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प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक, 2025

Lokesh Pal December 20, 2025 02:30 14 0

संदर्भ

केंद्रीय वित्त मंत्री ने लोकसभा में प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक (SMC), 2025’ प्रस्तुत किया, जिसमें भारत के प्रतिभूति कानूनों का एक व्यापक पुनर्गठन प्रस्तावित है।

प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक, 2025

  • SMC विधेयक, 2025 का उद्देश्य तीन प्रमुख, दशकों पुराने प्रतिभूति कानूनों को एकल, आधुनिक ढाँचे से प्रतिस्थापित करना है:
    • सेबी अधिनियम, 1992
    • निक्षेपागार अधिनियम, 1996
    • प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956
  • यह संहिताकरण अतिव्याप्त और अनावश्यक प्रावधानों को हटाने तथा एक सुव्यवस्थित, सिद्धांत-आधारित विधायी संरचना तैयार करने का लक्ष्य रखता है।
  • यह प्रतिभूति बाजार के विधायी ढाँचे की पहली व्यापक समीक्षा है, जिसका उद्देश्य निवेशक भागीदारी का विस्तार करना और पूँजी संचयन को सुदृढ़ करना है।

विधेयक के प्रमुख सुधार एवं प्रावधान

  • सेबी के विनियामक तंत्र को सुदृढ़ करना
    • विस्तारित बोर्ड: सेबी बोर्ड को वर्तमान 9 सदस्यों से बढ़ाकर अधिकतम 15 सदस्य किया जाएगा, जिसमें अध्यक्ष भी शामिल होंगे।
    • हितों का टकराव: निर्णय-प्रक्रिया के दौरान बोर्ड सदस्यों को अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हितों का प्रकटीकरण करना होगा।
    • उपविधायी प्रक्रिया: नियम एवं विनियम जारी करने की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी एवं परामर्शात्मक बनाया जाएगा।
  • प्रवर्तन एवं न्याय-निर्णयन का सरलीकरण
    • एकल प्रक्रिया: सभी अर्द्ध-न्यायिक कार्यवाहियों हेतु एकल न्याय-निर्णयन प्रक्रिया लागू की जाएगी।
    • समय-सीमाएँ: जाँच और अंतरिम आदेशों के लिए निर्धारित समय-सीमाएँ तय की जाएँगी, जिससे समयबद्ध विनियामक कार्रवाई सुनिश्चित हो।
    • सत्ता का पृथक्करण: जाँच और न्याय-निर्णयन कार्यों के मध्यआर्म्स-लेंथ’ पृथक्करण सिद्धांत के अनुसार बनाए रखा जाएगा।
  • व्यवसाय सुगमता हेतु अपराध-मुक्तिकरण
    • सिविल दंडों की ओर परिवर्तन: लघु, प्रक्रियात्मक एवं तकनीकी उल्लंघनों को सिविल दंडों में परिवर्तित किया जाएगा।
    • गंभीर अपराध संबंधी अपराध यथावत बने रहेंगे: बाजार दुरुपयोग, आदेशों का पालन न करना, तथा जाँच में असहयोग जैसे गंभीर अपराधों के लिए आपराधिक प्रावधान बने रहेंगे।
  • निवेशक संरक्षण को सुदृढ़ करना
    • शिकायत निवारण: समयबद्ध शिकायत निवारण तंत्र तथा निवेशक शिकायतों हेतु एक लोकपाल कार्यालय की स्थापना की जाएगी।
    • शिक्षा एवं जागरूकता: उन्नत निवेशक शिक्षा और जागरूकता पहलों को अनिवार्य किया जाएगा।
  • नवाचार एवं समन्वय को प्रोत्साहन
    • रेगुलेटरी सैंडबॉक्स: नवाचार हेतु वित्तीय उत्पादों और सेवाओं में सेबी कोरेगुलेटरी सैंडबॉक्स’ स्थापित करने का अधिकार दिया जाएगा।
    • अंतर-विनियामक समन्वय: विभिन्न वित्तीय साधनों की निर्बाध लिस्टिंग को सुगम बनाने हेतु विनियामकों के बीच बेहतर समन्वय का ढाँचा तैयार किया जाएगा।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI)

  • सेबी भारत के प्रतिभूति और वस्तु डेरिवेटिव (कमोडिटी डेरिवेटिव) बाजारों का सर्वोच्च नियामक निकाय है।
  • उत्पत्ति: इसकी स्थापना वर्ष 1988 में की गई थी और वर्ष 1992 के प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम के माध्यम से इसे वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • मुख्यालय: मुंबई; तथा अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में इसके क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं।
  • द्वि-अधिदेश: इसके प्रमुख उद्देश्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाजार के विकास और विनियमन को प्रोत्साहित करना हैं।
  • त्रि-भूमिकाएँ: यह अर्द्ध-विधायी (नियम बनाता है), अर्द्ध-कार्यकारी (नियमों का प्रवर्तन करता है), और अर्द्ध-न्यायिक (विवादों का निपटारा करता है और दंड निर्धारित करता है) शक्तियों का प्रयोग करता है।

  • मुख्य कार्य
    • विनियामक: स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर्स, म्युचुअल फंड तथा अन्य मध्यस्थों का पंजीकरण और पर्यवेक्षण करता है।
    • संरक्षणात्मक: इनसाइडर ट्रेडिंग तथा धोखाधड़ी/अनुचित व्यापार प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाकर बाजार अखंडता सुनिश्चित करता है।
    • विकासात्मक: निवेशक शिक्षा को बढ़ावा देता है और नए वित्तीय उत्पादों व सेवाओं की शुरुआत को सुगम बनाता है।

भारत में प्रतिभूति बाजार

  • अर्थ एवं अवधारणा: प्रतिभूति बाजार उन मंचों को संदर्भित करता है, जहाँ इक्विटी शेयर, ऋण-पत्र, डेरिवेटिव, म्युचुअल फंड आदि जैसे वित्तीय साधनों का निर्गम, क्रय और विक्रय किया जाता है।
    • यह बचत के संकलन तथा उन्हें उत्पादक क्षेत्रों में आवंटित करने को प्रोत्साहित करता है, जिससे आर्थिक वृद्धि में सहायता मिलती है।
  • प्रतिभूति बाजार के घटक
    • प्राथमिक बाजार: नई प्रतिभूतियों का निर्गम (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम, अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम, अधिकार निर्गम, योग्य संस्थागत प्लेसमेंट)। यह कंपनियों को दीर्घकालिक पूँजी जुटाने में सहायता करता है।
    • द्वितीयक बाजार: निवेशकों के बीच पूर्व-निर्गमित प्रतिभूतियों का व्यापार। यह तरलता तथा मूल्य-निर्धारण सुनिश्चित करता है।
  • प्रमुख बाजार खंड
    • इक्विटी बाजार: कंपनियों के शेयर।
    • ऋण बाजार: सरकारी तथा कॉरपोरेट बॉण्ड।
    • डेरिवेटिव बाजार: फ्यूचर्स और ऑप्शंस, जोखिम प्रबंधन हेतु।
    • विदेशी प्रतिभूतियाँ/अंतरराष्ट्रीय निर्गम: अमेरिकन डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (ADRs), ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (GDRs)।
  • नियामक ढाँचा: निवेशक संरक्षण और बाजार की अखंडता सुनिश्चित करने हेतु सेबी एक प्रमुख नियामक है।

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