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मैंग्रोव वनों के संरक्षण हेतु योजनाएँ

Lokesh Pal February 07, 2024 03:11 822 0

संदर्भ 

केंद्र सरकार मैंग्रोव वनों (Mangrove Forests) के संरक्षण के लिए आवश्यक पहल कर रही है।

संबंधित तथ्य 

  • केंद्र सरकार ने भारत के तटीय राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव वनों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए कई स्तर पर कार्यक्रम शुरू किए हैं।
  • इस पहल में प्रचारात्मक कारवाई के साथ ही संचालक संस्थाओं को भी शामिल किया गया है।
  • प्रचारात्मक कार्रवाइयों एवं जागरूकता अभियानों को ‘मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों का संरक्षण एवं प्रबंधन’ (Conservation and Management of Mangroves and Coral Reefs) नामक एक कार्यक्रम के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • यह अभियान राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम (National Coastal Mission Programme) के तहत संचालित हो रहा है जो ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest & Climate Change) के अंतर्गत आता है।

मैंग्रोव वन (Mangrove Forest)

  • मैंग्रोव वनों को मैंग्रोव दलदल, मैंग्रोव झाड़ियाँ या मंगल (Mangals) के नाम से भी जाना जाता है।
  • ये वन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अक्षांशीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • कम तापमान मैंग्रोव वनों की वृद्धि एवं विकास के लिए अनुकूल वातावरण नहीं है।
  • पृथ्वी की कुल सतह के लगभग 0.1% भाग पर ये वन पाए जाते हैं।
  • वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव वनों का कुल क्षेत्रफल 4,992 वर्ग किलोमीटर है।
  • सुंदरवन, विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है। यह वन बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर निर्मित विशाल डेल्टा पर अवस्थित है।

मैंग्रोव वन की विशेषताएँ

  • ये वन, भूमि एवं समुद्र के मुहाने पर पाए जाते हैं।
  • मैंग्रोव वन के वृक्ष जलयुक्त मृदा (Waterlogged Soil) में उगते हैं।
    • इस प्रकार की मृदा न्यूमेटोफोर्स (Pneumatophores) के माध्यम से सीधे वायुमंडल से गैसों को अवशोषित करने में सक्षम है।
  • इस वन के वृक्षों पर खारे जल (Saline Water) का नकरात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • इन वृक्षों की वायवीय जड़ें (Aerial root) होती हैं, जो इन्हें चरम वातावरण के लिए अनुकूल बनाती हैं।

भारत में मैंग्रोव वनों के लिए खतरा

  • तीव्र शहरीकरण और विकासात्मक गतिविधियों के कारण मैंग्रोव वन क्षेत्रों को क्षति हुई है।
  • मैंग्रोव संसाधनों का अत्यधिक दोहन इस पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर सकता है।
  • मैंग्रोव वनों में जारी अवैध पर्यावरणीय गतिविधियों ने भी इसकी जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
  • जलवायु परिवर्तन जैसे समुद्र के जलस्तर में वृद्धि भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यह मैंग्रोव वन क्षेत्र को जलमग्न कर सकता है।
  • औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जित जहरीले पदार्थों के प्रवाह से मैंग्रोव वन क्षेत्रों में वृक्षों, जल और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

महत्त्व

  • अपनी कार्बन संगृहीत करने की विशिष्ट क्षमता के कारण यह वन अति महत्त्वपूर्ण है।
  • ये वन समुद्री जैव विविधता के लिए अनुकूल प्रजनन क्षेत्र प्रदान करते हैं तथा इस क्षेत्र में मछली पालन/ उत्पादन विशेष तौर पर होता है।

भारत में मैंग्रोव वनों का वितरण

  • भारत में सर्वाधिक मैंग्रोव वन ओडिशा, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पाए जाते हैं।
    • इसके अलावा, मैंग्रोव वन पश्चिम बंगाल, गुजरात तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह आदि में भी पाए जाते हैं।

मैंग्रोव वन के संरक्षण के कारण

  • मैंग्रोव वनों के संरक्षण से तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के हितों की रक्षा की जा सकती है।
  • प्रत्येक वर्ष मैंग्रोव वन $65 बिलियन की संपत्ति की क्षति को रोकते हैं। ये वन 15 मिलियन लोगों को बाढ़ के जोखिम से बचाते हैं।
  • इसके अलावा, मैंग्रोव वन ग्लोबल वार्मिंग तथा अन्य जलवायु संबंधी घटनाओं को संबोधित करने में बहुत सहायक है।

मिष्टी योजना (MISHTI Scheme)

  • मिष्टी का सीधा तात्पर्य तटरेखा आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल(Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Incomes) से है।
  • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2023 में भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest & Climate Change) द्वारा की गई थी।
  • मिष्टी योजना के तहत, भारत सरकार वृक्षारोपण के लिए समुद्र तट एवं लवणीय भूमि पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
  • इस योजना का लक्ष्य लगभग 540 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले मैंग्रोव वन को पुनर्स्थापित और संरक्षित करना है।
  • यह योजना वर्ष 2023-24 में पाँच वर्षों के लिए शुरू की गई है, जिसके अंतर्गत 9 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया जाएगा।

मैंग्रोव वनों के संरक्षण में चुनौतियाँ

  • जलवायु परिवर्तन, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि तथा भूमि दोहन के कारण मैंग्रोव वनों के संरक्षण में खतरा बढ़ गया है।
    • पिछले तीन दशकों में केरल का लगभग 95% मैंग्रोव वन क्षेत्र नष्ट हो गया है।
  • कृषि, पर्यटन, जलीय कृषि और अनियंत्रित शहरी विकास ने भी मैंग्रोव वनों की क्षति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • अपर्याप्त आर्थिक अनुदान भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि ऐसी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आर्थिक सहायता और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।

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