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अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम

Lokesh Pal January 31, 2025 03:50 159 0

संदर्भ

इन्फोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन और भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science-IISc) के सदस्यों के विरुद्ध अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

संबंधित तथ्य

  • शिकायतकर्ता बोवी समुदाय (अनुसूचित जाति) से संबंधित है। 
  • वह भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में सतत् प्रौद्योगिकी केंद्र में संकाय सदस्य था। 
  • शिकायत के अनुसार, आरोपी ने वर्ष 2014 में उसे सेवा से बर्खास्त करने के लिए एक फर्जी हनी ट्रैप मामले का प्रयोग किया। 
  • एक संसदीय पैनल ने अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अत्याचारों के मामलों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए आवश्यक तंत्र स्थापित करने में कई राज्यों की विफलता पर भी चिंता जताई है।

अनुसूचित जातियाँ 

  • अनुसूचित जातियाँ सामाजिक रूप से वंचित समूहों को संदर्भित करती हैं, जिन्हें ऐतिहासिक भेदभाव, विशेष रूप से अस्पृश्यता का सामना करना पड़ा है।
  • अनुच्छेद-366(24) के तहत “अनुसूचित जातियाँ” से अभिप्राय ऐसी जातियों, नस्लों या जनजातियों से है, जिन्हें अनुच्छेद-341 के तहत अनुसूचित जातियाँ माना जाता है।
    • अनुच्छेद-341 के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से कुछ जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित कर सकते हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अनुसूचित जातियों की आबादी 16.6 करोड़ है। यह देश की आबादी का 16% है।

अनुसूचित जनजातियाँ

  • अनुसूचित जनजातियाँ स्वदेशी समुदाय हैं, जिनकी अलग सांस्कृतिक पहचान, भौगोलिक अलगाव और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन है।
  • अनुच्छेद-366 (25) के तहत अनुसूचित जनजातियों से अभिप्राय ऐसी जनजातियों या आदिवासी समुदाय से है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद-342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
    • अनुच्छेद-342 के अनुसार, राष्ट्रपति राज्यपाल के परामर्श के बाद किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित कर सकते हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, ST की आबादी 10.43 करोड़ के करीब है। यह देश की कुल आबादी का 8% से भी अधिक है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का उद्देश्य अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध उन व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को रोकना है, जो इन समुदायों से संबंधित नहीं हैं।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

  • अत्याचार निवारण: यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को भेदभाव, हिंसा तथा शोषण से बचाया जाए।
  • अपराधियों के लिए सजा: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध अत्याचार करने वालों को कठोर कानूनी परिणाम भुगतने होंगे।
  • कार्यान्वयन
    • इस अधिनियम को राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा लागू किया जाता है।
    • केंद्र सरकार इसके कार्यान्वयन के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के तहत वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • नियम बनाने की शक्ति: केंद्र सरकार इस अधिनियम के प्रभावी अनुप्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए नियम बना सकती है।
  • अग्रिम जमानत: अधिनियम के तहत, अपराधियों को अग्रिम जमानत का प्रावधान उपलब्ध नहीं है।
  • SC/ST के अलावा अन्य पर लागू: यह अधिनियम SC और ST के बीच या इन समुदायों के भीतर व्यक्तियों के बीच अपराधों को शामिल नहीं करता है।
  • जाँच प्रक्रिया
    • इस अधिनियम के तहत सभी अपराध संज्ञेय हैं (पुलिस बिना पूर्व अनुमति के गिरफ्तार कर सकती है)।
    • जाँच अधिकारी: केवल पुलिस उपाधीक्षक (Deputy Superintendent of Police-DSP) या उससे ऊपर की रैंक का अधिकारी ही इस अधिनियम के तहत मामलों की जाँच कर सकता है।
    • जाँच के लिए समय-सीमा: जाँच 30 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए और रिपोर्ट राज्य पुलिस निदेशक को प्रस्तुत की जानी चाहिए।

SC/ST अधिनियम के अंतर्गत अत्याचार या दुर्व्यवहार

  • गलत तरीके से रोकना और जबरन श्रम: किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से प्रतिबंधित करना या गिरफ्तार करना या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके श्रम का शोषण करना।
  • हमला और आपराधिक बल: किसी व्यक्ति को अपमानित करने, डराने या अपमानित करने के इरादे से आपराधिक बल या धमकियों का उपयोग करना अथवा शारीरिक चोट के लिए भय, चिंता अथवा उकसावे का कारण बनना।
  • आय और संपत्ति से वंचित करना: किसी व्यक्ति को उसकी आय या संपत्ति से गलत तरीके से वंचित करना, यह जानते हुए कि ऐसे कृत्यों से भय, चिंता, उत्तेजना या अपमान हो सकता है।
  • भूमि और संपत्ति का अवैध रूप से अधिकार: किसी SC/ST व्यक्ति की भूमि, चल या अचल संपत्ति को अवैध रूप से छीनना।
  • जबरन वसूली और धोखाधड़ी से प्रेरित करना: किसी व्यक्ति को पैसे या मूल्यवान संपत्ति देने के लिए मजबूर करना या धोखा देना तथा पैसे, संपत्ति अथवा लाभ देने का लालच देना।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2015

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 को निम्नलिखित प्रावधानों के साथ अधिनियम को और अधिक कठोर बनाने के लिए प्रस्तुत किया गया:
    • अत्याचारों की पहचान: इसने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अपराध के रूप में “अत्याचार” के अधिक मामलों को मान्यता दी।
    • न्यायालयों की स्थापना: इसने POA अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों और सरकारी अभियोजकों की स्थापना का प्रावधान किया।
    • जानबूझकर लापरवाही: अधिनियम ने शिकायत के पंजीकरण से लेकर इस अधिनियम के तहत कर्तव्य की उपेक्षा तक सभी स्तरों पर लोक सेवकों के संदर्भ में ‘जानबूझकर लापरवाही’ शब्द को परिभाषित किया।

SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018

  • यह अधिनियम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त करने तथा अधिनियम के मूल प्रावधानों को बहाल करने के लिए पारित किया गया था।
  • FIR के लिए कोई पूर्व स्वीकृति नहीं: SC और ST के विरुद्ध अत्याचार के मामलों में FIR दर्ज करने के लिए किसी भी प्राधिकरण से पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
  • कोई प्रारंभिक जाँच नहीं: संशोधन FIR दर्ज करने या गिरफ्तारी करने से पहले प्रारंभिक जाँच की आवश्यकता को हटा देता है।
  • कोई अग्रिम जमानत नहीं: अधिनियम के तहत आरोपी व्यक्तियों को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहाँ न्यायालय को कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है।
  • निवारक उपायों को मजबूत करना: संशोधन में मुकदमों में तेजी लाने और समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अदालतों तथा अनन्य विशेष अदालतों की स्थापना को अनिवार्य बनाया गया है।
    • यह पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास उपायों की आवश्यकता पर भी जोर देता है।

SC/ST  अधिनियम के दुरुपयोग पर न्यायिक टिप्पणियाँ

  • सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018) में, सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि इस अधिनियम का दुरुपयोग निर्दोष नागरिकों और लोक सेवकों को ब्लैकमेल करने के लिए किया जा रहा है।
  • न्यायालय ने निम्नलिखित सुरक्षा उपाय प्रस्तुत किए
    • लोक सेवकों को केवल उनके नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति से ही गिरफ्तार किया जा सकता है।
    • FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जाँच यह परीक्षण करने के लिए की जाती है कि मामला वास्तविक है या नहीं।
    • ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत की अनुमति दी जाती है, जहाँ शिकायत दुर्भावनापूर्ण (झूठी या प्रेरित) पाई जाती है।

प्रतिक्रिया के बाद संशोधन (2018-2019)

  • दलित संगठनों के विरोध के बाद सरकार ने संशोधन के जरिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया।

SC/ST अधिनियम का दुरुपयोग

  • व्यक्तिगत बदला लेने के लिए झूठी शिकायतें: कुछ व्यक्ति व्यक्तिगत विवादों को निपटाने, बदला लेने या दूसरों को परेशान करने के लिए झूठे मामले दर्ज करते हैं।
    • अधिनियम के तहत आरोप लगने पर अक्सर तत्काल गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई होती है, भले ही दावे असत्यापित हों।
  • वित्तीय लाभ के लिए शोषण: कभी-कभी आरोपी व्यक्तियों या संस्थाओं से पैसे ऐंठने के लिए झूठे आरोप लगाए जाते हैं।
  • राजनीतिक और सामाजिक प्रतिशोध: राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और सामाजिक संघर्षों में विरोधियों को झूठे तरीके से फँसाने के लिए इस अधिनियम का दुरुपयोग किया गया है।
    • भूमि विवाद, व्यक्तिगत दुश्मनी और संपत्ति के मुद्दों को कभी-कभी जाति-संबंधी अत्याचारों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

SC और ST अधिनियम की न्यायिक व्याख्या

  • कनुभाई एम. परमार बनाम गुजरात राज्य (2000): गुजरात उच्च न्यायालय ने माना कि उन मामलों में SC/ST अधिनियम लागू नहीं किया जा सकता है, जहाँ आरोपी और पीड़ित दोनों SC/ST समुदायों से संबंधित हैं।
    • यह अधिनियम SC/ST को उनके समुदायों के बाहर के व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों से बचाने के लिए है।
  • राजमल बनाम रतन सिंह (1988): पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने माना कि SC/ST अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालय विशेष रूप से इस अधिनियम से संबंधित मामलों के लिए नामित हैं।
    • इन विशेष न्यायालयों को नियमित मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालयों के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।
  • अरुमुगम सर्वई बनाम तमिलनाडु राज्य (2011): भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का अपमान करना SC/ST अधिनियम के तहत अपराध है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने SC/ST व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा के महत्त्व की पुष्टि की।
  • सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018): इस व्यापक रूप से आलोचना किए गए निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत का बहिष्कार पूर्ण नहीं है।
    • यदि आरोप झूठे या मनगढ़ंत प्रतीत होते हैं तो न्यायालय अग्रिम जमानत दे सकता है।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट

  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अत्याचारों से निपटने के लिए कई राज्य सरकारों के प्रयासों में बड़ी कमियों को उजागर किया गया है।

संसदीय पैनल द्वारा उठाई गई प्रमुख चिंताएँ

  • केंद्रीय सहायता के बावजूद वित्तीय उपयोग में कमी: केंद्रीय स्तर पर कोई वित्तीय बाधा न होने के बावजूद, कई राज्य उपलब्ध निधियों का उपयोग करने या अनुसूचित जातियों के विरुद्ध अत्याचारों को दूर करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने में विफल रहते हैं। 
    • इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए केंद्रीय संसाधनों के समर्थन के साथ राज्य सरकारों द्वारा “ईमानदार और समन्वित” प्रयासों की आवश्यकता होती है। 
    • मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों को विशेष रूप से निधि उपयोग में पिछड़ने और कार्यान्वयन लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहने के लिए उल्लेख किया गया था।
  • कल्याणकारी योजनाओं का खराब कार्यान्वयन: अनुसूचित जातियों के लिए ‘पोस्ट-मैट्रिक’ छात्रवृत्ति योजना और मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Mechanised Sanitation Ecosystem-NAMASTE) का अपर्याप्त उपयोग किया गया है।
    • बाधाओं में शामिल हैं:
      • अधूरे दस्तावेज
      • आधार सीडिंग में त्रुटियाँ
      • राज्य अंशदान जारी करने में देरी
    • समिति ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा नियमित समीक्षा और राज्य स्तरीय कार्यशालाओं सहित कड़ी निगरानी का आग्रह किया।
  • हाशिए पर स्थित समुदायों से संबंधित कार्यक्रमों का असमान कार्यान्वयन: पैनल ने अन्य हाशिए पर पड़े समूहों से संबंधित कार्यक्रमों के असमान कार्यान्वयन पर भी चिंता जताई, जिनमें शामिल हैं:
    • SMILE पहल (ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भिखारियों के लिए)
    • SHREYAS योजना (उच्च शिक्षा में अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए)।
  • निम्नलिखित योजनाओं में मापनीय लक्ष्यों का अभाव
    • प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना
    • अनुसूचित जातियों और पिछड़ी जातियों के लिए उद्यम पूँजी कोष
  • कल्याणकारी कार्यक्रमों के अपर्याप्त प्रचार के कारण पात्र लाभार्थियों में जागरूकता कम है।

आगे की राह

  • कड़ी निगरानी: केंद्र सरकार को गैर-निष्पादनकारी राज्यों पर सख्त शर्तें लागू करनी चाहिए।
    • विश्व बैंक का प्रोग्राम-फॉर-रिजल्ट्स (PforR) वित्तपोषण मॉडल सीधे परिणाम प्राप्त करने के लिए संवितरण को जोड़ता है। भारत CSS के लिए एक समान मॉडल अपना सकता है।
  • समय पर निधि प्रस्ताव: राज्यों को केंद्रीय निधि प्राप्त करने के लिए उचित और आवधिक प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहिए।
    • सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS) ने पहले ही निधि ट्रैकिंग में सुधार किया है। प्रस्ताव प्रस्तुत करने को शामिल करने के लिए इसके दायरे का विस्तार करने से प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो सकती है।
  • सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना: राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं के सुचारू क्रियान्वयन के लिए सक्रिय रूप से अपना योगदान देना चाहिए।
  • सफाई कर्मचारियों के लिए सहायता में सुधार: पैनल ने नमस्ते कार्यक्रम के तहत सफाई कर्मचारियों के लिए सहायता बढ़ाने का आग्रह किया, जिसमें शामिल हैं:
    • बेहतर प्रशिक्षण
    • स्वास्थ्य बीमा कवरेज में वृद्धि।
  • कल्याणकारी योजनाओं की पहुँच का विस्तार: प्रक्रियागत देरी को संबोधित करते हुए सरकारी योजनाओं की पहुँच का विस्तार करना, जैसे कि मुफ्त कोचिंग और फेलोशिप कार्यक्रमों को प्रभावित करने वाली देरी।
    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणाली ने पहले ही PM-किसान जैसी योजनाओं में लीकेज को कम कर दिया है।
  • आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता बढ़ाना: रिपोर्ट ने आउटरीच को बेहतर बनाने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार (Information, Education, and Communication-IEC) अभियानों को बढ़ाने का सुझाव दिया।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान ने लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का सफलतापूर्वक उपयोग किया। अन्य योजनाओं के लिए भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिए विधायी उपाय

  • संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-17 और 23 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की रक्षा का प्रावधान करते हैं।
  • सीटों का आरक्षण: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-330 और 332 क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित करते हैं।
  • शिक्षा और आर्थिक हितों के लिए विशेष प्रावधान: भारत के संविधान के अनुच्छेद-46 के अनुसार, राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना होगा।
  • नियुक्तियों के लिए विशेष प्रावधान: भारत के संविधान के अनुच्छेद-335 के अनुसार राज्य को सेवाओं और पदों पर नियुक्तियाँ करते समय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार करना होगा।
  • संसद के अधिनियम: नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की रक्षा करते हैं।
    • वन अधिकार अधिनियम, 2006: वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है।

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