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सेमल वृक्ष (Semal Tree)

Lokesh Pal May 15, 2024 05:30 517 0

संदर्भ

उदयपुर में प्रत्येक वर्ष, होली की पूर्व संध्या पर, एक विशेष पेड़ का उपयोग करके अलाव जलाया जाता है, जिसे रेशम कपास का पेड़ (Silk Cotton Tree) या सेमल कहा जाता है।

संबंधित तथ्य

  • इस आयोजन के लिए कई सेमल के पेड़ अवैध रूप से काटे जाते हैं।
    • पेड़ों की यह कटाई पर्यावरण की रक्षा के लिए बने कई कानूनों जैसे कि राजस्थान वन अधिनियम 1953 तथा वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, के उल्लंघन को बढ़ावा  देती है।

सेमल वृक्ष (Semal Tree)

  • यह एक पर्णपाती वृक्ष है।
  • वानस्पतिक नाम: बॉम्बैक्स सीइबा (Bombax Ceiba)
  • इसे रेशम कपास का पेड़, लाल रेशम-कपास, लाल कपास का पेड़, या अस्पष्ट रूप से रेशम-कपास, मालाबार रेशम-कपास का पेड़, अथवा कपोक (Kapok) के रूप में भी जाना जाता है। 
  • विशेषता: यह एक एशियाई उष्णकटिबंधीय पेड़ है, जो अपने सीधे और ऊँचे तने के लिए जाना जाता है। 
    • आमतौर पर, इसकी पत्तियाँ प्रत्येक सर्दियों में झड़ जाती हैं।
  • वसंत के दौरान, इसमें लाल फूल खिलते हैं, जिनमें से प्रत्येक में पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं।
    • बीजकोष का निर्माण: जैसे-जैसे पेड़ परिपक्व होता है, यह कपास जैसे सफेद रेशों वाले बीजकोष का निर्माण करता है।
  • वृक्षों का रोपण: यह वृक्ष म्याँमार, थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, दक्षिणी चीन और ताइवान सहित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों और क्षेत्रों में व्यापक रूप से लगाया जाता है।
  • अनूठी विशेषताएँ: नुकीला तना, फूली हुई बीज फली (सुंदर फूलों के अलावा)

लाभ/प्रयोग

विवरण

औषधीय गुण
  • सेमल के पेड़ की छाल, पत्तियों और बीजों का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में बुखार, दस्त और त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है।
  • इसका उपयोग घाव भरने के लिए भी किया जाता है।
टिंबर
  • यह लकड़ी मजबूत और लंबे समय तक चलने वाली होती है, जिसका उपयोग निर्माण, फर्नीचर आदि में किया जाता है।
भू-परिदृश्य
  • अपनी आकर्षक उपस्थिति और तेजी से विकास के कारण, सेमल का पेड़ अक्सर सड़कों के किनारे, पार्कों और बगीचों में भू-निर्माण उद्देश्यों के लिए लगाया जाता है।
मृदा स्थिरता
  • गहरी जड़ें मृदा को स्थिर करने में मदद करती हैं, अपरदन को रोकती हैं।
फाइबर
  • रुई जैसे पदार्थ का उपयोग तकिया और कुशन को भरने में किया जाता है।
सांस्कृतिक महत्त्व
  • यह वृक्ष राजस्थान में होली उत्सव जैसी कुछ संस्कृतियों में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखता है।

रेशम कपास के पेड़ का पारिस्थितिकी महत्त्व

  • ‘रॉक बी’ (Rock Bees) की सुरक्षा: अपने काँटों से स्लॉथ भालू जैसे शिकारियों से ‘रॉक बी’ के घोंसलों की रक्षा करता है।
  • भोजन: जनजातीय समुदाय मानसून के दौरान इसकी लाल जड़ों का भोजन के रूप में सेवन करते हैं।
    • कीट के लार्वा के लिए भोजन: इनकी पत्तियाँ बुक्क्युलैट्रिक्स क्रेटरेकामा’ (Bucculatrix crateracma) नामक कीट प्रजाति के लार्वा के लिए भोजन के रूप में कार्य करती है।
  • बीज का महत्त्व: सुनहरे मुकुट वाली गौरैया द्वारा इसके बीजों से प्राप्त सफेद रुई से घोंसला बनाने के लिए बीजों का उपयोग किया जाता है।
  • आश्रय प्रदान करता है: फूलों में मौजूद रस विभिन्न प्रजातियों, जैसे-डिस्डेर्कस बग, इंडियन क्रेस्टेड साही और लंगूर को आकर्षित करता है।
  • एक-वृक्ष का वन्यजीव अभयारण्य: चूँकि यह पेड़ ‘रॉक बी’, ‘गोल्डन क्राउन्ड’ गौरैया और लंगूर सहित विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों का समर्थन करता है, यह ‘एक-वृक्ष आधारित वन्यजीव अभयारण्य’ के रूप में कार्य करता है।

सांस्कृतिक महत्त्व

  • गरसिया जनजाति: इन जनजातियों के सदस्यों का मानना है कि वे सेमल के पेड़ के वंशज हैं।
    • यह पेड़ इन जनजातियों को कृषिवानिकी और भोजन, चारा तथा ईंधन की लकड़ी जैसे संसाधन प्रदान करता है।
  • कथोड़ी (Kathodi) जनजाति: यह जनजाति अपनी लकड़ी से वाद्ययंत्र बनाती है।
  • भील जनजाति: यह जनजाति सेमल के पेड़ों का उपयोग करके बर्तन बनाती है।

संरक्षण चुनौतियाँ

  • होलिका दहन समारोह के लिए पेड़ों की कटाई: कानूनी सुरक्षा के बावजूद, प्रत्येक वर्ष उदयपुर में होलिका दहन समारोह के लिए लगभग 1,500-2,000 सेमल के पेड़ या शाखाएँ काट दी जाती हैं।
    • कभी प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले सेमल के पेड़ पर लाल रंग के फूल अब कम ही दिखाई देते हैं, जो अत्यधिक कटाई के कारण इसकी आबादी में गिरावट का संकेत देता है।
  • जनजातीय सदस्यों के लिए आर्थिक अवसर
    • जनजातीय समुदाय आय के लिए छोटे कृषि भू-खंडों, पशुधन और शारीरिक श्रम पर निर्भर हैं।
      • वे बाँस, पोंगामिया पिन्नाटा बीज और महुआ फूल जैसे छोटे वन उत्पाद इकट्ठा करते हैं और बेचते हैं।
    • सेमल के पेड़ों को काटने में कुछ आदिवासी सदस्य भी शामिल हैं। वे इसे एक आर्थिक अवसर के रूप में देखते हैं क्योंकि जंगली पेड़ों की कटाई के लिए फसल उगाने की तुलना में कम प्रयास और लागत की आवश्यकता होती है।
      • उच्च शहरी माँग: सेमल के पेड़ों की उच्च माँग है, विशेष रूप से बड़े होलिका दहन कार्यक्रमों की मेजबानी करने वाले शहरी क्षेत्रों में।
        • वृक्षों का लुप्त होना: इसके कारण दक्षिण राजस्थान के जंगलों से सेमल के वृक्ष लुप्त हो गए हैं।
  • औपचारिक दस्तावेजीकरण का अभाव: वर्ष 2009 में किए गए एक अध्ययन के बाद से इस विषय पर बहुत कम औपचारिक दस्तावेजीकरण या शोध हुआ है।

संरक्षण हेतु प्रयास

  • सेमल संरक्षण मिशन’: वर्ष 2008 में ‘सोसायटी फॉर माइक्रोविटा रिसर्च एंड इंटीग्रेटेड मेडिसिन’ के तहत इस मिशन की शुरुआत की गई थी।
    • मिशन में सेमल के पेड़ों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाले पेशेवरों का एक विविध समूह शामिल है।
      • वे होली जलाने के लिए सेमल के पेड़ों के बजाय लोहे के खंभे का उपयोग करने की भी समर्थन करते हैं।
  • सरकारी पहल: स्थानीय और राज्य सरकार के निकाय, सेमल के पेड़ की सुरक्षा के उद्देश्य से कानूनों को लागू करने में बहुत कम रुचि दिखा रहे हैं क्योंकि वर्षों की क्षति के बावजूद, सेमल की आबादी में गिरावट से संबंधित बहुत कम दस्तावेज उपलब्ध हैं।
    • सेमल के पेड़ राजस्थान की ‘दुर्लभ, लुप्तप्राय और संकटग्रस्त’ प्रजातियों की सूची में दर्ज नहीं हैं।
    • इसलिए, हानि का दस्तावेजीकरण करने के लिए वन विभाग और अन्य शोधकर्ताओं को प्रयास करने की आवश्यकता है।

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