हाल ही में, बृहत बंगलूरू महानगर पालिका (BBMP)) ने प्रत्येक घर के लिए प्रतिमाह 100 रुपये का ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) उपकर प्रस्तावित किया है।
संबंधित तथ्य
शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के प्रावधानों के अनुसार उपयोगकर्ता शुल्क या SWM उपकर लगाते हैं।
इन दिशा-निर्देशों के अनुसार, ULBs को SWM सेवाओं के प्रावधानों के लिए उपयोगकर्ता शुल्क/उपकर वसूलना चाहिए। हालाँकि कोई निर्दिष्ट दर नहीं है, ULBs आमतौर पर SWM उपकर के रूप में प्रति माह लगभग ₹30-50 लेते हैं, जिसे संपत्ति कर के साथ एकत्र किया जाता है।
उपकर (Cess)
परिचय: उपकर एक अतिरिक्त कर है, जो किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए धन जुटाने के लिए मौजूदा कर के ऊपर लगाया जाता है।
उपकर राजस्व का उपयोग: उपकर से उत्पन्न राजस्व को शुरू में समेकित निधि में जमा किया जाता है। संसद से अनुमोदन के बाद, सरकार इन निधियों का उपयोग निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए कर सकती है।
उपकर राजस्व का वितरण: उपकर से प्राप्त राजस्व राज्य सरकारों को वितरित किया जा सकता है या नहीं भी किया जा सकता है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
ठोस अपशिष्ट: ये आवासीय, औद्योगिक या वाणिज्यिक क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों द्वारा उत्पादित अवांछित या बेकार ठोस पदार्थ हैं।
कचरे का वर्गीकरण: भौतिक अवस्था के आधार पर उन्हें ठोस, तरल और गैसीय में वर्गीकृत किया जाता है। ठोस अपशिष्टों को नगरपालिका, संकटपूर्ण, चिकित्सा और रेडियोधर्मी अपशिष्टों में वर्गीकृत किया जाता है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: यह प्रक्रिया पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव को कम या समाप्त करती है। नगरपालिका के लिए प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन में निगरानी, संग्रह, परिवहन, प्रसंस्करण, पुनर्चक्रण और निपटान सहित कई प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
ठोस अपशिष्ट उत्पादन पर डेटा: भारतीय शहरों में उत्पन्न ठोस अपशिष्ट में लगभग 55-60% आर्द्र जैव निम्नीकृत पदार्थ और 40-45% गैर-जैव निम्नीकृत पदार्थ होते हैं।
सूखे अपशिष्ट में पुनर्चक्रणीय सामग्री का हिस्सा बहुत कम होता है, केवल लगभग 1-2%, जबकि बाकी ज्यादातर गैर-पुनर्चक्रणीय और गैर-जैवनिम्नीकरणीय अपशिष्ट होता है।
हालाँकि 55% गीले कचरे को जैविक खाद या बायोगैस में बदला जा सकता है, लेकिन इससे उपज 10-12% जितनी कम है, जिससे ठोस कचरे से खाद बनाना और बायोगैस उत्पादन दोनों ही आर्थिक रूप से अव्यावहारिक हो जाते हैं।
ठोस अपशिष्ट के घटक
निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट: नई इमारतों के निर्माण, नवीनीकरण और विध्वंस गतिविधियों से उत्पन्न अपशिष्ट।
प्लास्टिक अपशिष्ट: इसमें पॉलीथीन बैग और प्लास्टिक की बोतलें जैसी वस्तुएँ शामिल हैं।
बायोमेडिकल अपशिष्ट: निदान, उपचार और टीकाकरण के दौरान उत्पन्न अपशिष्ट, जिसमें मानव और पशु शारीरिक अपशिष्ट, सुई और सीरिंज जैसे उपचार उपकरण और साइटोटॉक्सिक दवाएँ शामिल हैं।
खतरनाक अपशिष्ट: अपशिष्ट, जो संपर्क में आने पर व्यक्तियों या पर्यावरण के लिए त्वरित खतरा पैदा करते हैं।
ई-अपशिष्ट: इसमें कंप्यूटर मॉनीटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब (CRT), प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (PCB), मोबाइल फोन और चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क और हेडफोन जैसी बेकार वस्तुएँ शामिल हैं।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की विधियाँ
लैंडफिल: इसमें शहरों के आस-पास खाली जगहों पर अपशिष्ट को जमीन में गाड़ना शामिल है।
इन्सिनरैशन (भस्मीकरण): इसमें मुख्य रूप से कार्बनिक यौगिकों का उच्च तापमान ऑक्सीकरण (जलाना/थर्मल उपचार) शामिल है, जो तापीय ऊर्जा, CO2 और जल का उत्पादन करते हैं।
पायरोलिसिस: ठोस को तरल अवस्था में परिवर्तित किया जाता है और तरल को गैस में परिवर्तित किया जाता है। फिर उत्पादों का उपयोग ऊर्जा के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
गैसीकरण: उपचारित की जाने वाली सामग्री को सीधे सिनगैस (सिंथेटिक गैस) में परिवर्तित किया जाता है, जिसमें हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड इसके घटक होते हैं।
बायोरेमेडिएशन: यह जीवों, मुख्य रूप से सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके पर्यावरण के प्रदूषकों को कम विषाक्त रूपों में विघटित करता है।
ये तकनीकें पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक वहनीय हैं और प्रदूषकों का उपचार स्थल पर ही किया जा सकता है, जिससे कर्मियों के लिए जोखिम कम हो जाता है।
फाइटोरेमेडिएशन: यह एक वृक्ष आधारित सतत्, लागत-कुशल और पर्यावरण के अनुकूल तकनीक है। यह पर्यावरण से प्रदूषकों से दूर करने के लिए पौधों का उपयोग करता है।
वर्मीकल्चर: इसे केंचुआ खेती के रूप में भी जाना जाता है। केंचुओं को खाद में मिलाया जाता है। ये कीड़े ठोस कचरे का विघटन कर देते हैं और केंचुओं के मल के साथ मिलकर खाद पोषक तत्त्वों से भरपूर हो जाती है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
अपशिष्ट का स्रोत पृथक्करण: नियमों में कचरे के स्रोत पृथक्करण को अनिवार्य बनाया गया है ताकि कचरे को पुनः प्राप्त करके, पुनः उपयोग करके और पुनर्चक्रण करके उसे धन में बदला जा सके।
अपशिष्ट उत्पादक: कचरे को गीला, सूखा और खतरनाक में अलग करने की जिम्मेदारी इसकी होगी।
कूड़ा फैलाने पर जुर्माना: राशि स्थानीय निकाय द्वारा तय की जाएगी।
अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएँ: इन्हें 10 लाख या उससे अधिक आबादी वाले सभी स्थानीय निकायों को दो वर्ष के भीतर स्थापित करना होगा।
अपशिष्ट प्रबंधन शुल्क: नए नियम पूरे भारत में स्थानीय निकायों को उपयोगकर्ता शुल्क निर्धारित करने का अधिकार देते हैं। नगरपालिका प्राधिकरण थोक उत्पादकों से कचरे के संग्रह, निपटान और प्रसंस्करण के लिए उपयोगकर्ता शुल्क लगाएँगे।
नियमों के अनुसार, अपशिष्ट उत्पादकों को अपशिष्ट संग्रहकर्ता को “उपयोगकर्ता शुल्क” देना होगा तथा कूड़ा-कचरा फैलाने और अपशिष्ट को अलग-अलग न करने पर “स्पॉट फाइन” भी लगाया जा सकता है, जिसकी राशि स्थानीय निकायों द्वारा निर्धारित की जाएगी।
एकीकरण: राज्य सरकार द्वारा अनौपचारिक क्षेत्र से कूड़ा बीनने वालों, कचरा बीनने वालों और कबाड़ीवालों का औपचारिक क्षेत्र में एकीकरण।
विकास: विशेष आर्थिक क्षेत्र, औद्योगिक एस्टेट और औद्योगिक पार्क के डेवलपर्स को पुनर्प्राप्ति और पुनर्चक्रण सुविधा के लिए भूखंड के कुल क्षेत्रफल का कम-से-कम 5% निर्धारित करना होगा।
अलगाव: बायोडिग्रेडेबल, नॉन-बायोडिग्रेडेबल और घरेलू खतरनाक कचरे का अनिवार्य पृथक्करण।
प्रतिबंध: ठोस कचरे को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
पैकेजिंग कचरे के लिए कलेक्ट बैक स्कीम: ब्रांड मालिक जो अपने उत्पादों को नॉन-बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री में बेचते हैं या विपणन करते हैं, उन्हें अपने उत्पादन के कारण उत्पन्न पैकेजिंग कचरे को वापस एकत्रित करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।
कचरा मुक्त शहरों के लिए स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल: यह शहरों को अपनी समग्र स्वच्छता में सुधार करने के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की भावना के साथ प्रोत्साहित करेगा और कई शहरों को एक ही स्टार रेटिंग से सम्मानित करने की अनुमति देगा।
रेटिंग में मुख्य ध्यान अपशिष्ट भंडारण और कूड़ेदानों पर है।
ऑनलाइन डेटाबेस: SBM घटकों पर राज्यों और शहरों की प्रगति को दर्ज करने के लिए शुरू किया गया, जिससे मिशन की निगरानी की मजबूती और पारदर्शिता बढ़ेगी।
भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की परिचालन और राजस्व चुनौतियाँ
असंधारणीय निधि: अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं से परिचालन राजस्व परिचालन व्यय का केवल 35-40% ही कवर करता है, जबकि शेष राशि ULB द्वारा सब्सिडी दी जाती है।
वित्तपोषण तंत्र: अधिकांश गीला अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएँ या तो सरकार द्वारा प्लांट ऑपरेटर को परिचालन घाटे को पूरा करने के लिए भुगतान की जाने वाली टिपिंग फीस या नगर पालिका के सामान्य व्यय से आवंटित धन पर संचालित होती हैं।
ULB पर बजट का दबाव: शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को संधारणीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) सेवाएँ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बंगलूरू जैसे बड़े शहर अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा SWM (लगभग 15%) पर खर्च करते हैं, फिर भी इन सेवाओं से राजस्व न्यूनतम होता है।
राजस्व असमानता: छोटे शहर SWM के लिए अपने बजट का और भी अधिक हिस्सा आवंटित करते हैं, लेकिन उन्हें समान राजस्व बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस अंतर को पाटने के लिए, ULBs अक्सर लागतों को कवर करने के लिए अपशिष्ट उत्पादकों पर SWM उपकर लगाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वित्तीय दबावों के बावजूद आवश्यक अपशिष्ट प्रबंधन सेवाएँ प्रभावी रूप से जारी रह सकती हैं।
शहरी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियाँ: शहरी स्थानीय निकायों को SWM सेवाओं से जुड़ी अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे खुले स्थानों और नालियों को साफ करने का अतिरिक्त कार्य, खुले में कूड़ा-कचरा फैलाना रोकना, अपशिष्ट उत्पादन में मौसमी परिवर्तन और सफाई अभियान।
परिचालन चुनौतियाँ: वित्तीय व्यवहार्यता की कमी, स्रोत पर अपर्याप्त पृथक्करण और तैयार उत्पादों के लिए सीमित बाजार के कारण अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों का संचालन अधिक चुनौतीपूर्ण है।
इसके अतिरिक्त, गैर-खाद योग्य और गैर-पुनर्चक्रण योग्य सूखे कचरे, जैसे एकल-उपयोग प्लास्टिक, कपड़ा अपशिष्ट और निष्क्रिय सामग्री का निपटान महंगा है, क्योंकि इस सामग्री को सीमेंट कारखानों या अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं में भेजना पड़ता है, जो शहरों से लगभग 400-500 किमी. दूर स्थित होते हैं।
परिचालन व्यय कम करने की रणनीतियाँ
स्रोत पर कचरे का पृथक्करण: उत्पादन के बिंदु पर कचरे के पृथक्करण को प्रोत्साहित करने और लागू करने से खाद बनाने के काम की दक्षता में 20% तक की वृद्धि हो सकती है और सूखे कचरे के लिए पुनर्चक्रण दर में सुधार हो सकता है।
इससे कुल कचरे में कमी आती है जिसे परिवहन और प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है।
सिंगल-यूज प्लास्टिक को कम करना: सिंगल-यूज प्लास्टिक गैर-पुनर्चक्रणीय और भारी होते हैं, जिससे निपटान के लिए परिवहन लागत बढ़ जाती है। सिंगल-यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करने की पहल अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े परिचालन व्यय को कम कर सकती है।
विकेंद्रीकृत खाद बनाने की पहल: शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग अक्सर गंध और रिसाव की समस्याओं के कारण बड़े पैमाने पर खाद बनाने की सुविधाओं का विरोध करते हैं।
तमिलनाडु और केरल के शहरों ने वार्ड स्तर पर माइक्रो कम्पोस्टिंग सेंटर (MCC) को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया है, जिससे गीले कचरे का स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण हो रहा है और परिवहन लागत में कमी आ रही है।
सूचना, शिक्षा और जागरूकता (IEC) अभियान: जनता को उचित अपशिष्ट निपटान और कूड़े के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में शिक्षित करने के लिए IEC कार्यक्रमों में निवेश करने से सड़कों की सफाई और नालियों की सफाई के लिए वर्तमान में आवंटित जनशक्ति और संसाधनों में कमी आ सकती है।
बड़े पैमाने पर अपशिष्ट उत्पादकों को प्रोत्साहित करना: बड़े संस्थानों और व्यवसायों को ऑन-साइट प्रसंस्करण सुविधाओं के माध्यम से अपने स्वयं के अपशिष्ट का प्रबंधन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
यह दृष्टिकोण न केवल शहरी स्थानीय निकायों पर बोझ को कम करता है, बल्कि स्वच्छ एवं अधिक सतत् अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को भी बढ़ावा देता है।
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