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भारत में उच्च शिक्षा में सामाजिक विविधता

Lokesh Pal May 23, 2024 12:33 300 0

संदर्भ

उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (All India Survey on Higher Education- AISHE) के नवीनतम उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012-13 से 2021-22 तक नौ वर्षों में 4.1% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) की प्रभावशाली वृद्धि देखी गई। 

संबंधित तथ्य 

  • एशिया 2024 (16वें संस्करण) के लिए क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के अनुसार, भारत में अब 148 विशिष्ट विश्वविद्यालयों के साथ ‘सबसे अधिक प्रतिनिधित्व’ वाली उच्च शिक्षा प्रणाली है, जिसकी संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 30 अधिक है। 

उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) डेटा पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

  • भारत में विद्यार्थी  नामांकन वृद्धि
    • कुल नामांकन वृद्धि: शैक्षणिक वर्ष 2012-13 से 2021-22 तक, उच्च शिक्षा में विद्यार्थी  नामांकन 30 मिलियन से बढ़कर 43.2 मिलियन हो गया।

    • वार्षिक वृद्धि दर: इन नौ वर्षों में CAGR 4.1% थी।
    • अनुसूचित जाति (SCs): इनका नामांकन 6.2% CAGR से बढ़कर 3.84 मिलियन से 6.6 मिलियन हो गया है। 
    • अनुसूचित जनजाति (STs): इनका नामांकन 8.3% CAGR से बढ़कर 1.32 मिलियन से 2.71 मिलियन हो गया है।
    • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs): इनका नामांकन प्रभावशाली 6.3% CAGR से बढ़कर 9.4 मिलियन से 16.3 मिलियन हो गया है।
    • अल्पसंख्यक
      • मुस्लिम समुदाय: इनका नामांकन 6% CAGR से बढ़कर 1.25 मिलियन से 2.1 मिलियन हो गया है।
      • अन्य अल्पसंख्यक: इनका नामांकन 5.4% CAGR से बढ़कर लगभग 5,60,000 से 9,00,000 हो गया है।
    • सामान्य: उनका नामांकन स्थिर 0.7% CAGR से बढ़कर 13.8 मिलियन से 14.6 मिलियन हो गया है।
  • जनसंख्या संरचना में नामांकन
    • SC समुदाय के लिए, जनसंख्या के 16.6% की तुलना में 15.3% नामांकन (उल्लेखनीय रूप से लगभग बराबर)। 
    • ST समुदाय के लिए, जनसंख्या के 8.6% की तुलना में 6.3% नामांकन (काफी करीब)।
    • OBC समुदाय के लिए, 40.9% आबादी की तुलना में 37.8% नामांकन। (करीब) 
    • अल्पसंख्यकों के लिए केवल 7% नामांकन। अल्पसंख्यक भारत की आबादी का लगभग पाँचवाँ हिस्सा हैं। ( वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार)
      • अल्पसंख्यकों में केवल मुस्लिम समुदाय की ही जानकारी उपलब्ध है।
      • यह समुदाय कुल नामांकन का 4.9% है, जबकि भारत की जनसंख्या का 14.2% है। (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार)
  • उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता संबंधी आँकड़े
    • उपलब्धि: उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में हासिल की गई और बराबर बनी हुई है।
    • महिला नामांकन: उच्च आकांक्षाओं के साथ उच्च शिक्षा में महिलाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।

      • महिलाओं का 10 वर्षीय नामांकन सीएजीआर पुरुषों के लिए 3.4% की तुलना में 4.7% है।
      • वर्ष 2021-22 में कुल नामांकन में महिलाएँ 48% हैं, जो दस वर्ष पूर्व 44.6% थी।
    • महिला सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio- GER): वर्ष 2021-22 में, यह 28.5 था, जो पुरुषों के GER 28.3 से अधिक है। 
      • यह पुरुषों के लिए 22.1 की तुलना में वर्ष 2011-12 में 19.4 से तेजी से बढ़ी है, जो दर्शाता है कि 18-23 आयु वर्ग की आबादी में अधिक महिलाएँ उच्च शिक्षा को उच्च गुणवत्ता वाले जीवन के प्रवेश द्वार के रूप में देखती हैं।
    • विभिन्न सामाजिक समूहों में नामांकन: जैसा कि संलग्न आँकड़ों से पता चलता है, समूहों में महिलाओं का नामांकन सीएजीआर पुरुषों की तुलना में अधिक है।
      • SC समुदाय के लिए: यह महिलाओं के लिए 7% बनाम पुरुषों के लिए 5.6% है।
      • ST समुदाय के लिए: यह महिलाओं के लिए 9.6% बनाम पुरुषों के लिए 7.2% है।
      • OBC समुदाय के लिए: यह महिलाओं के लिए 6.8% बनाम पुरुषों के लिए 5.9% है।
      • अल्पसंख्यकों के लिए
        • मुस्लिम समुदाय: महिलाओं के लिए यह 6.6% जबकि पुरुषों के लिए 5.4% है।
        • अन्य अल्पसंख्यक: महिलाओं के लिए यह 4.9% जबकि पुरुषों के लिए 6% है। यह एकमात्र ऐसा बिंदु है, जहाँ ये आँकड़े उलट जाते हैं।
      • सामान्य के लिए: इस समूह में महिलाओं का नामांकन 1.5% है, जो पुरुषों की तुलना में अधिक है।
        • पुरुषों का नामांकन शून्य पर स्थिर हो गया है क्योंकि वर्ष 2012-13 और 2021-22 में नामांकन लगभग समान है।

भारत में उच्च शिक्षा के बारे में

  • उच्च शिक्षा: यह हाईस्कूल (10+2) के बाद शुरू होती है और इसमें विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और संस्थानों के विविध परिदृश्य शामिल होते हैं, जो विभिन्न संकाय में स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट कार्यक्रम उपलब्ध कराते हैं।
  • संस्थानों की विविधता: भारत में एक विशाल और विविध उच्च शिक्षा प्रणाली है, जिसमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institutes of Technology- IITs) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (National Institutes of Technology- NITs) जैसे संस्थानों से लेकर राज्य और निजी विश्वविद्यालय, कॉलेज और विशेष संस्थान शामिल हैं।
  • विश्वविद्यालय प्रणाली: भारत में विश्वविद्यालय प्रणाली में केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य स्तरीय  विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालय शामिल हैं।
    • आमतौर पर प्रत्येक राज्य की अपनी विश्वविद्यालय प्रणाली होती है, जो उच्च शिक्षा के विकेंद्रीकरण में योगदान करती है।
  • तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा: IITs, भारतीय प्रबंधन संस्थान (Indian Institutes of Management- IIMs) और नेशनल लॉ स्कूल जैसे संस्थान इंजीनियरिंग, प्रबंधन और कानून में अपनी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रसिद्ध हैं। 
  • विनियमित: भारत में उच्च शिक्षा के लिए मुख्य नियामक संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) है। 
    • UGC वर्ष 1953 में अस्तित्व में आया और विश्वविद्यालय शिक्षा में शिक्षण, परीक्षा और अनुसंधान के मानकों के समन्वय, निर्धारण तथा रखरखाव के लिए वर्ष 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा भारत सरकार का एक वैधानिक संगठन बन गया।

उच्च शिक्षा से संबंधित विभिन्न सरकारी पहल

  • प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना (Establishment of Institutions of Eminence- IoEs) 
  • यूजीसी लर्निंग आउटकम आधारित पाठ्यचर्या रूपरेखा (LOCF) 
  • शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन एवं समावेशन कार्यक्रम (Education Quality Upgradation and Inclusion Programme- EQUIP)  
  • शिक्षा में बुनियादी ढाँचे और प्रणालियों का पुनरुद्धार (Revitalizing of Infrastructure & Systems  in  Education- RISE)
  • वैश्विक पहल अकादमिक नेटवर्क (Global Initiatives Academic Network- GIAN) 
  • राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework- NIRF)
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020
  • नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क
  • डिजिटल पहल: SWAYAM (स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव-लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंडस)
  • स्टडी इन इंडिया प्रोग्राम
  • उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति (SHE) ‘प्रेरित अनुसंधान के लिए विज्ञान की खोज में नवाचार’ (INSPIRE) के एक घटक के रूप में।

भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के विकास के लिए अग्रणी कारक

  • विद्यार्थियों की अपेक्षाओं में बदलाव: विदेश में अध्ययन करने का चलन बढ़ रहा है क्योंकि विद्यार्थी  तेजी से उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, सम्मानित संकाय तक पहुँच, अत्याधुनिक सुविधाएँ और नवीन शिक्षण विधियों की तलाश कर रहे हैं, जो उन्हें अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक नौकरी बाजार के लिए तैयार करेगा।
  • अनुसंधान और नवाचार पर नए सिरे से ध्यान देना: अनुसंधान निधि निकायों की स्थापना और शैक्षणिक संस्थानों में स्टार्टअप और इनक्यूबेटरों को बढ़ावा देने से अनुसंधान उत्पादन और नवाचार में वृद्धि हुई है।
    • नई शिक्षा नीति (New Education Policy- NEP) के कार्यान्वयन और परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने वाले प्रतिष्ठित संस्थानों (Institutions of Eminence- IOEs) की स्थापना से प्रेरित शिक्षा क्षेत्र एक उल्लेखनीय परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है।
    • समृद्ध वैश्विक सहयोग: NEP ने भारत को ‘वैश्विक अध्ययन गंतव्य’ (Global Study Destination) और ‘वैश्विक ज्ञान महाशक्ति’ (Global Knowledge Superpower) बनाने के उद्देश्य से एक महत्त्वाकांक्षी उदारीकरण एजेंडा निर्धारित किया है।
      • उदाहरण: वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षाविदों के साथ चर्चा की। जिसका मूल विषय भारतीय और अंतरराष्ट्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच सहयोग की संभावना पर प्रकाश डालना था।
  • अंतरराष्ट्रीय मान्यता की इच्छा: संस्थान बेहतर राष्ट्रीय और वैश्विक रैंकिंग की खोज में रणनीतिक निवेश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, IIT मुंबई और IIT दिल्ली दोनों ने वर्ष 2024 क्यूएस रैंकिंग में शीर्ष 200 में स्थान हासिल किया।
    • इसके अलावा, मनीपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE), शूलिनी यूनिवर्सिटी (Shoolini University) आदि जैसे निजी संस्थानों ने विश्व स्तर पर शीर्ष 1,000 में सफलतापूर्वक स्थान हासिल किया है।

भारत में उच्च शिक्षा के सामने चुनौतियाँ

  • राजनीति का प्रभाव 
    • समर्थन हासिल करने के लिए: भारतीय उच्च शिक्षा हमेशा राजनीतिक प्रभाव से ग्रसित रही है। राजनेताओं ने अपने कॅरियर को आगे बढ़ाने और समर्थन के लिए कॉलेज और विश्वविद्यालय शुरू किए।
    • मतदाताओं की माँगों को पूरा करने के लिए: राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों ने कभी-कभी राजनीतिक रूप से लाभप्रद स्थानों पर नए पोस्ट सेकेंडरी संस्थान स्थापित किए। उनमें से कई की स्थापना विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के आधार पर मतदाताओं की माँगों को पूरा करने के लिए भी की गई थी। 
    • विश्वविद्यालयों का नामकरण: यह प्रथा, विशेष रूप से राज्य सरकारों द्वारा, अक्सर राजनीति से प्रभावित होती है।
    • शैक्षणिक नियुक्तियाँ या पदोन्नति: ये कभी-कभी प्रोफेसर, कुलपति या प्रिंसिपल की गुणवत्ता के अलावा अन्य कारणों से भी नियुक्तियाँ की जाती थीं।
      • कई स्नातक महाविद्यालयों में, शैक्षणिक स्वतंत्रता के मानदंडों का हमेशा दृढ़ता से पालन नहीं किया जाता था।
  • सीमित फंडिंग: भारत में शिक्षा के लिए अंतरिम बजट वर्ष 2024-25 में 7% की कमी की गई है, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के लिए आवंटन में 61% की कटौती की गई है।
    • इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का अनुसंधान एवं विकास निवेश अभी भी 0.64% है, जो चीन (2.4%), जर्मनी (3.1%), दक्षिण कोरिया (4.8%) और अमेरिका (3.5%) से पीछे है।
  • क्षेत्रीय असमानता: भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों का विकास असमान है।
    • दिल्ली, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में प्रतिष्ठित संस्थानों की संख्या अधिक है, जबकि पूर्वोत्तर और मध्य क्षेत्रों के कई राज्य गुणवत्ता और पहुँच के मामले में पीछे हैं।
  • उच्च शिक्षक रिक्तियाँ: UGC के अनुसार, विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्वीकृत शिक्षण पदों की कुल संख्या प्रोफेसरों के लिए 16,699, एसोसिएट प्रोफेसरों के लिए 4,731 और सहायक प्रोफेसरों के लिए 9,585 है। कुल स्वीकृत शिक्षण पदों में से 5,925 (35%) प्रोफेसर पद, 2,183 (46%) एसोसिएट प्रोफेसर पद और 2,459 (26%) सहायक प्रोफेसर पद रिक्त हैं। 
  • उद्योगों के साथ सहयोग का अभाव: विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सहयोग उच्च शिक्षा प्रणाली के किसी भी खंड एवं उद्योग के मध्य ज्ञान या प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से संबंधित है।
    • AI स्किल गैप: इंडिया स्किल रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत में वर्तमान में मशीन लर्निंग इंजीनियर, डेटा साइंटिस्ट, DevOps इंजीनियर और डेटा आर्किटेक्ट जैसी महत्त्वपूर्ण प्रतिभाओं की माँग और आपूर्ति के बीच 60% से 73% का अंतराल है।
  • विभिन्न नियामकों के बीच परिचालनात्मक अलगाव: भारत में कई उच्च शिक्षा नियामक निकाय हैं, जैसे कि UGC, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education-AICTE) आदि, जो उच्च शिक्षा संस्थानों को स्वतंत्र रूप से विनियमित करने का प्रयास करते हैं, जिनमें परामर्शी तंत्र का अभाव है और जिसके परिणामस्वरूप ओवरलैपिंग कार्य होते हैं। 
    • भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) को NEP में उच्च शिक्षा के लिए एक प्रमुख नियामक के रूप में प्रस्तावित किया गया था। 
  • निजीकरण और शिक्षा की बढ़ती लागत: उच्च शिक्षा की बढ़ती लागत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच को सीमित करती है, जिससे योग्य उम्मीदवारों का संभावित बहिष्कार होता है।

आगे की राह

  • अधिक नामांकन पर ध्यान देना: इसे मौजूदा संस्थानों की क्षमता का विस्तार करके और कम संस्थागत क्षमता वाले क्षेत्रों में ग्रीनफील्ड संस्थान स्थापित करके सुगम बनाया जा सकता है।
    • नामांकन बढ़ाने के लिए दूरस्थ शिक्षा का भी उपयोग किया जा सकता है।
  • अधिक लैंगिक समानता: भारत को एक उत्साहजनक प्रवृत्ति प्राप्त हुई है, जिससे इसके योग्य कार्यबल में भारी वृद्धि होगी। इसका पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए, पूरे देश में गुणवत्तापूर्ण रोजगार की संभावनाएँ विकसित की जानी चाहिए, जिससे शिक्षित महिलाओं को उनके घरों के नजदीक कार्यबल में शामिल होने में मदद मिलेगी।
  • राजनीति के प्रभाव को कम करना: एक स्वतंत्र और मुक्त शैक्षणिक क्षेत्र किसी भी समाज के लिए महत्त्वपूर्ण है। शैक्षणिक पेशे को मुक्त अनुसंधान में संलग्न होने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए।
    • चूँकि भारत विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय बनाना चाहता है और दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों के साथ जुड़ना चाहता है, इसलिए शैक्षणिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता एक आवश्यक शर्त है।
  • योग्यता आधारित क्रेडेंशियलिंग: एक योग्यता आधारित क्रेडेंशियलिंग प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता है, जो विभिन्न शिक्षण मार्गों के माध्यम से प्राप्त कौशल और दक्षताओं को पहचानती है तथा मान्य करती है।
  • प्रमाणन ढाँचा: सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को पारदर्शिता सुनिश्चित करने और उच्च गुणवत्ता बनाए रखने के लिए एजेंसियों द्वारा संचालित अनिवार्य तथा आवधिक मान्यता प्रक्रियाओं से गुजरना होगा।
  • सीखने के परिणामों में सुधार: प्रतिभा पलायन (विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या) की चुनौती से निपटने के लिए, शिक्षा मंत्रालय ने भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना की सुविधा के लिए कदम उठाए हैं।
    • उदाहरण: दो प्रतिष्ठित ऑस्ट्रेलियाई संस्थानों, डीकिन यूनिवर्सिटी (Deakin University) और वोलोंगोंग यूनिवर्सिटी (Wollongong University) के साथ समझौता ज्ञापन (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जो उन्हें गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) में परिसर स्थापित करने में सक्षम बनाता है। 
  • मुक्त, दूरस्थ और ऑनलाइन शिक्षा को प्राथमिकता देना: मुक्त दूरस्थ शिक्षा का मुख्य लक्ष्य उन व्यक्तियों को ज्ञान और कौशल प्रदान करना है, जिनके पास अन्यथा पारंपरिक सीखने के अवसरों तक पहुँच नहीं है।
    • मुक्त दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों और बड़े पैमाने पर मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की उपलब्धता का विस्तार करने से उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सामग्री तक वैश्विक पहुँच को सुगम बनाया जा सकता है।
  • मजबूत उद्योग एकीकरण को बढ़ावा देना: सहयोगी साझेदारियाँ स्थापित करना, इंटर्नशिप की सुविधा प्रदान करना और उद्योग-अकादमिक संपर्क को बढ़ावा देना, ऐसे पाठ्यक्रम को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण हैं, जो विद्यार्थियों को नौकरी बाजार में अपेक्षित कौशल और ज्ञान से लैस करता है।
    • UGC  की ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ पहल का उद्देश्य उद्योग और पेशेवर विशेषज्ञों को शामिल करना है, जो प्रोफेसरशिप के लिए आवश्यक सामान्य आवश्यकताओं, जैसे PhD, को पूरा नहीं करते हैं।
    • जर्मनी के प्रशिक्षुता मॉडल के समान ‘दोहरे अध्ययन कार्यक्रम’ को लागू करने की आवश्यकता है, जहाँ विद्यार्थी  विश्वविद्यालयों में सैद्धांतिक शिक्षा को कंपनियों में व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ जोड़ते हैं।
  • संकाय का सतत् विकास: उच्च शिक्षा विभाग को संकायों की भर्ती प्रक्रिया को छोटा करने के लिए सुधारों पर विचार करना चाहिए।
    • संस्थानों को ऐसे व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो शिक्षण पद्धतियों और शैक्षणिक कौशल को बढ़ाते हों।
    • सहयोग और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए आंतरिक मंच संकाय विकास को और बढ़ाते हैं, तथा निरंतर सुधार की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं।

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