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प्रछन्न दुर्भिक्ष (Silent famine): खाद्य सुरक्षा बनाम पोषण सुरक्षा (Silent famine: Food security versus nutritional security)

Samsul Ansari January 23, 2024 05:29 173 0

संदर्भ 

‘द साइंटिफिक रिपोर्ट्स एज पार्ट ऑफ जर्नल नेचर’ (The Scientific Reports as part of  journal Nature) में प्रकाशित एक अध्ययन में भारत की पोषण सुरक्षा पर हरित क्रांति के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।

संबंधित तथ्य

  • यह अध्ययन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय और तेलंगाना में राष्ट्रीय पोषण संस्थान के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में अनाज आहार पर निर्भर आबादी में जिंक और आयरन की कमी के कारणों का पता लगाने के लिए वर्ष 2021 में किए गए पिछले अध्ययन का विस्तार था।
  • उद्देश्य: इस अध्ययन में हरित क्रांति के माध्यम से भारत द्वारा खाद्य सुरक्षा हासिल करने और इसकी घटती पोषण सुरक्षा प्रवृत्ति के बीच असंगत संबंध पर प्रकाश डाला गया।

अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष

  • प्रयोग: वैज्ञानिकों ने वर्ष 2018 और वर्ष 2020 के बीच चावल और गेहूँ की ‘ऐतिहासिक’ उच्च उपज वाली किस्में उगाईं, जिसमें अध्ययन के लिए चावल की 16 और गेहूँ की 18 किस्मों को चुना गया।
    • ‘कल्टीवर्स’ (Cultivars) वे पौधे होते हैं, जिन्हें विशिष्ट विशेषताओं के लिए विकसित किया जाता है। 1960 के दशक की हरित क्रांति के बाद से चावल और गेहूँ की लगभग 1,500 विभिन्न किस्में जारी की गई हैं।
  • अध्ययन का उद्देश्य: अनाज के खनिज घनत्व और मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी के बीच किसी भी संबंध को समाप्त करना। 
  • यह स्थापित करना कि चावल और गेहूँ की आधुनिक किस्में मृदा में प्रचुर मात्रा में होने के बावजूद जिंक और आयरन को अलग करने में कम कुशल हैं।
  • परिणाम
    • लक्षणों का आनुवंशिक बहिष्करण: जैसे-जैसे ब्रीडिंग आगे बढ़ी, 2000 और 2010 के दशक की किस्मों में 1970 और 80 के दशक की पारंपरिक किस्मों की तुलना में चार आवश्यक तत्त्वों (Ca, Zn, Fe, Cu) की सांद्रता कम थी।
    • उदाहरण
      • 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों के दानों में कैल्शियम (Ca), जस्ता (Zn) और आयरन (Fe) की सांद्रता क्रमशः 337 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम, 19.9 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम और 33.6 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम थी।
      • वर्ष 2000 और वर्ष 2010 के बीच इनमें क्रमशः 186.3 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम (45 प्रतिशत गिरावट), 13.4 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम (33 प्रतिशत गिरावट), और 23.5 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम (30 प्रतिशत गिरावट) की गिरावट देखी गई।
    • घटता पोषण: पिछले 50 वर्षों में चावल और गेहूँ के पोषण मूल्य में 45 प्रतिशत तक की कमी आई है, जिससे वर्ष 2040 तक मानव उपभोग के लिए अनाज के अनुपयुक्त हो जाने का खतरा है।
      • चावल में लीथियम (Li) और वैनेडियम (V) की सांद्रता को छोड़कर अन्य सभी लाभकारी तत्त्व तथा चावल और गेहूँ में सिलिकॉन (Si), निकेल (Ni), सिल्वर (Ag) और गैलियम (Ga) जैसे तत्त्व पुरानी किस्मों की तुलना में समाप्त हो गए हैं।
    • विषाक्त पदार्थों में वृद्धि: चावल में विषैले तत्त्व आर्सेनिक की सांद्रता 1,493 प्रतिशत बढ़ गई है।
      • आर्सेनिक, क्रोमियम, बेरियम और स्ट्रेंसियम जैसे धातु विषाक्त पदार्थों के मौखिक अंतर्ग्रहण के परिणामस्वरूप पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियाँ, हृदय रोग, हाइपरकेराटोसिस, गुर्दे की बीमारियाँ और बॉन कैल्सीफिकेशन (Bone Calcification) जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
    • गैर-संचारी रोगों (NCDs) की घटनाओं में वृद्धि: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 से 2016 तक भारतीय आबादी के बीच NCDs में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।

    • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी: सूक्ष्म पोषक तत्त्व सामान्यतः विटामिन और खनिजों को संदर्भित करते हैं जो स्थूल खनिजों, अवशिष्ट खनिजों और जल एवं वसा में घुलनशील विटामिन में विभाजित होते हैं।
      • उदाहरण: अस्थियों के निर्माण के लिए फॉस्फोरस (P), कैल्शियम (Ca), सिलिकॉन (Si) और वैनेडियम (V), जिंक (Zn) प्रतिरक्षा, प्रजनन और तंत्रिका संबंधी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है तथा आयरन (Fe) हीमोग्लोबिन निर्माण के लिए आवश्यक है।
      • भारत में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से पीड़ित 2 अरब वैश्विक आबादी में से एक-तिहाई उपस्थित है।
  • स्टंटिंग दर (Stunting Rate): राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट 2019-2020 के अनुसार, संपूर्ण देश में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 35 प्रतिशत तथा 161 जिलों में पाँच वर्ष से कम उम्र के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे स्टंटिंग से पीड़ित हैं।

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