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भविष्य के लिए कौशल: भारत के कार्यबल परिदृश्य में परिवर्तन

Lokesh Pal July 01, 2025 02:25 15 0

संदर्भ

केंद्रीय मंत्री ने “प्रतिस्पर्द्धा हेतु संस्थान ” (Institute for Competitiveness- IFC) द्वारा विकसित “भविष्य के लिए कौशल: भारत के कार्यबल परिदृश्य में परिवर्तन” शीर्षक से एक नई रिपोर्ट जारी की।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

भारत का कौशल परिदृश्य

  • भारत के 88% कार्यबल कम-योग्यता वाले व्यवसायों (कौशल स्तर 1 और 2) में संलग्न हैं।
  • केवल 10-12% उच्च-योग्यता वाली भूमिकाओं में हैं, जो एक महत्त्वपूर्ण कौशल अंतराल (कौशल स्तर 3 और 4) को दर्शाता है।
  • केवल 9.76% आबादी के पास माध्यमिक स्तर से आगे की शिक्षा है; 52% प्राथमिक स्तर पर या उससे नीचे हैं।

कौशल असंगति संकट (Skill Mismatch Crisis)

  • शैक्षिक योग्यता और व्यावसायिक आवश्यकताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण असंगति मौजूद है।
  • कौशल स्तर 3 (स्नातक) में सबसे कम अनुकूलता 8.25% रही, जबकि कौशल स्तर 2 (माध्यमिक शिक्षा) में यह सबसे अधिक 72.18% थी।
  • 50% से अधिक स्नातक (शैक्षणिक कौशल स्तर 3) अपनी योग्यता से कम नौकरियों में कार्यरत हैं (जैसे- दुकानदार, ऑपरेटर)।
  • एक छोटा लेकिन चिंताजनक समूह ऐसी नौकरियों में संलग्न है, जो उनके शिक्षा स्तर से अधिक हैं, जो मुख्य रूप से अनौपचारिक ‘अपस्किलिंग’ या अनुभव के कारण हैं।
  • कम योग्यता की तुलना में अधिक योग्यता अधिक प्रचलित है।

कौशल स्तर

तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (Technical and Vocational Education and Training-TVET) प्रदर्शन

  • TVET का उद्देश्य शिक्षा और श्रम बाजार की आवश्यकताओं के बीच के अंतराल को पाटना है।
  • कार्यबल के केवल 4.5% लोगों को औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है।
  • अधिकांश TVET कार्यक्रम कौशल स्तर 2 में केंद्रित हैं, जो वर्तमान उद्योग की आवश्यकताओं के साथ सीमित रूप से संरेखित हैं।
  • पाँच क्षेत्र – इलेक्ट्रॉनिक्स, IT-ITeS, कपड़ा और परिधान, स्वास्थ्य सेवा और जीवन विज्ञान, सौंदर्य और कल्याण, व्यावसायिक प्रशिक्षण नामांकन का 66% से अधिक हिस्सा रखते हैं।

महत्त्वपूर्ण अंतर-राज्यीय भिन्नताएँ

  • केरल और चंडीगढ़ जैसे राज्य कौशल 3 और 4 व्यवसायों में अग्रणी हैं।
  • बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 90% से अधिक कार्यबल कम कौशल वाली नौकरियों में संलग्न हैं।
  • उच्च कौशल युक्त नौकरियाँ कुछ शहरी क्षेत्रों में ही सीमित हैं, जो कौशल और नौकरी की गुणवत्ता में ग्रामीण-शहरी विभाजन को उजागर करती हैं।

आर्थिक निहितार्थ (Economic Implications)

  • 46% कार्यबल ₹1 लाख/वर्ष से कम कमाता है।
  • 5% से भी कम लोग ₹4 लाख/वर्ष से अधिक कमाते हैं।

कौशल विकास पहल

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana- PMKVY): एक प्रमुख कौशल प्रमाणन योजना, जिसे बेहतर रोजगार अवसरों के लिए उद्योग-संबंधित प्रशिक्षण के साथ युवाओं को सशक्त बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • उन्नत व्यावसायिक प्रशिक्षण योजना (Advanced Vocational Training Scheme- AVTS): चुनिंदा कौशल क्षेत्रों में अल्पकालिक मॉड्यूलर प्रशिक्षण (1 से 6 सप्ताह तक) प्रदान करती है। यह विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों और प्रतिष्ठानों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनुकूलित पाठ्यक्रम भी प्रदान करती है।
  • आजीविका संवर्द्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (संकल्प): प्रशिक्षण संस्थानों को सशक्त करके, उद्योग संबंधों को बढ़ाकर और वंचित तथा हाशिए पर स्थित समूहों के समावेशन को बढ़ावा देकर अल्पकालिक कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता एवं पहुँच दोनों को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • औद्योगिक मूल्य संवर्द्धन के लिए कौशल सुदृढ़ीकरण (स्ट्राइव): इसका उद्देश्य औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (Industrial Training Institutes- ITI) और प्रशिक्षुता कार्यक्रमों के माध्यम से प्रदान किए जाने वाले कौशल प्रशिक्षण की प्रभावशीलता और गुणवत्ता को बढ़ाना है।
  • प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (Pradhan Mantri Kaushal Kendra- PMKK): उच्च गुणवत्ता वाले, उद्योग संचालित कौशल पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए प्रत्येक जिले में स्थापित किए जा रहे अत्याधुनिक मॉडल प्रशिक्षण केंद्र हैं।

भारत में कौशल परिदृश्य से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ

  • कौशल असंगति संकट
    • श्रमिक अति-योग्य (विशेष रूप से कम कौशल वाली नौकरियों में स्नातक) और अल्प-योग्य (उच्च कौशल वाली भूमिकाओं में कम शिक्षित व्यक्ति) दोनों हैं।
    • यह असंगति आर्थिक अक्षमताओं, वेतन में स्थिरता और खराब कार्यबल उत्पादकता की ओर ले जाता है।
  • TVET का खराब प्रदर्शन
    • TVET को अभी भी कम मान्यता प्राप्त है, संसाधनों की कमी है और सामान्य शिक्षा के साथ इसका एकीकरण ठीक से नहीं हुआ है।
    • प्रमाणन दरें और पाठ्यक्रम पूरा होने की दर राज्य और क्षेत्र के अनुसार व्यापक रूप से भिन्न होती है।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन और क्षेत्रीय असमानता
    • ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल अवसरों तक पहुँच काफी कम है।
    • प्रवास दबाव, युवा बेरोजगारी और बढ़ती अंतर-राज्यीय असमानताएँ बनी हुई हैं।
  • अनौपचारिक रोजगार का प्रचलन: कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक, कम वेतन वाली नौकरियों में लगा हुआ है, जिसमें सामाजिक सुरक्षा, गतिशीलता या काम की गरिमा नहीं है।
  • डेटा की कमी: कोई मानकीकृत, राष्ट्रीय स्तर का कौशल अंतर विश्लेषण सर्वेक्षण नहीं।
    • महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और ग्रामीण युवाओं के लिए अपर्याप्त अवसर।

मुख्य अनुशंसाएँ

  • TVET की प्रासंगिकता और गुणवत्ता को बढ़ाना: TVET पाठ्यक्रम को कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नवीकरणीय ऊर्जा आदि जैसे उभरते क्षेत्रों के साथ जोड़ना।
    • प्रशिक्षण मानकों में सुधार करना, नियोक्ता की भागीदारी को शामिल करना, और प्रशिक्षुओं से पाठ्यक्रम फीडबैक तंत्र शुरू करना।
  • शिक्षा-रोजगार संबंध
    • उद्योग संबंधों को अनिवार्य बनाना: उद्योगों को PMKVY-प्रमाणित व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए प्रोत्साहित या अनिवार्य किया जाना चाहिए।
    • प्रतिक्रिया तंत्र शुरू करना: कार्यक्रम की गुणवत्ता और उपयोगिता का मूल्यांकन करने के लिए प्रशिक्षुओं से प्रशिक्षण के बाद प्रतिक्रिया एकत्र करना।
  • लक्षित राज्य स्तरीय हस्तक्षेप (Targeted State-Level Interventions)
    • क्षेत्रीय औद्योगिक समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हुए राज्य विशिष्ट कौशल रोडमैप को प्रोत्साहित करना।
    • राज्यों को कौशल मिशनों को रोजगार कार्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ एकीकृत करना चाहिए।
  • वर्गीकरण और ‘क्रेडिट सिस्टम’ को अपडेट करना
    • नई और ‘हाइब्रिड जॉब’ भूमिकाओं को शामिल करने के लिए व्यवसायों के राष्ट्रीय वर्गीकरण (National Classification of Occupations- NCO) को आधुनिक बनाना।
    • एक राष्ट्रीय क्रेडिट रिपॉजिटरी विकसित करना, जो औपचारिक शिक्षा, कौशल प्रमाण-पत्र और कार्य अनुभव को एकीकृत करती हो।

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