भारत में स्जोग्रेन रोग के मरीज निदान और लक्षणों के प्रबंधन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
स्जोग्रेन रोग (Sjögren’s Disease)
स्जोग्रेन रोग एक दीर्घकालिक स्वप्रतिरक्षी विकार है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से शरीर की नमी पैदा करने वाली ग्रंथियों पर हमला करता है।
आमतौर पर यह आँखों और मुंह में सूखापन उत्पन्न करता है, लेकिन जोड़ों, त्वचा, फेफड़ों, गुर्दे और तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित कर करता है।
यह मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है (पुरुषों की तुलना में 10 गुना अधिक संभावना) और आमतौर पर 30 या 40 के दशक में प्रकट होता है, हालाँकि यह किसी भी आयु में हो सकता है।
रोग का कारण: शोधकर्ताओं को यह नहीं पता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर पर किस कारण से सक्रिय होती है, लेकिन उनका मानना है कि इसमें आनुवंशिक और पर्यावरणीय दोनों कारक शामिल हैं।
अध्ययनों ने स्जोग्रेन रोग को कई जीनों में भिन्नताओं (परिवर्तनों) से जोड़ा है, जिनमें से कई प्रतिरक्षा से जुड़े हैं।
निदान में चुनौतियाँ
इसके जटिल और अतिव्यापी लक्षणों के कारण अक्सर वर्षों तक इसका निदान नहीं हो पाता।
स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों में जागरूकता की कमी के कारण निदान में देरी होती है।
व्यापकता और जोखिम कारक
वैश्विक अनुमानों के अनुसार, यह 1,000 लोगों में से 1 को प्रभावित करता है, हालाँकि भारत-विशिष्ट डेटा सीमित है।
आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है; महिलाओं और वृद्ध व्यक्तियों में इसका जोखिम अधिक है।
रोगी का समर्थन
‘सोजग्रेन इंडिया’: मरीजों के लिए जागरूकता बढ़ाना और संसाधन उपलब्ध कराना।
मरीजों और डॉक्टरों के बीच साझेदारी: मरीजों और डॉक्टरों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देकर उन्हें सशक्त बनाना।
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