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मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण

Lokesh Pal July 08, 2025 03:33 14 0

संदर्भ 

भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा के आम चुनावों से पहले मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision- SIR) शुरू किया है।

विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बारे में

  • यह मतदाता सूचियों को नए सिरे से अद्यतित करने के लिए घर-घर जाकर सत्यापन प्रक्रिया है।
  • उद्देश्य: सभी पात्र नागरिकों को नामांकित करना तथा अपात्र/डुप्लिकेट/विदेशी प्रविष्टियों को हटाना।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) एवं संविधान के अनुच्छेद-324(1) के तहत बूथ स्तर के अधिकारियों (Booth Level Officers- BLOs) द्वारा संचालित किया जा रहा है।
  • उद्देश्य
    • सुनिश्चित करना कि केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के वास्तविक भारतीय नागरिक ही मतदाता सूची में सूचीकृत हों।
    • अवैध अप्रवासियों, डुप्लिकेट एवं अयोग्य मतदाताओं को बाहर निकालना।
    • मतदाता सूची की अखंडता एवं विश्वसनीयता बनाए रखना।
    • लोकतंत्र को मजबूत करना तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना।

मतदाता सूची: संवैधानिक एवं कानूनी आधार

  • निर्वाचक नामावली (Electoral Roll), जिसे मतदाता सूची के रूप में भी जाना जाता है, एक व्यापक सूची है जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्राधिकार में सभी पात्र मतदाताओं के नाम शामिल होते हैं।
    • इसमें लैंगिक रूप, जाति या वर्ग के बावजूद मतदाताओं के नाम सूचीबद्ध होते हैं।
    • पारदर्शिता के साथ समावेशन/बहिष्करण का अवसर प्रदान करके प्राकृतिक न्याय सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद-324: चुनाव आयोग को मतदाता सूचियों के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण का अधिकार दिया गया है।
  • अनुच्छेद-326: 18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक के लिए मतदान का अधिकार।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1950
    • धारा 16: नागरिकों के अलावा अन्य व्यक्तियों को अयोग्य घोषित करती है।
    • धारा 19: आयु (18 वर्ष से अधिक) एवं सामान्य निवास की आवश्यकता होती है।
    • धारा 20: ‘सामान्यतः निवासी’ (केवल संपत्ति स्वामित्व, निवास नहीं) को परिभाषित करती है।
    • धारा 21: चुनाव आयोग विशेष गहन संशोधन (SIR) के माध्यम से निर्वाचक सूची को संशोधित कर सकता है।

ऐतिहासिक संदर्भ: मतदाता सूची संशोधन का विकास

  • वर्ष 1952-1956: 1/5वाँ राज्य क्षेत्र वार्षिक रूप से संशोधित किया गया।
  • वर्ष 1960: संशोधन विंडो के रूप में 1-31 जनवरी को संशोधन किया गया।
  • वर्ष 1983-84: वर्ष 1985 के चुनावों से पहले ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में गहन संशोधन किया गया।
  • वर्ष 1993: मतदाता पहचान-पत्र कार्ड (EPIC) की शुरुआत की गई।
  • वर्ष 2002: अंतिम राष्ट्रव्यापी नवीनतम मतदाता सूची तैयार की गई।

नियम 25(1), मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के अंतर्गत संशोधन के प्रकार

  • सारांश संशोधन: नियमित, मामूली अद्यतन।
  • गहन संशोधन: डी-नोवो (नवीनतम), पूर्व आँकड़ों पर निर्भर नहीं।
  • विशेष गहन संशोधन (SIR): आमतौर पर तब लक्षित किया जाता है, जब मौजूदा आँकड़े पुराने या संदिग्ध होते हैं।

सुझाव

  • चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पात्र मतदाताओं, विशेष रूप से गरीब एवं प्रवासी मतदाताओं को बाहर न किया जाए।
  • गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए डुप्लिकेट प्रविष्टियों का पता लगाने के लिए आधार लिंकेज का उपयोग करना।
  • दावों और आपत्तियों के चरण के दौरान समय-सीमा और शिकायत निवारण को बढ़ाया जाए।
  • मतदाता शुद्धता को समावेशन के साथ संतुलित करना।

बिहार का मामला विशिष्ट क्यों है?

  • बिहार में अंतिम SIR वर्ष 2003 में हुआ था।
  • SIR में घर-घर जाकर सत्यापन शामिल है; अब, प्रत्येक व्यक्ति को एक फॉर्म जमा करना होगा (पहले केवल घर के मुखिया को ही जमा करना होता था)।
  • सभी मतदाताओं को एक गणना फॉर्म भरना होगा; वर्ष 2003 के बाद जोड़े गए लोगों को नागरिकता का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा।
  • यह गहन सत्यापन को ऐतिहासिक रोल संदर्भ के साथ जोड़ता है, जो एक मिश्रित दृष्टिकोण को संदर्भित करता है।
  • सांख्यिकी: ड्राफ्ट रोल बिहार में 7.96 करोड़ मतदाता दर्शाते हैं (1 जनवरी, 2025 तक)।
    • वर्ष 2003 रोल में सूचीबद्ध 4.96 करोड़ स्वचालित रूप से पात्र हैं।
    • वर्ष 2003 के मतदाताओं के बच्चे माता-पिता की प्रविष्टि को प्रमाण के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
    • हालाँकि, वर्ष 2003 रोल में मृतक/प्रवासित व्यक्ति शामिल हैं, सत्यापन की आवश्यकता है।
  • नागरिकता प्रमाण के लिए स्वीकृत दस्तावेज
    • वर्ष 2003 की मतदाता सूची (माता-पिता के लिए), जन्म प्रमाण-पत्र, पासपोर्ट, परिवार रजिस्टर, भूमि आवंटन- पत्र, NRC अर्क, पेंशन आदेश, आदि।
    • आधार स्वीकार नहीं किया जाता है, क्योंकि यह नागरिकता सिद्ध नहीं करता है।
  • चिंताएँ जताई गईं
    • 8 करोड़ से अधिक मतदाताओं को फॉर्म भरना होगा; लगभग 3 करोड़ को जन्म/नागरिकता प्रमाण की आवश्यकता है।
    • दस्तावेजों की कमी के कारण प्रवासी एवं छात्र बाहर हो सकते हैं।
    • गरीबों के पास आधार के अलावा वैकल्पिक दस्तावेज नहीं हो सकते।
    • बहिष्करण त्रुटियों, दमन एवं नौकरशाही के अतिक्रमण का डर।

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