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मृदा में जैविक कार्बन

Lokesh Pal November 12, 2025 03:30 28 0

संदर्भ 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा किए गए एक व्यापक अध्ययन ने भारत की कृषि योग्य भूमि में  मृदा में जैविक कार्बन (SOC) के गंभीर क्षरण को प्रदर्शित किया है।

मृदा में जैविक कार्बन (SOC) के बारे में (SOC)

  • यह मृदा में पाए जाने वाले जैविक पदार्थ का कार्बन घटक है, जो विघटित पौधों, जड़ों और सूक्ष्मजीवों से प्राप्त होता है।
  • महत्त्व: SOC मृदा की उर्वरता और गुणवत्ता का आधार है, जो जल धारण क्षमता, पोषक तत्त्व आपूर्ति और सूक्ष्मजीव गतिविधियों को प्रभावित करता है।
    • यह कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का प्राकृतिक भंडारण स्थल है, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है।
  • उच्च SOC के लाभ
    • मृदा की संरचना और जल धारण क्षमता में सुधार करता है।
    • पोषक तत्त्वों की उपलब्धता और फसल उत्पादन बढ़ाता है।
    • मृदा अपरदन और क्षरण को कम करता है।
    • कार्बन को संगृहीत कर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को घटाता है।
  • SOC के लिए खतरे: रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग, बढ़ता तापमान, मृदा अपरदन, और भूमि को खाली छोड़ना जैसे कारक SOC स्तरों को कम करते हैं और दीर्घकालिक मृदा उत्पादकता को नुकसान पहुँचाते हैं।

ICAR अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

इस शोध में 29 राज्यों के 620 जिलों से 2.54 लाख मृदा नमूनों का छह वर्षों (2017–2023) में विश्लेषण किया गया।

  • मृदा में जैविक कार्बन (SOC) और मृदा गुणवत्ता: SOC मृदा की रासायनिक, भौतिक और जैविक संरचना के आधार का निर्माण करता है, जो इसकी उर्वरता, संरचना और उत्पादकता को निर्धारित करता है।
    • अध्ययन से पता चला कि यदि जैविक कार्बन कम है, तो मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी अधिक होती है और यदि जैविक कार्बन अधिक है, तो कमी अल्प होती है।
    • असंतुलित उर्वरक उपयोग (विशेष रूप से यूरिया और फास्फोरस का अत्यधिक प्रयोग) और जलवायु परिवर्तन भारत की कृषि भूमि में SOC की कमी के प्रमुख कारण हैं।
  • जलवायु और भौगोलिक प्रभाव: SOC का ऊँचाई के साथ सकारात्मक संबंध है, उच्च तुंगता वाले और ठंडे क्षेत्र अधिक जैविक कार्बन की मात्रा बनाए रखते हैं।
    • यह तापमान के साथ नकारात्मक रूप से संबंधित है तथा राजस्थान और तेलंगाना जैसे गर्म क्षेत्र में SOC कम पाया जाता है।
    • वर्षा, तापमान और ऊँचाई सामूहिक रूप से पूरे देश में SOC की प्राकृतिक सांद्रता और वितरण निर्धारित करते हैं।

‘कृषि-पर्यावरणीय आधार मानचित्र’

  • उद्देश्य: ICAR वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह एक विस्तृत उपकरण है, जो जलवायु, भौगोलिक स्थिति, फसल प्रणाली, और उर्वरक उपयोग को  मृदा में जैविक कार्बन स्तरों से जोड़ता है।
  • मुख्य कार्य
    • घटते मृदा कार्बन वाले उच्च-जोखिम क्षेत्रों की पहचान करता है।
    • मृदा पुनर्स्थापन और कार्बन क्रेडिट प्रणाली के लिए नीतिगत योजना का मार्गदर्शन करता है।
    • भूमि क्षरण का मूल्यांकन करने और क्षेत्र-विशिष्ट मृदा प्रबंधन रणनीतियाँ डिजाइन करने में सहायता करता है।

  • फसल प्रणाली और मृदा कार्बन संतुलन: वैज्ञानिकों की टीम ने फसल प्रणाली और उर्वरक उपयोग के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए एक कृषि-पर्यावरणीय आधार मानचित्र विकसित किया।
  • विभिन्न फसल प्रणालियों का प्रभाव
    • धान और दलहनी फसल आधारित प्रणाली उच्च SOC बनाए रखती हैं, क्योंकि इनसे अधिक सूक्ष्मजीव और जल उपयोग संबंधी गतिविधियाँ होती हैं।
    • गेहूँ एवं मोटे अनाज से जैविक पदार्थ की कम आपूर्ति के परिणामस्वरूप मृदा का जैविक कार्बन (SOC) समय के साथ घटता है।
    • संतुलित फसल चक्र अपनाने वाले क्षेत्रों में मृदा कार्बन स्तर अधिक पाया गया।
  • उर्वरक उपयोग के कारण क्षेत्रीय अंतर: अध्ययन ने राज्यों के बीच स्पष्ट विरोधाभासों को रेखांकित किया।
    • पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अत्यधिक और असंतुलित उर्वरक उपयोग के कारण SOC में भारी गिरावट हुई।
    • बिहार और पूर्वी राज्य, जहाँ उर्वरक उपयोग अपेक्षाकृत संतुलित है, वहाँ मृदा कार्बन की स्थिति बेहतर है।

जलवायु परिवर्तन का SOC पर प्रभाव

  • तापमान-जनित कार्बन हानि: तापमान में वृद्धि से मृदा के जैविक पदार्थ के अपघटन की दर बढ़ जाती है, परिणामस्वरूप मृदा में जैविक कार्बन (SOC) का संचयन कम हो जाता है।
    • गर्म और शुष्क क्षेत्र सर्वाधिक तीव्र SOC हानि का सामना करते हैं।
    • इससे वातावरण में अधिक CO₂ उत्सर्जन होता है, जो जलवायु तापन को और बढ़ाता है।
  • वर्षा और नमी का प्रभाव: हालाँकि तापमान की तुलना में वर्षा का प्रभाव कम है, लेकिन यह SOC बनाए रखने के लिए आवश्यक सूक्ष्मजीव प्रक्रियाओं को समर्थन प्रदान करती है।
    • जलवायु परिवर्तन के तहत अनियमित वर्षा या सूखा इस सूक्ष्मजीव गतिविधियों को कम करता है, जिससे SOC और कम होता है।
  • ऊष्मा संतुलन और ग्रीनहाउस प्रतिक्रिया चक्र: कम कार्बन युक्त मृदा अधिक गर्मी परावर्तित करती है और कम ऊर्जा संगृहीत करती है।
    • फलस्वरूप सतही ताप में वृद्धि होती है, जो स्थानीय तापन और ग्रीनहाउस प्रभाव को और अधिक प्रबल बनाती है।
    • फलस्वरूप एक प्रतिपुष्टि चक्र (feedback loop) विकसित होता है, जिसमें तापमान वृद्धि SOC के ह्रास को तीव्र करती है, और यह ह्रास वातावरण के ताप में और वृद्धि करता है।

नीतिगत सिफारिशें और आगे की राह 

  • जैविक कार्बन संचयन को बढ़ावा देना: बहुत कम (<0.25%) SOC वाले मृदा क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें कार्बन पुनर्स्थापन के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • किसानों को सिंचाई सुविधाओं और उपयुक्त फसल प्रणाली विकसित करने के लिए प्रेरित किया जाए।
    • कंपोस्ट, गोबर खाद, हरी खाद और आवरण फसलों का उपयोग बढ़ाकर मृदा कार्बन पुनर्निर्माण को प्रोत्साहित किया जाए।
  • कार्बन क्रेडिट प्रोत्साहन लागू करना: वे किसान जो सतत् कृषि पद्धतियों से मृदा कार्बन भंडारण बढ़ाते हैं, उन्हें पुरस्कृत करने की व्यवस्था विकसित की जाए। कार्बन खेती को राष्ट्रीय कृषि और जलवायु नीतियों में शामिल किया जाए।
  • संतुलित उर्वरक अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करना: यूरिया प्रधान प्रणाली के स्थान पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन (N:P:K सही अनुपात में) अपनाया जाए।
    • मृदा परीक्षण और स्थान-विशिष्ट पोषक प्रबंधन का विस्तार किया जाए ताकि अधिक उपयोग से बचा जा सके।
  • कार्बन-पॉजिटिव फसल प्रणालियाँ बढ़ाना: धान–दलहन चक्र, बहुफसली खेती और दलहन एकीकरण को प्रोत्साहित किया जाए, जिससे SOC का स्तर बढ़े।
    • कम कार्बन वाले संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार एक ही फसल की खेती को हतोत्साहित किया जाए।
  • वानस्पतिक आवरण बनाए रखना और वृक्षारोपण बढ़ाना: निरंतर फसल या हरित आवरण सुनिश्चित करके मृदा को बंजर होने से बचाया जा सकता है।
    • दीर्घकालिक कार्बन भंडारण के लिए वृक्षारोपण और कृषि वानिकी प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाए।
  • भूमि और जलवायु नीतियों में SOC को शामिल करना: ICAR के कृषि-पर्यावरणीय आधार मानचित्र का उपयोग लक्षित मृदा कार्बन प्रबंधन और भूमि क्षरण निगरानी के लिए किया जाए।
    • SOC स्तरों को कृषि स्थिरता और जलवायु शमन कार्यक्रमों में प्रमुख प्रदर्शन सूचकांक के रूप में अपनाया जाए।

कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) के बारे में

  • परिभाषा: यह एक ऐसी तकनीक है, जो रिफाइनरी, विद्युत् संयंत्र जैसे बड़े स्रोतों से होने वाले CO₂ उत्सर्जन को भूमिगत रूप से संगृहीत करती है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR) से अंतर
    • CCS वातावरण में प्रवेश से पहले CO₂ को रोकता है।
    • CDR पहले से मौजूद CO₂ को वातावरण से हटाता है।
  • कार्बन संचयन के प्रकार
    • महासागरीय संचयन: CO₂ को प्रत्यक्ष रूप से गहरे महासागर में स्थानांतरित करना या पोषक तत्त्वों द्वारा महासागरीय जैव उत्पादकता बढ़ाना।
    • स्थलीय संचयन: वनों की पुनर्स्थापना, कृषि वानिकी और सतत् कृषि प्रथाओं के माध्यम से पौधों, मृदा और पारिस्थितिकी तंत्रों में कार्बन संग्रह करना।
    • भूगर्भीय संचयन: CO₂ को गहरी भूमिगत संरचनाओं (जैसे समाप्त ही चुके तेल और गैस भंडार या लवणीय जलाशय) में स्थानांतरित करना।

CCS प्रक्रिया 

  • कैप्चर: CO₂ को थर्मल पॉवर प्लांटों एवं इस्पात, सीमेंट जैसे भारी उद्योगों के उत्सर्जन स्रोतों से एकत्रित किया जाता है।
  • परिवहन: CO₂ को द्रव रूप में संपीडित कर भूमिगत भंडारण स्थलों तक पहुँचाया जाता है।
    • दीर्घकालिक रोकथाम के लिए लवणीय जलभृतों या समाप्त हो चुके जीवाश्म ईंधन भंडारों में संगृहीत किया जाता है।
  • भंडारण: CO₂ को गहरी भूमिगत संरचनाओं जैसे लवणीय जलाशयों या समाप्त हो चुके तेल/गैस के भंडारों में स्थानांतरित किया जाता है ताकि उसे दीर्घकालीन रूप से संगृहीत किया जा सके।

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