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उच्चतम न्यायालय ने बेनामी कानून संशोधन पर अपना वर्ष 2022 का निर्णय वापस लिया

Lokesh Pal October 21, 2024 03:06 67 0

संदर्भ 

उच्चतम न्यायालय की एक विशेष पीठ ने वर्ष 2022 के अपने निर्णय को वापस ले लिया, जिसमें वर्ष 2016 में बेनामी संपत्ति कानून में किए गए प्रावधानों एवं संशोधनों को ‘असंवैधानिक और स्पष्ट रूप से मनमाना’ घोषित किया गया था।

संबंधित तथ्य

  • केंद्र सरकार और आयकर उपायुक्त (बेनामी निषेध) [Deputy Commissioner of Income Tax (Benami Prohibition)] द्वारा इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने के लिए समीक्षा याचिकाएँ दायर की गईं।

  • इसके परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने समीक्षा याचिका को अनुमति दे दी।

बेमानी कानून पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

  • क्या बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 द्वारा संशोधित 1988 अधिनियम का भावी प्रभाव था?
    • संभावित प्रभाव का अर्थ है कि कोई कानून या संविधि केवल उन घटनाओं या आचरण पर लागू होती है, जो कानून के प्रभावी होने के बाद घटित होते हैं।
  • वर्ष 2022 का निर्णय केंद्र की अपील पर सुनाया गया, जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि वर्ष 1988 के अधिनियम में वर्ष 2016 में किया गया संशोधन भावी प्रभाव से लागू होगा।
    • केंद्र ने तर्क दिया था कि वर्ष 2016 का अधिनियम पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा।

बेनामी लेनदेन (Benami Transaction) क्या है?

अधिनियम बेनामी लेनदेन को ऐसे लेनदेन के रूप में परिभाषित करता है जहाँ:-

  • संपत्ति किसी व्यक्ति के पास हो या उसे हस्तांतरित किया गया हो, लेकिन किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसका प्रावधान किया गया हो या उसका भुगतान किया गया हो।
  • लेनदेन किसी काल्पनिक नाम से किया गया हो।
  • मालिक को संपत्ति के स्वामित्व के बारे में जानकारी नहीं है या वह जानकारी से इनकार करता है।
  • संपत्ति के लिए प्रतिफल प्रदान करने वाले व्यक्ति का पता नहीं लगाया जा सकता है।

वर्ष 2016 में पेश किए गए संशोधन

  • पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू: वर्ष 2016 के अधिनियम की धारा 3(3) के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी बेनामी लेनदेन में शामिल होता है तो उसे तीन वर्ष के कारावास की सजा को बढ़ाकर सात वर्ष कर दिया गया है और संपत्ति के उचित बाजार मूल्य के 25% तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
    • केंद्र को बेनामी लेनदेन से संबंधित ‘किसी भी संपत्ति’ को जब्त करने का अधिकार दिया गया।
  • अगस्त 2022 का निर्णय: बेनामी संपत्तियों की जब्ती [धारा 3 (2) और 5] के संबंध में वर्ष 1988 के अधिनियम में प्रावधान असंवैधानिक है और उसी पर वर्ष 2016 में संशोधित अधिनियम में प्रावधान केवल भावी दृष्टि से लागू किया जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि: बेनामी कानून पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं होता, इसलिए अधिकारी कानून लागू होने से पहले किए गए लेनदेन के लिए आपराधिक मुकदमा या जब्ती की कार्यवाही शुरू अथवा जारी नहीं रख सकते।

अनुच्छेद 20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण

  • इसमें तीन प्रावधान हैं:-
    • कोई पूर्वव्यापी कानून नहीं: किसी भी व्यक्ति को उस कार्य के समय प्रवृत्त कानून के उल्लंघन के अलावा किसी अन्य अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा, न ही उस पर उस कार्य के समय प्रवृत्त कानून द्वारा निर्धारित दंड से अधिक दंड लगाया जाएगा।
    • कोई दोहरा खतरा नहीं: किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
    • कोई आत्म-दोष नहीं: किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम 2016 [Benami Transactions (Prohibition) Amendment Act 2016] के बारे में

  • अधिनियम ने बेनामी लेनदेन के संबंध में पूछताछ या जाँच करने के लिए चार प्राधिकरण स्थापित किए:
    • आरंभकर्ता अधिकारी (Initiating Officer): प्रारंभिक जाँच करता है।
    • अनुमोदन प्राधिकारी (Approving Authority): आरंभकर्ता अधिकारी के निर्णय की समीक्षा करता है।
    • प्रशासक (Administrator): बेनामी कानून के तहत जब्त की गई संपत्तियों का प्रबंधन करता है।
    • न्यायनिर्णयन प्राधिकारी (Adjudicating Authority): बेनामी लेनदेन पर निर्णय को अंतिम रूप देता है।
  • अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal): न्यायाधिकरण के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करता है।
  • अपील: अपीलीय न्यायाधिकरण के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

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