भारत ने हाल ही में ईरान में चाबहार बंदरगाह के बाद म्याँमार में सितवे बंदरगाह के संचालन का अधिकार सुरक्षित कर लिया है।
संबंधित तथ्य
विदेश मंत्रालय (MEA) ने कलादान नदी पर स्थित बंदरगाह पर सभी परिचालनों का प्रबंधन करने के लिए ‘इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल’ (IPGL) के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की है।
कलादान नदी (Kaladan River)
यह भारत के पूर्वी मिजोरम राज्य में एक नदी है।
यह पश्चिमी म्याँमार के चिन और रखाइन प्रांत से बहती है।
अन्य नाम: बीनो, बाविनु और कोलोडाइन
भारत में कालादान नदी को छिमतुईपुई (Chhimtuipui) नदी कहा जाता है।
यह 22° 47′ 10″ N, जहाँ तियाउ नदी इसमें मिलती है, से 22° 11′ 06″ Nर तक भारत और बर्मा (म्याँमार) के बीच सीमा के रूप में कार्य करती है।
IPGL एक ऐसी कंपनी है, जिसका पूर्ण स्वामित्व बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय के पास है। IPGL जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) और दीनदयाल पोर्ट ट्रस्ट (जिसे पहले कांडला पोर्ट ट्रस्ट के नाम से जाना जाता था) के बीच एक साझेदारी है।
इसका गठन शिपिंग मंत्रालय (MoS) के निर्देशानुसार, कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत जनवरी 2015 में किया गया था।
इसका उद्देश्य विदेशों में बंदरगाहों का विकास करना है।
सितवे बंदरगाह समझौता
बंदरगाह का नाम: सितवे
अवस्थिति: म्याँमार
संचालक: इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL)
परियोजना संदर्भ: सितवे बंदरगाह ‘कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना’ का हिस्सा है।
उद्देश्य: पूर्वी भारतीय बंदरगाह कोलकाता को समुद्री मार्गों के माध्यम से म्याँमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ना।
इसके अतिरिक्त, यह कलादान नदी जलमार्ग का उपयोग करके म्याँमार में सितवे बंदरगाह से ‘पलेतवा’ तक एक कनेक्शन स्थापित करना चाहता है।
इसके अलावा, इसका लक्ष्य सड़क के माध्यम से पलेतवा को मिजोरम में जोरिनपुई से जोड़ना है।
परियोजना का प्राथमिक लक्ष्य पूर्वोत्तर राज्यों में वस्तु के लिए एक वैकल्पिक शिपिंग मार्ग प्रदान करना है।
सितवे समझौते की मंजूरी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
परिवहन लागत और दूरी में कमी: सितवे बंदरगाह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में वस्तु भेजने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करेगा, जो कोलकाता के माध्यम से वर्तमान मार्ग की तुलना में दूरी और लागत को कम करने में महत्त्वपूर्ण मदद करेगा।
बढ़ी हुई कनेक्टिविटी: कलादान मल्टी-मॉडल परियोजना, जिसमें सितवे बंदरगाह एक हिस्सा है, पूर्वी भारत को म्याँमार और भारत के उत्तर-पूर्व से जोड़ने वाला एक नया मार्ग बनाता है। इससे समग्र व्यापार कनेक्टिविटी में सुधार होता है।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता कम होगी: सितवे बंदरगाह सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता कम करेगा, जिसे “चिकन नेक” के नाम से जाना जाता है, जो भूटान और बांग्लादेश के बीच भूमि की एक संकीर्ण पट्टी है।
रणनीतिक महत्त्व: यह पहल म्याँमार में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) प्रभाव का मुकाबला करते हुए, भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक उपस्थिति को मजबूत करेगी।
इससे समुद्री सुरक्षा और समुद्री डकैती विरोधी प्रयासों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
उत्तर-पूर्व भारत को बढ़ावा: सितवे बंदरगाह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से आवश्यक वस्तुओं और तैयार उत्पादों के परिवहन के लिए एक तेज और सस्ता मार्ग प्रदान करेगा।
इससे नए बाजारों तक पहुँच के कारण क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ और व्यापार बढ़ सकता है।
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