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दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग

Lokesh Pal October 04, 2025 02:44 25 0

संदर्भ

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा, 2025 सप्ताह के अवसर पर 20 समान विचारधारा वालेग्लोबल साउथ’ देशों की मेजबानी की तथा वैश्विक संकटों के बीच एकता पर जोर दिया।

  • विदेश मंत्री जयशंकर ने चेतावनी दी कि बहुपक्षवाद कमजोर हो रहा है, उन्होंनेदक्षिण-दक्षिण सहयोग’ को मजबूत करने का आग्रह किया।

संबंधित तथ्य

  • संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय दक्षिण-दक्षिण एवं त्रिकोणीय सहयोग दिवस’ (South-South and Triangular Cooperation- SSTC) प्रतिवर्ष 12 सितंबर को ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (Buenos Aires Plan of Action- BAPA), 1978 को अपनाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • वर्ष 2025 के संयुक्त राष्ट्र SSTC दिवस का विषय: ‘SSTC के माध्यम से नए अवसर और नवाचार’.
    • यह विषय विकासशील देशों के बीच सहयोग के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा को प्राप्त करने के लिए पाँच वर्ष से भी कम समय बचा है, ऐसे में SSTC ने वैश्विक साझेदारी के एक अभिनव मॉडल के रूप में अपनी महत्ता प्राप्त कर ली है।

ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (Buenos Aires Plan of Action- BAPA), 1978

  • स्वीकृत: वर्ष 1978, विकासशील देशों के बीच तकनीकी सहयोग पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, ब्यूनस आयर्स।
  • महत्त्व: दक्षिण-दक्षिण सहयोग की नींव रखी।
    • SSTC का वार्षिक संयुक्त राष्ट्र दिवस (12 सितंबर) BAPA की वर्षगाँठ का प्रतीक है।

सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा

  • स्वीकृत: सितंबर 2015, सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों द्वारा।
  • विजन: वर्ष 2030 तक लोगों और ग्रह के लिए शांति, समृद्धि और स्थिरता का एक खाका।
  • मुख्य ढाँचा
    • 17 सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals- SDG)।
    • आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों में 169 लक्ष्य।
    • सार्वभौमिकता: विकसित और विकासशील दोनों देशों पर लागू।
  • सिद्धांत: ‘नो वन लेफ्ट बिहाइंड एंड इंटीग्रेटिड एप्रोच’ (गरीबी उन्मूलन, विकास, पर्यावरण, समानता को जोड़ना)।
  • SSTC से प्रासंगिकता: दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग को, विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा, डिजिटल नवाचार और जलवायु लचीलापन के क्षेत्र में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (South-South and Triangular Cooperation- SSTC) के बारे में

  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation- SSC): विकासशील देशों (‘ग्लोबल साउथ’) के बीच साझा अनुभवों, एकजुटता और सामान्य उद्देश्यों के आधार पर सहयोग।
    • परिचालन तंत्र
      • ज्ञान, कौशल, संसाधनों और तकनीकी जानकारी का आदान-प्रदान।
      • द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रीय कार्यों के माध्यम से संचालित।
      • इसमें सरकारें, क्षेत्रीय संगठन, नागरिक समाज, शिक्षा जगत और निजी क्षेत्र शामिल हैं।

दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग के मार्गदर्शक सिद्धांत (South-South Cooperation- SSC)

  • संप्रभुता, स्वामित्व और स्वतंत्रता का सम्मान।
  • साझेदारों के बीच समानता।
  • बिना किसी शर्त के।
  • घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  • पारस्परिक लाभ और एकजुटता।
  • आत्मनिर्भरता और सतत् विकास के वर्ष 2030 एजेंडा को प्राप्त करने में योगदान।

दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग (SSC) के उद्देश्य (BAPA, 1978)

  • समस्या-समाधान हेतु स्थानीय क्षमता बढ़ाकर आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • संसाधनों के एकत्रीकरण/साझाकरण के माध्यम से सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • प्रमुख विकास मुद्दों पर संयुक्त रूप से विश्लेषण और रणनीति बनाने की क्षमता का निर्माण करना।
  • अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग की प्रभावशीलता में सुधार करना।
  • तकनीकी क्षमताओं को सुदृढ़ करना और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार प्रौद्योगिकी को अनुकूलित करने की क्षमता विकसित करना।
  • विकासशील देशों के बीच संचार और ज्ञान-साझाकरण को बढ़ाना।
  • अल्प विकसित देशों (Least Developed Countries -LDCs), स्थलरुद्ध विकासशील देशों (LandLocked Developing Countries -LLDCs), लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDCs) और आपदा-प्रवण राष्ट्रों की आवश्यकताओं को पूरा करना।
  • अंतरराष्ट्रीय आर्थिक गतिविधियों में अधिक भागीदारी को सक्षम बनाना और सहयोग का विस्तार करना।

    • प्रकृति: उत्तर-दक्षिण सहयोग का पूरक, विकल्प नहीं।
      • बिना किसी शर्त के पारस्परिक लाभ तथा संप्रभुता एवं स्वामित्व के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है।
  • त्रिकोणीय सहयोग (Triangular Cooperation -TrC): दो या अधिक विकासशील देशों के बीच दक्षिण द्वारा संचालित साझेदारी, जिसे किसी विकसित देश या बहुपक्षीय संगठन का समर्थन प्राप्त हो।
    • उद्देश्य: SSC परियोजनाओं को वित्तीय, तकनीकी और संस्थागत सहायता प्रदान करना।
    • लाभ: दक्षिणी साझेदारों को अतिरिक्त विशेषज्ञता और संसाधन प्राप्त होंगे और उत्तरी साझेदारों को कई दक्षिणी हितधारकों का लाभ उठाकर सहायता का प्रभाव बढ़ेगा।
    • शर्त: दक्षिणी देशों के नेतृत्व और स्वामित्व में रहना होगा।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (South-South and Triangular Cooperation- SSTC) में भारत की भूमिका

  • दार्शनिक आधार: ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ (‘विश्व एक परिवार है’) के सिद्धांत पर चलते हुए, भारत अंतरराष्ट्रीय सहयोग में एकजुटता, पारस्परिक सम्मान और समावेशिता का समर्थन करता है, जो SSC के आधारभूत मूल्य हैं।
  • क्षमता निर्माण – ITEC कार्यक्रम (1964): भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) योजना के माध्यम से, भारत ने 160 से अधिक देशों के पेशेवरों को शासन, सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रशिक्षित किया है, जिससेग्लोबल साउथ’ में कौशल और संस्थानों को मजबूती मिली है।
  • संस्थागत ढाँचा – DPA (2012): भारत ने माँग-आधारित परियोजनाओं के समन्वय हेतु विदेश मंत्रालय के अंतर्गत विकास साझेदारी प्रशासन का गठन किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग (SSC) के प्रयास संरचित, पारदर्शी और साझेदार देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
  • संचालन शक्ति: सितंबर 2025 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान 20 ‘समान विचारधारा वालेग्लोबल साउथ’ देशों की एक उच्च-स्तरीय बैठक की मेजबानी की, जिसने ग्लोबल साउथ’ के अंतर्गत एक सेतु-निर्माता के रूप में अपनी भूमिका का संकेत दिया।
  • वित्तपोषण तंत्र – भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष (2017): भारत ने 56 देशों में 75 से अधिक परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है, जिनमें विशेष रूप से अल्पविकसित और विशेष रूप से पिछड़े देश शामिल हैं। साथ ही, भारत ने दक्षिण-दक्षिण तथा त्रिकोणीय सहयोग के लिए संसाधन उपलब्ध कराने में अग्रणी भूमिका निभाई है।
  • डिजिटल कूटनीति: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (आधार, यूपीआई, कोविन) को मापनीय शासन समाधानों के रूप में निर्यात करना; विकासशील देशों के लिए प्रौद्योगिकी को एक वैश्विक सार्वजनिक अवधारणा के रूप में स्थापित करना।
  • ग्लोबल साउथ’ की अभिव्यक्ति शिखर सम्मेलन: 120 से अधिक देशों की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए ग्लोबल साउथ’ की अभिव्यक्ति शिखर सम्मेलन (वर्ष 2023 और वर्ष 2024) का आयोजन किया।
    • भारत ने अपनी अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ की G20 में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया, जिससे वैश्विक निर्णय लेने में दक्षिणी प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिला।
  • बहुपक्षीय संस्थाओं के साथ साझेदारी (त्रिकोणीय सहयोग): विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के साथ सहयोग से अनाज एटीएम, चावल संवर्द्धन और महिलाओं के नेतृत्व वाले राशन कार्यक्रम जैसे नवाचार सामने आए, जिनका पहले भारत में परीक्षण किया गया और अब इसे विदेशों में भी प्रयोग में लाया जा रहा है।
    • नेपाल (चावल संवर्द्धन और आपूर्ति शृंखला) तथा लाओस (पोषण परियोजनाएँ) में हाल की भारत–WFP परियोजनाएँ, त्रिकोणीय मॉडलों के माध्यम से SSTC में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को प्रदर्शित करती हैं।
  • SSC के लिए नवाचार केंद्र: खाद्य सुरक्षा, डिजिटल शासन, स्वास्थ्य प्रणालियों और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता में भारत के कम लागत वाले, मापनीय नवाचार अन्य विकासशील देशों के लिए अनुकरणीय मॉडल के रूप में कार्य करते हैं।
  • क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग: द्विपक्षीय सहायता के अलावा, भारत बहुपक्षीय मंचों (BRICS, IBSA, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, CDRI) के माध्यम से SSC को मजबूत करता है, वैश्विक शासन में ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं को शामिल करता है।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) के लिए चुनौतियाँ

  • वित्तीय बाधाएँ: मानवीय और विकास क्षेत्रों के लिए वित्तपोषण में कमी आ रही है:
    • कई SSTC परियोजनाएँ छोटे पैमाने की ही हैं, जिनके संसाधन सीमित और बिखरे हुए हैं, जबकि LDCr, LLDC और SIDS की जरूरतें बहुत ज्यादा हैं।
    • UNCTAD का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) को हासिल करने के लिए विकासशील देशों के पास लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर का वार्षिक वित्तपोषण अंतराल होगा।
  • संस्थागत कमजोरी: हालाँकि BAPA (1978) ने इसकी नींव रखी, लेकिन SSC पहलों के समन्वय, निगरानी और मूल्यांकन के लिए कोई मजबूत वैश्विक संस्थागत ढाँचा मौजूद नहीं है।
    • जवाबदेही और पारदर्शिता तंत्र प्रायः कमजोर होते हैं।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: भारत के माँग-आधारित सहयोग बनाम चीन की बेल्ट एंड रोड पहल जैसे प्रतिस्पर्द्धी मॉडल तनाव पैदा करते हैं।
    • चीन के BRI ऋणों का कुल मिलाकर अनुमान 800 बिलियन डॉलर से 1 ट्रिलियन डॉलर तक है, जो इसे वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े ऋणदाताओं में से एक बनाता है।
    • औपनिवेशिक छायाएँ और नव-औपनिवेशिक जोखिम: SSC प्रायः उपनिवेशवाद के संरचनात्मक प्रभावों को पूरी तरह से संबोधित नहीं करता है और अनुचित रूप से डिजाइन की गई परियोजनाओं में निर्भरता के नव-औपनिवेशिक पैटर्न को दोहराने का जोखिम होता है।
  • जलवायु एवं विकास संबंधी कमजोरियाँ: न्यूनतम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के बावजूद कई ग्लोबल साउथ’ राज्यों को असमान जलवायु तनावों का सामना करना पड़ रहा है।
    • खाद्य असुरक्षा, महामारियाँ और बढ़ती असमानताएँ, समावेशी समाधान प्रदान करने की SSTC की क्षमता की कसौटी बन रही हैं।
    • अफ्रीकी देश वैश्विक COका 4% से कम उत्सर्जित करते हैं, लेकिन सर्वाधिक जलवायु जोखिमों का सामना कर रहे हैं (IPCC AR6 रिपोर्ट, 2022)।
    • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य प्रगति रिपोर्ट (2023) दर्शाती है कि केवल 12% सतत् विकास लक्ष्य प्राप्ति के पथ पर हैं, और ‘ग्लोबल साउथ’ इसमें सबसे पीछे हैं।
  • तकनीकी विभाजन: केवल कुछ दक्षिणी देशों (जैसे भारत) में मजबूत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (UPI, आधार, कोविन) है।
    • अन्य देश पिछड़ रहे हैं, जिससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को आत्मसात करने की उनकी क्षमता असमान हो रही है।
    • अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) के अनुसार, वर्ष 2023 में 2.6 अरब लोग ऑफलाइन रहे, जिनमें से अधिकांश निम्न-आय वाले देशों में रहते हैं।
  • बहुपक्षवाद दबाव में: जैसा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा 2025 सप्ताह के आयोजन में कहा था, बहुपक्षवाद की अवधारणा पर हमला हो रहा है क्योंकि वैश्विक संस्थाएँ कमजोर हो रही हैं या उनके पास संसाधनों की कमी है (उदाहरण के लिए, यूनेस्को, यूएनएचआरसी जैसी संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं को अमेरिका द्वारा दी जाने वाली धनराशि में कटौती)।
  • संसाधनों पर निर्भरता: महत्त्वपूर्ण खनिजों (लीथियम, कोबाल्ट, दुर्लभ मृदा) पर कुछ ही देशों (जैसे- चीन) का प्रभुत्व है, जिससे SSC भागीदारों के लिए उचित पहुँच सीमित हो रही है।
    • चीन में निकेल के लिए शोधन का हिस्सा लगभग 35%, लीथियम और कोबाल्ट के लिए 50-70% और दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिए लगभग 90% है।
    • यह संकेंद्रण हरित परिवर्तन के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों तक समान पहुँच के लिए खतरा है।
  • सीमित वैश्विक अभिव्यक्ति: सामूहिक शक्ति के बावजूद,ग्लोबल साउथ’ का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में कम प्रतिनिधित्व है।
    • विश्व की 85% आबादी होने के बावजूद,ग्लोबल साउथ’ का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कोई स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • त्रिकोणीय सहयोग प्रायः उत्तरी वित्तपोषण पर निर्भर करता है, जिससे दक्षिणी स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
  • आंतरिक विरोधाभास: ‘ग्लोबल साउथ’ समरूप नहीं है, शासन, आय और रणनीतिक संरेखण में असमानताएँ सामूहिक समर्थन को कठिन बनाती हैं।
    • आय असमानताएँ: ब्राजील का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद $10,000 से अधिक है, जबकि बुरुंडी का $300 से कम है (विश्व बैंक, 2023)।
    • राजनीतिक विभाजन: संयुक्त राष्ट्र के मतदान में ‘दक्षिण-दक्षिण’ एकता प्रायः विभाजित हो जाती है (उदाहरण के लिए, गाजा प्रस्ताव 2023, जहाँ ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों ने अलग-अलग मतदान किया)।

ग्लोबल साउथ के बारे में

  • परिभाषा: व्यापक रूप से विकासशील या अल्प विकसित राष्ट्रों को संदर्भित करता है, जिनकी राजनीतिक, आर्थिक और विकासात्मक चुनौतियाँ समान हैं।
  • उत्पत्ति: यह शब्द पहली बार वर्ष 1969 में कार्ल ओग्लेस्बी द्वारा प्रयुक्त किया गया था; 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद इसका प्रचलन बढ़ा।
  • भौगोलिक रूप से सीमित: इसमें भारत और चीन (उत्तरी गोलार्द्ध) शामिल हैं, लेकिन यह मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका तक विस्तृत है।
  • विशेषताएँ: सामान्य चिंताओं में गरीबी उन्मूलन, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु न्याय और निष्पक्ष व्यापार शामिल हैं।
  • वैश्विक प्रतिनिधित्व की कमी: विश्व की 85% जनसंख्या होने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में सीमित  प्रतिनिधित्व।
  • गठबंधन मंच: G-77, NAM और भारत के नेतृत्व वाले वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन।
  • दक्षिण के अंतर्गत विविधता
    • जनसंख्या: विश्व के 5 सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से 4 एशिया में हैं (भारत, चीन, इंडोनेशिया, पाकिस्तान)।
    • आर्थिक विकास: एशिया का सबसे तेजी से बढ़ता क्षेत्र (IMF)।
    • असमानता: उरुग्वे/चिली में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) $10,000 से अधिक है, जबकि नाइजर/बुरुंडी में यह $1,000 से कम है।
    • संघर्ष: इथियोपिया, DR कांगो, सूडान में जारी अस्थिरता।

ग्लोबल नॉर्थ’ के बारे में

  • ग्लोबल नॉर्थ’ में वे समृद्ध राष्ट्र शामिल हैं, जो अधिकतम उत्तरी अमेरिका और यूरोप में स्थित हैं, और कुछ देश ओशिनिया एवं अन्य जगहों पर भी स्थित हैं।
  • वैश्विक उत्तर’ का तात्पर्य अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों से है।

ब्रांट लाइन’ के बारे में

  • 1980 के दशक में विली ब्रांट द्वारा प्रस्तावित।
  • यह एक काल्पनिक रेखा है, जो विश्व को अमीर देशों (मुख्यतः उत्तरी गोलार्द्ध में) और गरीब देशों (अधिकांशतः दक्षिणी गोलार्द्ध में) में विभाजित करती है।
    • यह मूलतः उत्तरी देशों और दक्षिणी देशों के बीच सामाजिक-आर्थिक विभाजन को दर्शाता है।

संयुक्त राष्ट्र दक्षिण-दक्षिण सहयोग कार्यालय (United Nations Office for South-South Cooperation- UNOSSC)

  • स्थापना: वर्ष 1974
  • अधिदेश: संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर और वैश्विक स्तर पर दक्षिण-दक्षिण’ और त्रिकोणीय सहयोग को बढ़ावा देना, समन्वय करना और समर्थन देना।
  • भूमिका: ज्ञान-साझाकरण को सुगम बनाना, नीतिगत सलाह प्रदान करना, संसाधन जुटाना और साझेदारी को मजबूत करना।
  • महत्त्व: ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (BAPA, 1978) के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना।

साउथ-साउथ गैलेक्सी (2019)

  • UNOSSC द्वारा UNDP के साथ साझेदारी में शुरू किया गया एक डिजिटल प्लेटफॉर्म।
  • उद्देश्य: ग्लोबल साउथ’ देशों को दुनिया भर के भागीदारों के साथ जुड़ने, साझा करने और सहयोग करने में सक्षम बनाकर उन्हें व्यवस्थित सहायता प्रदान करना।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) के लिए आगे की राह

  • वित्तीय अंतराल को पाटना: दक्षिण-दक्षिण वित्तीय तंत्रों (भारत-संयुक्त राष्ट्र कोष, BRICS NDB, AIIB) का विस्तार छोटे पायलट प्रोजेक्टों से आगे बढ़ाने के लिए करना।
    • SSC के लिए मिश्रित वित्त (सार्वजनिक + निजी + परोपकारी) और ग्रीन बॉण्ड जैसे नवीन संसाधनों को जुटाना।
    • दक्षिणी देशों की तरलता तक पहुँच बढ़ाने के लिए IMF और विश्व बैंक में सुधारों को आगे बढ़ाना; UNCTAD के 4 ट्रिलियन डॉलर के सतत् विकास लक्ष्य अंतराल के लिए तदर्थ सहायता की नहीं, बल्कि प्रणालीगत समाधानों की आवश्यकता है।
  • संस्थानों और जवाबदेही को मजबूत करना: निगरानी और मूल्यांकन के लिए अधिक धन और अधिदेश के साथ UNOSSC को उन्नत करना।
    • SSC परियोजनाओं के लिए स्पष्ट मीट्रिक, पारदर्शिता और रिपोर्टिंग जैसी साझा जवाबदेही रूपरेखाएँ विकसित करना।
    • वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ समिट्स को एक स्थायी वार्षिक मंच के रूप में संस्थागत रूप प्रदान करना।
  • सार्वजनिक हित के रूप में प्रौद्योगिकी: साझेदार देशों में भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना मॉडल का विस्तार करना।
    • मापनीय शासन और नवाचार के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का एक वैश्विक भंडार बनाना।
    • AI, फिनटेक और स्वास्थ्य तकनीक में ज्ञान-साझाकरण के लिए साउथ-साउथ गैलेक्सी जैसे प्लेटफॉर्मों का विस्तार करना।
  • वैश्विक शासन सुधार: विशेष रूप से अफ्रीका और भारत पर जोर देते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ग्लोबल साउथ‘ के लिए स्थायी सीटों का समर्थन।
    • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन सुधार: संशोधित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कोटा हिस्सेदारी (अफ्रीका की वर्तमान लगभग 5% हिस्सेदारी बनाम 17% जनसंख्या) की माँग सरासर अनुचित है।
  • बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करना: भारत और अन्य दक्षिणी देशों को संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करना चाहिए ताकि वे सामूहिक समस्या-समाधान के लिए विश्वसनीय मंच बने रहें।
  • आंतरिक अंतर्विरोधों पर विजय: राजनीतिक गठबंधनों में मतभेद होने पर भी मुद्दा-आधारित गठबंधन (जलवायु न्याय, ऋण सुधार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण) बनाना।
    • एकजुटता सुनिश्चित करने और विखंडन को कम करने के लिए क्षेत्रीय समूहों (अफ्रीकी संघ, कैरीकॉम, इकोवास, मर्कोसुर) को बढ़ावा देना।
  • नियमित दक्षिण परामर्श: गति और साझा समर्थन को बनाए रखने के लिएग्लोबल साउथ’ की अभिव्यक्ति शिखर सम्मेलन के साथ-साथ “समान विचारधारा वाले ‘ग्लोबल साउथ'” संवादों को संस्थागत रूप देना।
  • विकास, न कि ऋण कूटनीति: BRI जैसे भारी ऋण मॉडल के विकल्प के रूप में माँग-आधारित, पारदर्शी वित्तपोषण को बढ़ावा देना।
    • छिपे हुए ऋण जाल से बचने और समानता सुनिश्चित करने के लिए SSC के लिए आचार संहिता सिद्धांत बनाना।
    • प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग के बीच संतुलन बनाने के लिए त्रिकोणीय सहयोग (दक्षिण + संयुक्त राष्ट्र/पश्चिम) को प्रोत्साहित करना।
  • जलवायु और खाद्य सुरक्षा नेतृत्व: भारत में परीक्षण किए गए जलवायु-प्रतिरोधी कृषि चावल संवर्द्धन और पोषण कार्यक्रमों का विस्तार करना।
    • हरित परिवर्तन के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए विविध आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करना।

निष्कर्ष

SSTC अब केवल एक अवधारणा नहीं, बल्कि समावेशी और सतत् विकास का एक प्रमुख मार्ग है। वर्ष 2030 के एजेंडे के लिए समय सीमित है; ऐसे में भारत कावसुधैव कुटुंबकम्’ का दर्शन और इसके अनुकरणीय मॉडल उसे ग्लोबल साउथ’ के परिवर्तन का नेतृत्व करने की स्थिति में लाते हैं।

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