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विशेष अनुमति याचिका

Lokesh Pal March 04, 2025 03:08 12 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने कहा कि विशेष अनुमति याचिका का प्रावधान, जो शुरू में एक ‘संकीर्ण-सीमा’ वाला प्रावधान था, अब अपने व्यापक उपयोग के कारण मध्यस्थता प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है।

विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition-SLP) के बारे में

  • उत्पत्ति: भारत सरकार अधिनियम, 1935 से व्युत्पन्न अवधारणा, जिसने अपील के लिए विशेष अनुमति प्रदान करने के विशेषाधिकार को मान्यता दी थी।
  • SLP: विवेकाधीन अपील तंत्र (भारतीय संविधान का अनुच्छेद-136) सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण के निर्णयों, आदेशों या आदेशों के विरुद्ध अपील सुनने की अनुमति देता है।
    • सशस्त्र बल न्यायाधिकरणों के लिए लागू नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का असाधारण अधिकार क्षेत्र: जो इसे ऐसे मामलों को संबोधित करने में सक्षम बनाता है, जहाँ अपील का कोई प्रत्यक्ष अधिकार मौजूद नहीं है।
    • लक्ष्मी एंड कंपनी बनाम डॉ. अनंत आर. देशपांडे (1972): सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद-136 के तहत अपील के दौरान, वह कार्यवाही में तेजी लाने, पक्षों के अधिकारों की रक्षा करने तथा न्याय को कायम रखने के लिए बाद के घटनाक्रमों पर विचार कर सकता है।
    • केरल राज्य विद्युत बोर्ड बनाम कुन्हयाम्मद (2000): बिना कारण बताए SLP (विशेष अनुमति याचिका) को खारिज करना अनुच्छेद-141 के तहत पूर्वनिर्णित (res judicata) या कानून की घोषणा नहीं है।
      • इस तरह की बर्खास्तगी का अर्थ यह नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत के निर्णय का समर्थन किया है।
    • एन. सूर्यकला बनाम ए. मोहनदास एवं अन्य (2007): इस बात की पुनः पुष्टि की गई कि संविधान का अनुच्छेद-136 एक साधारण अपीलीय न्यायालय की स्थापना नहीं करता है, बल्कि मुकदमा करने वाले पक्षों को अपील का अधिकार प्रदान करने के बजाय, न्याय के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए हस्तक्षेप करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय को व्यापक विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति: यह पूरी तरह सर्वोच्च न्यायालय के विवेक पर निर्भर करती है, जो बिना कारण बताए छुट्टी देने से इनकार कर सकता है।
    • पीड़ित पक्ष भारतीय संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति को अधिकार के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता है।
  • पात्रता: कोई भी पीड़ित पक्ष उच्च न्यायालय या न्यायाधिकरण के किसी निर्णय अथवा आदेश के विरुद्ध SLP दायर कर सकता है, विशेषकर तब जब:-
    • सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए फिटनेस प्रमाण-पत्र अस्वीकार कर दिया गया हो।
    • कानून या अन्याय के महत्त्वपूर्ण प्रश्न शामिल हों।
  • सिविल और आपराधिक दोनों मामलों के लिए SLP दायर की जा सकती है। 
  • SLP दायर करने की समय सीमा: उच्च न्यायालय के निर्णय की तारीख से 90 दिनों के भीतर SLP दायर की जा सकती है।
    • यदि उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए उपयुक्तता प्रमाण-पत्र देने से इनकार करता है, तो SLP ऐसे इनकार की तारीख से 60 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए। 
    • SLP में वे सभी तथ्य शामिल होने चाहिए, जिन पर सर्वोच्च न्यायालय को निर्णय लेना है, जो उन आधारों के इर्द-गिर्द घूमते हैं, जिन पर SLP दायर की जा सकती है।
  • उक्त याचिका पर एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड द्वारा विधिवत हस्ताक्षर किए जाने चाहिए।
  • याचिकाकर्ता को SLP में यह कथन शामिल करना होगा कि उच्च न्यायालय में कोई अन्य याचिका दायर नहीं की गई है।
  • याचिका दायर होने के बाद: सर्वोच्च न्यायालय पीड़ित पक्ष की सुनवाई करेगा और मामले की योग्यता के आधार पर, विपक्षी पक्ष को जवाबी हलफनामे में अपना पक्ष रखने की अनुमति देगा।
  • सुनवाई के बाद: यदि न्यायालय मामले को आगे की सुनवाई के लिए उपयुक्त समझता है, तो वह इसकी अनुमति देगा; अन्यथा वह अपील को खारिज कर देगा।

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