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भारतीय अर्थव्यवस्था पर S&P ग्लोबल रेटिंग

Lokesh Pal August 19, 2025 03:52 106 0

संदर्भ

स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (S&P) ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत की दीर्घकालिक सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को BBB- से बढ़ाकर BBB कर दिया है और इसकी अल्पकालिक रेटिंग को ‘A-3’ से बढ़ाकर ‘A-2’ कर दिया है, जो स्थिर आउटलुक के साथ 18 वर्षों में पहली बार ऐसा अपग्रेड है।

भारत पर S&P ग्लोबल रेटिंग्स की मुख्य विशेषताएँ

  • मजबूत और उत्साहजनक वृद्धि संभावनाएँ: S&P ने अनुमान लगाया है कि भारत की GDP वर्ष 2024 में 3.9 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2028 तक 5.5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी, जिसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर लगभग 6.8% होगी।
  • राजकोषीय समेकन के प्रति प्रतिबद्धता: एजेंसी ने भारत की राजकोषीय विवेकशीलता पर जोर दिया और अनुमान लगाया कि सामान्य सरकारी घाटा वित्त वर्ष 2025-26 में GDP के 7.3% से घटकर 2028-29 में 6.6% हो जाएगा।
  • सार्वजनिक व्यय की बेहतर गुणवत्ता: पूँजीगत व्यय और बुनियादी ढाँचे में निवेश पर अधिक जोर देने से व्यय की गुणवत्ता मजबूत हुई है, जिससे दीर्घकालिक वृद्धि एवं उत्पादकता को बढ़ावा मिला है।
  • मुद्रास्फीति और मौद्रिक स्थिरता को स्थिर करना: भारत द्वारा मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण व्यवस्था को अपनाने से वैश्विक चुनौतियों के बावजूद मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर रखा गया है, जिससे नीति में अधिक मूल्य स्थिरता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित हुई है।
  • मजबूत बाह्य और वित्तीय स्थिति: गहन होते घरेलू पूँजी बाजार, लचीली कॉरपोरेट बैलेंस शीट और मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाओं को वित्तीय स्थिरता और दीर्घकालिक नीति निरंतरता के समर्थक के रूप में मान्यता दी गई।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्व

  • मजबूत वैश्विक आर्थिक स्थिति: यह उन्नयन भारत की वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में स्थिति की पुष्टि करता है, जो इसके लचीलेपन एवं संरचनात्मक सुधारों में विश्वास को दर्शाता है।
  • निवेश एवं पूँजी प्रवाह को प्रोत्साहन: उच्च क्रेडिट रेटिंग निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है, जिससे संभावित रूप से भारत में अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और उधारी लागत में कमी हो सकती है।
  • विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन की मान्यता: यह निर्णय सरकार की ऋण-घाटे समेकन रणनीति को मान्य करता है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि भारत का ऋण-GDP  अनुपात वित्त वर्ष 2025 में 83% से घटकर वित्त वर्ष 2029 में 78% हो जाएगा, जिससे यह ‘कोविड महामारी-पूर्व स्तर के निकट’ आ जाएगा।
  • वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों का सीमित प्रभाव: S&P ने आकलन किया कि निर्यात पर भारत की कम निर्भरता (GDP का केवल 2% अमेरिका को निर्देशित) और घरेलू उपभोग आधार इसे टैरिफ संबंधी चुनौतियों से बचाते हैं।

S&P ग्लोबल रेटिंग्स के बारे में

  • S&P ग्लोबल रेटिंग्स, S&P ग्लोबल इंक. (वर्ष 1860 में अमेरिका में स्थापित) का एक प्रभाग, क्रेडिट रेटिंग, बेंचमार्क और विश्लेषण प्रदान करता है।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य संप्रभु कंपनियों, कॉरपोरेट्स और वित्तीय साधनों की साख का मूल्यांकन करना है।

  • रेटिंग और संकेतकों की श्रेणियाँ: शैक्षणिक ग्रेड की तरह, प्रत्येक रेटिंग में A से D के पैमाने पर एक अक्षर होता है, जिसे कभी-कभी धन या ऋण चिह्न या किसी संख्या से बढ़ाया जाता है। ग्रेड जितना ऊँचा होगा, S&P के आकलन में चूक का जोखिम उतना ही कम होगा।
    • BBB और उससे ऊपर की रेटिंग को निवेश श्रेणी के अंतर्गत माना जाता है, जो सबसे सुरक्षित प्रकार का निवेश है।
    • BBB से नीचे की रेटिंग को जोखिम संबंधी संभावना के तहत माना जाता है, जिसमें जोखिम की मात्रा अधिक होती है।
  • दीर्घकालिक बनाम अल्पकालिक रेटिंग

पहलू दीर्घकालिक रेटिंग अल्पकालिक रेटिंग
समय सीमा  एक वर्ष से अधिक समय तक किसी इकाई की ऋण-पात्रता का आकलन किया जाता है तथा मध्यम से दीर्घकालिक ऋण दायित्वों को पूरा करने की क्षमता पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। एक वर्ष के भीतर वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की क्षमता का मूल्यांकन करता है, मुख्य रूप से ट्रेजरी बिल या वाणिज्यिक पत्रों जैसे उपकरणों के लिए।
जोखिम संकेत यह किसी सरकार या कंपनी की दीर्घकालिक समग्र वित्तीय स्थिरता और पुनर्भुगतान क्षमता को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, भारत को BBB में अपग्रेड किया गया। अल्पकालिक तरलता और तत्काल पुनर्भुगतान क्षमता को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, भारत को A-3 से A-2 में अपग्रेड किया गया।

निष्कर्ष

S&P रेटिंग का BBB- से BBB तक उन्नयन, वैश्विक अनिश्चितताओं के मध्य भारत की विकास क्षमता, राजकोषीय उत्तरदायित्त्व और लचीलेपन के साथ उसके आर्थिक विकास की पुष्टि करता है।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग क्या है?

  • सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग (SCR) किसी देश की साख का एक स्वतंत्र मूल्यांकन है, जो उस देश को उधार देने या उससे ऋण खरीदने में निवेशकों के लिए जोखिम को दर्शाता है।
  • यह इस संभावना को दर्शाता है कि कोई सरकार आर्थिक और राजनीतिक दोनों जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अपने ऋण दायित्वों का पालन करेगी।
  • अच्छी रेटिंग प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय बॉण्ड बाजारों तक पहुँच संभव होती है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित होता है।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग के उदाहरण

  • फिच रेटिंग्स: BBB- और उससे ऊपर की रेटिंग वाले देश ‘निवेश श्रेणी के अंतर्गत’ माने जाते हैं, जबकि BB+ और उससे नीचे की रेटिंग वाले देशों को प्रत्याशित जोखिम वाला माना जाता है।
  • स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (S&P): एक समान पैमाने का उपयोग करता है, जिसमें BBB- और उससे ऊपर की रेटिंग को निवेश श्रेणी के अंतर्गत और BB+ या उससे कम रेटिंग को खराब श्रेणी (Junk Grade) माना जाता है।
  • मूडीज: Baa3 या उससे अधिक की रेटिंग निवेश श्रेणी के अंतर्गत होती है; Ba1 और उससे कम रेटिंग प्रत्याशित जोखम वाली होती है।
  • भारतीय क्रेडिट एजेंसी: भारत में SEBI के साथ पंजीकृत छह प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ हैं – CRISIL, ICRA, CARE, SMERA, फिच इंडिया (Fitch India) और ब्रिकवर्क रेटिंग्स (Brickwork Ratings)।
    • CRISIL वर्ष 1987 में स्थापित पहली एजेंसी थी।
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) अधिनियम, 1992 के सेबी (क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ) विनियमन, 1999 भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को नियंत्रित करते हैं।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग के निर्धारक

  • ऋण सेवा अनुपात: उच्च बाह्य ऋण सेवा आवश्यकताएँ डिफॉल्ट का जोखिम बढ़ाती हैं, जिससे रेटिंग कम होती है।
  • राजकोषीय और मौद्रिक अनुशासन: घरेलू मुद्रा आपूर्ति में तीव्र वृद्धि मुद्रास्फीति के जोखिम का संकेत देती है, जिससे रेटिंग कमजोर होती है।
  • व्यापार प्रदर्शन: पुनर्भुगतान क्षमता के संकेतक के रूप में आयात अनुपात और निर्यात राजस्व में उतार-चढ़ाव पर बारीकी से नजर रखी जाती है।
  • शासन और राजनीतिक स्थिरता: राजनीतिक अस्थिरता, कमजोर संस्थाएँ या विलंबित सुधार विश्वास और रेटिंग को कम करते हैं।
  • वैश्विक आर्थिक वातावरण: वित्तीय संकट, वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव या वैश्विक मंदी जैसी चुनौतियाँ सॉवरेन रेटिंग पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

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