केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से सर्पदंश के मामलों को ‘अधिसूचित रोग’ के रूप में वर्गीकृत करने का अनुरोध किया है।
संबंधित तथ्य
राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम या अन्य लागू कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत, संदिग्ध और संभावित सर्पदंश के मामलों और उनसे होने वाली मौतों की रिपोर्ट करना अनिवार्य होगा।
यह निर्देश सरकारी और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं, जिसमें मेडिकल कॉलेज भी शामिल हैं, दोनों पर लागू होता है।
यह पहल सर्पदंश के रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPSE) के अनुरूप है।
सर्पदंश से होने वाले विष के निवारण एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPSE)
लॉन्च: वर्ष 2023 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया।
उद्देश्य: वर्ष 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों में कमी लाना।
कार्यान्वयन: इसमें बहुआयामी दृष्टिकोण शामिल है, जिसमें शामिल हैं:-
जागरूकता अभियान: सर्पदंश की रोकथाम और प्राथमिक उपचार के बारे में लोगों को शिक्षित करना।
क्षमता निर्माण: सर्पदंश प्रबंधन में स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना।
एंटी-वेनम आपूर्ति: एंटी-वेनम की पर्याप्त और समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करना।
अनुसंधान और विकास: सर्पदंश के विष और उपचार पर अनुसंधान का समर्थन करना।
सामुदायिक सहभागिता: रोकथाम और नियंत्रण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
अधिसूचित रोगों के बारे में
अधिसूचित रोग वे हैं, जिनके संदर्भ में कानूनी तौर पर सरकारी प्राधिकारियों को सूचित करना आवश्यक होता है।
इनमें ऐसे संक्रमण शामिल हैं जिनसे प्रकोप या मृत्यु होने की संभावना होती है, जिसके लिए त्वरित जाँच और सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय आवश्यक होते हैं।
उत्तरदायित्व: राज्य सरकारें रोगों को अधिसूचित करने और रिपोर्टिंग तंत्र को लागू करने के लिए उत्तरदायी हैं। क्षेत्रीय स्वास्थ्य चिंताओं के आधार पर राज्यों में अधिसूचित रोगों की सूची अलग-अलग होती है।
उद्देश्य: बीमारियों की सूचना देने से अधिकारी प्रकोपों की निगरानी और प्रबंधन प्रभावी ढंग से कर पाते हैं।
इससे प्रकोपों की प्रारंभिक चेतावनी मिलती है, जिससे समय पर हस्तक्षेप संभव होता है।
यह प्रक्रिया स्वास्थ्य सेवा संसाधनों के बेहतर आवंटन और लक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों का समर्थन करती है।
अधिसूचित रोगों के उदाहरण: सामान्यतः अधिसूचित रोगों में तपेदिक, HIV, हैजा, मलेरिया, डेंगू और हेपेटाइटिस शामिल हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट रोगों की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाते हैं।
सर्पदंश के बारे में
महामारी विज्ञान: भारत में वैश्विक रूप से सर्वाधिक सर्पदंश की घटनाएँ दर्ज की जाती हैं।
WHO के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष 3-4 मिलियन सर्पदंश के मामले सामने आते हैं, जिसके परिणामस्वरूप 58,000 से अधिक मौतें होती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)ने वर्ष 2017 से सर्पदंश को उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) के रूप में वर्गीकृत किया है, जो इसके महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव को रेखांकित करता है।
उच्च जोखिम वाले क्षेत्र: सर्पदंश की घटनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होती हैं, जहाँ कृषि गतिविधियाँ अधिक होती हैं और वन क्षेत्र होते हैं।
सर्पदंश के उच्च जोखिम वाले राज्यों में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और गुजरात शामिल हैं।
अकाल मृत्यु: वर्ष 2020 के ‘इंडियन मिलियन डेथ स्टडी’ ने सर्पदंश को अकाल मृत्यु का एक रोकथाम योग्य कारण बताया है।
सर्पदंशसे जुड़ी चुनौतियाँ
साँपों की प्रजातियों की विविधता
भारत में 310 से अधिक साँपों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 66 जहरीली हैं।
सर्पदंश के 90% मामलों के लिए ‘चार बड़े’ सर्प जिम्मेदार हैं:- भारतीय कोबरा, कॉमन क्रेट (भारतीय करैत), रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर (Saw-Scaled Viper)
एंटीवेनम की सीमाएँ
वर्तमान एंटीवेनम में लगभग 80% सर्पदंश के मामलों में प्रभावी हैं।
एंटीवेनम सभी प्रजातियों या क्षेत्रीय विष भिन्नताओं के विरुद्ध प्रभावी नहीं हैं।
साँप की प्रजातियों, भौगोलिक क्षेत्रों और यहाँ तक कि आयु समूहों में वेनम विषाक्तता में अंतर मौजूद है।
अनुशंसित समाधान: विशेषज्ञ विष-निरोधक उत्पादन की प्रभावशीलता में सुधार के लिए क्षेत्रीय वेनम (विष) संग्रह बैंक स्थापित करने की सलाह देते हैं।
कानूनी प्रतिबंध: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, विष निष्कर्षण पर प्रतिबंध लगाता है।
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