राष्ट्रपति ने सात बार के सांसद भर्तृहरि महताब को 18वीं लोकसभा का ‘प्रोटेम स्पीकर (अस्थायी अध्यक्ष)’ नियुक्त किया है।
संबंधित तथ्य
संविधान के अनुच्छेद-94 में कहा गया है कि लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा के विघटन के बाद उसकी पहली बैठक से ठीक पहले तक अपना पद रिक्त नहीं करेगा।
ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि अध्यक्ष का पद कभी खाली न रहे।
इसलिए ओम बिरला जो 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष थे, 24 जून तक उस पद पर बने रहेंगे, जब 18वीं लोकसभा की पहली बैठक होनी है।
संविधान के अनुच्छेद-95(1) में प्रावधान है कि जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद खाली हो, तो राष्ट्रपति लोकसभा के किसी सदस्य को अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करने के लिए नियुक्त करेगा। यह स्थिति तब होगी जब नई लोकसभा की पहली बैठक शुरू होगी।
प्रोटेम स्पीकर
परिचय
‘प्रोटेम’ का अर्थ अनिवार्य रूप से ‘फिलहाल’ या ‘अस्थायी रूप से’ होता है।
लोकसभा के पीठासीन अधिकारी होने के नाते लोकसभा अध्यक्ष को इसकी दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही से संबंधित कुछ प्रमुख कर्तव्यों को पूरा करना होता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-94 में कहा गया है कि जब भी लोकसभा भंग होती है, तो अध्यक्ष विघटन के बाद लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले तक अपना पद खाली नहीं करेगा।
नई लोकसभा में सदन के अध्यक्ष का फैसला साधारण बहुमत से होता है।
उनके चयन तक, कुछ महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए प्रोटेम स्पीकर को चुना जाता है।
संवैधानिक प्रावधान
संविधान में इस पद का उल्लेख नहीं है।
हालाँकि, आधिकारिक ‘संसदीय कार्य मंत्रालय के कामकाज पर पुस्तिका’ में ‘प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति और शपथ ग्रहण’ के बारे में बताया गया है।
चुनाव प्रक्रिया
पुस्तिका में कहा गया है कि जब नई लोकसभा के गठन से पहले अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है, तो “अध्यक्ष के कर्तव्यों का निर्वहन सदन के एक सदस्य द्वारा किया जाता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा प्रोटेम स्पीकर के रूप में इस उद्देश्य के लिए नियुक्त किया जाता है”।
नए सांसदों को शपथ दिलाना प्रोटेम स्पीकर का प्राथमिक कर्तव्य है। संविधान के अनुच्छेद-99 के तहत, “सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष संविधान की तीसरी अनुसूची में इस उद्देश्य के लिए निर्धारित प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा।”
आमतौर पर, सांसदों के समक्ष शपथ लेने के लिए लोकसभा के तीन अन्य निर्वाचित सदस्यों को भी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
पुस्तिका के अनुसार, इस उद्देश्य के लिए आमतौर पर सबसे वरिष्ठ सदस्यों (सदन की सदस्यता के वर्षों की संख्या के संदर्भ में) को चुना जाता है, हालाँकि कुछ अपवाद भी रहे हैं।
जैसे ही नई सरकार बनती है, भारत सरकार का विधायी अनुभाग-I सबसे वरिष्ठ लोकसभा सदस्यों की सूची तैयार करता है।
इसके बाद इसे संसदीय कार्य मंत्री या प्रधानमंत्री को प्रस्तुत किया जाता है ताकि एक सांसद को अस्थायी अध्यक्ष के रूप में तथा तीन अन्य सदस्यों को शपथ ग्रहण के लिए चुना जा सके।
इसलिए, राष्ट्रपति इस प्रावधान के तहत पूर्णकालिक अध्यक्ष के निर्वाचित होने तक ‘प्रोटेम स्पीकर’ की नियुक्ति करते हैं। ‘प्रोटेम’ शब्द का अर्थ है ‘फिलहाल के लिए’ या ‘अस्थायी’।
यह शब्द संविधान या लोकसभा के नियमों में नहीं मिलता है, लेकिन यह एक पारंपरिक शब्द है, जिसका उल्लेख संसदीय मामलों के मंत्रालय के कामकाज की पुस्तिका में मिलता है।
परंपरा के अनुसार, लोकसभा के सबसे वरिष्ठ सदस्यों में से एक को सरकार द्वारा चुना जाता है, जिसे फिर राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है।
प्रोटेम स्पीकर अन्य सांसदों को पद की शपथ दिलाता है और पूर्णकालिक अध्यक्ष के चुनाव की अध्यक्षता करता है। 18वीं लोकसभा में भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया है।
लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद-93 में कहा गया है कि लोकसभा अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में दो सदस्यों का चयन करेगी।
अध्यक्ष का चुनाव राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि पर होता है। स्वतंत्र भारत में सभी अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए हैं। उपाध्यक्ष का चुनाव अध्यक्ष द्वारा निर्धारित तिथि पर होता है।
लोकसभा अध्यक्ष का महत्त्व एवं कार्य
कामकाज के संचालन के अलावा, अध्यक्ष दो महत्त्वपूर्ण संवैधानिक कार्य करते हैं –
विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करना (जिस पर राज्यसभा की सीमित भूमिका है) और,
दल-बदल के लिए दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता पर निर्णय लेना।
लोकसभा के नियमों के अनुसार, अध्यक्ष को स्थायी समितियों को प्रस्तुत विधेयकों को भेजने तथा गंभीर अव्यवस्था के संदर्भ में सदस्यों को अधिकतम पाँच दिनों तक निलंबित करने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
समितियों को विधेयक भेजने की संख्या वर्ष 2009-14 के दौरान 71% से घटकर वर्ष2019-24 के दौरान 16% रह गई है।
गठबंधन सरकार की वापसी के साथ, यह उम्मीद की जाती है कि अध्यक्ष महत्त्वपूर्ण विधेयकों को जाँच के लिए स्थायी समितियों को भेजेंगे।
वर्ष 2023 के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षी सांसदों को भी बड़े पैमाने पर निलंबित किया गया था।
इस तरह के निलंबन से संसद के सुचारू कामकाज पर असर पड़ता है और इसे संयम से किया जाना चाहिए।
विभिन्न परंपराएँ
ब्रिटेन
ब्रिटेन में अध्यक्ष एक बार अपने पद के लिए चुने जाने के बाद उस राजनीतिक दल से इस्तीफा दे देता है, जिससे वह संबंधित था।
हाउस ऑफ कॉमन्स के बाद के चुनावों में, वह किसी राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में नहीं बल्कि ‘पुनः चुनाव चाहने वाले अध्यक्ष’ के रूप में चुनाव लड़ता है। यह सदन की अध्यक्षता करते समय उसकी निष्पक्षता को दर्शाता है।
भारत
दसवीं अनुसूची अध्यक्ष को अपने पद पर चुने जाने पर अपने राजनीतिक दल से इस्तीफा देने की अनुमति देती है, ऐसा आज तक किसी भी अध्यक्ष द्वारा नहीं किया गया है।
अध्यक्ष के रूप में चुने जाने पर अपने राजनीतिक दलों से इस्तीफा देना स्वतंत्रता का प्रदर्शन करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है।
उपाध्यक्ष एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक अधिकारी होता है, जो अध्यक्ष के रिक्त होने या अनुपस्थिति के दौरान पदभार सँभालता है।
विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद देने की परंपरा वर्ष 1991 में शुरू हुई थी।
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