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वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर सबसे बड़ी कोरल कॉलोनी की खोज की

Lokesh Pal November 18, 2024 03:00 31 0

संदर्भ

अक्टूबर 2024 के एक अभियान के दौरान ‘नेशनल ज्योग्राफिक’ की ‘प्रिस्टीन सीज’ (Pristine Seas) के शोधकर्ताओं द्वारा दक्षिण-पश्चिम प्रशांत महासागर में अवस्थित सोलोमन द्वीप (Solomon Islands) में दुनिया की सबसे बड़ी कोरल कॉलोनी (Coral Colony) का पता लगाया गया।

सबसे बड़ी कोरल कॉलोनी के बारे में मुख्य निष्कर्ष

  • खोज: नेशनल जियोग्राफिक की प्रिस्टीन सीज (Pristine Seas) टीम द्वारा।
    • प्रशांत महासागर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का दस्तावेजीकरण करने वाले एक वीडियोग्राफर द्वारा खोजा गया।
  • आकार एवं आयु: 112 x 105 वर्ग फुट माप की यह कोरल कालोनी समुद्र तल से 16 फीट ऊपर है और 42 फीट की गहराई पर अवस्थित है।
    • अनुमान लगाया गया है कि यह कोरल कालोनी लगभग 300 से 500 वर्ष पुरानी है।
  • कोरल का प्रकार: इस कोरल को पावोना क्लैवस (Pavona clavus) [शोल्डर ब्लेड कोरल (Shoulder Blade Coral)] के रूप में पहचाना जाता है।
    • विशिष्ट विशेषताओं में ढलान जैसे स्तंभ जैसी संरचनाएँ एवं जीवंत रंग भूरा, पीला, लाल, गुलाबी और नीला शामिल हैं।
  • अद्वितीय विशेषताएँ: लगभग एक अरब व्यक्तिगत कोरल पॉलिप्स (Coral Polyps) से निर्मित है, जो एक ही जीव के रूप में कार्य करता है।
    • इसे ‘जल के नीचे के गिरिजाघर’ (Underwater Cathedral) जैसा बताया गया है, जो विस्मय एवं अतीत से जुड़ाव का एहसास कराता है।

खोज का महत्त्व

  • लचीलापन और भेद्यता: इसकी गहराई के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संभवतः सुरक्षित है, जो गर्म सतही जल से बचता है।
    • यह कोरल पारिस्थितिकी तंत्र की दोहरी प्रकृति को उजागर करता है, जो गर्म होते महासागरों के सामने सुंदरता एवं संवेदनशीलता को दर्शाता है।
  • कार्रवाई के लिए आह्वान: यह प्रवाल भित्ति की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता को संबोधित करता है, जो समुद्री जैव विविधता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • जलवायु चुनौतियों के बीच भविष्य की पीढ़ियों के लिए ऐसे पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने के महत्त्व पर जोर देता है।
  • छिपी हुई पहचान: स्थानीय निवासियों ने इसके आकार और उपस्थिति के कारण कॉलोनी को एक चट्टान समझ लिया, जो प्रकृति की छिपी हुई समृद्धि पर जोर देता है।

कोरल (Coral) के बारे में

  • प्रकृति एवं संरचना: कोरल समुद्र तल से स्थायी रूप से जुड़े हुए स्थिर प्राणी हैं, जो रंग-बिरंगे पौधों जैसे दिखते हैं, लेकिन वे जीव हैं।
    • पॉलिप्स (Polyps) नामक अलग-अलग जीवों से मिलकर बना यह जीव समुद्री जल से आयनों का उपयोग करके कैल्शियम कार्बोनेट (चूना पत्थर) के कठोर, कप के आकार के कंकाल का निर्माण करता है।
  • पॉलिप्स की विशेषताएँ
    • एक ही छिद्र वाला पेट (Stomach with a Single Opening): यह छिद्र मुँह और मलद्वार दोनों का कार्य करता है।
    • टेंटेकल्स (Tentacles): बचाव, शिकार को पकड़ने और मलबा हटाने के लिए उपयोग किया जाता है।
    • कार्यक्षमता: भोजन मुँह से प्रवेश करता है, अपशिष्ट उसी छिद्र से बाहर निकलता है।
  • जूूजेंथलाई (Zooxanthellae) के साथ सहजीवी संबंध 
    • जूूजेंथलाई (शैवाल) [Zooxanthellae (Algae]: सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कोरल को भोजन एवं पोषक तत्त्व प्रदान करता है।
      • यह कोरल के जीवंत रंगों के लिए जिम्मेदार होता है।
    • कोरल (Corals): शैवाल को आश्रय एवं पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं।
      • यह संबंध कोरल को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भर बनाता है।

प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reef) क्या है?

  • प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reef) जल के नीचे का एक विविधतापूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है, जो मुख्य रूप से कोरल पॉलिप्स, छोटे समुद्री जीवों द्वारा निर्मित होता है, जो एक कठोर कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल का स्राव करते हैं। 
  • समय के साथ, ये कंकाल जमा होते हैं, जिससे जटिल संरचनाओं का निर्माण होता हैं, जो समुद्री जीवन की एक विस्तृत विविधता का समर्थन करती हैं।

प्रवाल भित्तियों के क्षेत्र

  • प्रवाल भित्ति गर्म (23°-29° सेल्सियस), उथले जल में पनपती हैं, जहाँ सूर्य का प्रकाश अधिक होता है। वे मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रवाल भित्ति क्षेत्रों में शामिल हैं:-
    • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र (Indo-Pacific Region): इस क्षेत्र में कोरल ट्राएंगल (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर-लेस्ते और सोलोमन द्वीप), ऑस्ट्रेलिया में ग्रेट बैरियर रीफ और हिंद एवं प्रशांत महासागरों में अन्य रीफ शामिल हैं।
    • कैरेबियन क्षेत्र (Caribbean Region): इस क्षेत्र में कैरेबियन सागर, मैक्सिको की खाड़ी और फ्लोरिडा कीज (Florida Keys) शामिल हैं।

भारत में पाई जाने वाली प्रवाल भित्तियों के प्रकार

प्रवाल भित्तियों के प्रकार

विवरण

भारत में स्थान

फ्रिंजिंग रीफ्स (Fringing Reefs) ये चट्टानें तट के निकट विकसित होकर एक संकीर्ण पट्टी का निर्माण करती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, मन्नार की खाड़ी
बैरियर रीफ्स (Barrier Reefs) ये चट्टानें तट से एक लैगून द्वारा पृथक होती हैं। अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह
पैच रीफ्स

 (Patch Reefs)

ये पृथक, वृत्ताकार या अंडाकार चट्टानें हैं। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, मन्नार की खाड़ी
प्रवाल द्वीप 

(Coral Islands)

ये वलय के आकार की चट्टानें हैं, जो एक लैगून को घेरती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप

प्रवालों का पारिस्थितिकी महत्त्व

  • आवास प्रावधान (Habitat Provision): प्रवाल भित्तियाँ जटिल त्रि-आयामी संरचनाएँ प्रदान करती हैं, जो मछली, अकशेरुकी और शैवाल सहित समुद्री जीवों की एक विविध श्रेणी के लिए घरों के रूप में कार्य करती हैं।
    • ये जटिल आवास कई प्रजातियों के लिए आश्रय, प्रजनन स्थल और चरागाह के अवसर प्रदान करते हैं।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: प्रवाल भित्तियाँ अपनी असाधारण जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं, जहाँ सभी समुद्री प्रजातियों का एक-चौथाई हिस्सा पाया जाता है।
    • यह समृद्ध विविधता समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र स्वास्थ्य और लचीलेपन में योगदान देती है।
  • पोषक चक्रण: प्रवाल और भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र में संबंधित जीव पोषक चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • वे नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे आवश्यक पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण में मदद करते हैं, जो समुद्री पौधों एवं जानवरों के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • ऑक्सीजन उत्पादन: प्रवाल, प्रकाश संश्लेषक शैवाल के साथ अपने सहजीवी संबंध के माध्यम से, समुद्र में ऑक्सीजन के उत्पादन में योगदान करते हैं।
    • यद्यपि सटीक प्रतिशत का आकलन करना कठिन है, फिर भी प्रवाल भित्तियाँ निस्संदेह समुद्री वातावरण में ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration): प्रवाल भित्तियाँ कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती हैं, जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित एवं संगृहीत करती हैं।
    • यह प्रक्रिया ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को कम करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करती है।
  • तटीय संरक्षण (Coastal Protection): प्रवाल भित्तियाँ लहरों, चक्रवाती तूफानों और कटाव के विरुद्ध एक प्राकृतिक अवरोध प्रदान करती हैं, तटीय रेखाओं की रक्षा करती हैं एवं प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करती हैं।

जलवायु परिवर्तन से प्रवाल भित्तियों को गंभीर खतरा

  • महासागरों का गर्म होना: समुद्र का बढ़ता तापमान प्रवाल विरंजन को बढ़ावा देता है, जिससे बड़े पैमाने पर कोरल की मृत्यु होती है।
  • समुद्री अम्लीकरण: CO2 अवशोषण में वृद्धि से कोरल के लिए अपने कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल का निर्माण करना कठिन हो जाता है।

  • चरम मौसमी घटनाएँ: अधिक लगातार और तीव्र तूफान प्रवाल भित्ति को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • समुद्र जल स्तर का बढ़ना: उथली भित्तियों को जलमग्न कर सकता है और प्रकाश की स्थिति को बदल सकता है जिससे इनके लिए प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

सोलोमन द्वीप (Solomon Islands) के बारे में

  • स्थान: पापुआ न्यू गिनी के पूर्व में दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर में ओशिनिया (Oceania) के एक उपक्षेत्र मेलानेशिया (Melanesia) में अवस्थित है।
  • भूगोल: ज्वालामुखीय द्वीपों एवं छोटे प्रवाल द्वीपों की दो समानांतर शृंखलाएँ शामिल हैं। दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित, जिसमें विविध समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र हैं।

  • जलवायु: आम तौर पर गर्म एवं आर्द्र परिस्थितियों वाली उष्णकटिबंधीय जलवायु। आस-पास के समुद्रों से आने वाली ठंडी हवाओं के कारण यहाँ शायद ही कभी अत्यधिक तापमान का अनुभव होता है।

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