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Lokesh Pal
December 23, 2025 03:10
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हाल ही में केंद्र ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा में बदलाव करने से इनकार किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नए खनन पट्टों पर रोक लगाने और एक व्यापक प्रबंधन योजना को अंतिम रूप दिए जाने तक मजबूत पारिस्थितिकी संरक्षण सुनिश्चित करने हेतु न्यायालय द्वारा अनुमोदित ढाँचे का हवाला दिया गया।
भारत की सबसे पुरानी पर्वत शृंखला के पारिस्थितिकी क्षरण को रोकने के लिए एक निर्णायक कदम उठाते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 20 नवंबर, 2025 के अपने फैसले में एक कठोर नियामक ढाँचा स्थापित किया, जिसमें संसाधन निष्कर्षण पर पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी गई।


अरावली पर्वतमाला पृथ्वी की सबसे पुरानी भू-वैज्ञानिक संरचनाओं में से एक है, जिसका निर्माण प्रोटेरोजोइक युग के दौरान, हिमालय से बहुत पहले हुआ था और यह उत्तर-पश्चिमी भारत के पारिस्थितिकी आधार का निर्माण करती है।
अरावली पर्वतमाला एक बहु-कार्यात्मक पारिस्थितिकी ‘कवच’ (ढाल) के रूप में कार्य करती है, जो उत्तरी भारत के अस्तित्व और स्थिरता के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय सेवाएँ प्रदान करती है।
अपनी प्राचीनता तथा महत्त्व के बावजूद, अरावली पर्वतमाला वर्तमान में मानवीय हस्तक्षेप और नियामकीय परिवर्तनों के कारण अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है।

अरावली पर्वतमाला के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, भारत को प्रतिक्रियावादी बहस से हटकर सक्रिय, विज्ञान-आधारित पारिस्थितिकी शासन की ओर बढ़ना होगा, जिसमें कानूनी सुधार, बहाली पारिस्थितिकी, आजीविका सुरक्षा और उन्नत प्रौद्योगिकी को एकीकृत किया जाए।
अरावली पर्वतमाला उत्तर भारत की पारिस्थितिकी नीति का आधार है। नए खनन पर रोक लगाकर और परिभाषाओं को मानकीकृत करके सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण तथा विनियमित विकास के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है। हालाँकि, सतत् खनन के लिए अंतिम प्रबंधन योजना में अल्पकालिक आर्थिक लाभों के बजाय निवारक सिद्धांत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि यह प्राचीन पारिस्थितिकी “कवच” भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित बना रह सके।
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