एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि अरल सागर के सूखने से बने रेगिस्तान ने मध्य एशिया में धूल की मात्रा काफी बढ़ा दी है।
संबंधित तथ्य
अरल सागर के अलावा पश्चिम एवं मध्य एशिया के अन्य क्षेत्र भी ‘धूल के कटोरे’ में परिवर्तित हो गए हैं।
ईरान में उर्मिया झील एवं ईरान-अफगानिस्तान सीमा पर हामौन झील (Hamoun Lake) का आकार हाल के दशकों में काफी कम हो गया है।
अरल सागर के बारे में
इसे उज्बेकिस्तान में ओरोल डेंगीजी (Orol Dengizi) या कजाकिस्तान में अरल तेंगीजी (Aral Tengizi) के नाम से भी जाना जाता है।
यह मध्य एशिया की चौथी सबसे बड़ी अंतर्देशीय झील थी।
1960 के दशक के बाद यह सूख गया एवं रेगिस्तान में परिवर्तित हो गया।
रेगिस्तान का नाम: अरलकुम रेगिस्तान (Aralkum Desert)
यह आस-पास के रेगिस्तानों से छोटा है:-
काराकुम (350,000 वर्ग किमी.) तुर्कमेनिस्तान में एवं उज्बेकिस्तान एवं कजाकिस्तान में क्यजिलकुम (300,000 वर्ग किमी.)।
अपने आकार के बावजूद, अरलकम रेगिस्तान दुनिया भर में मानव निर्मित धूल का एक प्रमुख स्रोत है।
अरल सागर का स्थान: यह उज्बेकिस्तान एवं कजाकिस्तान के बीच की सीमा पर दक्षिण से उत्तर तक फैला हुआ है।
जलवायु: इस क्षेत्र में गर्म ग्रीष्मकाल एवं ठंडी सर्दियों के साथ रेगिस्तानी-महाद्वीपीय जलवायु है।
प्रमुख नदियाँ:अमु दरिया, जिसे प्राचीन काल में ऑक्सस (Oxus) के नाम से जाना जाता था, एवं सीर दरिया, जिसे जैक्सर्ट्स (Jaxartes) भी कहा जाता है।
वे क्रमशः पामीर एवं तियन शान पर्वत शृंखलाओं से प्रवाहित हुए थे।
अरल सागर आपदा के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं?
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष अरल सागर आपदा के विभिन्न सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को दर्शाते हैं।
मरुस्थलीकरण (Desertification)
यह तब होता है, जब प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से शुष्क भूमि कम उत्पादक हो जाती है।
मरुस्थलीकरण के प्रभाव
वनस्पति का विनाश
मृदा की उर्वरता नष्ट होना
जल प्रदूषण
जैव विविधता की हानि एवं प्रजातियों का विलुप्त होना
अकाल, गरीबी, सामाजिक अशांति
बड़े पैमाने पर पलायन यानी पर्यावरणीय प्रवासन
खाद्य सुरक्षा मुद्दे
मरुस्थलीकरण में वृद्धि: पिछले तीन दशकों में, अरल सागर के सूखने से पूरे मध्य एशिया में धूल के स्तर में 7% की वृद्धि हुई है। वर्ष 1985 से 2015 की अवधि के दौरान, विस्तारित रेगिस्तान से धूल का उत्सर्जन लगभग दोगुना हो गया, जो 14 से 27 मिलियन टन तक बढ़ गया।
अधिक शीतलन और तापन: अरल सागर/अरालकुम क्षेत्र में धूल उत्सर्जन में दो गुना वृद्धि के कारण सतह एवं हवा दोनों में अधिक शीतलन और तापन हुआ है।
यह धूल दिन में सूर्य की रोशनी को रोककर क्षेत्र को ठंडा कर देती है एवं रात में स्थल से निकलने वाली ऊष्मा को रोककर पृथ्वी को गर्म कर देती है।
तापमान पर धूल का समग्र प्रभाव धूल की मात्रा, दिन का समय, मौसम, सतह की चमक एवं धूल के गुणों जैसे कारकों पर निर्भर करता है।
धूल भरी आँधी: अरल सागर धूल भरी आँधी का स्रोत बन गया है।
धूल का प्रभाव
खराब होती वायु गुणवत्ता: यह सैकड़ों किलोमीटर दूर के शहरों में वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है, इस प्रकार ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे एवं तुर्कमेनिस्तान की राजधानी असगाबात को प्रभावित कर सकती है।
साइबेरियन हाई (Siberian High)
यह ठंडी, शुष्क हवा का एक बड़ा क्षेत्र है जो नवंबर से फरवरी तक उत्तरपूर्वी यूरेशिया में एकत्रित होता है।
मौसम के पैटर्न में बदलाव: यह प्रत्येक महीने हवा पर +0.76 पास्कल तक जाने का दबाव डाल सकता है।
यह सर्दियों में साइबेरियाई उच्च को मजबूत एवं गर्मियों में मध्य एशियाई गर्म निम्न को कमजोर बना सकता है।
धूल की घटनाएँ मौसमी होती हैं एवं जून, सितंबर, नवंबर, दिसंबर तथा मार्च में अधिक होती हैं।
स्वास्थ्य समस्याएँ
धूल से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ: अरलकुम रेगिस्तान के उद्भव के परिणामस्वरूप धूल भरी आंधियों की संख्या बढ़ गई हैं।
आस-पास रहने वाले लोगों को धूल के छोटे कणों में साँस लेने से स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो रही है।
धूल अपने साथ कृषि में उपयोग किए गए रसायनों को उड़ा ले जाती है, जिससे यह अधिक हानिकारक हो जाती है।
जलजनित बीमारियाँ: अरल सागर में बचा हुआ पानी अत्यधिक खारा एवं प्रदूषित हो गया जिसके कारण जलजनित बीमारियाँ बढ़ गईं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ।
कृषि उत्पादकता में कमी: धूल अरलकुम रेगिस्तान से नीचे की ओर कृषि क्षेत्रों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
आजीविका का नुकसान
मछली पकड़ने का उद्योग: जल स्तर गिरने से अरल सागर के पास मत्स्य उद्योग नष्ट हो गया।
कृषि: समुद्र के घटते आकार ने खेती के सामान्य तरीकों को बाधित कर दिया है। जो खेत पहले सिंचाई के लिए समुद्र के जल पर निर्भर थे, वे अनुत्पादक हो गए, जिससे फसल की पैदावार एवं लोगों के जीविकोपार्जन के तरीके प्रभावित हुए।
जल संघर्ष: नदी अपवाह को प्रभावित करने वाली सिंचाई परियोजनाओं के कारण अरल सागर बेसिन साझा करने वाले देशों (जैसे- कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान एवं तुर्कमेनिस्तान) के बीच संघर्ष का खतरा उत्पन्न हो गया है।
जल की कमी के कारण इस मुद्दे ने भू-राजनीतिक विवादों की संभावना को और बढ़ा दिया है।
आर्थिक गिरावट
पर्यटन: अरल सागर पर्यटकों को आकर्षित करता था, लेकिन इसके लुप्त होने से पर्यटन से आय प्रभावित हुई, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाएँ प्रभावित हुईं।
व्यापार मार्ग: समुद्र के जल स्तर के घटने से पुराने व्यापार मार्ग अस्त-व्यस्त हो गए, जिससे देशों के बीच व्यापार एवं संपर्क प्रभावित हुए।
अरल सागर संकट के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास
संयुक्त राष्ट्र संयुक्त कार्यक्रम
UNDP, विश्व स्वास्थ्य संगठन, UNESCO, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष एवं संयुक्त राष्ट्र स्वयंसेवकों सहित संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का एक संघ, ‘अरल सागर आपदा से प्रभावित आजीविका को बनाए रखना’ नामक एक संयुक्त कार्यक्रम के माध्यम से सहयोग करता है।
उनके अथक परिश्रम का उद्देश्य संकट से प्रभावित लोगों के जीवन एवं आजीविका में सुधार करना है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अरल सागर क्षेत्र को ‘पारिस्थितिक नवाचारों एवं प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र’ के रूप में मान्यता देने वाला एक प्रस्ताव पारित किया।
प्रस्ताव में सभी सदस्य देशों से इस क्षेत्र का समर्थन करने का आह्वान किया गया है।
यह चुनौतियों पर नियंत्रण पाने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका पर केंद्रित है।
यह स्थानीय ज्ञान पर आधारित नवीन समाधानों में निवेश को भी प्रोत्साहित करता है।
उपायों का व्यापक कार्यक्रम
वर्ष 2018 में, मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रपतियों ने तुर्कमेनिस्तान में बैठक की एवं अरल आपदा के परिणामों को कम करने तथा अरल सागर क्षेत्र के विकास के लिए उपायों का व्यापक कार्यक्रम स्थापित किया।
यह कार्यक्रम जल संरक्षण, पारिस्थितिकी संरक्षण एवं मध्य एशियाई देशों के बीच समन्वित प्रयासों को संबोधित करता है।
Latest Comments