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सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड (SGrB)

Lokesh Pal February 17, 2025 03:46 37 0

संदर्भ

आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव ने कहा कि पिछले 2.5 वर्षों में, निवेशकों द्वारा कम प्रतिफल स्वीकार करने की अनिच्छा के कारण सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से जुटाई गई धनराशि सीमित हो गई है। 

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड के बारे में

  • SGrB भारत सरकार द्वारा पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए जारी किए गए ऋण साधन हैं।
  • उनका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक इंजन एवं मेट्रो परियोजनाओं सहित हरित बुनियादी ढाँचे को वित्तपोषित करना है।
  • भारत ने अपने निम्न-कार्बन संक्रमण के लिए संसाधन जुटाने के लिए वर्ष 2022 में अपना SGrB ढाँचा शुरू किया।
    • तब से, सरकार ने आठ बार SGrBs जारी किए हैं, जिससे लगभग ₹53,000 करोड़ जुटाए गए हैं।

ग्रीन बॉण्ड क्या हैं?

  • ग्रीन बॉण्ड सरकारों, निगमों या बहुपक्षीय संस्थानों द्वारा उत्सर्जन को कम करने और जलवायु लचीलापन को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं को निधि देने के लिए जारी किए गए वित्तीय साधन हैं।
  • वे आम तौर पर पारंपरिक बॉण्ड की तुलना में कम प्रतिफल देते हैं, जिन्हें ‘ग्रीनियम’ (ग्रीन प्रीमियम) कहा जाता है।
  • ग्रीन बॉण्ड को विभिन्न संरचनात्मक प्रारूपों जैसे ग्रीन रेवेन्यू बॉण्ड, ग्रीन प्रोजेक्ट बॉण्ड एवं ग्रीन सिक्योरिटाइज्ड बॉण्ड में जारी किया जा सकता है। 

  • सबसे आम तौर पर जारी किया जाने वाला ग्रीन बॉण्ड ‘स्टैन्डर्ड ग्रीन यूज ऑफ प्रोसीड्स बॉण्ड’ है, जिसे ‘इंटरनेशनल कैपिटल मार्केट एसोसिएशन’ (ICMA) द्वारा ग्रीन बॉण्ड प्रिंसिपल (Green Bond Principles-GBPs) के साथ संरेखित जारीकर्ता ऋण दायित्व के लिए एक मानक आधार के रूप में परिभाषित किया गया है।

वैश्विक स्तर पर ग्रीन बॉण्ड मार्केट

  • अमेरिका, चीन एवं यूरोपीय देशों जैसे देशों ने ग्रीन बॉण्ड का सफलतापूर्वक लाभ उठाया है।
  • वैश्विक ग्रीन बॉण्ड बाजार में एकल-अंकीय उच्च ग्रीनियम (7-8 आधार अंक) देखा जाता है, जो जारीकर्ताओं को लागत लाभ प्रदान करता है।

भारत के सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड की सीमित सफलता

  • निवेशकों की उदासीनता: निवेशक कम प्रतिफल स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक रहे हैं, जिससे ग्रीनियम केवल 2-3 आधार अंकों तक सीमित हो गया है या बिल्कुल भी नहीं मिला है।
    • कई SGrBs बिना बिके रह गए हैं, जिससे RBI को उन्हें प्राथमिक डीलरों को सौंपना पड़ा है।
  • नीलामी संबंधी चुनौती: अगस्त 2024 में, लक्षित ₹6,000 करोड़ की नीलामी के मुकाबले केवल ₹1,697 करोड़ को स्वीकार किया गया। कम निवेशक भागीदारी के कारण ₹6,000 करोड़ की एक और नीलामी वापस ले ली गई।
  • तरलता एवं बाजार की चुनौतियाँ: SGrBs को ज्यादातर परिपक्वता अवधि तक रखा जाता है, जिससे द्वितीयक बाजार में ट्रेडिंग तरलता प्राप्त नहीं होती है।
    • वैश्विक बाजारों के विपरीत, भारत में माँग को बढ़ाने के लिए समर्पित सामाजिक प्रभाव निधि या संधारणीय वित्त बाजारों का अभाव है।

भारत के सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड को प्रभावित करने वाले मुद्दे

  • कम ग्रीनियम एवं उच्च प्रतिफल की उम्मीदें: निवेशक उच्च रिटर्न की उम्मीद करते हैं, जिससे ग्रीन बॉण्ड जारी करने का वित्तीय लाभ कम हो जाता है।
    • मजबूत ग्रीनियम के बिना, ग्रीन बॉण्ड पारंपरिक बॉण्ड की तुलना में कोई प्रोत्साहन प्रदान नहीं करते हैं।
  • सीमित घरेलू खरीदार आधार: भारत में पेंशन फंड एवं सामाजिक प्रभाव निवेश फंड जैसे संस्थागत खरीदारों की कमी है, जो संधारणीय वित्तपोषण को प्राथमिकता देते हैं।

धन जुटाने में चुनौतियाँ

  • अपेक्षित से कम माँग के कारण, सरकार ने अपने वर्ष 2024-25 SGrB धन उगाहने के लक्ष्य को ₹32,061 करोड़ से संशोधित कर ₹25,298 करोड़ कर दिया।
  • इस कमी ने ग्रिड-स्केल सोलर जैसी प्रमुख परियोजनाओं को प्रभावित किया है, जहाँ आवंटन को ₹10,000 करोड़ से घटाकर ₹1,300 करोड़ कर दिया गया था।

आगे की राह

  • नीति एवं बाजार सुधार: भारत के संधारणीय वित्त बाजार को मजबूत करना एवं ग्रीन बॉण्ड निवेशकों के लिए कर प्रोत्साहन शुरू करना। निवेशकों का विश्वास बनाने के लिए ग्रीन बॉण्ड रिपोर्टिंग में पारदर्शिता में सुधार करना।
  • अंतरराष्ट्रीय भागीदारी: क्रेडिट रेटिंग बढ़ाने एवं विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विश्व बैंक, IFC जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों के साथ साझेदारी करना।
  • अन्य ग्रीन फाइनेंस विकल्पों की खोज: भारत संधारणीयता-लिंक्ड बॉण्ड जैसे वैकल्पिक वित्तपोषण मॉडल पर विचार कर सकता है, जो पर्यावरणीय प्रदर्शन के आधार पर प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।

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