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अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के बीच सामाजिक-आर्थिक अंतर

Lokesh Pal August 14, 2024 03:01 93 0

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने घोषणा की कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण पर लागू नहीं होगा। साथ ही इस बात पर जोर दिया गया कि यह निर्णय बाबासाहब भीम राव अंबेडकर द्वारा स्थापित संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है। 

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 के बहुमत के निर्णय में, सकारात्मक कार्रवाई के लाभों को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के भीतर उप-वर्गीकरण करने के बारे में निर्णय दिया।
    • इस बात पर बल दिया गया कि इस तरह का उप-वर्गीकरण राजनीतिक उद्देश्यों के बजाय ‘मात्रात्मक और प्रमाणित आँकड़ों’ (Quantifiable And Demonstrable Data) पर आधारित होना चाहिए। 
    • इस निर्णय का उद्देश्य अनुसूचित जाति वर्ग में सबसे अधिक वंचित जातियों का उत्थान करना था। 
  • क्रीमी लेयर अवलोकन (Creamy Layer Observations)
    • न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने अपने सहमति वाले फैसले में सुझाव दिया कि राज्यों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण से बाहर रखने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए। 
      • हालाँकि, यह एक अवलोकन था और निर्णय का बाध्यकारी हिस्सा नहीं था। 

भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की स्थिति

  • SC का तात्पर्य अनुसूचित जाति से है, जिसे ऐतिहासिक रूप से ‘अछूत’ के रूप में जाना जाता है।
  • ST का तात्पर्य अनुसूचित जनजाति से है, जो प्रायः दूरदराज के क्षेत्रों में रहती है तथा सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करती है।

 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख सामाजिक-आर्थिक स्थिति

  • मानव विकास सूचकांक में सुधार: उल्लेखनीय प्रगति, लेकिन अभी भी राष्ट्रीय औसत से नीचे। 
  • साक्षरता: 52% (वर्ष 1991) से बढ़कर 74% (वर्ष 2011) हुई।
  • स्कूल छोड़ने वाले बच्चे: वर्ष 2020-2021 में घटकर 2.54% रह गए।
  • स्वास्थ्य: शिशु मृत्यु दर 86 (वर्ष 1992) से घटकर 35 (वर्ष 2016) हो गई।
  • महिला साक्षरता: अनुसूचित जाति की महिलाओं की साक्षरता 42% से बढ़कर 56.5% हो गई (वर्ष 2001-2011)।
  • आवास: स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुँच से संबंधित मुद्दे अभी भी बने हुए हैं। 
  • रोजगार: अनौपचारिक श्रम पर अधिक निर्भरता, औपचारिक क्षेत्र में कम प्रतिनिधित्व। 

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर उप-वर्गीकरण के प्रभाव

  • सकारात्मक प्रभाव
    • न्यायसंगत वितरण (Equitable Distribution): सबसे वंचित उप-समूहों को आरक्षण लाभों का उचित हिस्सा सुनिश्चित करता है। 
    • संवर्धित सामाजिक न्याय: सकारात्मक कार्रवाई नीतियों को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाता है। 
    • बेहतर प्रतिनिधित्व: इससे विभिन्न क्षेत्रों में हाशिए पर पड़े उप-समूहों का बेहतर प्रतिनिधित्व होगा। 
    • ऐतिहासिक असमानताओं को संबोधित करना: ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े उप-समूहों को अतिरिक्त सहायता प्रदान करता है।
  • चुनौतियाँ
    • जटिल कार्यान्वयन: इसमें सटीक डेटा की आवश्यकता होती है, जो प्रक्रिया को जटिल और संसाधन-गहन बनाता है। 
    • अंतर-समुदाय तनाव: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के भीतर संघर्ष हो सकता है।
    • कानूनी और नीतिगत बाधाएँ: संभावित कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है।

क्रीमी लेयर

  • ‘क्रीमी लेयर’ अवधारणा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों, जैसे OBC, के भीतर धनी और बेहतर शिक्षित व्यक्तियों की पहचान करती है।
    • उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति प्राप्त करने वाले इन व्यक्तियों को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण लाभ से वंचित रखा गया है।
      • इससे यह सुनिश्चित होता है कि सकारात्मक कार्रवाई का लाभ उन लोगों तक पहुँचे, जो वास्तव में वंचित हैं।

आगे की राह

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति निम्न है और यदि सरकार इस संबंध में कदम उठाए तो इस स्थिति का समाधान हो सकता है।

  • कल्याणकारी नीतियाँ: सरकार को ऐसी कल्याणकारी योजनाएँ विकसित करनी चाहिए, जो इन समूहों की आवश्यकताओं को पूरा करें। 
    • इसके लिए नीति निर्माण प्रक्रिया में समुदाय के प्रतिनिधियों को अधिकाधिक शामिल किया जाना चाहिए। 
  • आर्थिक सशक्तीकरण: सरकार को इन समुदायों के लिए छात्रवृत्ति और विशेष स्कूलों जैसी सहायता प्रणालियों को बढ़ाना चाहिए। 
  • कानूनी और संस्थागत समर्थन: ऐसे कानून और विनियमन लागू करना जो इन समुदायों के हितों की रक्षा करें। 
    • इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित करना कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सहायता देने वाले सभी संस्थानों को वित्तपोषित किया जाए तथा उनमें स्टाफ की व्यवस्था हो।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक अधिकार

  • अस्पृश्यता का उन्मूलन (Abolition of Untouchability)
    • अनुच्छेद-17
      • सभी प्रकार की अस्पृश्यता को समाप्त करता है।
      • इसमें न केवल शारीरिक परिहार बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों की एक व्यापक शृंखला को भी शामिल किया गया है। 
  • शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना
    • अनुच्छेद-46
      • अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना। 
      • इसका उद्देश्य इन समूहों को सामाजिक अन्याय और शोषण से बचाना है। 
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग
    • अनुच्छेद-338
      • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की स्थापना की गई।
      • कार्यों में शामिल हैं:-
        • अनुसूचित जातियों के लिए संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की जाँच और निगरानी करना।
        • इन सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।
        • SC अधिकारों और सुरक्षा उपायों के उल्लंघन से संबंधित विशिष्ट शिकायतों का समाधान करना।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
    • अनुच्छेद-338 A
      • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गई।
      • यह राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के समान कार्य करता है तथा अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है।

ये प्रावधान समानता सुनिश्चित करने और हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए भारतीय संविधान की प्रतिबद्धता को उजागर करते हैं।

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