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विज्ञान संचार (science communication)

Samsul Ansari January 18, 2024 06:08 235 0

संदर्भ

कोविड-19 महामारी ने भारत में वैज्ञानिक जानकारी के विश्वसनीय संचार में गंभीर कमियों [विशेष रूप से सटीक डेटा रिपोर्टिंग, वैक्सीन को लेकर संदेह (Vaccine Hesitancy) और संक्रमण के पुनर्प्रसार की भविष्यवाणी इत्यादि] को उजागर किया है।

भारत में विज्ञान संचार की स्थिति

  • वर्तमान में, भारत में विज्ञान संचार में औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण अच्छी तरह से स्थापित नहीं है।
  • जबकि कुछ संस्थान, जैसे NIScPR, पीएच.डी. की डिग्री प्रदान करते हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार में, अन्य संगठन छोटे प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करते हैं।
  • वैश्विक स्तर पर विज्ञान संचार अनुसंधान की उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, भारत ने इस क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है।

विज्ञान संचार (Science Communication) के बारे में

  • विज्ञान संचार में विज्ञान से संबंधित संचार गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है, जिसमें वैज्ञानिक कार्य, उसके परिणाम और नैतिक, सामाजिक या राजनीतिक स्तरों पर इसके निहितार्थ पर चर्चा शामिल है।

भारत में विज्ञान संचार की आवश्यकता

  • वैज्ञानिक जानकारी के प्रसार में: भारत तकनीकी रूप से आगे बढ़ रहा है और सूचना युग में प्रवेश कर रहा है, इसलिए वैज्ञानिक जानकारी को गैर-वैज्ञानिक समुदाय तक फैलाने की आवश्यकता है।
    • इससे विज्ञान से जुड़े मिथकों को दूर करने और साक्ष्य आधारित ज्ञान को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • स्थानीय चुनौतियों को संबोधित करने में: विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा चिंताओं को संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • अगली पीढ़ी को प्रेरित करने में: भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की सफलता की कहानियों को साझा करने से युवाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग तथा गणित (STEM) क्षेत्र में कॅरियर बनाने एवं राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करने में मदद मिलेगी।
  • तकनीकी कौशल के प्रदर्शन में: भारतीय प्रौद्योगिकी के वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों, जैसे- अंतरिक्ष मिशन, चिकित्सा सफलताएँ या कृषि नवाचार, विज्ञान को दैनिक जीवन से जोड़ना, प्रदर्शित करने की आवश्यकता है।

भारत सरकार के विज्ञान संचार के संदर्भ में प्रयास

  • प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय (PID) की स्थापना: वर्ष 1951 में, भारत सरकार ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के तहत प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय की स्थापना की।
    • पीआईडी ने विज्ञान संचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा हिंदी (विज्ञान प्रगति), अंग्रेजी (साइंस रिपोर्टर), और उर्दू (साइंस की दुनिया) में राष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाएँ प्रकाशित कीं।
  • बिड़ला औद्योगिक और प्रौद्योगिकी संग्रहालय: वर्ष 1959 में, सरकार ने भारत की वैज्ञानिक विरासत को परिभाषित करने और वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कलकत्ता में संग्रहालय की स्थापना की।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए संवैधानिक संशोधन: वर्ष 1976 में संविधान में 42वें संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद-51A (h) जोड़ा गया, जिसमें कहा गया कि भारत के प्रत्येक नागरिक को वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करना चाहिए।
  • पंचवर्षीय योजना में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने का समावेश: छठी पंचवर्षीय योजना (1980-1985) के दौरान, भारत में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के महत्त्व को पहचाना गया।
    • इस अवधि के दौरान इन उद्देश्यों को संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद (NCSTC) की स्थापना की गई थी।
  • विज्ञान प्रसार का निर्माण: वर्ष 1989 में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने विज्ञान प्रसार की स्थापना की, जो देश में विज्ञान संचार और शिक्षा को बढ़ाने के लिए समर्पित एक स्वायत्त संगठन है।

भारत में समकालीन विज्ञान संचार हस्तक्षेप

  • सीएसआईआर- राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (CSIR-NIScPR) की स्थापना
    • वर्ष 2021 में, भारत सरकार ने दो मौजूदा संस्थानों का विलय करके CSIR-NIScPR बनाया, जो विज्ञान संचार के लिए एक समकालीन दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • राष्ट्रीय विज्ञान निधि एजेंसियों की भागीदारी
    • राष्ट्रीय विज्ञान वित्तपोषण एजेंसियों के भीतर विज्ञान संचार प्रभाग सक्रिय रूप से संचार गतिविधियों, जैसे- प्रेस विज्ञप्ति जारी करना, सोशल मीडिया अभियान चलाना और प्रदर्शनियों और लोकप्रिय व्याख्यानों का समर्थन करना, में लगे हुए हैं ।
  • योगदानकर्ताओं की विविध शृंखला
    • विज्ञान संचार प्रयास सरकारी पहल तक सीमित नहीं हैं।
    • अनुसंधान संगठन, विश्वविद्यालय, सामाजिक उद्यम, गैर-लाभकारी और पेशेवर समूह विज्ञान संचार गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
    • एक्स-इंडियन साइंस कम्युनिकेशन सोसायटी (Ex-Indian Science Communication Society) एक स्वैच्छिक और गैर-सरकारी संगठन है, जो भारतीय जनता के बीच विज्ञान और वैज्ञानिक सोच को लोकप्रिय बनाता है।

आगे की राह

  • औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण: भारत के विविध संदर्भों में कुशल संचारकों (Proficient communicators) के कैडर को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान संचार में मास्टर्स और डॉक्टरेट कार्यक्रम शुरू करना चाहिए।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ संचार को एकीकृत करना: इसमें विज्ञान संचार में वैज्ञानिकों को शामिल करना और अनुसंधान में संचार को एकीकृत करना तथा वैज्ञानिकों के योगदान को पहचानना एवं पुरस्कृत करना शामिल है।
  • विज्ञान संचार ढाँचे के लिए व्यावसायिक संगठन: एक पेशेवर संगठन स्थापित करने की आवश्यकता है, जो व्यापक विज्ञान संचार ढाँचे तैयार करने के लिए सरकारी निकायों, हितधारकों और विशेषज्ञों के साथ सहयोग करे।
    • इन रूपरेखाओं में विविध विषयों, मीडिया प्रारूपों और जनसांख्यिकीय समूहों को शामिल किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

वर्तमान की कमियों को दूर करके और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाकर, भारत के पास एक मजबूत विज्ञान संचार पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने का अवसर है, जो वैज्ञानिक समुदाय और समाज के बीच की खाई को कम कर सकता है।

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