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CrPC की धारा 436-A

Lokesh Pal June 01, 2024 06:33 616 0

संदर्भ

दिल्ली उच्च न्यायालय ने देशद्रोह और गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act- UAPA) उल्लंघन के आरोप वाले मामले में शरजील इमाम को जमानत दे दी है। 

संबंधित तथ्य

  • गिरफ्तारी और आरोप: शरजील इमाम पर कथित रूप से भड़काऊ भाषण के लिए गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत देशद्रोह और गैरकानूनी गतिविधि का आरोप लगाया गया था।
  • जमानत मिलने का कारण: शरजील इमाम को CrPC की धारा 436-A के कारण जमानत मिली है।
    • न्यायाधीशों का सीमित विवेक: धारा 436-A के कारण, न्यायाधीशों के पास न्यूनतम विकल्प थे और वे जमानत देने के लिए बाध्य थे।

CrPC की धारा 436-A के तहत जमानत 

  • CrPC की धारा 436-A: यह प्रावधान उन विचाराधीन कैदियों के लिए जमानत अनिवार्य करता है, जिन्होंने अपने अपराध के लिए अधिकतम सजा की आधी से अधिक अवधि जेल में बिता ली है।
    • इस प्रावधान का एक अपवाद है, जब अपराध के लिए मृत्युदंड दिया जाता है।
    • इसे वर्ष 2005 में प्रस्तुत किया गया, इसका उद्देश्य जेलों में भीड़भाड़ को संबोधित करना और कम जघन्य अपराधों वाले मुकदमों में तेजी से निपटाना है।

धारा 436-A का प्रभाव

  • विचाराधीन कैदियों को राहत: यह प्रावधान कम सजा वाले अपराधों के आरोपी विचाराधीन कैदियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2022 के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के आँकड़ों से संकेत मिलता है कि 63,502 विचाराधीन कैदियों पर दो वर्ष से कम की सजा वाले अपराधों का आरोप था।

विचाराधीन कैदियों के लिए अन्य सुरक्षा

  • जमानती अपराध (Bailable Offences)
    • CrPC की धारा 436: न्यायालयों को सभी जमानती अपराधों के लिए जमानत देनी चाहिए। जमानत बॉण्ड भरने का इच्छुक आरोपी ऐसे मामलों में जमानत का हकदार है।
  • गैर-जमानती अपराध (Non-Bailable Offences)
    • न्यायालय का विवेक: गैर-जमानती अपराधों के लिए, जमानत देना न्यायालय के विवेक पर निर्भर है।
  • डिफाॅल्ट जमानत
    • CrPC की धारा 167(2) 
      • जाँच की समयसीमा: पुलिस के पास जाँच पूरी करने और अधिकांश अपराधों के लिए अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 60 दिन होते हैं।
        • मौत, आजीवन कारावास या कम-से-कम 10 वर्ष की जेल की सजा वाले अपराधों के लिए, यह अवधि 90 दिनों तक बढ़ जाती है।
      • डिफाॅल्ट जमानत देना: यदि पुलिस निश्चित अवधि के भीतर जाँच पूरी नहीं कर पाती है और आरोप पत्र दाखिल नहीं कर पाती है, तो डिफाॅल्ट जमानत दे दी जाती है। यह केवल IPC अपराधों पर लागू होता है।
      • विशेष कानून (Special Legislations): UAPA जैसे कड़े कानूनों ने पुलिस जाँच के लिए समयसीमा को तय कर दिया है, जिससे डिफाॅल्ट जमानत कम लागू हो गई है।

जमानत के बावजूद जेल में क्यों है शरजील इमाम

शरजील इमाम के विरुद्ध कई मामले हैं:

  • उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे: वर्ष 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े एक अलग मामले के कारण इमाम हिरासत में है। यह मामला अभी चल रहा है।
  • अन्य राज्यों में लंबित आरोप: इमाम के विरुद्ध असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में आरोप लंबित हैं।
    • हालाँकि वह वर्तमान में इन मामलों में हिरासत में नहीं है, लेकिन वे उनकी रिहाई को रोकते हैं।

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