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सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्वोत्तर राज्यों के परिसीमन में देरी पर सवाल उठाए

Lokesh Pal November 21, 2024 01:05 7 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 के राष्ट्रपति के आदेश के बाद अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड के लिए परिसीमन प्रक्रिया में देरी के बारे में पूछताछ की, जिसमें स्थगन अधिसूचना को रद्द कर दिया गया था।

संबंधित तथ्य 

  • न्यायिक अवलोकन: सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन वापस लिए जाने के तुरंत बाद प्रक्रिया शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि परिसीमन एक वैधानिक दायित्व है, अधिसूचना रद्द होने के बाद इसका अनुपालन आवश्यक है।
  • याचिकाकर्ताओं का पक्ष: परिसीमन माँग समिति ने एक याचिका दायर कर न्यायालय से हस्तक्षेप करने और चार पूर्वोत्तर राज्यों में परिसीमन सुनिश्चित करने का आग्रह किया, क्योंकि राष्ट्रपति द्वारा पहले ही स्थगन हटा लिया गया है।
  • चुनाव आयोग का रुख
    • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने तर्क दिया कि परिसीमन केवल केंद्र के निर्देश पर ही आगे बढ़ सकता है।
    • न्यायालय ने इस रुख पर सवाल उठाते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा स्थगन वापस लेना परिसीमन शुरू करने के लिए पर्याप्त है।
  • केंद्र का दृष्टिकोण: मणिपुर में प्रतिकूल परिस्थितियों और अन्य राज्यों के लिए चल रही चर्चाओं का हवाला दिया गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी 2025 में अगली सुनवाई के दौरान प्रगति पर अपडेट देने का निर्देश दिया।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) के बारे में

  • यह परिसीमन करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय है।
  • यह भारत के चुनाव आयोग के साथ मिलकर बिना किसी कार्यकारी प्रभाव के कार्य करता है।
  • नियुक्त: परिसीमन आयोग अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा।
  • संरचना: एक सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश, भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त।
  • संवैधानिक प्रावधान: आयोग के आदेश अंतिम हैं और किसी भी न्यायालय के समक्ष उन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता क्योंकि इससे चुनाव अनिश्चित काल के लिए रुक जाएगा।

परिसीमन (Delimitation) के बारे में

  • परिसीमन, जनसंख्या में परिवर्तन को दर्शाने के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने का कार्य है।
  • परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के समान वर्गों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना है।
  • निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन समय-समय पर न केवल जनसंख्या में वृद्धि बल्कि उसके वितरण में परिवर्तन को दर्शाने के लिए किया जाता है।

परिसीमन की प्रक्रिया

  • अनुच्छेद-82: संसद को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम पारित करना होता है। अधिनियम लागू होने के बाद, केंद्र सरकार परिसीमन आयोग का गठन करती है।
  • अनुच्छेद-170: प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार, राज्यों को भी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
  • आयोग को निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं को इस तरह से निर्धारित करना होता है कि सभी सीटों की जनसंख्या, जहाँ तक संभव हो, समान हो।
  • आयोग को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की पहचान करने का भी कार्य सौंपा गया है।

पिछले परिसीमन अभ्यास

  • वर्ष 1952, 1962, 1972 और वर्ष 2002 के अधिनियमों के तहत चार बार परिसीमन आयोगों (वर्ष 1952, वर्ष 1963, वर्ष 1973 और वर्ष 2002) की स्थापना की गई है।
  • वर्ष 1981, 1991 और वर्ष 2001 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं हुआ।
  • हालाँकि, वर्ष 2002 के अधिनियम ने कुल लोकसभा सीटों या विभिन्न राज्यों के बीच उनके बँटवारे में कोई बदलाव नहीं किया।
    • इसने सुरक्षा जोखिमों के कारण असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर सहित कुछ राज्यों को इस अभ्यास से बाहर रखा।
  • केंद्र सरकार ने वर्ष 2020 में इन चार राज्यों के साथ-साथ केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग का पुनर्गठन किया।

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