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स्वयं सहायता समूह

Lokesh Pal September 22, 2025 02:45 8 0

संदर्भ

स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups- SHGs) वित्तीय समावेशन, महिला नेतृत्व और ईंधन खुदरा, परिवहन और सौर ऊर्जा जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में प्रवेश के माध्यम से ग्रामीण सशक्तीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं, जैसा कि तेलंगाना की इंदिरा महिला शक्ति (Indira Mahila Shakti- IMS) में देखा गया है।

स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups- SHGs) के बारे में

  • परिभाषा: 10-20 सदस्यों, जिनमें अधिकतर महिलाएँ होती हैं, के अनौपचारिक संघ, बचत को एकत्रित करते हैं और औपचारिक ऋण तक पहुँच को सक्षम बनाते हैं।
    • यह आमतौर पर समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के स्वैच्छिक संघ का प्रतिनिधित्व करता है।
  • पैमाना: दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (Deendayal Antyodaya Yojana – National Rural Livelihoods Mission/ DAY-NRLM) के अंतर्गत (जनवरी 2025 तक) 10.05 करोड़ महिलाओं के परिवारों को शामिल करने वाले 90.9 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों के साथ, स्वयं सहायता समूह अब विश्व का सबसे बड़ा सामुदायिक संस्थान नेटवर्क बनाते हैं।
  • सरकारी योजनाओं के साथ एकीकरण
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act- MGNREGA): स्वयं सहायता समूह के सदस्य सहयोगी, सामाजिक लेखा परीक्षक और परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों के रूप में शामिल होते हैं।
    • अन्य विभाग (ग्रामीण विकास, महिला एवं बाल विकास, कृषि) भी आजीविका परियोजनाओं के लिए स्वयं सहायता समूहों को एकीकृत करते हैं।

दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (Deendayal Antyodaya Yojana – National Rural Livelihoods Mission/ DAY-NRLM) 

  • DAY- NRLM के मुख्य स्तंभ
    • सामाजिक नेटवर्क और सामुदायिक संस्थाएँ (स्वयं सहायता समूह, ग्राम संगठन, क्लस्टर स्तरीय संघ)।
    • स्वयं सहायता समूह-बैंक संपर्क के माध्यम से वित्तीय समावेशन।
    • सतत् आजीविका सृजन।
    • अन्य कल्याणकारी योजनाओं के साथ अभिसरण और अधिकार।
  • DAY- NRLM के अंतर्गत उप-योजनाएँ
    • महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (Mahila Kisan Sashaktikaran Pariyojana- MKSP): ग्रामीण महिलाओं को जैविक खेती, पशुधन और संसाधन प्रबंधन में प्रशिक्षण देकर कृषि और संबद्ध गतिविधियों में सशक्त बनाती है और उन्हें किसान के रूप में मान्यता प्रदान करती है।
    • स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (Start-up Village Entrepreneurship Programme- SVEP): स्वयं सहायता समूह (SHG) के सदस्यों को मूल पूँजी, प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करके सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने में सहायता प्रदान करती है, जिससे गैर-कृषि आजीविका को बढ़ावा मिलता है।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आर्थिक परिवर्तन परियोजना (National Rural Economic Transformation Project- NRETP): मूल्य शृंखलाओं और उत्पादक उद्यमों का निर्माण करती है, डिजिटल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती है और स्वयं सहायता समूहों को व्यापक बाजारों से जोड़ती है।
    • दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (Deendayal Upadhyaya Gramin Kaushalya Yojana- DDU-GKY): IT, खुदरा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में ग्रामीण युवाओं (15-35) को रोजगार प्रदान करने में सहायता के साथ माँग-आधारित कौशल प्रशिक्षण प्रदान करती है।
    • ग्रामीण स्व-रोजगार प्रशिक्षण संस्थान (Rural Self-Employment Training Institutes- RSETI): सिलाई, खाद्य प्रसंस्करण और सेवाओं जैसे व्यवसायों में अल्पकालिक, निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, साथ ही स्व-रोजगार के लिए प्रशिक्षण के बाद ऋण सुविधा भी प्रदान करते हैं।

भारत में स्वयं सहायता समूहों का विकास

  • 1970 का दशक: दक्षिणी राज्यों में बचत और ऋण सामूहिक के रूप में उभरा।
  • वर्ष 1992: नाबार्ड ने स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG–Bank Linkage Programme- SHG-BLP) शुरू किया, जिससे स्वयं सहायता समूहों को औपचारिक वित्त के दायरे में लाया गया।
  • वर्ष 1999: स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (Swarnjayanti Gram Swarozgar Yojana- SGSY) ने स्वयं सहायता समूहों को गरीबी कम करने के साधन के रूप में मान्यता दी।
  • वर्ष 2011 के बाद: NRLM, जिसे अब DAY-NRLM कहा जाता है, ने पेशेवर और वित्तीय सहायता के साथ स्वयं सहायता समूहों के दायरे का विस्तार किया।
  • वर्तमान: भारत में विश्व का सबसे बड़ा स्वयं सहायता समूह नेटवर्क है, जो लगभग प्रत्येक तीन में से एक ग्रामीण परिवार को शामिल करता है।

स्वयं सहायता समूहों के उद्देश्य

  • वित्तीय समावेशन: बचत को संगठित करना और कम ब्याज पर औपचारिक ऋण तक पहुँच प्रदान करना।
  • महिला सशक्तीकरण: निर्णय लेने की क्षमता, गतिशीलता और सामाजिक मान्यता को बढ़ावा देना।
  • गरीबी उन्मूलन: आय सृजन को बढ़ावा देना और साहूकारों पर निर्भरता कम करना।
  • आजीविका विविधीकरण: हस्तशिल्प, कृषि-मूल्य शृंखलाओं और सेवाओं से संबंधित गतिविधियों को समर्थन देना।
  • सामुदायिक विकास: स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
  • समावेशी विकास: अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा की आर्थिक गतिविधियों में शामिल करना।

स्वयं सहायता समूहों का महत्त्व और प्रभाव

  • वित्तीय समावेशन और आजीविका सुरक्षा: बचत, ऋण और बैंकिंग सेवाओं (₹5.5 लाख करोड़ क्रेडिट लिंकेज) तक पहुँच प्रदान करना; सूक्ष्म उद्यमों, कृषि और सेवाओं के माध्यम से आजीविका में विविधता लाना और गरीबी कम करना।
  • सामाजिक विकास और सामुदायिक कल्याण: स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता और शिक्षा अभियानों के लिए माध्यम के रूप में कार्य करना; शासन और ग्राम सभाओं में सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति में सुधार करना।
  • महिला सशक्तीकरण: निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास और नेतृत्व को बढ़ाना; पितृसत्तात्मक बाधाओं को तोड़ना और सामुदायिक मान्यता में सुधार करना।
  • सतत् और समावेशी विकास: सौर ऊर्जा, इको-पर्यटन और कृषि-मूल्य शृंखलाओं जैसे हरित उद्यमों को बढ़ावा देना; सतत् विकास लक्ष्य 1 (गरीबी उन्मूलन), सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता), और सतत् विकास लक्ष्य 8 (सभ्य कार्य और विकास) में योगदान देना।
  • सामूहिक शक्ति और शासन: संघीय संरचनाओं के माध्यम से जवाबदेही, पारदर्शिता और मापनीयता सुनिश्चित करना; सहभागी लोकतंत्र और समावेशी ग्रामीण शासन को मजबूत करना।
  • प्रतिकृति क्षमता: कुदुंबश्री (केरल) और IMS (तेलंगाना) जैसे सफल मॉडल सिद्ध करते हैं कि स्वयं सहायता समूह बड़े पैमाने के उद्यमों का प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे देश भर में इन्हें अपनाने की प्रेरणा मिलती है।

भारत में स्वयं सहायता समूहों की उपलब्धियाँ

  • ऋण जुटाना: ₹6.9 लाख करोड़ से अधिक ऋण वितरित (वित्त वर्ष 2024); गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) 2.3% से नीचे बनी हुई हैं, जो कई कॉरपोरेट ऋणों (नाबार्ड 2024) से बेहतर है।
  • कवरेज: DAY-NRLM के तहत 8.7 करोड़ ग्रामीण परिवार से संबंधित हैं।
  • महिला-केंद्रित: 90% से अधिक सदस्य महिलाएँ हैं, जो आत्मविश्वास और नेतृत्व जैसे गुणों से अभिप्रेरित हैं।
  • राज्य मॉडल
    • कुदुंबश्री (Kudumbashree) (केरल): 45 लाख सदस्य; सूक्ष्म उद्यम और कुदुंबश्री कैफे (Kudumbashree cafés) संचालित करते हैं।
    • जीविका (JEEViKA) (बिहार): 1 करोड़ परिवार; कृषि मूल्य शृंखलाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
    • इंदिरा महिला शक्ति (IMS, तेलंगाना): स्वयं सहायता समूह (SHGs) ग्रामीण महिलाओं को पेट्रोल पंप, सौर ऊर्जा और बस संचालन जैसे क्षेत्रों में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सक्षम बना रहे हैं।
  • सामाजिक प्रभाव: अध्ययन (विश्व बैंक 2022) से पता चलता है कि स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ सामान्य परिवारों की तुलना में बच्चों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य पर अधिक व्यय करती हैं।

केस स्टडी: तेलंगाना का इंदिरा महिला शक्ति (Indira Mahila Shakti- IMS) मॉडल

  • तेलंगाना में, ग्रामीण गरीबी उन्मूलन सोसायटी (Society for Elimination of Rural Poverty- SERP) के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह महत्त्वाकांक्षा और सशक्तीकरण को नई परिभाषा दे रहे हैं।
  • वंचित पृष्ठभूमि की महिलाएँ अब ईंधन स्टेशनों, परिवहन बेड़े, कैंटीनों और सौर ऊर्जा परियोजनाओं का प्रबंधन कर रही हैं, पितृसत्तात्मक बाधाओं को तोड़ रही हैं और ‘इंदिरा महिला शक्ति’ (Indira Mahila Shakti – IMS) योजना के तहत समावेशी विकास को प्रोत्साहित कर रही हैं।

तेलंगाना में SHG मॉडल के बारे में

  • संघीय संरचना: स्वयं सहायता समूहों को ग्राम संगठनों, मंडल महिला समाख्याओं और जिला महिला समाख्याओं (Zilla Mahila Samakhyas- ZMS) में संगठित किया गया है।
  • पैमाना: SERP नेटवर्क 4.43 लाख स्वयं सहायता समूहों, 18,000 ग्राम संगठनों, 553 मंडल महिला समाख्याओं और 32 ZMS की 46.84 लाख महिलाओं को शामिल करता है।
  • नारायणपेट (Narayanpet) एक उदाहरण के रूप में: तेलंगाना का पहला महिला-संचालित पेट्रोल स्टेशन, सिंगाराम एक्स रोड्स (Singaram X Roads) में, फरवरी 2025 में उद्घाटन किया गया, जिसने 6 महीनों में ₹13.82 लाख का लाभ कमाया।
  • साझेदारी: BPCL, IOCL, HPCL जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के साथ, लीज मॉडल के तहत ईंधन की खुदरा बिक्री को सक्षम बनाना।

तेलंगाना SHGs उद्यमों की अनूठी विशेषताएँ

  • पुरुषों के दायरे से बाहर: पुरुषों की पारंपरिक सीमा से बाहर, महिलाएँ अब उन ईंधन खुदरा दुकानों का सफलतापूर्वक प्रबंधन कर रही हैं, जिन्हें कभी ‘पुरुषों का कार्य’ माना जाता था।।
  • स्थायित्व अभिविन्यास: स्वयं सहायता समूह संघ, विद्युत कंपनियों के सहयोग से विभिन्न जिलों में 1,000 मेगावाट की सौर ऊर्जा इकाइयाँ स्थापित करने की तैयारी कर रहे हैं।
  • विविध उद्यम: पेट्रोल पंपों के अलावा 220 ISM कैंटीन (औसतन ₹72,000 मासिक लाभ), TSRTC को 151 बसों का लीज पर देना, 600 नई बसों को संचालित करने की योजना, साथ ही इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की योजना।
  • विश्वास और दक्षता: ग्राहक महिलाओं द्वारा संचालित दुकानों को पारदर्शी, अनुशासित और विश्वसनीय मानते हैं।

प्रभाव

  • आर्थिक सशक्तीकरण: स्थायी नौकरियाँ और आय सुरक्षा प्रदान करना; उदाहरण के लिए, नारायणपेट में महिलाओं द्वारा संचालित पेट्रोल पंप ₹50 लाख वार्षिक लाभ कमाता है।
  • सामाजिक परिवर्तन: पितृसत्तात्मक बाधाओं को तोड़ते हुए महिलाओं का आत्मविश्वास, सम्मान और सामुदायिक मान्यता बढ़ाना।
  • सामूहिक शक्ति और जवाबदेही: संघीय स्वयं सहायता समूह प्रशिक्षण, संरचित निगरानी और पारदर्शी प्रबंधन सुनिश्चित करते हैं।
  • सतत् और समावेशी विकास: भारत के वर्ष 2030 के गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं (ईंधन, कैंटीन, सौर ऊर्जा, परिवहन) में विविधता लाना।
  • प्रतिरूपण क्षमता: महिलाओं द्वारा संचालित ईंधन स्टेशनों और सौर इकाइयों वाला तेलंगाना का IMS मॉडल अन्य राज्यों के लिए एक मापनीय ढाँचा प्रस्तुत करता है।

भारत में स्वयं सहायता समूहों की चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • क्षेत्रीय असमानता: दक्षिणी राज्यों में मजबूत उपस्थिति, उत्तर और पूर्व में कमजोर क्रियान्वयन होना।
    • नीति आयोग (2023) के अनुसार, स्वयं सहायता समूहों (SHG) और बैंकों के बीच संबंध अत्यधिक विषम हैं, और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में स्वयं सहायता समूहों (SHG) के ऋण का 60% हिस्सा है।
  • ऋण बनाम क्षमता: कौशल विकास के बिना ऋणों पर अत्यधिक जोर देना।
    • विश्व बैंक (2022) ने बताया कि 40% स्वयं सहायता समूहों के पास उद्यम प्रबंधन में प्रशिक्षण का अभाव है।
  • ऋणग्रस्तता संबंधी जोखिम: एक से अधिक उधार लेने और अत्यधिक ऋणग्रस्तता का जोखिम बना रहता है।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (2023) ने विशेष रूप से असम और बंगाल में बढ़ते सूक्ष्म वित्त तनाव पर प्रकाश डाला।
  • कमजोर संघ: विस्तार के लिए प्रबंधकीय विशेषज्ञता का अभाव होना।
    • केवल 35% स्वयं सहायता समूहों के पास उद्यमों का प्रबंधन करने में सक्षम संघ हैं (ग्रामीण विकास मंत्रालय, 2022)।
  • बाजार संपर्क में कमी: कई उत्पाद स्थानीय बाजारों तक ही सीमित रह जाते हैं।
    • सेवा 2022 के अध्ययन से पता चला है कि खराब ब्रांडिंग के कारण स्वयं सहायता समूहों (SHG) के उत्पादों की कीमतें 30-40% कम हो जाती हैं।
  • स्थायित्व संबंधी मुद्दे: कई स्वयं सहायता समूह अभी भी सब्सिडी और अनुदान पर निर्भर हैं।
    • CAG रिपोर्ट (2022) ने बताया कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 20% स्वयं सहायता समूह 5 वर्षों के भीतर निष्क्रिय हो गए।

विश्वव्यापी स्वयं सहायता समूह और माइक्रोफाइनेंस सफलता की कहानियाँ

  • ग्रामीण बैंक मॉडल, बांग्लादेश (1976): मुहम्मद यूनुस द्वारा संचालित, इसने गरीब महिलाओं को बिना किसी संपार्श्विक के सूक्ष्म ऋण प्रदान किया। 90 लाख से अधिक उधारकर्ता (97% महिलाएँ), पूरे विश्व ने इस मॉडल को अपनाया।
  • BRAC, बांग्लादेश: विश्व के सबसे बड़े गैर-सरकारी संगठनों में से एक, जो स्वयं सहायता समूहों को शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्यम विकास के साथ जोड़ता है, एकीकृत सामुदायिक संस्थाओं की शक्ति का प्रदर्शन करता है।
  • ग्राम बचत और ऋण संघ (Village Savings and Loan Associations- VSLAs), अफ्रीका: CARE इंटरनेशनल द्वारा प्रवर्तित, 25 देशों के 70,000 से अधिक समूहों या संगठनों में कार्यरत। सदस्य छोटी-छोटी राशियों की बचत करते हैं और सामूहिक रूप से ऋण प्राप्त करते हैं, जिससे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं वाली ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाया जाता है।
  • दक्षिण पूर्व एशिया (फिलीपींस, इंडोनेशिया, नेपाल) में स्वयं सहायता प्रोत्साहन: समुदाय-आधारित सूक्ष्म वित्त, सहकारिताओं, कृषि विपणन और सामाजिक सुरक्षा के साथ एकीकृत, गरीबी चक्रों के विरुद्ध लचीलापन सुनिश्चित करता है।

महिला सशक्तीकरण और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने वाले वैश्विक SHG मॉडल

  • बांग्लादेश का ग्रामीण और BRAC मॉडल: ऋण और सामाजिक विकास (स्वास्थ्य, स्वच्छता, साक्षरता) पर बल देना। गरीबी में उल्लेखनीय कमी लाने का श्रेय प्राप्त किया।
  • केन्या के VSLAs: कम लागत वाली, समुदाय-स्वामित्व वाली ऋण प्रणाली, जिसे संवेदनशील और संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों के लिए अनुकूलित किया गया है; अब विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा समर्थित किया जा रहा है।
  • इथियोपिया के महिला विकास समूह: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा से संबंधित संघीय महिला समूह टीकाकरण कवरेज बढ़ाने और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने का श्रेय दिया जाता है।
  • फिलीपींस का CARD MRI: SHG-आधारित मॉडल, जो सूक्ष्म वित्त, बीमा, शिक्षा ऋण और आपदा सहायता को एकीकृत करता है, जिससे SHG वित्तीय समावेशन पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं।

भारत के लिए सबक

  • सामाजिक क्षेत्रों के साथ एकीकरण: भारत BRAC-शैली का एकीकरण अपना सकता है-स्वयं सहायता समूहों को न केवल वित्त से, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक कल्याण सेवाओं से भी जोड़ सकता है।
  • समुदाय-स्वामित्व वाली बीमा: CARD MRI फिलीपींस जैसे मॉडल दर्शाते हैं कि कैसे स्वयं सहायता समूह जोखिम सुरक्षा के लिए सूक्ष्म बीमा योजनाएँ संचालित कर सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित विस्तार: अफ्रीका का VSLA मॉडल ऋण और पुनर्भुगतान के लिए मोबाइल बैंकिंग (M-Pesa, केन्या) का उपयोग करता है, जो भारत के डिजिटल स्वयं सहायता समूह प्लेटफॉर्म (e-SHRAM, SARAS, ONDC) के लिए एक आदर्श उदाहरण है।
  • संघीय शक्ति: इथियोपिया दिखाता है कि कैसे महिला समूहों के संघ राज्य नीति कार्यान्वयन के एजेंट हो सकते हैं, जो भारत के स्वयं सहायता समूह-पंचायती राज संस्थाओं के अभिसरण के लिए एक सबक है।

आगे की राह

  • क्षमता निर्माण: स्वयं सहायता समूहों (SHG) को सतत् उद्यम बनने के लिए बचत और ऋण आधारित प्रक्रिया से आगे बढ़ना होगा।
    • उद्यमिता प्रशिक्षण, डिजिटल साक्षरता, वित्तीय बहीखाता पद्धति और विपणन कौशल पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
      • उदाहरण: बिहार में विश्व बैंक की जीविका परियोजना डेयरी और कृषि-मूल्य शृंखलाओं के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल को एकीकृत करती है, जिससे 30-40% की आय वृद्धि देखी गई है।
  • बाजार एकीकरण: कमजोर ब्रांडिंग और सीमित पहुँच के कारण स्वयं सहायता समूहों (SHG) के उत्पादों की कीमतें प्रायः कम होती हैं।
    • स्वयं सहायता समूहों को सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM), ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), अमेजन सहेली और फ्लिपकार्ट समर्थ जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर उनके ग्राहक आधार का विस्तार किया जा सकता है।
      • उदाहरण: केरल के कुदुंबश्री कैफे उत्पाद पहले से ही ई-कॉमर्स पोर्टल के माध्यम से बेचे जा रहे हैं, जो सुनिश्चित बाजार प्रदान करते हैं।
  • विविधीकरण: स्वयं सहायता समूहों (SHG) को अक्षय ऊर्जा, रसद, स्वास्थ्य सेवाओं और कृषि-मूल्य शृंखलाओं जैसे गैर-पारंपरिक और उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों में कदम रखने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: तेलंगाना का IMS मॉडल सौर ऊर्जा (1,000 मेगावाट लक्ष्य) में प्रवेश कर रहा है, जबकि केरल के SHGs, कैंटीन और परिधान कारखानों का प्रबंधन करते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि महिलाएँ विविध क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं।
      • इससे सिलाई या छोटी दुकानों जैसी कम लाभ वाली गतिविधियों पर निर्भरता कम होती है।
  • नीतिगत समर्थन: ऋण को सस्ता बनाने के लिए ब्याज सहायता योजनाओं (वर्तमान में DAY-NRLM के तहत 7% तक सीमित) का विस्तार करना।
    • SHG उद्यमों के विस्तार के लिए कम लागत वाले ऋण, प्रारंभिक निधि और बुनियादी ढाँचा अनुदान प्रदान करना।
      • उदाहरण: NABARD का SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम दर्शाता है कि समय पर, कम ब्याज दर वाली ऋण संबंधी त्रुटियों को कम करता है और स्थायी उद्यमों को बढ़ावा देता है।
  • निगरानी और जवाबदेही: स्वयं सहायता समूहों के प्रदर्शन, ऋण उपयोग और उद्यम की व्यवहार्यता को वास्तविक समय में ट्रैक करने के लिए डेटा-संचालित डैशबोर्ड, AI-आधारित निगरानी उपकरण और मोबाइल ऐप का उपयोग करना।
    • पारदर्शिता के लिए जिला स्तर पर सामाजिक ऑडिट और नियमित समीक्षा सुनिश्चित करना।
      • उदाहरण: आंध्र प्रदेश की SERP निगरानी प्रणाली पहले से ही स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियों पर नजर रखती है और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नीति आयोग द्वारा इसकी प्रशंसा की गई है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं का अनुकरण: कुदुंबश्री (केरल) और इंदिरा महिला शक्ति (तेलंगाना) जैसे मॉडल दर्शाते हैं कि संघीय स्वयं सहायता समूह पेट्रोल पंप, सौर ऊर्जा संयंत्र और परिवहन बेड़े जैसे बड़े उद्यमों का प्रबंधन कर सकते हैं।
    • इन सफलता की कहानियों को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों में भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जहाँ स्वयं सहायता समूहों का अभी भी कम उपयोग हो रहा है।
    • राज्यों के मध्य समझौता ज्ञापनों, विनिमय यात्राओं और केंद्रीय प्रोत्साहनों के माध्यम से अनुकरण किया जा सकता है।

निष्कर्ष

स्वयं सहायता समूह न्याय, समानता और गरिमा के संवैधानिक दृष्टिकोण को मूर्त रूप देते हैं और सतत् विकास लक्ष्य 1 (गरीबी उन्मूलन), सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता), और सतत् विकास लक्ष्य 8 (सभ्य कार्य एवं आर्थिक विकास) की प्राप्ति को सुगम बनाते हैं। वर्ष 2047 तक एक समावेशी और सुदृढ़ विकसित भारत के निर्माण के लिए इन्हें मजबूत करना न केवल एक नीतिगत आवश्यकता है, बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता भी है।

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