस्था के प्रशासनिक ढाँचे का मूल्यांकन कर सकते हैं।
      • यदि प्रशासन ‘अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा तथा संवर्द्धन’ करता हुआ प्रतीत नहीं होता है, तो यह ‘उचित रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के लाभ के लिए शैक्षणिक संस्थान स्थापित करना नहीं था’।
    • ऐतिहासिक प्रशासनिक प्रथाएँ: संविधान लागू होने से पहले स्थापित संस्थानों (जैसे- AMU) के लिए, न्यायाधीशों के बहुमत ने माना कि न्यायालयों को यह देखना चाहिए कि प्रशासन ने ‘संविधान के लागू होने की तिथि’ (26 जनवरी, 1950) तक कैसे कार्य किया और क्या संस्थापकों से नियंत्रण ‘समाप्त करने के’ के लिए किसी भी ‘नियामक उपायों’ का इस्तेमाल किया गया था।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के विरुद्ध केंद्र का तर्क

  • मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (MAO) कॉलेज की उत्पत्ति और उद्देश्य: MAO के निर्माण के पीछे ‘मुख्य’ उद्देश्य ‘केवल धार्मिक अध्ययन नहीं बल्कि पश्चिमी कला तथा विज्ञान को बढ़ावा देना’ था।
  • कार्यान्वयन: सभी क्षेत्रों के लोगों ने MAO की स्थापना में योगदान दिया।
    • यहाँ तक ​​कि जब वर्ष 1911 में अलीगढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार सामने आया, तो शाही सरकार इस बात पर स्पष्ट थी कि इस पर नियंत्रण उनका ही रहेगा।
  • AMU अधिनियम के तहत नियंत्रण: केंद्र ने AMU अधिनियम की धारा 13 और 14 पर प्रकाश डालते हुए तर्क दिया कि ये प्रावधान मुस्लिम समुदाय से बाहर के प्राधिकारियों को व्यापक नियंत्रण प्रदान करते हैं।
    • उन्होंने वर्ष 1951 में अधिनियम में किए गए संशोधनों का हवाला दिया, जिसके तहत अनिवार्य धार्मिक शिक्षा तथा विश्वविद्यालय के शासी निकाय में सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व हटा दिया गया, ताकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम, 1920 को संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप बनाया जा सके।
  • AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने का प्रभाव: AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने से इसके प्रशासन एवं प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव आ सकता है, जिससे यह अन्य राष्ट्रीय संस्थानों से अलग हो सकता है।
    • केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि AMU को अपनी धर्मनिरपेक्ष स्थिति को बनाए रखना चाहिए और राष्ट्रीय हित में कार्य करना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ

  • अल्पसंख्यक अधिकारों का सुदृढ़ीकरण: यह निर्णय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए अनुच्छेद-30 के तहत संवैधानिक सुरक्षा को मजबूत करता है।
  • अल्पसंख्यक स्थिति के आकलन के लिए नई रूपरेखा: न्यायालय ने किसी संस्था के अल्पसंख्यक चरित्र को निर्धारित करने के लिए एक ‘समग्र तथा यथार्थवादी’ (Holistic and Realistic) परीक्षण स्थापित किया।
    • इसमें संस्था की उत्पत्ति, इसके गठन के उद्देश्य और इसके प्रशासन के तरीके, विशेष रूप से 26 जनवरी, 1950 को, जिस दिन संविधान लागू हुआ, पर प्रकाश डाला गया है।
  • AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर प्रभाव: इस निर्णय से AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता मिलने का रास्ता साफ हो गया है तथा यह पुष्टि हो गई है कि इसकी स्थापना मूल रूप से मुस्लिम समुदाय की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की गई थी।
    • इस अल्पसंख्यक दर्जे के साथ, विश्वविद्यालय मुस्लिम छात्रों के लिए 50% तक आरक्षण प्रदान कर सकता है।
    • इसे संविधान के अनुच्छेद-15(5) के तहत अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (Economically Weaker Sections- EWS) पर लागू सामान्य आरक्षण नीतियों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।
    • AMU को प्रवेश तथा स्टाफ नियुक्तियों सहित अपने मामलों के प्रबंधन में अधिक स्वायत्तता प्राप्त होगी।
  • अन्य संस्थाओं पर प्रभाव: यह संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे के समान दावे वाले संस्थानों के लिए एक मानकीकृत ढाँचा प्रदान करता है।
    • न्यायालय ने सुझाव दिया है कि संविधान के लागू होने (वर्ष 1950 में) के बाद किए गए किसी भी विनियामक परिवर्तन, जो संस्था के मूल अल्पसंख्यक चरित्र को बदलते हैं, की जाँच की जा सकती है।
      • जिन संस्थाओं में ऐसे परिवर्तन हुए हैं, उन्हें अपना अल्पसंख्यक दर्जा बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • सरकारी नियंत्रण और वित्तपोषण: निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि सरकारी वित्तपोषण या नियंत्रण से किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा स्वतः समाप्त नहीं हो जाता, जब तक कि वह अल्पसंख्यक समुदाय की शैक्षिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहे।
    • इससे यह प्रभावित हो सकता है कि सरकार ऐसे संस्थानों के साथ किस प्रकार संवाद करती है तथा उन्हें किस प्रकार समर्थन देती है।

आगे की राह

  • अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश: सरकार भारत भर में अल्पसंख्यक संस्थानों को मान्यता देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के मानदंडों के आधार पर एक स्पष्ट विधायी ढाँचा बना सकती है।
  • संस्थागत स्वायत्तता के लिए समर्थन: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि AMU जैसे संस्थानों को जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए अपने शैक्षिक और प्रशासनिक कार्यक्रम चलाने की स्वायत्तता का लाभ मिलता रहे।
  • सरकारी वित्तपोषण और भागीदारी पर कानूनी स्पष्टता: एक कानूनी ढाँचा स्थापित किया जाना चाहिए, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि संस्थान की अल्पसंख्यक स्थिति या स्वायत्तता से समझौता किए बिना किस सीमा तक राज्य वित्तपोषण या अन्य प्रकार का समर्थन प्रदान किया जा सकता है।

निष्कर्ष

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद-30 की व्याख्या को नया रूप देता है और भारत में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों पर चल रही बहस में एक निर्णायक क्षण को चिह्नित करता है।

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