तमिलनाडु सरकार पुलिकट पक्षी अभयारण्य के एक बड़े क्षेत्र को गैर-अधिसूचित करने की योजना बना रही है।
संबंधित तथ्य
इस जैव विविधता समृद्ध क्षेत्र के अंदर स्थित 13 राजस्व गाँवों में पट्टा भूमि को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत दावा प्रक्रिया पूरी करने के बाद अभयारण्य से बाहर किया जा सकता है।
चिंताएँ
इस कदम के समय ने चिंताएँ बढ़ा दी हैं क्योंकि यह विवादास्पद अडानी-कट्टुपल्ली बंदरगाह विस्तार के लिए बड़ी बाधाओं को दूर कर देगा, जिसकी उत्तरी सीमा पुलिकट पक्षी अभयारण्य क्षेत्र कम होने पर पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) से बाहर हो जाएगी।
पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ)
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) में निर्धारित किया गया है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत राज्य सरकारों को राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी. के भीतर आने वाली भूमि को इको सेंसिटिव जोन या पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करना चाहिए।
हालाँकि 10 किलोमीटर के नियम को एक सामान्य सिद्धांत के रूप में लागू किया गया है, इसके क्रियान्वयन की सीमा अलग-अलग हो सकती है। पारिस्थितिकी रूप से महत्त्वपूर्ण एवं विस्तृत क्षेत्रों, जो 10 किमी. से परे हों, को केंद्र सरकार द्वारा ESZ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।
यह परियोजना को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) से मंजूरी की आवश्यकता से छूट दे सकता है। पर्यावरणविद् और स्थानीय मछुआरे पक्षी अभयारण्य के लिए संभावित खतरे और सैकड़ों एकड़ आर्द्रभूमि के प्रस्तावित अधिग्रहण के कारण कट्टुपल्ली बंदरगाह के विस्तार के खिलाफ चिंता व्यक्त कर रहे हैं।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
यह अधिनियम उन पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध करता है, जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर की सुरक्षा तथा निगरानी प्रदान की जाती है।
वन्यजीव अधिनियम ने CITES (वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन) में भारत के प्रवेश को सरल बना दिया था।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के दायरे में नहीं आता था। लेकिन अब पुनर्गठन अधिनियम के परिणामस्वरूप भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है।
वर्ष 1980 में राज्य सरकार ‘पुलिकट पक्षी अभयारण्य’ को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत लाई।
अभयारण्य की सीमा का अब तक सीमांकन नहीं किया गया था। अधिनियम के अनुसार, धारा 26(A) के तहत अंतिम अधिसूचना जारी की जानी चाहिए।
अभयारण्य की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की प्रक्रिया में, यह महत्त्वपूर्ण है कि ESZ को बनाए रखा जाए या तार्किक रूप से विस्तारित भी किया जाए ताकि संपूर्ण जलक्षेत्र और पक्षी आवास सुरक्षित रहे तथा संरक्षण योजना के अंतर्गत आ जाए।
पुलिकट पक्षी अभयारण्य
पुलिकट झील पक्षी अभयारण्य भारत का दूसरा सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है।
यह अभयारण्य आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले और तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले में फैला हुआ है।
यह प्रत्येक वर्ष सर्दियों के दौरान बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों की मेजबानी करता है, जिनमें गल्स, टर्न, प्लोवर, शैंक्स, कर्लेव्स और सारस शामिल हैं।
अभयारण्य विभिन्न प्रकार की पक्षी प्रजातियों का घर है, जैसे राजहंस, पेलिकन, सारस, बगुले और बत्तख।
अभयारण्य के मुख्य आकर्षणों में नेलापट्टू, वेदुरुपट्टू, बोडिलिंगलापाडु आदि शामिल हैं।
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